ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

विवाह के लिए संस्कार क्यों -पढ़ें-सुनें -भाग -31- ज्योतिषी झा मेरठ-


 


विवाह के लिए संस्कार क्यों -पढ़ें-सुनें -भाग -31- ज्योतिषी झा मेरठ-
------कर्मकाण्ड जगत में प्रत्येक व्यक्ति को षोडश संस्कारों गुजरना होता है | सभी संस्कारों के अलग -अलग महत्त्व हैं | विवाह संस्कार प्रत्येक व्यक्ति का दशवां संस्कार होता है | इस विवाह संस्कार के बाद प्रत्येक व्यक्ति अपने -अपने सुखों से वंचित होते जाते हैं | विवाह संस्कार प्रत्येक व्यक्ति का एक सुखद संस्कार है | ज्ञानी पुरुष अपनी जिम्मेदारी की पूर्ति कर वैराग की ओर चलने लगते हैं | अज्ञानी पुरुष विवाह संस्कार के बाद मोह माया में विशेष रम जाते हैं | ---वास्तव में संसार के प्रत्येक व्यक्तियों का विवाह संस्कार एक सुखद संस्कार होता है जिसे हर्षोल्लास से मनाते हैं और मनाने भी चाहिए किन्तु --ब्राह्मणों {द्वीज }का विशेष खुशी का संस्कार यज्ञोपवीत संस्कार होता क्योंकि इस संस्कार के बाद जो अलौकिक ज्ञान गुरुजनों के सान्निध्य में मिलता है --उस ज्ञान की वजह से द्विज केवल माता पिता की मर्यादा का पालन करने हेतु विवाह संस्कार में बंधते हैं --इसलिए ब्राह्मणों का विवाह संस्कार अति सरल और भव्यता विहीन होता है किन्तु मन्त्रों की विधियों की अत्यधिकता होती है | पर आज इस बात का भान ही नहीं होता -जिस कारण से विवाह संस्कार में कहीं कोई न तो अंतर दिखता है न ही किसकी शादी हो रही है इसका पत्ता रंग रूप से दिखता है | अगर दिखती है तो विवाह की भव्यता | -----अब सबसे पहले यह समझें कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी बेटी दूसरे को देता है और दूसरे की बेटी को खुद स्वीकार करता है | क्यों --?--क्योंकि एक तो इस प्रक्रिया से समाज का विस्तार होता है, प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से जुड़ते हैं ,प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के सुख -दुःख में सहभागी बनते हैं -साथ ही अत्यधिक धन खर्च और परिश्रम भी करते हैं | दूसरा ---यदि यह प्रक्रिया नहीं हो तो प्रत्येक व्यक्ति जानवरों की भांति अपने -अपने घरों में सिमट कर रह जायेंगें | न माँ का न बहिन का न ही किसी संबंधों जान पायेंगें न ही इंसान बन पायेंगें | यही विवाह एक ऐसा संस्कार है --जो प्रत्येक व्यक्ति को जीने का ढंग सीखता है ,उसको एक सामाजिक प्राणी बनाता है साथ ही आने वाली पीढ़ी को एक नियमावली बताता है | अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस बात पर विचार करना चाहिए ---न कि मदोन्मत होकर वही बोलना या करना चाहिए जो न तो आपको सुख दे पाए न ही समाज की प्रेरणा बन सके | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें |----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

