ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुधवार, 25 अक्टूबर 2023

कर्मकाण्ड +ज्योतिष के अनुभव पर प्रकाश डालना चाहता हूँ -पढ़ें - भाग -57-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -57-ज्योतिषी झा मेरठ

आज अपनी जीवनी में कुछ कर्मकाण्ड +ज्योतिष के अनुभव पर प्रकाश डालना चाहता हूँ | --सनातन संस्कृति में -हमारेऋषि -महर्षियों ,आचार्यों ,गुरुजनों ,माता पिता के अथक योगदान हैं | आज कर्मकाण्ड जगत या ज्योतिष जगत के भूदेवों का सम्मान उन्हीं की वजह से होता है | यद्पि ऐसा नहीं है कि आज अच्छे आचार्य नहीं हैं -आज भी हैं पर सौ में एक हैं --इसलिए सभी एक जैसा ही दिखते हैं | मेरा सतत प्रयास रहता है --उन बातों को कहें जो हमने अनुभव किये हैं --क्योंकि केवल उनको ही प्रमाणिकता दी जा सकती है | ---अस्तु --हमने बहुत से यज्ञ किये एवं करायें हैं | किसी भी यज्ञ में दक्षिणा बाद में ली है | बहुत से बालक के विवाह एवं उनके बालक के विवाह कराये हैं | 1982 से 2023 तक करीब तीन पीढ़ियों से जुड़े हैं | मुझे अपने जीवन में एक भी यजमान ऐसे नहीं मिले जिन्हौनें श्रद्धा से कुछ उपहार दिया हो | अगर दिया है तो भोजन उत्तम ,सम्मान उत्तम ,व्यवहार उत्तम ,वस्त्र वो जो उन्हें अच्छे लगे -जो हमें अच्छे लगे कदापि नहीं | जीवन भर जी हजूरी करते रहे --बदले में चरण स्पर्श मिलता रहा | जब हम आधुनिक बनें ,आधुनिक यन्त्र से कार्य करने लगे तो --हमने भी नियम बदल दिए | आज काम को सलाम भी लोग करते हैं ,पैसे भी देते हैं --पर एक चीज है प्राचीनता में -सम्मान बहुत था ,आज आधुनिकता में धन तो मिलता है ,पैसे भी मिलते हैं पर गाली देने में भी देर नहीं करते हैं | मेरे बहुत से यजमान रहे जिन्हौनें दक्षिण दी नहीं ,बहुत से यजमान रहे सपने दिखाते रहे ,पुत्र की शादी हो जाएगी तो ये दूंगा ,पौत्र होगा तो वो दूंगा --पर देना तो दूर दक्षिणा भी खा गए | --इन तमाम बातों को देखते हुए नेट की दुनिया में 2010 में आया | हमने देखा आधुनिक यंत्र पर भूदेव कम थे ,जैन ,गोयल ,और भी बहुत लोग जो संस्कृत तो नहीं जानते थे पर अंग्रेजी, हिन्दी वाले बहुत थे --एक कहावत है --वचने किं दरिद्रता -'-पण्डित होहि जो गाल बजाबा " जो ज्ञानी पुरुष होते हैं वो फालतू की बातों से बेहतर हरी के सहारे चलते हैं ,जो अज्ञानी होते हैं -वो वर्तमान के सुख और सुविधा में जीते हैं | इस बात की समझ जब आती है तबतक व्यक्ति जीवन की अन्तिम धड़ी में पहुँच जाता है | --वैसे हमने वही प्रयास करने की अथक कोशिश की जो कर्मकाण्ड जगत में जो शास्त्र सम्मत थे ,नियम थे ,जो लोगों को आज भी लाभ दे और भविष्य में भी लाभ दे | बदले में धर्मसम्मत कुछ नहीं मिला | जब ज्योतिष जगत में आये तो फिर से वही कोशिश की जो धर्म सम्मत था --पर जो समय के साथ नहीं चलता है ---वो पीछे रह जाता है --अतः फ्री जैसा शब्द फ्री ही रहता है उसका वजूद क्षणिक होता है एवं अपना समय व्यर्थ करना होता है | यदि जन्मपत्री सही होती है ,ईस्वर का अस्तित्व है सृष्टि में ,सबके पालन कर्ता हैं श्रीहरि ,सभी राम नाम का सहारा लेकर ही भवसागर से पार होते हैं --और मन्त्रों में शक्ति हैं उन मन्त्रों से यजमान का भला हो सकता है -तो मेरा क्यों नहीं हो सकता है | इसके लिए वही राह चलनी चाहिए -जो शास्त्र कहते हैं ,गुरुजन कहते हैं ,माता पिता कहते हैं --देर हो सकती है विजय भी धर्म की ही होगी | कोई चले न चले हम चलें --जब हम चलेंगें तो पीछे के लोग अवश्य अनुशरण करेंगें | --अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुध ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ



 बुध ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ

-ज्योतिष जगत में बुध ग्रह को वाणी जगत का स्वामी माना गया है | ज्योतिष ग्रह बुध ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

नागपंचमी में कालसर्पदोष का निदान क्यों -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ


 




