"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -53-खगोलशास्त्री झा मेरठ,
"जन्मपत्री व्यक्ति के गुणों को भी दर्शाती है एवं अवगुणों को भी पर बहुत सी बातें कहीं नहीं जातीं हैं "--अस्तु -मेरी कुण्डली में चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में है ,बुध +शुक्र कि युति धन क्षेत्र में है -लग्न में सूर्य +मंगल +केतु हैं --सप्तम भाव में राहु है --इसके ऊपर मैं क्रम से विवेचन करूँगा | जिस प्रकार से -पुत्र के अनन्त अवगुणों को समाप्त करने के लिए सभी माता पिता ईस्वर से प्रार्थना ,दान ,जाप ,पूजा ,व्रत करते हैं --इनकी वजह से जातक उन्नति करता रहता है --जिसका उसे पता ही नहीं होता है किन्तु ज्योतिषी जान लेते हैं| इसी प्रकार से व्यक्ति के जीवन में जब पतनी आती है --तो अपने पति के अनन्त अवगुणों को समाप्त करने हेतु -व्रत ,जप ,पूजा -पाठ ,दान और यज्ञ का सहारा लेती है | तब कोई भी पति और भाग्यवान हो जाता है --जिसकी उसे स्वयं जानकारी नहीं होती है --पर ज्योतिषी कुण्डली के माध्यम से जान जाते हैं | ये तमाम बातें कुण्डली के माध्यम से जानी जा सकती है | यद्यपि मेरे जीवन में प्रेम रस बहुत रहा नहीं किन्तु ऐसा भी नहीं है --मैं दूध का ही धुला हूँ --जब मेरी उम्र थी -15 वर्ष थी तो अनजाने में प्रेम पत्र लिखा --परिणाम आश्रम से निकाला गया --ये मेरा बालकपन था | जब मैं -18 वर्ष का हुआ उपशास्त्री की परीक्षा दरभंगा में दे रहा था --मेरी सह पाठिका मुझसे बहुत स्नेह करती थी -एक साथ पेपर दे रहे थे -पर हमने प्रेम की जगह परीक्षक से शिकायत की और उसे बहुत दूर कर दिया | जब मेरा विवाह हुआ उसके बाद मैं मेरठ से मुम्बई पढ़ने जा रहा था --तो ट्रेन में एक बालिका मुझसे प्रेम करने लगी पर --मैं ख्वावों की दुनिया 24 घण्टे में दिखाकर बहुत दूर चला गया | मुम्बई में चलते फिरते प्रेम हो जाता है --कई प्रेम को तिरस्कार करता चला गया | जब मैं नेट की दुनिया -2010 में आया -मेरे आलेखों की बहुत मुरीद रही पाठिका -पर मैं हवा के झोखों की तरह आगे चलता रहा | मेरे जीवन में लोग मुझसे बहुत प्रेम करते रहे चाहे पुरुष हों या महिला --उनकी वात्सलता बहुत रही --पर मुझे कोई बहिन दिखाई देती रही तो कुछ माँ तो कुछ बेटी --के रूप में ही दिखाई दिए| --मुझे अपनी पतनी से सुन्दर किसी में नहीं दिखाई दिया |----पर --यह सारि बातें राहु और गुरु की दशा में रही जो 2014 में समाप्त हो चुकी है | -जब ये दशाएं थीं तो मैं अपनी पतनी से भागा -भागा फिरता था --और मेरी पतनी पलकें बिछाए मेरी राहें झांकती रही --कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ -किन्तु जब शनि की दशा शुरू हुई तो --सच्चे मन से पतनी का हो गया ---जब पतनी का हो गया तो पतनी बच्चों की हो गयी --अब मैं पीछे -पीछे भागता रहता हूँ पर पतनी को पकड़ नहीं पाता हूँ | --इसे कहते हैं -ग्रहों के खेल --जीवन में प्रत्येक व्यक्ति का एकपल ऐसा अवश्य आता है न चाहते हुए भी -वो पूजा भी करता है ,कुण्डली को भी मानता है ,सही राह चलने की अथक कोशिश करता है --तब उसे कुछ हाथ नहीं आता है | यहाँ मैं एक ही बात कहना चाहता हूँ --अपने जीवन को सुखी बनाना है --तो समय के साथ चलना चाहिए --जो समय को तिरस्कार करता है --एकदिन समय उसका साथ नहीं देता है --ऐसी बातों की जो जानकारी दे उसे ज्योतिष कहते हैं | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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