कालसर्पयोग भ्रम या सच -पढ़ें ?--ज्योतिषी झा मेरठ


   कालसर्पयोग भ्रम या सच -पढ़ें ?--ज्योतिषी झा मेरठ 




दोस्तों --विख्यात या बहुचर्चित "कालसर्प योग "का प्रादुर्भाव कब और कहाँ से हुआ ?ज्योतिष के फलित +गणित शात्रों में शुरुआत कब और कहाँ से हुई ?इस कालसर्पयोग को सबसे पहले बताने वाले आचार्य कौन थे ?कालसर्पयोग का प्रभाव होता भी है या भ्रमित करने के लिए ज्योतिषी बताते हैं ?जन्मकुण्डली का आकलन करते समय इस कालसर्पयोग पर विचार करना चाहिए या नहीं ?इन तमाम प्रश्नों की सही जानकारी आज के समय में परम आवश्यक है । ------हम अपने ज्योतिष प्रेमी मित्रों को क्रम से यथार्थ सभी बातों को लेखों के माध्यम से बताने की कोशिश करेंगें । ताकि आप भर्मित न हों ,अपनी -अपनी कसौटी पर परखकर खुद देखें -----!-----प्रायः जो कालसर्पयोग बनता है जन्मकुण्डली में -जब राहु +केतु के बीच सभी सातों ग्रह कैद हो जाते हैं -तो उसे ही कालसर्प योग ज्योतिष शास्त्रों के प्रवक्ता मानते हैं । राहु को सर्प का मुख एवं केतु को सर्प की पूँछ ज्योतिष के अनुयायी मानते हैं । कालसर्प योग का अर्थ होता है --काल अर्थात मृत्यु ,-इस कालसर्प योग को मृत्यु योग भी मानते हैं । यदि जन्मकुण्डली में राहु +केतु को छोड़कर अन्य ग्रह मजबूत न हों तो शिशु की मृत्यु भी संभव है । यदि जीवित रहता है तो मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है । फलित ज्योतिष शास्त्र कालसर्प योग को अशुभफल दायक मानता है । कालसर्पयोग प्रायः 322 प्रकार के हैं । जातक की जन्मकुण्डली बताती है कि कालसर्प योग इस कुण्डली में किस प्रकार का है और निदान क्या होना चाहिए । जिस प्रकार सर्पों की कई प्रजातियां होतीं हैं -कुछ विष युक्त सर्प होते हैं तो कुछ विष रहित -तो निश्चित ही समझना चाहिए कुछ कालसर्पयोग अशुभ तो कुछ सामान्य और कुछ पीड़ा देना वाला भी होगा ।
----नोट कल हम कालसर्पयोग का सर्प से सम्बन्ध पर चर्चा करेंगें ---आप हमारे तमाम आलेखों को पढ़ने के बाद अपनी -अपनी राय दें ।-- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई "



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -31--ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?- -{31}--ज्योतिषी झा मेरठ
---2013 -श्रीयदुवंश गंगा पत्रिका और तेज दैनिक समाचार पत्र -के संपादक श्री निखिल शर्मा -टीकमगढ़ -मध्यप्रदेश के हैं --आपने पत्रकार तो बनाया ही साथ ही साथ मेरे आलेख जो पाक्षिक भविष्यवाणी निरन्तर -2010 से आजतक लिखता रहता हूँ --इन आलेखों को निःशुल्क प्रसारित करते रहे --इस उपकार के लिए पुनः एकबार आभार व्यक्त करता हूँ | अब हम न तो समाचार पत्र में आना चाहते थे न ही चैनलों पर --केवल वो बिना विज्ञापन और खुद की कोशिश से आगे बढ़ना चाहते थे ---अस्तु --अब हम नेट की दुनिया को ठीक से समझने लगे | अब कंप्यूटर की जगह लेपटॉप से काम चलने लगे | मेरी फ्री ज्योतिष सेवा सम्पूर्ण विश्व में प्रायः पहुंची सिर्फ श्रीलंका और बंगलादेश को छोड़कर | हिन्दी भाषी लोग जहाँ भी और जिस देश में थे सेवा अवश्य लेनी चाही और ली भी | सबसे पहली सेवा बिडियो कॉल पाकिस्तान से थी लेने वाली लखनऊ की थी | इस सेवा की सबसे पहली रोचक जानकारी अमेरिका वाशिंगटन से श्रीमती सुनीता अरोड़ा द्वारा मिली जो मुझको आगे बढ़ने की प्रेरणा दी | ये रहने वाली दिल्ली से थीं | हमारी सेवा इसलिए आगे बढ़ रही थी --क्योंकि यह सेवा सादगी और सच्ची थी | कोई भी व्यक्ति फ़ोन से सेवा ले सकता था साथ ही उस समय हमारे ज्योतिष के जो भी आलेख होते थे उन आलेखों को जो भी पढ़ते थे उनके दिलो में प्रति अत्यधिक श्रद्धा हुआ करती थी | जिस प्रकार से राहु की महादशा काल 1980 से 1998 तक थी ,राहु सप्तम भाव में लग्न में सूर्य ,मंगल केतु एक साथ थे इनके प्रभाव से अत्यधिक यातना झेलनी पड़ी --ठीक इसी प्रकार से 1998 से 2014 तक गुरु की दशा रही -गुरु तृतीय भाव में होने से उत्तम दाम्पत्य सुख मिला ,संतान मिली ,शिक्षा का लाभ भी मिला, भाग्योदय भी हुआ ,तीन भवनों के सुख भी मिले ,दो वाहन भी लिये | अगर परिजनों का दुःख मिला तो इसकी वजह जहाँ गुरु कुण्डली में होते हैं वहाँ हानी होती है | हमने राहु की दशा में जितने कष्ट सहे ,गुरु दशा में उतने ही सुख देखे | संसार के नियम हैं सुख है तो दुःख भी है, प्रत्येक व्यक्ति को समय के साथ चलना चाहिए --हमने अपनी जीवनी इसलिए लिखी है -ताकि आप सभी ज्योतिष प्रेमियों को दुःख में जीने का साहस मिले , साथ ही सुख है तो दुःख अवश्य आयेगा | यह कहानी मेरी भले ही थी पर जीवन में हर व्यक्ति की कहानी होती है | हमने अपनी बीती हुई बातों को बताकर आपको साहस मिले यह कोशिश की है | मेरे जीवन में जो आगे होने वाला है वो भी ज्योतिषी होने के नाते जानते हैं | ध्यान दें --ज्योतिष एक दर्पण है जिसमें अपनी छवि दिखती है किन्तु ठीक करने के लिए----------------प्रत्येक व्यक्ति को कर्मकाण्ड का ही सहारा लेना होता है | अतः जीवन का सही लाभ माता पिता और गुरुजनों के सही दिशा निर्देश से ही संभव है अन्यथा आना -जाना बना रहता है पर कुछ लाभ नहीं मिलता है | मेरे जैसा अनपढ़ व्यक्ति की क्या कहानी हो सकती है | जो शिक्षा मुझे बाल्यकाल में मिलनी चाहिए थी वो शिक्षा का समय जब हम 32 के हुए तब आया | मैं भले ही कहीं विदेश नेपाल को छोड़कर नहीं गया पर मेरे अनन्य भक्त सम्पूर्ण विश्व में हैं इनकी वजह से मुझे ऐसा लगता -रहता है जैसे सभी मेरे परिजन ही हैं | मुझको भले ही नौकरी नहीं मिली पर मेरा जीवन ठीक से कट रहा है --इससे बड़ी कृपा और क्या हो सकती है | मुझ जैसे दरिद्र को सभी प्रकार के सुख मिले इससे बड़ी कृपा और क्या हो सकती है | --मैं केवल सभी ज्योतिष प्रेमियों से इतना कहना चाहता हूँ धर्मो रक्षति रक्षकः --अगर आप धर्म की रक्षा करेंगें तो धर्म भी आपको दोनों हाथों से गोद उठायेगा | -----आगे की 2014 से शनि की दशा शुरू हुई जिसकी भी अनन्त बातें सुनाऊंगा -रोचक और प्रेरणायी होगी ----ॐ ----आपका -खगोलशास्त्री झा मेरठ --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में उपलब्ध हैं |

जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें-सुनें -भाग -30


 


जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें-सुनें -भाग -30--
- ---दोस्तों -जो 16 प्रकार के संस्कार हैं --उन संस्कारों बहुत सारे संस्कारों को जाना अब --अन्नप्रासन संस्कार ,विद्या अध्ययन संस्कार और जनेऊ संस्कार की महत्ता को ठीक से समझें ---मेरा एक छोटा सा प्रयास है जिसे आप ठीक से समझें न कि सुनी -सुनायी बातों को माने बल्कि एकबार उन ग्रंथों को पढ़ें तब निर्णय करें ---अस्तु -- जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें - ज्योतिषी झा 'मेरठ"---कर्मकाण्ड जगत में -जनेऊ संस्कार अर्थात --चयनित मार्ग पर चलना हो तो प्रत्येक जातकों को द्वीज बनना होता है | जैसे प्रत्येक छात्रों को दशवीं कक्षा के बाद अपने -अपने विषयों का चयन करना होता है जो खुद ही करना होता है --अगर आप कर्मकाण्ड करना चाहते हैं तो वेद पढ़ें | अंग्रेजी विषय में -आर्ट पढ़ें | आप ज्योतिषी बनना चाहते हैं तो ज्योतिष विषय पढ़ें | अंग्रेजी के छात्र हैं -आर्ट या और भी विषयों का चयन कर सकते हैं | आपको पढ़ाना है या नौकरी करनी है तो संस्कृत के विषय -साहित्य या व्याकरण का चयन कर सकते हैं | अंग्रेजी में साइंस विषय का चयन करते हैं | अर्थात प्रत्येक बालकों को अपने -अपने मार्ग का चयन खुद ही करना होता है | ठीक इसी प्रकार से --जनेऊ ,या उपनयन संस्कार का शाब्दिक अर्थ है उपवस्त्र या विशेष प्रकार की क्षमता प्राप्त करने हेतु यह संस्कार होना चाहिए --इस संस्कार के बिना न तो कर्मकाण्ड जानने के न ही कराने के अधिकारी हो सकते हैं | सवाल यह उठ सकता है --कोई क्यों नहीं पढ़ सकता है तो --जो संध्यावंदन करेगा ,शिखा धारण करेगा ,धौत वस्त्र पहनेगा ,सात्विक भोजन करेगा ,निष्पक्ष और निःस्वार्थ ज्ञान प्रदान करेगा साथ ही अपना व्यवहार सरल और परमात्मा के साथ रखेगा वही कर्मकाण्ड करेगा या वेद -वेदान्त का अध्ययन करेगा अध्यापन करायेगा | इसलिए प्रत्येक यज्ञ में यजमान को भी द्विज बनना होता है तभी यज्ञ सफल होते हैं | यहाँ एक बात सोचें -अगर सभी द्विज बन जायेंगें या सभी राजा ही बन जायेंगें या सभी वैश्य ही बन जायेंगें तो सामाजिक सभी कार्य कैसे चलेंगें | एक व्यक्ति ने महर्षि से पूछा अगर कोई द्विज भगवान के पास निरंतर रहेगा तो भगवान तो केवल उनके ही होंगें ,तो महर्षि ने कहा कोई द्विज भगवान के पास 24 घण्टे रहेगा उसे पूजा करने से जितना पुण्य मिलेगा अगर समाज का कोई भी कार्य करने वाला समाज के हित लिए कार्य करें और केवल भगवान का स्मरण या दर्शन दूर से भी एकबार कर लेगा तो उसको भी उतना ही पुण्य मिलेगा जितना द्विज को मिलेगा | तो फिर सभी को द्विज बनना उचित नहीं रहेगा | अतः समाज हित, देश हित ,विश्व हित के लिए सभी एक दूसरे के पूरक हैं न कि यहाँ कोई विरोधाभाष है | विरोधाभाष संस्कारों में नहीं हमारे व्यवहारों में है अतः उसे ठीक करना या ठीक से समझना हितकर रहेगा | आगे की परिचर्चा आगे करेंगें |-----ॐ आपका -ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