नागपंचमी में कालसर्पदोष का निदान क्यों -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ
----प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लोग नागपंचमी {नाग +शिव }की पूजा करते हैं ।अस्तु --पौराणिक मतों के अनुसार सृष्टि रचना की शुरुआत में विधाता ब्रह्माजी को विशेष क्रोध आया । परिणाम स्वरुप उनके आंसुओं की कुछ बूंदें पृथ्वी के कुछ भागों में गिरीं ---जो नाग रूप में उत्पन्न हुए ,इन नागों में मुख्य रूप से अनंत ,कुलिक ,वासुकि ,तक्षक ,कर्कोटक ,पदम ,महापदम और शंखपाल आदि नामों से विख्यात हैं । जब हम जन्म कुण्डली का आकलन करते हैं तो ये कालसर्पयोग के रूप में देखने को आज भी मिलते हैं -और जिसका सूक्ष्म निदान इस तिथि में करते हैं । ---विधाता ने इन नागों को अपनी संतान के साथ -साथ ग्रहों के समतुल्य शक्ति से युक्त भी कये --ग्रहों में -अनंतनाग =सूर्य ,वासुकि =चन्द्रमा ,तक्षक =मंगल ,कर्कोटक =बुध ,पदम =गुरु ,महापदम =शुक्र और कुलिक +शंखपाल =शनि ग्रह के जैसे हैं । --------गणेशजी एवं रूद्र जनेऊ के रूप में भोलेनाथ श्रृंगार के रूप में ,श्री हरि शैय्या {बिस्तर }के रूप में तो पृथ्वी को अपने फन के ऊपर शेषनाग ने धारण किया है । ---------ज्योतिष शास्त्र {वैदिक }में राहु को काल और केतु को सर्प माना जाता है । ---अतः नागदेवता की पूजा से प्राणी कुंडली में विदित दोष के आलावा शांति प्राप्त करता है । साथ विषधर जीवों के भय से भी मुक्त रहता है । घर में सुख -शान्ति बनी रहती है । घर निर्माण में भी नागदेवता की प्रतिमा रखी जाती है -क्योंकि हम इनके ऋणी भी हैं । -------जहाँ संसाधन युक्त लोग नहीं होते हैं या फिर परम्परा होती है वहां नागदेवता को मुख्य द्वार पर गाय +मिट्टी युक्त गाय गोबर से ही चित्र अंकित कर देते हैं । --घर में लक्ष्मी का वास बना रहे इसलिए भी पूजा करते हैं । -नोट ----वास्तविक बात यह है -कम धन ,कम समय और मेहनत से विशेष प्राप्ति हेतु कुछ मुख्य पर्व होते हैं - हमें विशेष लाभ प्राप्ति हेतु पूजा अर्चना अवश्य करनी चाहिए ।----ॐ शिव -
-प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सनातन संस्तृति कितनी विस्तृत है --पढ़ें -- भाग -56-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -56-ज्योतिषी झा मेरठ

'आज मैं सनातन संस्तृति कितनी विस्तृत है -पर हमलोग करते क्या हैं ,जानते क्या हैं -प्रकाश डालना चाहता हूँ '--------- सबसे पहली बात जो सदियों से आजतक और आज से अनादिकाल तक चलने वाली पद्धत्ति -संस्तृति को ही वास्तव में सनातन कहते हैं | इसकी नींव इतनी मजबूत है लाख चाहने से भी कमजोर नहीं हो सकती है | धर्म का भावार्थ है जिसे हम आत्मा की बातों को सुनकर अमल करते हैं उसे धर्म कहते है | जिसे हम बुद्धि के द्वारा कार्य करते हैं या मानते है -उसे तर्क और कुतर्क कहते हैं --वास्तव में जिससे अपना भी हित हो एवं सभी का हित हो उसे ही धर्म कहते हैं | सनातन के नियमों के विरुद्ध जाना ही व्यक्ति के उपनाम जाति शब्द है --जैसे मुझे कईबार गुरूजी -कुपात्र ,मलेच्छ ,भ्रष्ट ,संस्कारहीन ,गदहा जैसे शब्दों से सम्बोधन करते थे --जब मैं कोई व्यवहार शास्त्र सम्मत न करके ,दिल से न करके, मन के अनुरूप करता था --इसे ही वास्तव में काम के अनुसार व्यक्ति की जाति समझी जाती है | जब मैं कोई सुन्दर कार्य गुरु या माता पिता के अनुरूप करता था तो --सुन्दर ,काबिल ,अच्छा, उत्तम ,मन प्रसन्न हुआ --जैसे शब्दों से आशीष मिलता था --वस्तुतः --उत्तम कार्य करने पर ही माता पिता गुरुजन आशीष प्रदान करते हैं --जिसे -यह बालक उच्च कूल का है ,खानदानी है ,संस्कारी है ,आदि -आदि --वास्तव में व्यक्ति के गुणों को दर्शाने वाले कर्मों को ही जाति जैसे शब्दों में पिरोया गया --किन्तु -ज्ञानी और अज्ञानी व्यक्ति --किसी भी बात को अपनी -अपनी क्षमतानुसार उसकी व्याख्या करते हैं --जिसे सनातन नहीं कहते हैं बल्कि इसे व्यक्ति की कपोलकल्पना कहते हैं | मैं जन्मजात ब्राहण परिवार से हूँ किन्तु मेरे पिता या मेरे खानदान में कोई भी पुरोहित के कार्य नहीं करते थे | मेरे पिता व्यापारी थे --पर कालचक्र के कारण मैं अति दरिद्र हो गया | मेरी शिक्षा एक आश्रम में हुई -वहां के आचार्य दक्ष और निपुण थे उनके संस्कार मुझ में आये --अतः मैं व्यापार नहीं कर्मकाण्ड और ज्योतिष की दुनिया में आया | धर्म का आचरण करने वाले लोग भले ही कुछ देर के लिए भटक जाय पर बहुत जल्दी उसी परिबेश में आ जाते हैं | मैं एक शिक्षक बनना चाहता था ,कर्मकाण्ड या ज्योतिष से एक पीढ़ी खुशहाल हो सकती है किन्तु दूसरी पीढ़ी नष्ट या निकम्मा हो जाती है --क्योंकि जीवन जीने के लिए एक आचार्य दक्ष होते हुए भी गलत कार्य करे या झूठ से जीए -तो दण्ड भी मिलता है | संतान संस्कृति में -ज्यादातर जो दक्ष आचार्य रहे अपनी संतानों को ज्ञानी और धार्मिक बनाये | -------पर वर्तमान समय में ज्यादातर दक्ष आचार्य इसलिए नहीं है --क्योंकि विशेषतर जजमान ही अल्प ज्ञानी और अभिमानी हैं | धन है पर धर्म नहीं है ,धन है पर दया नहीं है ,धन और बल हैं इसलिए --इसलिए -जजमान आचार्यों के अनुसार नहीं होते हैं बल्कि आचार्य इनके अनुसार होते हैं | ऐसा होने पर किताब भी इनके अनुसार बनती है ,पंचांग कोई आचार्य नहीं जजमान बनाते हैं ,मन्दिर का सञ्चालन कोई आचार्य नहीं करते बल्कि वही जजमान के अनुसार होता है | परिणाम -भ्रष्टता बढ़ती जा रही है | सभी आचार्यों की संतान उसी पथ पर चलती है --जिस पथ पर केवल धन तो आये धर्म की कोई जगह नहीं होती है | सभी मठों पर ,आश्रमों पर ,आचार्यों पर ,संस्कृत के विद्यालयों पर जजमानों का ही अधिकार रहता है --धन के बिना कुछ चलता नहीं है | --अतः धन का आगमन ज्यादा हो धर्म केवल मुहर के लिए होता है | ऐसा नहीं है मैं कोई दूध का धुला हूँ --पर हमने गरीबी की वजह से ज्योतिष +कर्मकाण्ड को अपनाया | इतना तो धन प्रभु ने दिया है जिससे अपने बालक को सही दिशा दे सकते हैं --यह सोच सबकी हो जाय तो सनातन होगा --अन्यथा धन तो आता रहेगा --चाहे जजमान हों या पुरोहित --सिद्धांतों के विपरीत कोई चलेंगें तो न तो अपना भला कर पायेंगें न ही जग का भला करेंगें | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

