"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -50-खगोलशास्त्री झा मेरठ
"जीवन में लाभ और हानि ज्योतिष के मत से महादशा पर विशेष निर्भर है --जिसकी सटिक जानकारी और निदान से ही मानव का जीवन सुदृढ़ हो सकता है ---आज मैं अपनी जीवनी की प्रमुख नायिका पर प्रकाश डालना चाहता हूँ "--अस्तु --भले ही मैं शास्त्री था ,तमाम ग्रन्थ मेरी जिह्वा पर थे --पर मुझमें बदलाव --इसके लिए जब गुरु की दशा आयी तब आया -- जब हम 29 वर्ष के हुए | मेरा विवाह 19 वर्ष में हुआ और तीन दिन में ही हुआ | विवाह मुझे अपने कलंक को धोना था --न हम कामयाब थे ,न ही विवाह कब करना चाहिए यह ज्ञान था --फिर भी कभी -कभी ईस्वर आपको स्वतः ही देता है जिसकी आप उम्मीद भी नहीं करते हैं --खासकर मेरे साथ ऐसा ही हुआ | आज मैं जहाँ हूँ वो सिर्फ अपनी भार्या के कर्म और भाग्य की वजह से --यद्पि हमने ,हमारे परिवार ने ,हमारे परिजनों ने उसे दुःख ही दिए --विवाह करके तो ले आये --उस समय भले ही मेरी कुण्डली में राहु की दशा चल रही थी --जो मुझे विदित नहीं थी ,न ही अकल थी --इसके बावयुद जो संघर्ष किया मेरी भार्या ने --वो सिर्फ मैं अहसास कर सकता हूँ --मैं चाहकर भी उन दुःखों के दर्द को अब समाप्त नहीं कर सकता हूँ | --आज जब मैं एक दक्ष ज्योतिषी हूँ ,आचार्य हूँ --तो मुझे लगता है --मातृदेवो भव जो शब्द है --ये इतना सरल नहीं है --इसकी गरिमा बहुत है --बेटी ही किसी की पतनी बनती है ,पतनी ही माँ बनती है --इसलिए इन तीनों रूपों में हमें आदिशक्ति ही शास्त्र दिखाते हैं | आज माँ -तो माँ रहती है किन्तु --जो बेटी ,बहू और बहू से माँ बनती है --तो भेद भाव पुरुष नहीं करते हैं बल्कि माँ ही सिखाती है | आज किम्बदन्ति यह है -पुरुष गड़बड़ करते हैं --पर उन पुरुषों को भी तो माँ ही जन्म देतीं हैं | --ये माँ के संस्कारों पर निर्भर है माँ अपनी संतानों को क्या और कैसा बनाना चाहती है | -विवाह के बाद मैं अपने माता पिता परिजनों के पास छोड़कर आया था कमाने -वो धन भी हमने माता पिता को ही दिए थे --पर वो धन उन्हें मिला जो हकदार नहीं थे| जिस दिन ब्रत होता था तो दीदी +माँ दूसरे के आंगन में फलाहार करतीं थीं --बहू को लगे हम भी भूखे हैं --ये घटना केवल मेरी ही नहीं है --बहुत से घर आज भी हैं --जहाँ ऐसा ही होता है | मेरी भार्या का विवाह होते ही भाई ,पिता सब यकाएक गुजर गए | मंगलसूत्र बेचकर दे दिए --खाई भरने के लिए ,ससुराल की इज्जत बनी रहे ,भूखी रहकर भी मायके में नहीं गयी जबकि इतना तो धन मेरी ससुराल में आज भी है ---जिससे मेरे सभी बच्चों का भरण -पोषण हो जायेगा | स्वाभिमान बनाने के लिए इससे बड़ा त्याग क्या हो सकता है | मेरी दीदी है --ससुराल में कोई अभाव न होने के बाद भी माईके को निवास स्थान बनाया --अगर बनाया तो -मेरी भार्या को अपने हृदय की तारह समझती | 1990 में विवाह हुआ था मेरा -पतनी के सुख के दिन -2000 में आये -तबतक दो बेटियां हो चुकी थी ,दहेज में भैस बची थी --ससुर ,साले सभी गुजर गए पर -माता पिता को अपनी गरीबी मिटाने के लिए वो भी चाहिए थी --मेरी सास ने भैस भी दी --उसे भी बेचकर खा गए --खा गए कोई बात नहीं पर ह्रदय से तो लगाते --"यहाँ मैं एकबात कहना चाहता हूँ माँ से सुन्दर कुछ नहीं --इस हिसाब से तो मैं बहुत बड़ा व्यक्ति बना गया --किन्तु जब ग्रहों की चाल बदलती है --तो वही माँ भार्या काली का भी रूप धारण कर लेती है --इसका जिक्र आगे करूँगा -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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