ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 23 अक्टूबर 2023

चंद्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ"



 चंद्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ"

ज्योतिष जगत में चंद्र ग्रह को मन्त्री माना गया है | ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

रुद्राक्ष क्यों धारण करें -पढ़ें -- ज्योतिषी झा "मेरठ




रुद्राक्ष क्यों धारण करें -पढ़ें -- ज्योतिषी झा "मेरठ

ॐ -यह हमारे पूर्वज जानते थे और रुद्राक्ष प्रयोग करते थे। क्योकि रुद्राक्ष मे एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो शरीर मे ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं। रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर 27-मुखी तक होते हैं, जिन्हें अलग-अलग प्रयोजन के लिए पहना जाता है। जैसे..... एक मुखी रुद्राक्ष : इसके मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। इसे धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होता है। चेतना का द्वार खुलता है, मन विकार रहित होता है और भय मुक्त रहता है। लक्ष्मी की कृपा होती है। दो मुखी रुद्राक्ष : मुख्य ग्रह चन्द्र हैं यह शिव और शक्ति का प्रतीक है मनुष्य इसे धारण कर फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है। तीन मुखी रुद्राक्ष : मुख्य ग्रह मंगल, भगवान शिव त्रिनेत्र हैं। भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है। यह तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना साक्षात भगवान शिव और शक्ति को धारण करना है। यह अग्रि स्वरूप है इसका धारण करना रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर में लाभप्रद है। आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है। चार मुखी रुद्राक्ष : चार मुखी रुद्राक्ष के मुख्य देवता ब्रह्मा हैं और यह बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी में भी लाभप्रद है। पांच मुखी रुद्राक्ष : यह साक्षात भगवान शिव का प्रसाद एवं सुलभ भी है। -- यह सर्व रोग हरण करता है। मधुमेह, ब्लडप्रैशर, नाक, कान, गुर्दा की बीमारी में धारण करना लाभप्रद है। यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। छ: मुखी रुद्राक्ष : शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करता है। इस पर शुक्रग्रह सत्तारूढ़ है। शरीर के समस्त विकारों को दूर करता है, उत्तम सोच-विचार को जन्म देता है, राजदरबार में सम्मान विजय प्राप्त कराता है। सात मुखी रुद्राक्ष : इस पर शनिग्रह की सत्तारूढ़ता है। यह भगवती महालक्ष्मी, सप्त ऋषियों का प्रतिनिधित्व करता है। लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, हड्डी के रोग दूर करता है, यह मस्तिष्क से संबंधित रोगों को भी रोकता है। आठ मुखी रुद्राक्ष : भैरव का स्वरूप माना जाता है, इसे धारण करने वाला व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। गणेश जी की कृपा रहती है। त्वचा रोग, नेत्र रोग से छुटकारा मिलता है, प्रेत बाधा का भय नहीं रहता। इस पर राहू ग्रह सत्तारूढ़ है। नौ मुखी रुद्राक्ष : नवग्रहों के उत्पात से रक्षा करता है। नौ देवियों का प्रतीक है। दरिद्रता नाशक होता है। लगभग सभी रोगों से मुक्ति का मार्ग देता है। दस मुखी रुद्राक्ष : भगवान विष्णु का प्रतीक स्वरूप है। इसे धारण करने से परम पवित्र विचार बनता है। अन्याय करने का मन नहीं होता। सन्मार्ग पर चलने का ही योग बनता है। कोई अन्याय नहीं कर सकता, उदर और नेत्र का रोग दूर करता है। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष : रुद्र के ग्यारहवें स्वरूप के प्रतीक, इस रुद्राक्ष को धारण करना परम शुभकारी है। इसके प्रभाव से धर्म का मार्ग मिलता है। धार्मिक लोगों का संग मिलता है। तीर्थयात्रा कराता है। ईश्वर की कृपा का मार्ग बनता है। बारह मुखी रुद्राक्ष : बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है। शिव की कृपा से ज्ञानचक्षु खुलता है, नेत्र रोग दूर करता है। ब्रेन से संबंधित कष्ट का निवारण होता है। तेरह मुखी रुद्राक्ष : इन्द्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मानव को सांसारिक सुख देता है, दरिद्रता का विनाश करता है, हड्डी, जोड़ दर्द, दांत के रोग से बचाता है। चौदह मुखी रुद्राक्ष : भगवान शंकर का प्रतीक है। शनि के प्रकोप को दूर करता है, त्वचा रोग, बाल के रोग, उदर कष्ट को दूर करता है। शिव भक्त बनने का मार्ग प्रशस्त करता है।-- रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से वह अपार गुणशाली होता है। अभिमंत्रित रुद्राक्ष से मानव शरीर का प्राण तत्व अथवा विद्युत शक्ति नियमित होती है। भूतबाधा, प्रेतबाधा, ग्रहबाधा, मानसिक रोग के अतिरिक्त हर प्रकार के शारीरिक कष्ट का निवारण होता है।---------- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

माता पिता,गुरुजन ,परिजन चाहें तो हर व्यक्ति बढियां बन सकता है -पढ़ें- भाग -54-ज्योतिषी झा मेरठ