मंगल ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



 मंगल ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ

ज्योतिष जगत में मंगल ग्रह को युवराज माना गया है | ज्योतिष ग्रह मंगल का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

घर में शिवलिंग रखें या न रखें- पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ"


 



घर में शिवलिंग रखें या न रखें- पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ"

घर में शिवलिंग रखें या न रखें इस बारे में लोगों के मन में बहुत से शक और

सवाल रहते हैं। घर मे सुख शांति व सकारात्मक ऊर्जा के लिए महादेव शिव के प्रतीक शिवलिंग को घर में स्थापित करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।--घर के मंदिर में रखे गए शिवलिंग का आकर हमारे अंगूठे से बड़ा नहीं होना चाहिए। शिवलिंग में जलधारा व एक नाग लिपटा हुआ होना चाहिए एवम शिवलिंग शुद्ध सोने, चांदी, स्फटिक या पारद से निर्मित होना चाहिए।--शिवलिंग की पूजा मे कभी तुलसी की पत्तियों, कुमकुम व हल्दी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।-शिवलिंग भगवान शंकर का एक अभिन्न अंग है, जो अति गर्म है, जिस कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा प्रचलित है। मन्दिरों में शिवलिंग के उपर एक घड़ा रखा होता है जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरा करती है जिससे शिवलिंग की गर्मी धीरे-धीरे शान्त होकर उसमें से सकारात्मतक उर्जा प्रवाहित होने लगती है। -घर में शिवलिंग पर भी रखने रोज जल/दूध अर्पित करना चाहिए, ऐसा न करने पर शिवलिंग से निकलने वाली गर्म उर्जा परिवार के लोगों को खासकर महिलाओं को नुकसान पहुंचाती है। जैसे- सिर दर्द, स्त्री रोग, जोडो में दर्द, मन अशांत, घरेलू झगड़े, आर्थिक अस्थिरिता आदि प्रकार की समस्यायें घर में बनी रहती है।---शुद्ध पारद शिवलिंग दर्शन मात्र से ही मोक्ष प्राप्त होता है इसके घर में रखने मात्र से ही सुयश, आजीविका में सफलता, सम्मान, शांति प्राप्त होती है | पारद पूर्ण जीवित धातु है. शुद्ध पारद हाथ मे लेने से स्पंदन का आभास होता है--|-ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज में---https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

आज मैं अपनी जीवनी में सनातन धर्म अनुभव क्या रहा है - भाग -55-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -55-ज्योतिषी झा मेरठ

आज मैं अपनी जीवनी में दर्शन कराना चाहता हूँ -सनातन धर्म अनुभव क्या रहा है | जब मैं 12 वर्ष का था -1982 में तब से सन्ध्यावन्दन करता आ रहा हूँ | मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई इन शहरों का पूर्ण योगदान रहा है मेरे जीवन में --इन शहरों की भाषा और संस्कृति का पूर्ण प्रभाव रहा है | मतान्तर प्रायः सभी चीजों में हैं --सनातन जो शास्त्र हैं या ऋषि- महर्षि या आचार्य हुए हैं --सबके दरवाजे बिना ताला के हैं ,सबके विचार यथावत हैं ,सबके आहार -व्यवहार जैसा अन्दर हैं वही बाहर हैं | आज की जो संस्कृति या संस्कार हैं --वो जैसा दिखते हैं -वास्तव में अन्दर कुछ और होता है --इसलिए तर्क और कुतर्क की संभावना बढ़ जाती है | --अस्तु --हमने अपने जीवन काल में तीन पीढ़ियों के सुखद संस्कार कराये हैं | आज भी वही हूँ जो 1982 में था | हमारा रहन -सहन ,वेश -भूषा ,खान -पीन ,हाव -भाव कुछ नहीं बदले --पर देने वाले यजमान बदल गए --| मन्दिर बढियाँ बनाते हैं --पुजारी घटिया रखते हैं | विवाह में -पंडाल ,भोजन ,बैण्ड बाजा ,पहनावा सभी उत्तम दर्जे के होते हैं किन्तु --पण्डित सबसे अनुभवहीन चाहिए --जिसकी दक्षिणा सबसे कम हो | जितने भी सोलह प्रकार के संस्कार होते हैं --उसे न तो जानते हैं --अगर जानते हैं -तो ब्राहण का कोई अस्तिव नहीं होता है | अब थोड़ी ज्योतिष की भी बात कर लेते हैं --दूल्हा करोड़पति हो --कुण्डली मिलान -100 रूपये का हो ऐसा मर्मज्ञ ज्योतिषी नहीं करते हैं --ये वही लोग कर सकते हैं --जिनके पास -100 रूपये का पंचांग होगा | जिनका अपना ज्ञान होगा या जिनका अपना पंचांग होगा -वो महंगे होंगें जो लोगों को स्वीकार्य नहीं होते हैं | हमने भी बहुत ज्योतिषी की है --जानने वाले यजमान हों तो सेवा करते जाएं दक्षिणा तो यजमान की चाकरी है | मन्दिर में रहना है -यजमान की हाँ में हाँ है तो मन्दिर है अन्यथा -ये मन्दिर भगवान का कम यजमानों का अधिक होता है --इसलिए उत्तम आचार्य पंडित नहीं होते --साथ ही शिक्षाविद हैं --शास्त्रों के नियमों का पालना करते हैं --तो यजमान अज्ञानी होते हैं -जिनके पास धन तो होता है ज्ञान नहीं होता है --तो भला जो अपना हित नहीं जानते वो समाज का हित क्या करेंगें | मुझे अपने जीवन में एक भी उत्तम यजमान नहीं मिले जिनके पास धन ,मन ,तन के साथ ज्ञानी भी हों | इसका परिणाम यह हुआ हम अपने पुत्र को ज्ञानी संस्कृत में नहीं अंग्रेजी में बनाना चाहते हैं | आज हर व्यक्ति सक्षम है ,हर व्यक्ति बढियाँ खाता है ,पीता है ,उत्तम दर्जे के संसाधनों से युक्त है ---पर दान घटिया ,विद्वान घटिया ,कर्म घटिया ,आचरण घटिया ,व्यवहार घटिया ,हर व्यक्ति को अपना सुख तो दिखता है --दूसरे को सुखी नहीं देख सकता है --परिणाम -नाश की ओर जाना | ये बातें आज ही हो रही है ऐसा नहीं है --राजा -महराजाओं के जमाने भी होता था --तब ऋषि-महर्षि -तपोवन में चले जाते थे --इन्हीं तमाम बातों को देखते हुए वैराग ले लेते थे | --मेरा सिर्फ यह कहना है --ज्योतिष और कर्मकाण्ड महर्षियों की देन हैं जिसे हमें पात्र भी बनना चाहिए --दान लें दान दें ,पढ़ें और पढायें ,यज्ञ करें और करायें --अन्यथा सनातन तो रहेगा सनातनी नहीं होंगें |-----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 23 अक्टूबर 2023

