ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

तमाम पात्र अपनी भूमिका नहीं निभाते -तो जीवनी कैसे लिखी जाती -पढ़ें - भाग -47 झा मेरठ


 


मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -47 -खगोलशास्त्री झा मेरठ

ये तमाम पात्र अपनी भूमिका नहीं निभाते -तो जीवनी कैसे लिखी जाती --कईबार खुद ही सवाल मन में उठते रहे -खुद की कुण्डली देखी है ,जिनका अपना घर ठीक नहीं होता तो दूसरे का घर ठीक करने चल देते हैं ---यही अभिप्राय इस जीवनी का है "---अस्तु ---मेरी जीवनी का एक पात्र मेरा अनुज है --जिसके ऊपर भी प्रकाश डालना चाहता हूँ | हम चार भाई एक बहिन हुए | एक अनुज बाल्यकाल में दिवंगत हो गया ,दूसरा अनुज जब हम 18 वर्ष के हुए तो सर्पदंश से दिवंगत हुआ | सबसे जो छोटा अनुज है --इसके मेरे बीच 8 वर्ष का अन्तर है| इसकी कुण्डली उपलब्ध है | मेरा स्नेह बाल्यकाल से इस अनुज पर रहा | इस अनुज का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ यह अब मैं जनता हूँ --अगर तब जनता भी तो शायद निदान नहीं हो पाता --क्योंकि माता पिता की अज्ञानता के कारण | बहुत से माता पिता हैं --बालक को बढ़िया बनाना भी चाहते हैं --पर इस बात को नहीं मानते हैं | भले ही बाल्यकाल में जब यह अनुज 2 वर्ष का हुआ तो मेरा राजयोग समाप्त हो चूका था इसे मैं स्नेह बहुत करता था --आज भी करता हूँ किन्तु --यह अनुज भी बहुत गरीबी देखी है | जैसे -तैसे धन की सोच लेकर शहर चला था --धन तो मिल गया पर --संयोग से मैं भी शिक्षा को छोड़कर -1994 मुम्बई से आये तो एक ही शहर में रहने लगे | मैं भटकता रहा --मरे हुए का नहीं खाना है ,दान नहीं लेना है ,मंदिर में नहीं रहना है --उस समय एक कन्या भी थी| यह अनुज को केवल धन चाहिए था --तो यह धनाढ्य होता गया | मेरी गरीबी बढ़ती गयी --संयोग से इसने अपने साथ रहने के लिए कहा --हमने सोचा एक अनुज पहले ही खो चुके हैं --तो चलो एक साथ रहेंगें --इसे भी शिक्षित करेंगें ---इसे दो तीन अध्याय वेद सिखाये ,ज्योतिष के शिशुबोध सिखाया| इतने ही बहुत थे आज के युग में कमाने के लिए --क्योंकि आज का समाज शिक्षा के लिए कम तुरन्त काम हो जाय -इसपर विशेष ध्यान देता है | --जब माता पिता को यह बात की जानकारी हुई --तो उन्हौनें सोचा -बड़ा भाई तो इसका सब खा जायेगा ,साथ में बेटी भी है ,इसकी शादी भी नहीं हुई थी ,माता पिता की खाई समाप्त हो चुकी थी --मेरे धन से | अब तो अनुज की शादी फिर कैसे होगी --इसकी चिंता शुरू हुई --दीदी -जीजा ,मामा -मामी ,सारे रिस्तेदार -अनुज के हो गए --मैं अकेला पड़ता गया --अब मेरा तिरस्कार पतनी भी करने लगी --जब ग्रहों के योग उत्तम न हों तो ऐसा ही होता है ,अनुज हर पल अपमानित करने लगा | तब सभी मुझे हेय दृष्टि से देखने लगे ,तब --जब ज्ञान प्राप्त हो जाता है --तो काहे के गुरु ,जब काम बन जाता है -----तो काहे का भगवान हो जाता है --तो मेरा क्या अस्तित्व | खैर --अब हम नगण्य हो रहे थे ,शिक्षा थी ,अनुभव था --पर ग्रहों के प्रभाव उत्तम नहीं थे | पतनी मेरी सदियों से पुजारिन रही है --तो जहाँ पूजा के लिए बैठती थी --मेरा अनुज वहाँ थूका करता था ,मैं अपने अनुज के कपड़े धोया करता था ,मेरा अनुज ड्राइक्लीन के ही कपड़े पहनता था ,नित्य एक फ़िल्म देखता था ,उसके मन्दिर की सारी जिम्मेदारी मेरी थी --केवल शान से रहता था --वही करता था जो उसे अच्छा लगता था | एकदिन मेरी पतनी पीडित होकर शहर मेरे पास आ गयी पिताजी के साथ | पिताजी चले गए -एक दिन नौवत यह आ गयी --अनुज बोला -शब्दों पर गौर करें -मुझे --अगर तुझे मेरे पास रहना है --तो मैं आजाद घूमूँगा तू सफाई करेगा ,बर्तन माँजेगा ,आरती करेगा साथ में मेरी सेवा तुम्हारी पतनी करेगी ---ये शब्द मानो मरने जैसा था --हमने कहा कुछ नहीं करूँगा --यहाँ से चला जाऊंगा --रात में बच्चों के साथ छत पर सो रहे थे --सुबह जब आँख खुली तो दरवाजे बंद थे --हमारी छोटी बिटिया भूख से तड़प रही थी --यह हाल मुझसे देखा नहीं गया -- दरवाजे में पैर मारे -- दरवाजे खुल गए --मुझ पर चोरी का इल्जाम लगाया साथ ही निकाल दिया --इसके बाद कभी नहीं मिले --अनुज के साथ--इस कथा को आगे पूरी करूँगा ----ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को समझ हेतु --इस लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

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