"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -48 -खगोलशास्त्री झा मेरठ,
'आपलोग यह सोचते होंगें --इस जीवनी रूपी कथा में केवल चोट और खोट ही है या कुछ उत्साह और आनन्द भी --इसका जबाब है --जिस पर ईस्वर की कृपा हो ,जिसकी कुण्डली में कुछ विशेष योग हो ,जिसका मनोबल मजबूत हो --उसे दुःख के बाद सुख भी मिलते हैं "---आज मैं अपनी नानी का चित्रण करना चाहता हूँ --क्यों सुनें ?--मेरा राजयोग केवल 10 वर्ष बाल्यकाल का था --मैं नानी के पास बहुत रहा 10 वर्ष के अन्दर| मेरी नानी मुझे बहुत स्नेह करती थी --मामा मेरे माता पिता के पास पढ़ते थे --शीघ्र नौकरी मिली तो दिल्ली चले गए | मेरी नानी वैष्णव थी ,शिव भक्त थी --अपना जीवन चरखा चलाकर जीती थी | कभी हमने माता पिता के पास नहीं देखा नानी को जाते हुए --दूर जगह पर मिल लेती थी | मैं नानी के साथ पैदल खूब चलता था --नानी के खेत हों ,उपज हो ,चरखा के लिए -रुई लानी हो या खादी ग्रामोद्योग से कपड़े लाने हो या एक विदेश्वर स्थान {भगवान शिव }का प्रमुख स्थान हो ,सभी जगह गरीबी थी तो मेरे साथ नानी जाया करती थी ---पढ़ी लिखी तो नहीं थी --पर आचरणवान थी ,कर्मनिष्ठ थी --एक और विशेषता थी स्वाभिमानी थी --ये सारे --गुण मुझे नानी से प्राप्त हुए | मेरी माँ और नानी के स्वभाव में बहुत अन्तर था | मेरी माँ के पास सबकुछ था पर सब खत्म हो गया | मेरी नानी के पास कुछ नहीं था --फिर भी एक साम्राज्य बनाया | नाना को हमने नहीं देखा --पर मामा को साम्राज्य देकर नानी गयी | जो नाना देकर गए --उस संतान को एक दक्ष और योग्य बनाया --यह बात मेरी माँ ने नहीं सीखी | नानी की कुण्डली उपलब्ध नहीं है --किन्तु मेरी कुण्डली में --छठे घर से छठे घर का स्वामी बुध शुक्र से युति बनाकर धन क्षेत्र में है | अतः मामा का धनिक होने का योग है सो मेरे मामा -करोड़ पति बहुत पहले से हैं | जब मेरे घर में गरीबी शुरू हुई तो नानी ने मामा का धन नहीं दिया --ये बात मुझे अच्छी लगी | पर एकबार जब मैं आश्रम में पढता था तो मुझसे मिलने गयी थी माँ के साथ --1984 में तब 10 रूपये दिए थे | एकबार भिक्षाटन हेतु मामा गांव बोहरबा {उजान -दरभंगा }गए --यह बात इतनी बुरी लगी मेरी नानी को उस गांव में भिक्षा मांगने नहीं दी बल्कि --इतनी भिक्षा नानी ने दे दी --जिससे कहीं जाना ही न पड़े --साथ में बोली कभी इस गांव कभी मांगने मत आना | इतना दर्द मेरी माँ को भी कभी नहीं हुआ --जितना नानी को हुआ | जब मेरठ आया और नानी से मिलने गया --केवल 3 दिन में विवाह करा दिया --शायद मेरी नानी को आभास था --मेरा घर माँ नहीं संभाल सकती है --मेरी पतनी ही मुझे आगे बढ़ा सकती है ----यह बात आज आभास हो रही है | मेरी नानी मेरी पतनी को बहू की तरह स्नेह करती थी | इतना स्नेह तो मेरी माँ ने भी कभी नही किया | --नानी की एक तमन्ना थी --मुझे देखकर बार -बार कहती थी --एकादशी का उद्यापन तुम ही करोगे | मैं छोटा था --पर कहती थी मेरे यज्ञ का तुम ही आचार्य बनोगे | मैं भी वैष्णव था मेरी पतनी भी बैष्णव थी --हम दोनों में उसे लक्ष्मी नारायण दिखते थे | आज मैं जहाँ हूँ नानी का ही आशीर्वाद है | जब नानी एकदशी का उद्यापन करने लगी तो --मामाने हमें आचार्य नहीं बनाया --बोले यज्ञ का सामान सभी बहिनों को दूंगा --हमने कहा ये आचार्य का काम है --आप केवल यजमान हो --बोले जो मैं कहूंगा वही होगा --इसके बाद मैं कभी मामा गांव भाव से नहीं गया | ---न ही कभी नानी के दर्शन ही किये | ---दोस्तों --एक ज्योतिषी होने के नाते एक बात मेरी समझ में आयी है --कुण्डली वो दर्पण है -जिसमें सबकुछ विद्यमान है ,पर आधुनिक समय में इसका जितना विस्तार हो रहा है --वो हनन की ओर विशेष जा रहा है | यह विद्या अन्वेषण की है ,सात्विक है ,धार्मिक है ,जनहित की है --आज अल्पज्ञान अर्थात खोज कम चोरी ज्यादा है --इसलिए किसी का कल्याण कारक नहीं है | जैसे गोली चलनी कहीं और थी चल कहीं और गयी --इसे ज्योतिष में योग कहते हैं | इसकी खोज मर्मज्ञ विद्वानही कर पाते हैं | --कथा को आगे पूरी करूँगा ----ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को समझ हेतु --इस लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut- -आपका खगोलशास्त्री झा मेरठ