चंद्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ"



 चंद्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ"

ज्योतिष जगत में चंद्र ग्रह को मन्त्री माना गया है | ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

रुद्राक्ष क्यों धारण करें -पढ़ें -- ज्योतिषी झा "मेरठ




रुद्राक्ष क्यों धारण करें -पढ़ें -- ज्योतिषी झा "मेरठ

ॐ -यह हमारे पूर्वज जानते थे और रुद्राक्ष प्रयोग करते थे। क्योकि रुद्राक्ष मे एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो शरीर मे ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं। रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर 27-मुखी तक होते हैं, जिन्हें अलग-अलग प्रयोजन के लिए पहना जाता है। जैसे..... एक मुखी रुद्राक्ष : इसके मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। इसे धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होता है। चेतना का द्वार खुलता है, मन विकार रहित होता है और भय मुक्त रहता है। लक्ष्मी की कृपा होती है। दो मुखी रुद्राक्ष : मुख्य ग्रह चन्द्र हैं यह शिव और शक्ति का प्रतीक है मनुष्य इसे धारण कर फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है। तीन मुखी रुद्राक्ष : मुख्य ग्रह मंगल, भगवान शिव त्रिनेत्र हैं। भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है। यह तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना साक्षात भगवान शिव और शक्ति को धारण करना है। यह अग्रि स्वरूप है इसका धारण करना रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर में लाभप्रद है। आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है। चार मुखी रुद्राक्ष : चार मुखी रुद्राक्ष के मुख्य देवता ब्रह्मा हैं और यह बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी में भी लाभप्रद है। पांच मुखी रुद्राक्ष : यह साक्षात भगवान शिव का प्रसाद एवं सुलभ भी है। -- यह सर्व रोग हरण करता है। मधुमेह, ब्लडप्रैशर, नाक, कान, गुर्दा की बीमारी में धारण करना लाभप्रद है। यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। छ: मुखी रुद्राक्ष : शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करता है। इस पर शुक्रग्रह सत्तारूढ़ है। शरीर के समस्त विकारों को दूर करता है, उत्तम सोच-विचार को जन्म देता है, राजदरबार में सम्मान विजय प्राप्त कराता है। सात मुखी रुद्राक्ष : इस पर शनिग्रह की सत्तारूढ़ता है। यह भगवती महालक्ष्मी, सप्त ऋषियों का प्रतिनिधित्व करता है। लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, हड्डी के रोग दूर करता है, यह मस्तिष्क से संबंधित रोगों को भी रोकता है। आठ मुखी रुद्राक्ष : भैरव का स्वरूप माना जाता है, इसे धारण करने वाला व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। गणेश जी की कृपा रहती है। त्वचा रोग, नेत्र रोग से छुटकारा मिलता है, प्रेत बाधा का भय नहीं रहता। इस पर राहू ग्रह सत्तारूढ़ है। नौ मुखी रुद्राक्ष : नवग्रहों के उत्पात से रक्षा करता है। नौ देवियों का प्रतीक है। दरिद्रता नाशक होता है। लगभग सभी रोगों से मुक्ति का मार्ग देता है। दस मुखी रुद्राक्ष : भगवान विष्णु का प्रतीक स्वरूप है। इसे धारण करने से परम पवित्र विचार बनता है। अन्याय करने का मन नहीं होता। सन्मार्ग पर चलने का ही योग बनता है। कोई अन्याय नहीं कर सकता, उदर और नेत्र का रोग दूर करता है। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष : रुद्र के ग्यारहवें स्वरूप के प्रतीक, इस रुद्राक्ष को धारण करना परम शुभकारी है। इसके प्रभाव से धर्म का मार्ग मिलता है। धार्मिक लोगों का संग मिलता है। तीर्थयात्रा कराता है। ईश्वर की कृपा का मार्ग बनता है। बारह मुखी रुद्राक्ष : बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है। शिव की कृपा से ज्ञानचक्षु खुलता है, नेत्र रोग दूर करता है। ब्रेन से संबंधित कष्ट का निवारण होता है। तेरह मुखी रुद्राक्ष : इन्द्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मानव को सांसारिक सुख देता है, दरिद्रता का विनाश करता है, हड्डी, जोड़ दर्द, दांत के रोग से बचाता है। चौदह मुखी रुद्राक्ष : भगवान शंकर का प्रतीक है। शनि के प्रकोप को दूर करता है, त्वचा रोग, बाल के रोग, उदर कष्ट को दूर करता है। शिव भक्त बनने का मार्ग प्रशस्त करता है।-- रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से वह अपार गुणशाली होता है। अभिमंत्रित रुद्राक्ष से मानव शरीर का प्राण तत्व अथवा विद्युत शक्ति नियमित होती है। भूतबाधा, प्रेतबाधा, ग्रहबाधा, मानसिक रोग के अतिरिक्त हर प्रकार के शारीरिक कष्ट का निवारण होता है।---------- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

माता पिता,गुरुजन ,परिजन चाहें तो हर व्यक्ति बढियां बन सकता है -पढ़ें- भाग -54-ज्योतिषी झा मेरठ