कालसर्पयोग सच और आचार्यों की खोज है -पढ़ें ?-ज्योतिषी झा मेरठ


   कालसर्पयोग सच और आचार्यों की खोज है -पढ़ें ?-ज्योतिषी झा मेरठ 

- -अर्था भाग्योदय जन्तु विवशांति शतशः स्वयम । दिग्भ्यो भ्युपेत्य सर्वाभ्यः सायं तरुपि वांड़जाम । । -अभिप्राय -जब जीव का भाग्योदय होता है ,तब चारो ओर से अनेक प्रकार की सुख -संपत्तियां अनायास मिलने लगती हैं । और जाने या अनजाने में किए प्रापकर्मों के कारण दुर्भाग्य का उदय होता है जो जीव को भोगना भी पड़ता है । यही कारण निराशा जीव को होती है । हो सकता है कुछ लोग कालसर्पयोग को मानते तो होंगें पर निदान को अंध विस्वास कहते होंगें । शायद कुछ व्यक्ति कालसर्पयोग को मानते ही नहीं होंगें । आप मित्रों के सामने कालसर्प योग सम्बन्धी तमाम बातों का उल्लेख -आलेखों को आप तक लाने की कोशिश करेंगें -क्या सूर्य के दोनों ओर ग्रह होने से वोशी ,वेशि एवं उभयचारी योग बनता है या नहीं ?चन्द्रमा के साथ शनि होने पर विषयोग एवं चन्द्र के साथ राहु होने पर ग्रहण योग होता है या नहीं ?फिर दोस्तों -राहु -केतु द्वारा ग्रसित होने पर उन्हें कुग्रहजनित योग क्यों नहीं मानेंगें ? --अस्तु ----महर्षि पराशर ,वराहमिहिर ,कल्याणवर्मा आदि दक्ष आचार्योंने अपने -अपने ग्रथों में सर्पयोग की विशेष व्याख्या की है। मानसागरी अध्याय 4 श्लोक 10 में स्पष्ट लिखा है कि सप्तम भाव में शनि -राहु युक्त हो तो सर्पदंश से मृत्य होती है । भारत के प्राचीन एवं नवीन ग्रंथों में कालसर्पयोग का उल्लेख मिलता है । अध्ययन -अनुसन्धान करके सत्य एवं सही चीजों को समझने -परखने के लिए आज हमलोगों के पास समय का आभाव हो गया है -केवल सुनी या अल्पज्ञान के कारण हमलोग सशंकित रहते हैं । ----अगर मान लिया जाय कालसर्पयोग का प्रचलन पहले नहीं था ,तो क्या ज्योतिष शास्त्र में नवीन खोज पर पावंदी है । कैंसर एवं एड्स जैसे खतरनाक रोगों को पहले नहीं जानते थे -या समाधान नहीं था -तो क्या आज इन रोगों से मुकर सकते हैं ! सत्य की खोज एवं अनवरत अनुसन्धान ज्ञानीजन सदा करते आए हैं -इसी प्रकार हमारे ज्योतिषाचार्यों ने जनहित के लिए त्रिशूल योग को कालसर्पयोग नाम से विभूषित किया -निदान के द्वारा सरल राह दिखाते हैं । सत्य के प्रति आँखें मूंदना केवल अज्ञानता है । अल्पज्ञानी ज्योतिषी न बनें ,संस्कारयुक्त ज्योतिषी बनें ,अपने -अपने तपोबल या अनुष्ठान ,पूजा पाठ से यजमान के भाग्य को बदलने एवं यजमान का कल्याण कैसे हो इस की निष्ठां ही इस योग की खोज है । कल से हम किस लग्न में कैसा लाभ या हानि देता है,कालसर्पयोग कितने प्रकार के हैं , कालसर्पयोग का निदान क्या है इस पर चर्चा करेंगें आप लोग -अपना -अपना स्नेह से हमें युक्त रखें ।---ॐ |-------दोस्तों -इस पेज --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में ज्योतिष से सम्बंधित नवीन{शास्त्र सम्मत } बातों का हलचल रोज होता है -जो आपको ज्योतिष और ज्योतिषियों के प्रति कुभाव को मिटाकर -श्रद्धा ,स्नेह और आस्था तो जगाता है ही -आप इस भारतीय सत्य धरोहर "ज्योतिष "से विमुख नहीं हो सकेंगें । आप चाहे बालक हों ,युवा हों ,अभिभावक हों या फिर ज्योतिषाचार्य सबके योग्य है ---यकीं नहीं आता तो इस पेज को अपनाकर देखें !--आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"




मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -भाग -30-ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?-"भाग -{30}-ज्योतिषी झा मेरठ