 "मेरा" कल आज और कल


-पढ़ें ?--- भाग -54-ज्योतिषी झा मेरठ

आज अपनी जीवनी में -अबलोकन कराना चाहता हूं -मेरे जैसा व्यक्ति शिक्षाविद हो सकता है --तो माता पिता,गुरुजन ,परिजन चाहें तो हर व्यक्ति बढियां बन सकता है | मेरे जीवन में पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा -जब मैं 7 वर्ष का था तो एक ज्योतिषी ने कहा आपका बालक एक दिन राजा की तरह जियेगा --यह सुनी हुई बात है -पिता से ,जब मैं -38 वर्ष का हुआ और फिर से उत्तम समय शुरू हुआ था --1999 से -तो पुत्र भी मिला साथ ही पिता की वजह से एक भूखण्ड बाजार में ले रहा था | इस भुखण्ड को मैं जीजा के साथ या अनुज के साथ लेना चाहता था --पर पिता बोले तुम ही लोगे -अकेले लोगे --उतना धन नहीं था मेरे पास --इस भूखण्ड से पिता को केवल इतना लाभ मिला कि लोग उनकी तारीफ करने लगे --यही तो हर पिता को चाहिए | मेरी कुण्डली में सूर्य +मंगल +केतु लग्न में हैं --ऐसा जातक चाहकर भी नहीं पढ़ेगा --पर पिताने भरसक तबतक कोशिश की जबतक हम शिक्षाविद नहीं हुए | मेरे जैसा छात्र गुरुकुल गया तो -तो महान गुरुजन थे --जिनकी छत्र छाया में मेरे जैसा उदण्ड ,चोर ,घमण्डी ,उचक्का भी एक शास्त्री बन सका | प्राचीनकाल का इतिहास है --जो बालक नहीं पढता था उसको गुरुकुल अभिभावक दे आते थे --वही बालक एक निष्णात आचार्य बनकर आता था | लोग लांछना लगाते हैं --पर जीवन का इतिहास यही कहता है --माता पिता की चाह और त्याग हो तो बालक अच्छे बन सकते हैं | भारत भूमि पर भले ही बाल्य काल अच्छा न रहा हो पर -गुरुकुल से अच्छे आचार्य इसलिए बनते हैं --क्योंकि सभी आचार्य या गुरु उत्तम दर्जे का होते हैं | भारत वर्ष में अनन्त ऋषि -महर्षि हुए -बाबा तुलसी दास , भगवान बाल्मीक ऋषि --इनके बाल्य काल अच्छे नहीं थे पर --इनकी गाथा अजर -अमर है | मेरे जीवन में पिता का सान्निध्य केवल -13 वर्ष तक रहा --इनके अनन्त प्रयास थे जिनके लाभ मुझे जब 40 वर्ष के हुए तो समझ आये | घर से बहार जाने का अनुभव --11 वर्ष में ही मिला तब राजयोग था पर अबधि मंगल की समाप्त होने वाली थी --अतः घर से लोग बाहर ज्यादा निकलना नहीं चाहते हैं --किन्तु मुझे यह योग कुण्डली में था --अनायास मला --श्रीमहार्षि महेष योगी की शाखा पातेपुर जिला वैशाली में | जब -13 वर्ष के हुए राहु की दशा थी --पिताजी तो पढ़ने के लिए छोड़ आये थे --पर वो गुरु ही थे -भले ही उन्हौनें नहीं निखारा किन्तु --माहौल आश्रम का भगवानमय था --तो सत्संग का असर आया --तब हम उन यज्ञों में जाते थे भले ही भाव से नहीं जाते थे --किन्तु जब एक आचार्य बनें --तो वो सत्संग ही मुझे प्रखर बनाया | --------1988 में मेरठ पढ़ने आये -पर धन की बहुलता के आगे कुछ दिनों तक बिगड़ते रहे किन्तु --वो गुरुजनों की पूर्व की कृपा थी --अतः विवाह ,पुत्री होने के बाद भी पढ़ने मुम्बई चले गए --यह योग भी कुण्डली में था --क्योंकि गुरु की दृष्टि पंचम भाव पर थी | विदेश जाना था -1994 में किन्तु जब्दी कुर्की हुई घर की -नौकरी थी नहीं पर हम मन्दिर में नहीं रहना चाहते थे ,दान नहीं लेना चाहते थे ,मरे हुए का नहीं खाना चाहते थे -मेरी कुण्डली में चन्द्रमा का उच्च का होना मनोभाव को दर्शाता है --अतः मेरी नींव आश्रम में धर्म की मजबूत रखी गयी थी ,गुरुजनों की कृपा थी --पिता का त्याग था --अतः धर्मपथ पर आरूढ़ रहे | घर सुदृढ़ पतनी से होता है --व्यक्ति कितनी भी कोशिश करले अगर पतनी धार्मिक है तो एक न एक दिन धर्मध्वज फहरा कर रहती है --उसमें समय लगता है | भले ही मूरखता में शादी की पर नानी का आशीर्वाद था --कहीं न कहीं धर्म रक्षा करता रहा | कहने का अभिप्राय यह है --कुण्डली आपके कर्म पर निर्धारित होती है --पर कोई भी व्यक्ति बड़ा बनता है या छोटा --यह माता पिता और गुरुजनों की सक्षमता पर विशेष निर्भर करता है | मेरे जीवन में राहु की दशा थी या विवाह का सबल योग नहीं था -पर माता पिता ,गुरुजनों ,पतनी ,नानी की ऐसी छत्रछाया थी जो मुझे गरीब परिवार में जन्म होने के बाद भी सक्षम बनाया --इसलिए -ये सारी बातें कहीं होगीं ज्योतिषी ने पिता से -और बखूबी मेरे पिता ने निभाया --कभी किसी से मेरे पिता ने यह नहीं कहा मुझे धन चाहिए --केवल मेरे पुत्र को शिक्षाविद बनादो | हम चार भाई एक बहिन हुए --औरों को नहीं पढ़ाया केवल मुझे ही पढ़ाने का प्रयास क्यों किया गया --क्योंकि ऐसा योग था कुण्डली में ऐसे कर्म थे पूर्व के सो मिले --कोई भी माता पिता ,गुरु ठान लें यह करना है --अपने बच्चों को अवश्य पढ़ाना है --तो कुण्डली के पथ पर चलें लाभ संभव है | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

रविवार, 22 अक्टूबर 2023

ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें - ज्योतिषी झा मेरठ



 ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें - ज्योतिषी झा मेरठ

ज्योतिष जगत में सूर्य को सम्राट माना गया है | ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | --- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शरद पूर्णिमा-यानी-कोजागरी पूर्णिमा-की विशेषता-पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


  शरद पूर्णिमा-यानी-कोजागरी पूर्णिमा-की विशेषता-पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ



वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद पूर्णिमा का एक नाम "---
कोजागरी पूर्णिमा" भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है?----अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।----आयुर्वेदाचार्य वर्षभर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधीश 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।----शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।-----शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं।---पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।--------ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई

जन्मकुण्डली व्यक्ति के गुण और अबगुण दोनों को दर्शाती है -पढ़ें - भाग -53-खगोलशास्त्री झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -53-खगोलशास्त्री झा मेरठ,