 "मेरा" कल आज और कल


-पढ़ें ?--- भाग -54-ज्योतिषी झा मेरठ

आज अपनी जीवनी में -अबलोकन कराना चाहता हूं -मेरे जैसा व्यक्ति शिक्षाविद हो सकता है --तो माता पिता,गुरुजन ,परिजन चाहें तो हर व्यक्ति बढियां बन सकता है | मेरे जीवन में पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा -जब मैं 7 वर्ष का था तो एक ज्योतिषी ने कहा आपका बालक एक दिन राजा की तरह जियेगा --यह सुनी हुई बात है -पिता से ,जब मैं -38 वर्ष का हुआ और फिर से उत्तम समय शुरू हुआ था --1999 से -तो पुत्र भी मिला साथ ही पिता की वजह से एक भूखण्ड बाजार में ले रहा था | इस भुखण्ड को मैं जीजा के साथ या अनुज के साथ लेना चाहता था --पर पिता बोले तुम ही लोगे -अकेले लोगे --उतना धन नहीं था मेरे पास --इस भूखण्ड से पिता को केवल इतना लाभ मिला कि लोग उनकी तारीफ करने लगे --यही तो हर पिता को चाहिए | मेरी कुण्डली में सूर्य +मंगल +केतु लग्न में हैं --ऐसा जातक चाहकर भी नहीं पढ़ेगा --पर पिताने भरसक तबतक कोशिश की जबतक हम शिक्षाविद नहीं हुए | मेरे जैसा छात्र गुरुकुल गया तो -तो महान गुरुजन थे --जिनकी छत्र छाया में मेरे जैसा उदण्ड ,चोर ,घमण्डी ,उचक्का भी एक शास्त्री बन सका | प्राचीनकाल का इतिहास है --जो बालक नहीं पढता था उसको गुरुकुल अभिभावक दे आते थे --वही बालक एक निष्णात आचार्य बनकर आता था | लोग लांछना लगाते हैं --पर जीवन का इतिहास यही कहता है --माता पिता की चाह और त्याग हो तो बालक अच्छे बन सकते हैं | भारत भूमि पर भले ही बाल्य काल अच्छा न रहा हो पर -गुरुकुल से अच्छे आचार्य इसलिए बनते हैं --क्योंकि सभी आचार्य या गुरु उत्तम दर्जे का होते हैं | भारत वर्ष में अनन्त ऋषि -महर्षि हुए -बाबा तुलसी दास , भगवान बाल्मीक ऋषि --इनके बाल्य काल अच्छे नहीं थे पर --इनकी गाथा अजर -अमर है | मेरे जीवन में पिता का सान्निध्य केवल -13 वर्ष तक रहा --इनके अनन्त प्रयास थे जिनके लाभ मुझे जब 40 वर्ष के हुए तो समझ आये | घर से बहार जाने का अनुभव --11 वर्ष में ही मिला तब राजयोग था पर अबधि मंगल की समाप्त होने वाली थी --अतः घर से लोग बाहर ज्यादा निकलना नहीं चाहते हैं --किन्तु मुझे यह योग कुण्डली में था --अनायास मला --श्रीमहार्षि महेष योगी की शाखा पातेपुर जिला वैशाली में | जब -13 वर्ष के हुए राहु की दशा थी --पिताजी तो पढ़ने के लिए छोड़ आये थे --पर वो गुरु ही थे -भले ही उन्हौनें नहीं निखारा किन्तु --माहौल आश्रम का भगवानमय था --तो सत्संग का असर आया --तब हम उन यज्ञों में जाते थे भले ही भाव से नहीं जाते थे --किन्तु जब एक आचार्य बनें --तो वो सत्संग ही मुझे प्रखर बनाया | --------1988 में मेरठ पढ़ने आये -पर धन की बहुलता के आगे कुछ दिनों तक बिगड़ते रहे किन्तु --वो गुरुजनों की पूर्व की कृपा थी --अतः विवाह ,पुत्री होने के बाद भी पढ़ने मुम्बई चले गए --यह योग भी कुण्डली में था --क्योंकि गुरु की दृष्टि पंचम भाव पर थी | विदेश जाना था -1994 में किन्तु जब्दी कुर्की हुई घर की -नौकरी थी नहीं पर हम मन्दिर में नहीं रहना चाहते थे ,दान नहीं लेना चाहते थे ,मरे हुए का नहीं खाना चाहते थे -मेरी कुण्डली में चन्द्रमा का उच्च का होना मनोभाव को दर्शाता है --अतः मेरी नींव आश्रम में धर्म की मजबूत रखी गयी थी ,गुरुजनों की कृपा थी --पिता का त्याग था --अतः धर्मपथ पर आरूढ़ रहे | घर सुदृढ़ पतनी से होता है --व्यक्ति कितनी भी कोशिश करले अगर पतनी धार्मिक है तो एक न एक दिन धर्मध्वज फहरा कर रहती है --उसमें समय लगता है | भले ही मूरखता में शादी की पर नानी का आशीर्वाद था --कहीं न कहीं धर्म रक्षा करता रहा | कहने का अभिप्राय यह है --कुण्डली आपके कर्म पर निर्धारित होती है --पर कोई भी व्यक्ति बड़ा बनता है या छोटा --यह माता पिता और गुरुजनों की सक्षमता पर विशेष निर्भर करता है | मेरे जीवन में राहु की दशा थी या विवाह का सबल योग नहीं था -पर माता पिता ,गुरुजनों ,पतनी ,नानी की ऐसी छत्रछाया थी जो मुझे गरीब परिवार में जन्म होने के बाद भी सक्षम बनाया --इसलिए -ये सारी बातें कहीं होगीं ज्योतिषी ने पिता से -और बखूबी मेरे पिता ने निभाया --कभी किसी से मेरे पिता ने यह नहीं कहा मुझे धन चाहिए --केवल मेरे पुत्र को शिक्षाविद बनादो | हम चार भाई एक बहिन हुए --औरों को नहीं पढ़ाया केवल मुझे ही पढ़ाने का प्रयास क्यों किया गया --क्योंकि ऐसा योग था कुण्डली में ऐसे कर्म थे पूर्व के सो मिले --कोई भी माता पिता ,गुरु ठान लें यह करना है --अपने बच्चों को अवश्य पढ़ाना है --तो कुण्डली के पथ पर चलें लाभ संभव है | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

रविवार, 22 अक्टूबर 2023

ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें - ज्योतिषी झा मेरठ



 ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें - ज्योतिषी झा मेरठ

ज्योतिष जगत में सूर्य को सम्राट माना गया है | ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | --- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शरद पूर्णिमा-यानी-कोजागरी पूर्णिमा-की विशेषता-पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


