"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -49 -खगोलशास्त्री झा मेरठ
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन वास्तव में एक नाटक ही होता है, किन्तु इस बात को नाटककार ही समझ सकता है | इसलिए उसे काल्पनिक कहानी कहता है | पर जब कोई भी व्यक्ति पीछे मुरकर देखता है --तो उसे खुद ही असम्भव --संभव कैसे हुआ समझ में आता है --तो उसे प्रेरणादायी कथा कहता है ---यही मुझे अनुभव हो रहा है | अस्तु ----आज मैं खुद का चित्रण करना चाहता हूँ ---जब मेरा राजयोग था -उम्र थी 5 वर्ष मुझे ज्ञात नहीं --पिताने कभी यह बात कही थी --तो एक ज्योतिषी के पास पिता गए थे --मेरा राजयोग था ,झेल सकते थे ,धन था ,मन था ,जिज्ञासा पुत्र ठीक हो की थी --मेरे बालों में अकारण आग लग जाया करती थी | --ज्योतिषी जी ने कहा एक दिन राजा बनेगा | बालक की अभी मंगल की दशा चल रही है --अमुक उपचार करें ठीक हो जायेगा | मैं ठीक भी हो गया| जिस दिन मैं ज्योतिषी बना तो सर्वप्रथम अपनी ही कुण्डली देखने की विशेष जिज्ञासा उत्पन्न हुई --तो उसमें सुख कम दुःख विशेष दिखाई देने लगा तो सोचने लगा --इससे अच्छा तो मैं ज्योतिषी ही नहीं होता तो ठीक था | यही स्थिति प्रायः सभी लोगों की होती है | आज जहाँ -52 वर्ष में हूँ एवं अब 2014 से शनि की दशा चल रही है | शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है --नीचता ही सही भाग्य तो उत्तम रहेगा | --इसकी चर्चा मैं आगे करूँगा | जिस जातक के लग्न में सूर्य +मंगल +केतु हो सप्तम भाव में राहु विद्यमान हो साथ ही सिंह लग्न का भी हो --ऐसा जातक अहंकार ,क्रोध ,जिद्दी स्वभाव एवं क्रूर शासन करने वाला होता है | मेरे पिता भी मकर लग्न के थे उच्च का मंगल लग्न में था --तो वो भी बड़े जिद्दी स्वभाव के थे --शायद इसलिए --मेरे जैसा बालक के लिए सोच लिए पढ़ाना जरूर है ,अन्यथा मेरे जैसा बालक कहीं का नहीं होता --ऐसा एक और योग था मेरी कुण्डली में -चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में था --तो कैसा भी सही पिता का स्नेह मिलना लाजमी था --अन्यथा मैं यहाँ नहीं होता | मेरी माँ की कुण्डली उपलब्ध नहीं है --पर मेरे चौथे घर और भागयक्षेत्र का स्वामी मंगल लग्न में है ----वह योग बहुत ही उत्तम है --घर ,वाहन ,भाग्य एवं सम्पन्नता का योग है --किन्तु --चुगली ,झूठ बोलना ,झगड़ा लगाना ,विवाद बढ़ाना ,बहुत बोलना ,लज्जा विहीन ये तमाम गुण --मेरी माँ से मेरे मिलते हैं | मेरे पिता कईबार माँ पर दोष लगाया करते थे --इसका वजूद नहीं है ,इसे अपनी कमी दिखती नहीं है --जबकि ये सारे अवगुण मेरे पिता में नहीं थे | मेरे पिता जिद्दी थे अधर्मी नहीं थे ,दूसरे का अहित हो यह कदापि नहीं चाहते थे --ऐसे गुण मेरी माँ में भी थे ----पर ये सारे अवगुण मुझमें थे | मेरी कुण्डली में राहु का सप्तम भाव में होना साथ ही लग्न में सूर्य ,मंगल ,केतु का होना --विवाह सुख नहीं था --पर पतनी के आने के बाद ही सही धार्मिक बनें ,सही आचरणवान बनें ,सभी सुखों से परिपूर्ण हुए | --एक और विशेष बात --जब राहु की दशा रही --तो मैं भागा -भागा फिरता था और पतनी छत्र छाया की तरह हर पल ,हर घड़ी मेरी रक्षा में लगी रहती थी --यह थी गुरु बृहस्पति की दृष्टि | ---आज मैं इतना ही कहना चाहता हूँ --बहुत बड़ा योग लाभ या हानि उतना नहीं देता है --जितना --समभाव योग ,परस्पर सहिष्णुता की दृष्टि ,--मोठे तौर पर नवग्रहों को जानना अच्छी बात है --अगर तप का मार्ग है ,निदान का मार्ग है ,तो बड़ी -बड़ी हानियों से बचा जा सकता है |----आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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