"जन्मपत्री व्यक्ति के गुणों को भी दर्शाती है एवं अवगुणों को भी पर बहुत सी बातें कहीं नहीं जातीं हैं "--अस्तु -मेरी कुण्डली में चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में है ,बुध +शुक्र कि युति धन क्षेत्र में है -लग्न में सूर्य +मंगल +केतु हैं --सप्तम भाव में राहु है --इसके ऊपर मैं क्रम से विवेचन करूँगा | जिस प्रकार से -पुत्र के अनन्त अवगुणों को समाप्त करने के लिए सभी माता पिता ईस्वर से प्रार्थना ,दान ,जाप ,पूजा ,व्रत करते हैं --इनकी वजह से जातक उन्नति करता रहता है --जिसका उसे पता ही नहीं होता है किन्तु ज्योतिषी जान लेते हैं| इसी प्रकार से व्यक्ति के जीवन में जब पतनी आती है --तो अपने पति के अनन्त अवगुणों को समाप्त करने हेतु -व्रत ,जप ,पूजा -पाठ ,दान और यज्ञ का सहारा लेती है | तब कोई भी पति और भाग्यवान हो जाता है --जिसकी उसे स्वयं जानकारी नहीं होती है --पर ज्योतिषी कुण्डली के माध्यम से जान जाते हैं | ये तमाम बातें कुण्डली के माध्यम से जानी जा सकती है | यद्यपि मेरे जीवन में प्रेम रस बहुत रहा नहीं किन्तु ऐसा भी नहीं है --मैं दूध का ही धुला हूँ --जब मेरी उम्र थी -15 वर्ष थी तो अनजाने में प्रेम पत्र लिखा --परिणाम आश्रम से निकाला गया --ये मेरा बालकपन था | जब मैं -18 वर्ष का हुआ उपशास्त्री की परीक्षा दरभंगा में दे रहा था --मेरी सह पाठिका मुझसे बहुत स्नेह करती थी -एक साथ पेपर दे रहे थे -पर हमने प्रेम की जगह परीक्षक से शिकायत की और उसे बहुत दूर कर दिया | जब मेरा विवाह हुआ उसके बाद मैं मेरठ से मुम्बई पढ़ने जा रहा था --तो ट्रेन में एक बालिका मुझसे प्रेम करने लगी पर --मैं ख्वावों की दुनिया 24 घण्टे में दिखाकर बहुत दूर चला गया | मुम्बई में चलते फिरते प्रेम हो जाता है --कई प्रेम को तिरस्कार करता चला गया | जब मैं नेट की दुनिया -2010 में आया -मेरे आलेखों की बहुत मुरीद रही पाठिका -पर मैं हवा के झोखों की तरह आगे चलता रहा | मेरे जीवन में लोग मुझसे बहुत प्रेम करते रहे चाहे पुरुष हों या महिला --उनकी वात्सलता बहुत रही --पर मुझे कोई बहिन दिखाई देती रही तो कुछ माँ तो कुछ बेटी --के रूप में ही दिखाई दिए| --मुझे अपनी पतनी से सुन्दर किसी में नहीं दिखाई दिया |----पर --यह सारि बातें राहु और गुरु की दशा में रही जो 2014 में समाप्त हो चुकी है | -जब ये दशाएं थीं तो मैं अपनी पतनी से भागा -भागा फिरता था --और मेरी पतनी पलकें बिछाए मेरी राहें झांकती रही --कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ -किन्तु जब शनि की दशा शुरू हुई तो --सच्चे मन से पतनी का हो गया ---जब पतनी का हो गया तो पतनी बच्चों की हो गयी --अब मैं पीछे -पीछे भागता रहता हूँ पर पतनी को पकड़ नहीं पाता हूँ | --इसे कहते हैं -ग्रहों के खेल --जीवन में प्रत्येक व्यक्ति का एकपल ऐसा अवश्य आता है न चाहते हुए भी -वो पूजा भी करता है ,कुण्डली को भी मानता है ,सही राह चलने की अथक कोशिश करता है --तब उसे कुछ हाथ नहीं आता है | यहाँ मैं एक ही बात कहना चाहता हूँ --अपने जीवन को सुखी बनाना है --तो समय के साथ चलना चाहिए --जो समय को तिरस्कार करता है --एकदिन समय उसका साथ नहीं देता है --ऐसी बातों की जो जानकारी दे उसे ज्योतिष कहते हैं | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

शनिवार, 21 अक्टूबर 2023

नेट की दुनियां में कैसे आया -सुनें -भाग -52 -ज्योतिषी झा मेरठ


नेट की दुनियां में कैसे आया --सुनें -भाग -52 -ज्योतिषी झा मेरठ

मेरे प्रिय सहपाठीगण --नेट की दुनियां में आना मुझ जैसा अनपढ़ व्यक्ति लिए सपने की बात थी जब मैं 40 वर्ष का हुआ तब नेट की दुनिया में आया | मुझे अंग्रेजी आज भी नहीं ठीक से आती है फिर भी --वहाँ पंहूच गया -जहाँ पहुंचना था --कथा मेरे मुख से ही सुनें |----एकबार सुनकर देखें साथ ही ज्योतिष और कर्मकाण्ड के अनन्त प्रश्नों के जबाब प्रस्तुत पेज पर मिल सकता है --प्रवेश हेतु पधारें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ht


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दशहरा अर्थात रावण दहन विशेष-पढ़ें -पढ़ें --खगोलशास्त्री झा मेरठ


 रावण बनना भी कहां आसान...

रावण में अहंकार था

तो पश्चाताप भी था

रावण में वासना थी
तो संयम भी था
रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी
तो बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श भी न
करने का संकल्प भी था
सीता जीवित मिली ये राम की ही ताकत
थी
पर पवित्र मिली ये रावण की भी मर्यादा
थी
राम,
तुम्हारे युग का रावण अच्छा था..
दस के दस चेहरे, सब "बाहर" रखता था...!!