  शरद पूर्णिमा-यानी-कोजागरी पूर्णिमा-की विशेषता-पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ



वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद पूर्णिमा का एक नाम "---
कोजागरी पूर्णिमा" भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है?----अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।----आयुर्वेदाचार्य वर्षभर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधीश 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।----शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।-----शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं।---पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।--------ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई

जन्मकुण्डली व्यक्ति के गुण और अबगुण दोनों को दर्शाती है -पढ़ें - भाग -53-खगोलशास्त्री झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -53-खगोलशास्त्री झा मेरठ,

"जन्मपत्री व्यक्ति के गुणों को भी दर्शाती है एवं अवगुणों को भी पर बहुत सी बातें कहीं नहीं जातीं हैं "--अस्तु -मेरी कुण्डली में चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में है ,बुध +शुक्र कि युति धन क्षेत्र में है -लग्न में सूर्य +मंगल +केतु हैं --सप्तम भाव में राहु है --इसके ऊपर मैं क्रम से विवेचन करूँगा | जिस प्रकार से -पुत्र के अनन्त अवगुणों को समाप्त करने के लिए सभी माता पिता ईस्वर से प्रार्थना ,दान ,जाप ,पूजा ,व्रत करते हैं --इनकी वजह से जातक उन्नति करता रहता है --जिसका उसे पता ही नहीं होता है किन्तु ज्योतिषी जान लेते हैं| इसी प्रकार से व्यक्ति के जीवन में जब पतनी आती है --तो अपने पति के अनन्त अवगुणों को समाप्त करने हेतु -व्रत ,जप ,पूजा -पाठ ,दान और यज्ञ का सहारा लेती है | तब कोई भी पति और भाग्यवान हो जाता है --जिसकी उसे स्वयं जानकारी नहीं होती है --पर ज्योतिषी कुण्डली के माध्यम से जान जाते हैं | ये तमाम बातें कुण्डली के माध्यम से जानी जा सकती है | यद्यपि मेरे जीवन में प्रेम रस बहुत रहा नहीं किन्तु ऐसा भी नहीं है --मैं दूध का ही धुला हूँ --जब मेरी उम्र थी -15 वर्ष थी तो अनजाने में प्रेम पत्र लिखा --परिणाम आश्रम से निकाला गया --ये मेरा बालकपन था | जब मैं -18 वर्ष का हुआ उपशास्त्री की परीक्षा दरभंगा में दे रहा था --मेरी सह पाठिका मुझसे बहुत स्नेह करती थी -एक साथ पेपर दे रहे थे -पर हमने प्रेम की जगह परीक्षक से शिकायत की और उसे बहुत दूर कर दिया | जब मेरा विवाह हुआ उसके बाद मैं मेरठ से मुम्बई पढ़ने जा रहा था --तो ट्रेन में एक बालिका मुझसे प्रेम करने लगी पर --मैं ख्वावों की दुनिया 24 घण्टे में दिखाकर बहुत दूर चला गया | मुम्बई में चलते फिरते प्रेम हो जाता है --कई प्रेम को तिरस्कार करता चला गया | जब मैं नेट की दुनिया -2010 में आया -मेरे आलेखों की बहुत मुरीद रही पाठिका -पर मैं हवा के झोखों की तरह आगे चलता रहा | मेरे जीवन में लोग मुझसे बहुत प्रेम करते रहे चाहे पुरुष हों या महिला --उनकी वात्सलता बहुत रही --पर मुझे कोई बहिन दिखाई देती रही तो कुछ माँ तो कुछ बेटी --के रूप में ही दिखाई दिए| --मुझे अपनी पतनी से सुन्दर किसी में नहीं दिखाई दिया |----पर --यह सारि बातें राहु और गुरु की दशा में रही जो 2014 में समाप्त हो चुकी है | -जब ये दशाएं थीं तो मैं अपनी पतनी से भागा -भागा फिरता था --और मेरी पतनी पलकें बिछाए मेरी राहें झांकती रही --कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ -किन्तु जब शनि की दशा शुरू हुई तो --सच्चे मन से पतनी का हो गया ---जब पतनी का हो गया तो पतनी बच्चों की हो गयी --अब मैं पीछे -पीछे भागता रहता हूँ पर पतनी को पकड़ नहीं पाता हूँ | --इसे कहते हैं -ग्रहों के खेल --जीवन में प्रत्येक व्यक्ति का एकपल ऐसा अवश्य आता है न चाहते हुए भी -वो पूजा भी करता है ,कुण्डली को भी मानता है ,सही राह चलने की अथक कोशिश करता है --तब उसे कुछ हाथ नहीं आता है | यहाँ मैं एक ही बात कहना चाहता हूँ --अपने जीवन को सुखी बनाना है --तो समय के साथ चलना चाहिए --जो समय को तिरस्कार करता है --एकदिन समय उसका साथ नहीं देता है --ऐसी बातों की जो जानकारी दे उसे ज्योतिष कहते हैं | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

शनिवार, 21 अक्टूबर 2023

नेट की दुनियां में कैसे आया -सुनें -भाग -52 -ज्योतिषी झा मेरठ


नेट की दुनियां में कैसे आया --सुनें -भाग -52 -ज्योतिषी झा मेरठ

मेरे प्रिय सहपाठीगण --नेट की दुनियां में आना मुझ जैसा अनपढ़ व्यक्ति लिए सपने की बात थी जब मैं 40 वर्ष का हुआ तब नेट की दुनिया में आया | मुझे अंग्रेजी आज भी नहीं ठीक से आती है फिर भी --वहाँ पंहूच गया -जहाँ पहुंचना था --कथा मेरे मुख से ही सुनें |----एकबार सुनकर देखें साथ ही ज्योतिष और कर्मकाण्ड के अनन्त प्रश्नों के जबाब प्रस्तुत पेज पर मिल सकता है --प्रवेश हेतु पधारें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ht


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दशहरा अर्थात रावण दहन विशेष-पढ़ें -पढ़ें --खगोलशास्त्री झा मेरठ


 रावण बनना भी कहां आसान...

रावण में अहंकार था

तो पश्चाताप भी था

रावण में वासना थी
तो संयम भी था
रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी
तो बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श भी न
करने का संकल्प भी था
सीता जीवित मिली ये राम की ही ताकत
थी
पर पवित्र मिली ये रावण की भी मर्यादा
थी
राम,
तुम्हारे युग का रावण अच्छा था..
दस के दस चेहरे, सब "बाहर" रखता था...!!


