मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -51-खगोलशास्त्री झा मेरठ
जब मैं आत्महत्या की सोच रहा था --2017 -18 में --तो मुझे अपनी भार्या के कुछ वो काम याद आये -जो बेटी की महानता को दर्शा रहे थे | एक पुत्र होकर ,एक पिता होकर जो काम मैं नहीं कर सका वो हमारी भार्या ने किये "-- मेरी पतनी अनपढ़ परिवार से है दशवीं किसी तरह से -1987 में किया है | अपने घर को सुदृढ़ रखा -अपने पिता की शान थी ,अभिमान थी --पर विवाह होते ही पतझर की तरह पिता ,दो भाईयों को खो दिए | ससुराल के सभी नकारात्मक दृष्टि से आज भी देखते हैं| मैं पति होकर ,वेदपाठी होकर ,आचार्य होकर कभी साथ नहीं दिया --फिर भी इन बातों को अपने माता पिता से नहीं कही है| पिता के साम्राज्य में धन का ,सम्मान का कोई अभाव नहीं था --फिर भी न याचना की न ही शरण ली माईके में | --सबसे पहले मुझे योग्य बनाया -हमारी पढ़ाई ,हमारा साम्राज्य स्थापित किया | अपनी बड़ी बेटी को वहां पहुंचाया जहाँ उसे माँ की तरह दुःख के दिन न देखने पड़े | छोटी बेटी बहुत बीमार रहती थी -अपने कन्धों पर उठाकर हॉस्पिटल खुद ले जाया करती थी --उसे भी वहां पहुंचाया जहाँ उसे माँ की तरह तकलीफ न झेलने पड़े | पुत्र नहीं था -अपने परिजनों की अनन्त उलाहना सुनते -सुनते --लड़ी नहीं साधना की ,तप किया और पुत्र भी प्राप्त किया --उसके भी सुखद यज्ञोपवीत संस्कार कराया | सास -ससुर ने हिस्सा नहीं दिया --तो काली का रूप धारण करके हिस्सा लेकर रही | सास -ससुर ,अनुज -अनुजबधू को जेल से बचाया --चाची के पैर पकड़कर | पिता,भाई के नहीं होने पर अपनी माँ का भी पुत्र की तरह ध्यान रखा --कभी अपनी माँ का कुछ लिया नहीं --उन्हें वही सलाह दी --जो पुत्र देता है --अपने घर में रहो ,भजन करो ,अपने पद की गरिमा बनाकर रखो | मेरी भार्या ने --कभी फ़िल्म नहीं देखी ,कभी कहीं गयी नहीं ,साधारण यात्रा करती है ,साधारण जीवन जीती है ,ईस्वर की आराधना में लीन रहती है --प्रत्येक संतान के लिए --दान ,पुण्य करती है ,प्रत्येक संतान को सही दिशा देती है --वो कठोर भी है ,अति मुलायम भी है ,बिना सास को खिलाये खाना नहीं खाना चाहती है --पर जब गलत बात होती है तो युद्ध भी सास से करती है ---यह योगदान दुनिया को दिखता है --पर मेरी माँ को ,दीदी को, जीजा को ,मामा को ,मामी को ,पिता को ,परिजनों को --यहाँ तक कि मुझको भी नहीं दिखाई दे रहा था | -यह स्थिति मेरे घर की ही नहीं है --बहुत से घर हैं --जहाँ --माँ---माँ को ही हृदय में आत्मसात नहीं करती है | --मेरी पतनी अल्पज्ञानी होकर भी मायके को भी संभालती है ,ससुराल का मान बढाती है ,धन को सभी बच्चों के सुखों में लगाती है ,----वो जैसा कल थी वैसा आज भी है --और वैसा ही कल भी रहेगी ---मुझ जैसे अभिमानी पुत्र ,पिता और पति को -कुछ सीखने की जरुरत है --इसका कारण यह --हमलोग वही पढ़ते हैं ,जो दूसरे पढ़ाते हैं ,कभी अपने हृदय में झांककर नहीं देखते हैं --मुझे करना क्या चाहिए ---आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई------ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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