महसूस किया है कभी
उस जलते हुए रावण का दुःख
जो सामने खड़ी भीड़ से
बारबार पूछ रहा था.....
"तुम में से कोई राम है क्या?-ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut  उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई



हमारी जीवनी में अनन्त गुरुजनों की कृपा रही है-पढ़ें - भाग -52-खगोलशास्त्री झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -52-खगोलशास्त्री झा मेरठ

" हमारी जीवनी में अनन्त गुरुजनों की कृपा रही है --जो भेद भाव रहित रही है | चाहे देव -दानव हों ,चाहे पशु -पक्षी हों सब में युद्ध होते हैं किन्तु जरुरत पड़ने पर सब एक भी होते हैं | यह अखण्ड भारत भूमि है --जिसमें राजा हों ,सन्त हों ,ऋषि महर्षि हों ,समाज हो ,या कोई भी व्यक्ति सबने अनन्त योगदान दिए हैं --जिस पर मुझे गर्व है --और आशा है --आने वाले सदियों तक --अक्षुण्ण यह भारत भूमि रहेगी "--- मेरी पांचवी तक शिक्षा एक सरकारी स्कूल में मिली है --जिसमें मेरे मित्र -कोई मोची था ,कोई डोम था ,कोई साधु था ,कोई टिबरेवाल था ,कोई पासमान था ,कोई धानक था --पर हम सभी एक साथ भेद भाव रहित पढ़ते थे --1980 तक ऐसी ही शिक्षा मिली थी | 1983 से 1988 तक श्रीजगदीश नारायण ब्रह्मचर्याश्रम लगमा में पढ़ें --यहाँ एक कुर्मी संगीत गुरूजी थे --भले ही मेरी दयनीय स्थिति थी --मेरे गले में हलवा बांधा करते थे अपने घर से ताकि मैं उत्तम गायक बन सकूँ --पर उस हलवा को मैं खा जाया करता था | इसके बाद मेरठ महाविद्यालय में पढ़ें -1988 से 1991 तक -मेरे प्राध्यापक -जाटव थे -हम सभी से बहुत स्नेह करते थे | इसके बाद श्रीमुम्बादेवी संस्कृत महाविद्यालय गिरिगांव चौपाटी में पढ़े --मेरे अध्यापक एक यादवजी थे बहुत स्नेह करते थे --एकबार बोले इस पत्रिका का नाम बता दोगे -तो तुम्हें फ्री में दे दूंगा --उन्हें लगता था मुझे अंग्रेजी नहीं आती है --जब हमने कहा "नेक्टर इन ए शिव ' --इसका भावार्थ है --अमृत और चालन --इतने खुश हुए --यह पत्रिका मुझे दे दी | जब हम -30 वर्ष के हुए 2000 सन में --तो अधूरी संगीत शिक्षा को पूर्ण करने हेतु पढ़ने गए --मेरठ -जय हिन्द बैण्ड के प्रमुख श्री जगदीश धानकजी के पास --तो मुझसे इतना स्नेह करते थे --खुद मुझसे पैर नहीं छुआते थे पर तबला वादक --जो मुस्लिम थे उनके हम पैर जरूर छूते थे --और अपना पूर्ण आशीष मुझे देते थे | --जब हम रेडियो स्टेशन नई दिल्ली --1990 में गए --तो एक माथुर साहब थे --भले ही मुझे बहुत लताड़ा पर हिन्दी पर मेरी पकड़ आज उनकी ही देन है | भारत भूमि तपो भूमि है ,इस तपो भूमि की सस्कृति की रक्षा करना हम सबका दायित्व है --ये तभी संभव है -जब हम किसी की न सुनकर अपने -अपने हृदय की सुनेंगें --ह्रदय से सच्ची आवाज आएगी | --मैं एक ज्योतिषी हूँ --मेरे पास समाज के हर वर्ग के लोग आते --हमारा धर्म भेद भाव रहित होकर उन्हें सही राह बताने और समझाने का होता है --यही हमनें गुरुजनों से सीखा है ,यही हमारे शास्त्र -पुराण कहते हैं | ---जिस प्रकार से मन्दिर के भगवान सबके होते हैं --वैसे ही एक ज्योतिषी सम्पूर्ण भूमि का होता है | --सर्वे भवनु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामया ,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत --सभी सुखी हों ,सभी रोगों से मुक्त हों ,सभी को हम एक समान तभी देख सकते हैं --जब हम अपने आपको ठीक से देखने का प्रयास करेंगें | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -- https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

ज्योतिष की दुनिया और मेरी समझ -मुझसे ही सुनें -भाग -51 ज्योतिषी झा "मेरठ "



 ज्योतिष की दुनिया और मेरी समझ -मुझसे ही सुनें -भाग -51 ज्योतिषी झा "मेरठ "

प्रिय श्रोतागण --ज्योतिष की दुनिया की विशालता और मैंने जो अनुभव किया सम्पूर्ण बातों को मुझसे ही सुनें | कभी - कभी जो सुनते हैं --वही सच नहीं होता --सच तो केवल मन के अन्दर होता है | --एकबार सुनकर देखें साथ ही ज्योतिष और कर्मकाण्ड के अनन्त प्रश्नों के जबाब प्रस्तुत पेज पर मिल सकता है --प्रवेश हेतु पधारें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

विवाह के लिए संस्कार क्यों -पढ़ें-ज्योतिषी झा 'मेरठ"


 विवाह के लिए संस्कार क्यों -पढ़ें-ज्योतिषी झा 'मेरठ"