महसूस किया है कभी
उस जलते हुए रावण का दुःख
जो सामने खड़ी भीड़ से
बारबार पूछ रहा था.....
"तुम में से कोई राम है क्या?-ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut  उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई



हमारी जीवनी में अनन्त गुरुजनों की कृपा रही है-पढ़ें - भाग -52-खगोलशास्त्री झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -52-खगोलशास्त्री झा मेरठ

" हमारी जीवनी में अनन्त गुरुजनों की कृपा रही है --जो भेद भाव रहित रही है | चाहे देव -दानव हों ,चाहे पशु -पक्षी हों सब में युद्ध होते हैं किन्तु जरुरत पड़ने पर सब एक भी होते हैं | यह अखण्ड भारत भूमि है --जिसमें राजा हों ,सन्त हों ,ऋषि महर्षि हों ,समाज हो ,या कोई भी व्यक्ति सबने अनन्त योगदान दिए हैं --जिस पर मुझे गर्व है --और आशा है --आने वाले सदियों तक --अक्षुण्ण यह भारत भूमि रहेगी "--- मेरी पांचवी तक शिक्षा एक सरकारी स्कूल में मिली है --जिसमें मेरे मित्र -कोई मोची था ,कोई डोम था ,कोई साधु था ,कोई टिबरेवाल था ,कोई पासमान था ,कोई धानक था --पर हम सभी एक साथ भेद भाव रहित पढ़ते थे --1980 तक ऐसी ही शिक्षा मिली थी | 1983 से 1988 तक श्रीजगदीश नारायण ब्रह्मचर्याश्रम लगमा में पढ़ें --यहाँ एक कुर्मी संगीत गुरूजी थे --भले ही मेरी दयनीय स्थिति थी --मेरे गले में हलवा बांधा करते थे अपने घर से ताकि मैं उत्तम गायक बन सकूँ --पर उस हलवा को मैं खा जाया करता था | इसके बाद मेरठ महाविद्यालय में पढ़ें -1988 से 1991 तक -मेरे प्राध्यापक -जाटव थे -हम सभी से बहुत स्नेह करते थे | इसके बाद श्रीमुम्बादेवी संस्कृत महाविद्यालय गिरिगांव चौपाटी में पढ़े --मेरे अध्यापक एक यादवजी थे बहुत स्नेह करते थे --एकबार बोले इस पत्रिका का नाम बता दोगे -तो तुम्हें फ्री में दे दूंगा --उन्हें लगता था मुझे अंग्रेजी नहीं आती है --जब हमने कहा "नेक्टर इन ए शिव ' --इसका भावार्थ है --अमृत और चालन --इतने खुश हुए --यह पत्रिका मुझे दे दी | जब हम -30 वर्ष के हुए 2000 सन में --तो अधूरी संगीत शिक्षा को पूर्ण करने हेतु पढ़ने गए --मेरठ -जय हिन्द बैण्ड के प्रमुख श्री जगदीश धानकजी के पास --तो मुझसे इतना स्नेह करते थे --खुद मुझसे पैर नहीं छुआते थे पर तबला वादक --जो मुस्लिम थे उनके हम पैर जरूर छूते थे --और अपना पूर्ण आशीष मुझे देते थे | --जब हम रेडियो स्टेशन नई दिल्ली --1990 में गए --तो एक माथुर साहब थे --भले ही मुझे बहुत लताड़ा पर हिन्दी पर मेरी पकड़ आज उनकी ही देन है | भारत भूमि तपो भूमि है ,इस तपो भूमि की सस्कृति की रक्षा करना हम सबका दायित्व है --ये तभी संभव है -जब हम किसी की न सुनकर अपने -अपने हृदय की सुनेंगें --ह्रदय से सच्ची आवाज आएगी | --मैं एक ज्योतिषी हूँ --मेरे पास समाज के हर वर्ग के लोग आते --हमारा धर्म भेद भाव रहित होकर उन्हें सही राह बताने और समझाने का होता है --यही हमनें गुरुजनों से सीखा है ,यही हमारे शास्त्र -पुराण कहते हैं | ---जिस प्रकार से मन्दिर के भगवान सबके होते हैं --वैसे ही एक ज्योतिषी सम्पूर्ण भूमि का होता है | --सर्वे भवनु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामया ,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत --सभी सुखी हों ,सभी रोगों से मुक्त हों ,सभी को हम एक समान तभी देख सकते हैं --जब हम अपने आपको ठीक से देखने का प्रयास करेंगें | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -- https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

ज्योतिष की दुनिया और मेरी समझ -मुझसे ही सुनें -भाग -51 ज्योतिषी झा "मेरठ "



 ज्योतिष की दुनिया और मेरी समझ -मुझसे ही सुनें -भाग -51 ज्योतिषी झा "मेरठ "

प्रिय श्रोतागण --ज्योतिष की दुनिया की विशालता और मैंने जो अनुभव किया सम्पूर्ण बातों को मुझसे ही सुनें | कभी - कभी जो सुनते हैं --वही सच नहीं होता --सच तो केवल मन के अन्दर होता है | --एकबार सुनकर देखें साथ ही ज्योतिष और कर्मकाण्ड के अनन्त प्रश्नों के जबाब प्रस्तुत पेज पर मिल सकता है --प्रवेश हेतु पधारें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

विवाह के लिए संस्कार क्यों -पढ़ें-ज्योतिषी झा 'मेरठ"


 विवाह के लिए संस्कार क्यों -पढ़ें-ज्योतिषी झा 'मेरठ"