 कर्मकाण्ड जगत में प्रत्येक व्यक्ति को षोडश संस्कारों गुजरना होता है | सभी संस्कारों के अलग -अलग महत्त्व हैं | विवाह संस्कार प्रत्येक व्यक्ति का दशवां संस्कार होता है | इस विवाह संस्कार के बाद प्रत्येक व्यक्ति अपने -अपने सुखों से वंचित होते जाते हैं | विवाह संस्कार प्रत्येक व्यक्ति का एक सुखद संस्कार है | ज्ञानी पुरुष अपनी जिम्मेदारी की पूर्ति कर वैराग की ओर चलने लगते हैं | अज्ञानी पुरुष विवाह संस्कार के बाद मोह माया में विशेष रम जाते हैं | ---वास्तव में संसार के प्रत्येक व्यक्तियों का विवाह संस्कार एक सुखद संस्कार होता है जिसे हर्षोल्लास से मनाते हैं और मनाने भी चाहिए किन्तु --ब्राह्मणों {द्वीज }का विशेष खुशी का संस्कार यज्ञोपवीत संस्कार होता क्योंकि इस संस्कार के बाद जो अलौकिक ज्ञान गुरुजनों के सान्निध्य में मिलता है --उस ज्ञान की वजह से द्विज केवल माता पिता की मर्यादा का पालन करने हेतु विवाह संस्कार में बंधते हैं --इसलिए ब्राह्मणों का विवाह संस्कार अति सरल और भव्यता विहीन होता है किन्तु मन्त्रों की विधियों की अत्यधिकता होती है | पर आज इस बात का भान ही नहीं होता -जिस कारण से विवाह संस्कार में कहीं कोई न तो अंतर दिखता है न ही किसकी शादी हो रही है इसका पत्ता रंग रूप से दिखता है | अगर दिखती है तो विवाह की भव्यता | -----अब सबसे पहले यह समझें कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी बेटी दूसरे को देता है और दूसरे की बेटी को खुद स्वीकार करता है | क्यों --?--क्योंकि एक तो इस प्रक्रिया से समाज का विस्तार होता है, प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से जुड़ते हैं ,प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के सुख -दुःख में सहभागी बनते हैं -साथ ही अत्यधिक धन खर्च और परिश्रम भी करते हैं | दूसरा ---यदि यह प्रक्रिया नहीं हो तो प्रत्येक व्यक्ति जानवरों की भांति अपने -अपने घरों में सिमट कर रह जायेंगें | न माँ का न बहिन का न ही किसी संबंधों जान पायेंगें न ही इंसान बन पायेंगें | यही विवाह एक ऐसा संस्कार है --जो प्रत्येक व्यक्ति को जीने का ढंग सीखता है ,उसको एक सामाजिक प्राणी बनाता है साथ ही आने वाली पीढ़ी को एक नियमावली बताता है | अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस बात पर विचार करना चाहिए ---न कि मदोन्मत होकर वही बोलना या करना चाहिए जो न तो आपको सुख दे पाए न ही समाज की प्रेरणा बन सके | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें |-----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जब मैं आत्महत्या की सोच रहा था --2017 -18 में -पढ़ें - भाग -51-खगोलशास्त्री झा मेरठ



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -51-खगोलशास्त्री झा मेरठ

जब मैं आत्महत्या की सोच रहा था --2017 -18 में --तो मुझे अपनी भार्या के कुछ वो काम याद आये -जो बेटी की महानता को दर्शा रहे थे | एक पुत्र होकर ,एक पिता होकर जो काम मैं नहीं कर सका वो हमारी भार्या ने किये "-- मेरी पतनी अनपढ़ परिवार से है दशवीं किसी तरह से -1987 में किया है | अपने घर को सुदृढ़ रखा -अपने पिता की शान थी ,अभिमान थी --पर विवाह होते ही पतझर की तरह पिता ,दो भाईयों को खो दिए | ससुराल के सभी नकारात्मक दृष्टि से आज भी देखते हैं| मैं पति होकर ,वेदपाठी होकर ,आचार्य होकर कभी साथ नहीं दिया --फिर भी इन बातों को अपने माता पिता से नहीं कही है| पिता के साम्राज्य में धन का ,सम्मान का कोई अभाव नहीं था --फिर भी न याचना की न ही शरण ली माईके में | --सबसे पहले मुझे योग्य बनाया -हमारी पढ़ाई ,हमारा साम्राज्य स्थापित किया | अपनी बड़ी बेटी को वहां पहुंचाया जहाँ उसे माँ की तरह दुःख के दिन न देखने पड़े | छोटी बेटी बहुत बीमार रहती थी -अपने कन्धों पर उठाकर हॉस्पिटल खुद ले जाया करती थी --उसे भी वहां पहुंचाया जहाँ उसे माँ की तरह तकलीफ न झेलने पड़े | पुत्र नहीं था -अपने परिजनों की अनन्त उलाहना सुनते -सुनते --लड़ी नहीं साधना की ,तप किया और पुत्र भी प्राप्त किया --उसके भी सुखद यज्ञोपवीत संस्कार कराया | सास -ससुर ने हिस्सा नहीं दिया --तो काली का रूप धारण करके हिस्सा लेकर रही | सास -ससुर ,अनुज -अनुजबधू को जेल से बचाया --चाची के पैर पकड़कर | पिता,भाई के नहीं होने पर अपनी माँ का भी पुत्र की तरह ध्यान रखा --कभी अपनी माँ का कुछ लिया नहीं --उन्हें वही सलाह दी --जो पुत्र देता है --अपने घर में रहो ,भजन करो ,अपने पद की गरिमा बनाकर रखो | मेरी भार्या ने --कभी फ़िल्म नहीं देखी ,कभी कहीं गयी नहीं ,साधारण यात्रा करती है ,साधारण जीवन जीती है ,ईस्वर की आराधना में लीन रहती है --प्रत्येक संतान के लिए --दान ,पुण्य करती है ,प्रत्येक संतान को सही दिशा देती है --वो कठोर भी है ,अति मुलायम भी है ,बिना सास को खिलाये खाना नहीं खाना चाहती है --पर जब गलत बात होती है तो युद्ध भी सास से करती है ---यह योगदान दुनिया को दिखता है --पर मेरी माँ को ,दीदी को, जीजा को ,मामा को ,मामी को ,पिता को ,परिजनों को --यहाँ तक कि मुझको भी नहीं दिखाई दे रहा था | -यह स्थिति मेरे घर की ही नहीं है --बहुत से घर हैं --जहाँ --माँ---माँ को ही हृदय में आत्मसात नहीं करती है | --मेरी पतनी अल्पज्ञानी होकर भी मायके को भी संभालती है ,ससुराल का मान बढाती है ,धन को सभी बच्चों के सुखों में लगाती है ,----वो जैसा कल थी वैसा आज भी है --और वैसा ही कल भी रहेगी ---मुझ जैसे अभिमानी पुत्र ,पिता और पति को -कुछ सीखने की जरुरत है --इसका कारण यह --हमलोग वही पढ़ते हैं ,जो दूसरे पढ़ाते हैं ,कभी अपने हृदय में झांककर नहीं देखते हैं --मुझे करना क्या चाहिए ---आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई------ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 19 अक्टूबर 2023

ज्योतिष की भविष्यवाणी सत्य क्यों होती है -सुनें भाग -50 ज्योतिषी झा 'मेरठ "



 ज्योतिष की भविष्यवाणी सत्य क्यों होती है -सुनें भाग -50 -ज्योतिषी झा 'मेरठ "