 कर्मकाण्ड जगत में प्रत्येक व्यक्ति को षोडश संस्कारों गुजरना होता है | सभी संस्कारों के अलग -अलग महत्त्व हैं | विवाह संस्कार प्रत्येक व्यक्ति का दशवां संस्कार होता है | इस विवाह संस्कार के बाद प्रत्येक व्यक्ति अपने -अपने सुखों से वंचित होते जाते हैं | विवाह संस्कार प्रत्येक व्यक्ति का एक सुखद संस्कार है | ज्ञानी पुरुष अपनी जिम्मेदारी की पूर्ति कर वैराग की ओर चलने लगते हैं | अज्ञानी पुरुष विवाह संस्कार के बाद मोह माया में विशेष रम जाते हैं | ---वास्तव में संसार के प्रत्येक व्यक्तियों का विवाह संस्कार एक सुखद संस्कार होता है जिसे हर्षोल्लास से मनाते हैं और मनाने भी चाहिए किन्तु --ब्राह्मणों {द्वीज }का विशेष खुशी का संस्कार यज्ञोपवीत संस्कार होता क्योंकि इस संस्कार के बाद जो अलौकिक ज्ञान गुरुजनों के सान्निध्य में मिलता है --उस ज्ञान की वजह से द्विज केवल माता पिता की मर्यादा का पालन करने हेतु विवाह संस्कार में बंधते हैं --इसलिए ब्राह्मणों का विवाह संस्कार अति सरल और भव्यता विहीन होता है किन्तु मन्त्रों की विधियों की अत्यधिकता होती है | पर आज इस बात का भान ही नहीं होता -जिस कारण से विवाह संस्कार में कहीं कोई न तो अंतर दिखता है न ही किसकी शादी हो रही है इसका पत्ता रंग रूप से दिखता है | अगर दिखती है तो विवाह की भव्यता | -----अब सबसे पहले यह समझें कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी बेटी दूसरे को देता है और दूसरे की बेटी को खुद स्वीकार करता है | क्यों --?--क्योंकि एक तो इस प्रक्रिया से समाज का विस्तार होता है, प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से जुड़ते हैं ,प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के सुख -दुःख में सहभागी बनते हैं -साथ ही अत्यधिक धन खर्च और परिश्रम भी करते हैं | दूसरा ---यदि यह प्रक्रिया नहीं हो तो प्रत्येक व्यक्ति जानवरों की भांति अपने -अपने घरों में सिमट कर रह जायेंगें | न माँ का न बहिन का न ही किसी संबंधों जान पायेंगें न ही इंसान बन पायेंगें | यही विवाह एक ऐसा संस्कार है --जो प्रत्येक व्यक्ति को जीने का ढंग सीखता है ,उसको एक सामाजिक प्राणी बनाता है साथ ही आने वाली पीढ़ी को एक नियमावली बताता है | अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस बात पर विचार करना चाहिए ---न कि मदोन्मत होकर वही बोलना या करना चाहिए जो न तो आपको सुख दे पाए न ही समाज की प्रेरणा बन सके | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें |-----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जब मैं आत्महत्या की सोच रहा था --2017 -18 में -पढ़ें - भाग -51-खगोलशास्त्री झा मेरठ



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -51-खगोलशास्त्री झा मेरठ

जब मैं आत्महत्या की सोच रहा था --2017 -18 में --तो मुझे अपनी भार्या के कुछ वो काम याद आये -जो बेटी की महानता को दर्शा रहे थे | एक पुत्र होकर ,एक पिता होकर जो काम मैं नहीं कर सका वो हमारी भार्या ने किये "-- मेरी पतनी अनपढ़ परिवार से है दशवीं किसी तरह से -1987 में किया है | अपने घर को सुदृढ़ रखा -अपने पिता की शान थी ,अभिमान थी --पर विवाह होते ही पतझर की तरह पिता ,दो भाईयों को खो दिए | ससुराल के सभी नकारात्मक दृष्टि से आज भी देखते हैं| मैं पति होकर ,वेदपाठी होकर ,आचार्य होकर कभी साथ नहीं दिया --फिर भी इन बातों को अपने माता पिता से नहीं कही है| पिता के साम्राज्य में धन का ,सम्मान का कोई अभाव नहीं था --फिर भी न याचना की न ही शरण ली माईके में | --सबसे पहले मुझे योग्य बनाया -हमारी पढ़ाई ,हमारा साम्राज्य स्थापित किया | अपनी बड़ी बेटी को वहां पहुंचाया जहाँ उसे माँ की तरह दुःख के दिन न देखने पड़े | छोटी बेटी बहुत बीमार रहती थी -अपने कन्धों पर उठाकर हॉस्पिटल खुद ले जाया करती थी --उसे भी वहां पहुंचाया जहाँ उसे माँ की तरह तकलीफ न झेलने पड़े | पुत्र नहीं था -अपने परिजनों की अनन्त उलाहना सुनते -सुनते --लड़ी नहीं साधना की ,तप किया और पुत्र भी प्राप्त किया --उसके भी सुखद यज्ञोपवीत संस्कार कराया | सास -ससुर ने हिस्सा नहीं दिया --तो काली का रूप धारण करके हिस्सा लेकर रही | सास -ससुर ,अनुज -अनुजबधू को जेल से बचाया --चाची के पैर पकड़कर | पिता,भाई के नहीं होने पर अपनी माँ का भी पुत्र की तरह ध्यान रखा --कभी अपनी माँ का कुछ लिया नहीं --उन्हें वही सलाह दी --जो पुत्र देता है --अपने घर में रहो ,भजन करो ,अपने पद की गरिमा बनाकर रखो | मेरी भार्या ने --कभी फ़िल्म नहीं देखी ,कभी कहीं गयी नहीं ,साधारण यात्रा करती है ,साधारण जीवन जीती है ,ईस्वर की आराधना में लीन रहती है --प्रत्येक संतान के लिए --दान ,पुण्य करती है ,प्रत्येक संतान को सही दिशा देती है --वो कठोर भी है ,अति मुलायम भी है ,बिना सास को खिलाये खाना नहीं खाना चाहती है --पर जब गलत बात होती है तो युद्ध भी सास से करती है ---यह योगदान दुनिया को दिखता है --पर मेरी माँ को ,दीदी को, जीजा को ,मामा को ,मामी को ,पिता को ,परिजनों को --यहाँ तक कि मुझको भी नहीं दिखाई दे रहा था | -यह स्थिति मेरे घर की ही नहीं है --बहुत से घर हैं --जहाँ --माँ---माँ को ही हृदय में आत्मसात नहीं करती है | --मेरी पतनी अल्पज्ञानी होकर भी मायके को भी संभालती है ,ससुराल का मान बढाती है ,धन को सभी बच्चों के सुखों में लगाती है ,----वो जैसा कल थी वैसा आज भी है --और वैसा ही कल भी रहेगी ---मुझ जैसे अभिमानी पुत्र ,पिता और पति को -कुछ सीखने की जरुरत है --इसका कारण यह --हमलोग वही पढ़ते हैं ,जो दूसरे पढ़ाते हैं ,कभी अपने हृदय में झांककर नहीं देखते हैं --मुझे करना क्या चाहिए ---आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई------ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...