ज्योतिष के जिज्ञासु पाठकगण --ज्योतिष की तमाम बातों को जाना जा सकता है --अगर गणित और फलित के साथ ईष्ट की कृपा तो --तमाम बातों को एकबार सुनें साथ ही अपनी कसौटी पर परखकर देखें | --आपके समस्त ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत पेज में हैं ---खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

विद्याअध्ययन संस्कार-क्यों -पढ़ें - ज्योतिषी झा "मेरठ"


 विद्याअध्ययन संस्कार-क्यों -पढ़ें - ज्योतिषी झा "मेरठ"

या विद्या सा विमुक्तये --वास्तवित बात तो यह विद्या ऐसी होनी चाहिए जो लोभ ,अर्थ ,काम, मोह का परित्याग कराकर मोक्ष की ओर ले चले | धयान दें ---जब आप उत्तम शिक्षा की प्राप्ति करते हैं तो उत्तम पद और उत्तम धन की जिज्ञासा अवश्य रखेंगें | जब आप उत्तम भवन की नींव रखते हैं तो भवन को भव्य अवश्य बनायेंगें | ठीक इसी प्रकार से जब उत्तम संतान की कामना करते हैं तो शिक्षा भी उत्तम होनी चाहिए | पर जिस विद्याध्ययन संस्कार का प्रतिपादन मह्रषियों ने किया उस विद्याध्ययन के लिए माता पिता परिजनों के साथ साथ उत्तम रहन -सहन का भी त्याग करना होता है तभी अलौकिक विद्या प्रभाव दे पाती है | यहाँ से दो मार्ग शुरू होते हैं सभी जातकों के -{1 }पहला -संसार में जीने हेतु या जीवन को समझने हेतु लौकिक विद्या का ज्ञान अनिवार्य है --इसके लिए किसी भी चीज का त्याग करना अनिवार्य नहीं होता बल्कि केवल समझना अनिवार्य होता है | {2 }यह संसार मोह माया से लिप्त है और जो इस धरा पर आया है उसे जाना भी होगा तो ज्ञानी पुरुष संसार चक्र से निकलने हेतु अलौकिक विद्या के साथ -साथ अलौकिक जीवन जीते हैं साथ ही दूसरे को भी इस मार्ग का अवलोकन भी कराते हैं | --यहाँ भी कोई भेद -भाव नहीं है बल्कि -जो अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति करेगा -उसे यज्ञोपवीत धारण करना होगा --क्योंकि ब्रह्म सूत्र को धारण करने वाला ही ब्रह्म को जान सकता है ---इसके साथ -साथ -संध्या -गायत्री के जाप ,सही दिनचर्या का पालन करेगा ,आचार -विचार के प्रति सजग रहेगा ,संसारिक उन्हीं वस्तुओं को अपनायेगा जो सत मार्ग पर ले जाने लायक होगी तभी -वेद वेदान्त ,पुराण ,शास्त्रों को पढ़ेगा ---ऐसा बनकर ही सभी लोगों का प्रिय हो पायेगा | -----जो सांसारिक अन्य कार्यों से जुड़ेगा उसे केवल अपने -अपने मार्गों का चयन करना होगा साथ ही सांसारिक सभी वस्तुओं से लिप्त होगा ,उसे किसी वस्तु का त्याग नहीं करना होगा बल्कि उसे केवल एक सतगुरु की बातों को अमल करनी होगी ---उन गुरु की कृपा से मोह माया में रहकर भी परमात्मा की प्राप्ति करेगा | -----यहाँ ध्यान दें ---वैरागी व्यक्ति ही अलौकिक विद्या की प्राप्ति कर सकता है और सक्षम व्यक्ति {तन -मन -धन }ही उस विद्या से लाभ प्राप्त कर सकता है ----यहाँ दोनों चीजें दोनों के पास नहीं हो सकती है अगर है तो निष्फल हो जाएगी साथ ही फिर एक दूसरे से कोई जुड़ा भी नहीं रह सकता है --इसलिए इस विद्या अध्ययन संस्कार की जरुरत होती है|आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जीवन में लाभ + हानि ज्योतिष के महादशा पर विशेष निर्भर है -पढ़ें- भाग -50-खगोलशास्त्री झा मेरठ


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -50-खगोलशास्त्री झा मेरठ


"जीवन में लाभ और हानि ज्योतिष के मत से महादशा पर विशेष निर्भर है --जिसकी सटिक जानकारी और निदान से ही मानव का जीवन सुदृढ़ हो सकता है ---आज मैं अपनी जीवनी की प्रमुख नायिका पर प्रकाश डालना चाहता हूँ "--अस्तु --भले ही मैं शास्त्री था ,तमाम ग्रन्थ मेरी जिह्वा पर थे --पर मुझमें बदलाव --इसके लिए जब गुरु की दशा आयी तब आया -- जब हम 29 वर्ष के हुए | मेरा विवाह 19 वर्ष में हुआ और तीन दिन में ही हुआ | विवाह मुझे अपने कलंक को धोना था --न हम कामयाब थे ,न ही विवाह कब करना चाहिए यह ज्ञान था --फिर भी कभी -कभी ईस्वर आपको स्वतः ही देता है जिसकी आप उम्मीद भी नहीं करते हैं --खासकर मेरे साथ ऐसा ही हुआ | आज मैं जहाँ हूँ वो सिर्फ अपनी भार्या के कर्म और भाग्य की वजह से --यद्पि हमने ,हमारे परिवार ने ,हमारे परिजनों ने उसे दुःख ही दिए --विवाह करके तो ले आये --उस समय भले ही मेरी कुण्डली में राहु की दशा चल रही थी --जो मुझे विदित नहीं थी ,न ही अकल थी --इसके बावयुद जो संघर्ष किया मेरी भार्या ने --वो सिर्फ मैं अहसास कर सकता हूँ --मैं चाहकर भी उन दुःखों के दर्द को अब समाप्त नहीं कर सकता हूँ | --आज जब मैं एक दक्ष ज्योतिषी हूँ ,आचार्य हूँ --तो मुझे लगता है --मातृदेवो भव जो शब्द है --ये इतना सरल नहीं है --इसकी गरिमा बहुत है --बेटी ही किसी की पतनी बनती है ,पतनी ही माँ बनती है --इसलिए इन तीनों रूपों में हमें आदिशक्ति ही शास्त्र दिखाते हैं | आज माँ -तो माँ रहती है किन्तु --जो बेटी ,बहू और बहू से माँ बनती है --तो भेद भाव पुरुष नहीं करते हैं बल्कि माँ ही सिखाती है | आज किम्बदन्ति यह है -पुरुष गड़बड़ करते हैं --पर उन पुरुषों को भी तो माँ ही जन्म देतीं हैं | --ये माँ के संस्कारों पर निर्भर है माँ अपनी संतानों को क्या और कैसा बनाना चाहती है | -विवाह के बाद मैं अपने माता पिता परिजनों के पास छोड़कर आया था कमाने -वो धन भी हमने माता पिता को ही दिए थे --पर वो धन उन्हें मिला जो हकदार नहीं थे| जिस दिन ब्रत होता था तो दीदी +माँ दूसरे के आंगन में फलाहार करतीं थीं --बहू को लगे हम भी भूखे हैं --ये घटना केवल मेरी ही नहीं है --बहुत से घर आज भी हैं --जहाँ ऐसा ही होता है | मेरी भार्या का विवाह होते ही भाई ,पिता सब यकाएक गुजर गए | मंगलसूत्र बेचकर दे दिए --खाई भरने के लिए ,ससुराल की इज्जत बनी रहे ,भूखी रहकर भी मायके में नहीं गयी जबकि इतना तो धन मेरी ससुराल में आज भी है ---जिससे मेरे सभी बच्चों का भरण -पोषण हो जायेगा | स्वाभिमान बनाने के लिए इससे बड़ा त्याग क्या हो सकता है | मेरी दीदी है --ससुराल में कोई अभाव न होने के बाद भी माईके को निवास स्थान बनाया --अगर बनाया तो -मेरी भार्या को अपने हृदय की तारह समझती | 1990 में विवाह हुआ था मेरा -पतनी के सुख के दिन -2000 में आये -तबतक दो बेटियां हो चुकी थी ,दहेज में भैस बची थी --ससुर ,साले सभी गुजर गए पर -माता पिता को अपनी गरीबी मिटाने के लिए वो भी चाहिए थी --मेरी सास ने भैस भी दी --उसे भी बेचकर खा गए --खा गए कोई बात नहीं पर ह्रदय से तो लगाते --"यहाँ मैं एकबात कहना चाहता हूँ माँ से सुन्दर कुछ नहीं --इस हिसाब से तो मैं बहुत बड़ा व्यक्ति बना गया --किन्तु जब ग्रहों की चाल बदलती है --तो वही माँ भार्या काली का भी रूप धारण कर लेती है --इसका जिक्र आगे करूँगा -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

पिता बिना जीवन कैसा होता है - सुनें भाग -49 -ज्योतिषी झा मेरठ



 पिता बिना जीवन कैसा होता है - सुनें भाग -49 -ज्योतिषी झा मेरठ

प्रिय श्रोतागण --अब मैं अपने जीवन का उत्तरार्ध भाग सुनाना चाहता हूँ | पिता के बिना जीवन निरर्थक हो जाता है | पिता कैसे भी हों छत्र छाया व्यक्ति के ऊपर बनी रहती है --जो जीतेजी समझ में नहीं आती है --सम्पूर्ण बातों को सुनने का अवश्य प्रयास करें | -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --यह पेज सभी लोगों के लिए उपयोगी है --परखकर देखें ,आपका लाभ ही सेवा का आधार है | - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें - ज्योतिषी झा 'मेरठ"


  जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें - ज्योतिषी झा 'मेरठ"

कर्मकाण्ड जगत में -जनेऊ संस्कार अर्थात --चयनित मार्ग पर चलना हो तो प्रत्येक जातकों को द्वीज बनना होता है | जैसे प्रत्येक छात्रों को दशवीं कक्षा के बाद अपने -अपने विषयों का चयन करना होता है जो खुद ही करना होता है --अगर आप कर्मकाण्ड करना चाहते हैं तो वेद पढ़ें | अंग्रेजी विषय में -आर्ट पढ़ें | आप ज्योतिषी बनना चाहते हैं तो ज्योतिष विषय पढ़ें | अंग्रेजी के छात्र हैं -आर्ट या और भी विषयों का चयन कर सकते हैं | आपको पढ़ाना है या नौकरी करनी है तो संस्कृत के विषय -साहित्य या व्याकरण का चयन कर सकते हैं | अंग्रेजी में साइंस विषय का चयन करते हैं | अर्थात प्रत्येक बालकों को अपने -अपने मार्ग का चयन खुद ही करना होता है | ठीक इसी प्रकार से --जनेऊ ,या उपनयन संस्कार का शाब्दिक अर्थ है उपवस्त्र या विशेष प्रकार की क्षमता प्राप्त करने हेतु यह संस्कार होना चाहिए --इस संस्कार के बिना न तो कर्मकाण्ड जानने के न ही कराने के अधिकारी हो सकते हैं | सवाल यह उठ सकता है --कोई क्यों नहीं पढ़ सकता है तो --जो संध्यावंदन करेगा ,शिखा धारण करेगा ,धौत वस्त्र पहनेगा ,सात्विक भोजन करेगा ,निष्पक्ष और निःस्वार्थ ज्ञान प्रदान करेगा साथ ही अपना व्यवहार सरल और परमात्मा के साथ रखेगा वही कर्मकाण्ड करेगा या वेद -वेदान्त का अध्ययन करेगा अध्यापन करायेगा | इसलिए प्रत्येक यज्ञ में यजमान को भी द्विज बनना होता है तभी यज्ञ सफल होते हैं | यहाँ एक बात सोचें -अगर सभी द्विज बन जायेंगें या सभी राजा ही बन जायेंगें या सभी वैश्य ही बन जायेंगें तो सामाजिक सभी कार्य कैसे चलेंगें | एक व्यक्ति ने महर्षि से पूछा अगर कोई द्विज भगवान के पास निरंतर रहेगा तो भगवान तो केवल उनके ही होंगें ,तो महर्षि ने कहा कोई द्विज भगवान के पास 24 घण्टे रहेगा उसे पूजा करने से जितना पुण्य मिलेगा अगर समाज का कोई भी कार्य करने वाला समाज के हित लिए कार्य करें और केवल भगवान का स्मरण या दर्शन दूर से भी एकबार कर लेगा तो उसको भी उतना ही पुण्य मिलेगा जितना द्विज को मिलेगा | तो फिर सभी को द्विज बनना उचित नहीं रहेगा | अतः समाज हित, देश हित ,विश्व हित के लिए सभी एक दूसरे के पूरक हैं न कि यहाँ कोई विरोधाभाष है | विरोधाभाष संस्कारों में नहीं हमारे व्यवहारों में है अतः उसे ठीक करना या ठीक से समझना हितकर रहेगा | आगे की परिचर्चा आगे करेंगें |-----ॐ आपका -




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प्रत्येक व्यक्ति का जीवन वास्तव में एक नाटक ही होता है-पढ़ें भाग-49-ज्योतिषी झा मेरठ


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -49 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


प्रत्येक व्यक्ति का जीवन वास्तव में एक नाटक ही होता है, किन्तु इस बात को नाटककार ही समझ सकता है | इसलिए उसे काल्पनिक कहानी कहता है | पर जब कोई भी व्यक्ति पीछे मुरकर देखता है --तो उसे खुद ही असम्भव --संभव कैसे हुआ समझ में आता है --तो उसे प्रेरणादायी कथा कहता है ---यही मुझे अनुभव हो रहा है | अस्तु ----आज मैं खुद का चित्रण करना चाहता हूँ ---जब मेरा राजयोग था -उम्र थी 5 वर्ष मुझे ज्ञात नहीं --पिताने कभी यह बात कही थी --तो एक ज्योतिषी के पास पिता गए थे --मेरा राजयोग था ,झेल सकते थे ,धन था ,मन था ,जिज्ञासा पुत्र ठीक हो की थी --मेरे बालों में अकारण आग लग जाया करती थी | --ज्योतिषी जी ने कहा एक दिन राजा बनेगा | बालक की अभी मंगल की दशा चल रही है --अमुक उपचार करें ठीक हो जायेगा | मैं ठीक भी हो गया| जिस दिन मैं ज्योतिषी बना तो सर्वप्रथम अपनी ही कुण्डली देखने की विशेष जिज्ञासा उत्पन्न हुई --तो उसमें सुख कम दुःख विशेष दिखाई देने लगा तो सोचने लगा --इससे अच्छा तो मैं ज्योतिषी ही नहीं होता तो ठीक था | यही स्थिति प्रायः सभी लोगों की होती है | आज जहाँ -52 वर्ष में हूँ एवं अब 2014 से शनि की दशा चल रही है | शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है --नीचता ही सही भाग्य तो उत्तम रहेगा | --इसकी चर्चा मैं आगे करूँगा | जिस जातक के लग्न में सूर्य +मंगल +केतु हो सप्तम भाव में राहु विद्यमान हो साथ ही सिंह लग्न का भी हो --ऐसा जातक अहंकार ,क्रोध ,जिद्दी स्वभाव एवं क्रूर शासन करने वाला होता है | मेरे पिता भी मकर लग्न के थे उच्च का मंगल लग्न में था --तो वो भी बड़े जिद्दी स्वभाव के थे --शायद इसलिए --मेरे जैसा बालक के लिए सोच लिए पढ़ाना जरूर है ,अन्यथा मेरे जैसा बालक कहीं का नहीं होता --ऐसा एक और योग था मेरी कुण्डली में -चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में था --तो कैसा भी सही पिता का स्नेह मिलना लाजमी था --अन्यथा मैं यहाँ नहीं होता | मेरी माँ की कुण्डली उपलब्ध नहीं है --पर मेरे चौथे घर और भागयक्षेत्र का स्वामी मंगल लग्न में है ----वह योग बहुत ही उत्तम है --घर ,वाहन ,भाग्य एवं सम्पन्नता का योग है --किन्तु --चुगली ,झूठ बोलना ,झगड़ा लगाना ,विवाद बढ़ाना ,बहुत बोलना ,लज्जा विहीन ये तमाम गुण --मेरी माँ से मेरे मिलते हैं | मेरे पिता कईबार माँ पर दोष लगाया करते थे --इसका वजूद नहीं है ,इसे अपनी कमी दिखती नहीं है --जबकि ये सारे अवगुण मेरे पिता में नहीं थे | मेरे पिता जिद्दी थे अधर्मी नहीं थे ,दूसरे का अहित हो यह कदापि नहीं चाहते थे --ऐसे गुण मेरी माँ में भी थे ----पर ये सारे अवगुण मुझमें थे | मेरी कुण्डली में राहु का सप्तम भाव में होना साथ ही लग्न में सूर्य ,मंगल ,केतु का होना --विवाह सुख नहीं था --पर पतनी के आने के बाद ही सही धार्मिक बनें ,सही आचरणवान बनें ,सभी सुखों से परिपूर्ण हुए | --एक और विशेष बात --जब राहु की दशा रही --तो मैं भागा -भागा फिरता था और पतनी छत्र छाया की तरह हर पल ,हर घड़ी मेरी रक्षा में लगी रहती थी --यह थी गुरु बृहस्पति की दृष्टि | ---आज मैं इतना ही कहना चाहता हूँ --बहुत बड़ा योग लाभ या हानि उतना नहीं देता है --जितना --समभाव योग ,परस्पर सहिष्णुता की दृष्टि ,--मोठे तौर पर नवग्रहों को जानना अच्छी बात है --अगर तप का मार्ग है ,निदान का मार्ग है ,तो बड़ी -बड़ी हानियों से बचा जा सकता है |----आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

ज्योतिष विद्या की कसौटी क्या है सुनें भाग -48 -ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष विद्या की कसौटी क्या है सुनें भाग -48 -ज्योतिषी झा मेरठ

महानुभावों --ज्योतिष विद्या या कर्मकाण्ड श्रम की कसौटी पर ही परखा जा सकता है | अधूरी चीजें क्षणिक लाभ तो दे सकती है --भविष्य का लाभ संभव नहीं है --सम्पूर्ण बातों को सुनने का अवश्य प्रयास करें | -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --यह पेज सभी लोगों के लिए उपयोगी है --परखकर देखें ,आपका लाभ ही सेवा का आधार है | - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

 

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...