2012 -में यद्पि तमाम प्रसन्नता मिल रही थी किन्तु भाग्य उत्तम नहीं हो तो ऐसा भी होता है | मेरी चाची से जमीन का विवाद 1994 में शुरू हुआ था | विवाद का कारण था -दादा जी के आजीवन सेवक रहे पिताजी साथ ही अनपढ़ भी थे अतः देहावसान से पहले जमीन का बटबारा कर दिए थे | मेरे पिताजी को जो हिस्सा मिला था 1974 में वो भूमि बंजर थी जिसे पिताजी ने शारीरिक परिश्रम से सुन्दर बनाया साथ ही कुछ हिस्सा कुछ भाईयों से लिया बदले में धन दिया | यह कागजात सभी भाईयों के हस्ताक्षर और गवाही के साथ आज भी मौजूद है | हमारी गरीबी हटती गयी साथ ही जमीन की किम्मत बढ़ती गयी पर कुछ चाचा की गरीबी यथाबत थी ,अतः सभी चाचाओं ने मिलकर चाची का साथ दिया ,इसमें पुलिस ,वकील सभी चाची के साथ थे कुछलोग काम पिपासा के कारण तो कुछ लोग लोभ के कारण ---समाज की नजर में हम धनाठ्य थे क्योंकि यह भूखण्ड 1000 गज का था | 24 मुकदमे थे किन्तु यह मुकदमें जमीन विवाद के नहीं थे ,मारने -पीटने ,आग लगाने ,दबाने के थे क्योंकि कागजात हमारे पास थे पर पिता ने हार नहीं मानी अतः 20 वर्ष तक विवाद चला पर पिता डगमगाये नहीं वो सत्य के साथ थे इस विवाद में बहुत धन खर्च हुआ मेरा ,इसी बीच पिता ने मकान बनाया उत्तम दर्जे का बड़ा सा मेरे दोनों भाईयों के लिए | मेरी मातृ भूमि पर 1980 में एक सुन्दर उत्सव यज्ञोपवीत हुआ था ,तब मेरा राजयोग चल रहा था | इसके बाद 2012 यानि 32 वर्ष बाद मेरी पहली पुत्री का विवाह होना था मैं अपने पिता और समाज को एक ऐसा आनन्द देना चाहता था "न भूतो न भविष्यति "पर होनी को किसने रोकी है सो -जितना बड़ा कलेश समाज और चाची का नहीं था उससे बड़ा कलेश मेरे घर में शुरू हो गया भाई -भाई में ऐसा विवाद 1998 में शुरू हुआ जो आजतक समाप्त नहीं हुआ | मैं अलग रहना चाहता था पिता यह नहीं चाहते थे --अतः उस भूखण्ड में जो भाग सबसे गड़बड़ था वह मुझे मिला सबसे जो उत्तम था वो अनुज के हिस्से में | अब बेटी का विवाह उत्तम करना था , जितना धन था मेरे पास उसको पांच भागों में बांटा जो बेटी का हिस्सा बनता वो हमने खर्च किया | पर पिताजी बोले अलग तुम तब हो सकते हो जब विवाद समाप्त होगा | उस समय पिता- माता ,भाई ,अनुजवधू पर मुकदमें चची ने कर रखे थे --इस विवाद को मैं 2010 में ही समाप्त करना चाहता था धन देकर पर पिता नहीं माने थे | ध्यान दें --चाची ने मुकदमें में हम दोनों प्राणी पर कोई मुकदमें नहीं किये कभी | अतः मेरी पतनी ने चाची के पैर पकड़े हाथ जोड़े साथ में 35000 धन भी दिए ,विवादित जमीन भी दे दी तब मुकदमें समाप्त हुए | --यहाँ एकबात और बताना चाहता हूँ --जब मैं अपनी जमीन के कागजात लेकर वकील के पास गया तो वकील बोले अगर अपने एक भी व्यक्ति को पैसे दिए और लिखबाया तो सभी भाईयों का स्वतः ही हिस्सा हो जायेगा क्योंकि यह लिखित में आपकी जमीन है | अतः हमने पैसे तो समाज को दिखाकर दिए पर कुछ लिखबाया नहीं | फिर बड़े ही धूम धाम से पुत्री का विवाह हुआ --आगे की चर्चा आगे करेंगें ----ॐ |---आपका -खगोलशास्त्री झा मेरठ --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में उपलब्ध हैं |

गुरुवार, 5 अक्टूबर 2023

नामकारण संस्कार का अभिप्राय क्या है -सुनें -भाग -29- ज्योतिषी झा मेरठ



 
नामकारण संस्कार का अभिप्राय क्या है -सुनें -भाग -29- ज्योतिषी झा मेरठ
नाम कारण संस्कार -अर्थात -नाम से ही व्यक्ति की पहचान होती है | इस सृष्टि में प्रत्येक चीजों के अलग -अलग नाम होते हैं साथ ही नामों से ही सभी चीजों के प्रभाव समझ में आ जाते हैं | ज्ञानी पुरुष प्रायः नामो से ही अच्छा बुरा का भान कर लेते हैं | यहाँ यह ध्यान देने वाली बात --सृष्टि के तमाम चीजों के नाम ज्ञानी पुरुषों ने अथक परिश्रम से रखे -तभी प्रत्येक व्यक्ति को यह समझ में आती है कि कौन सी चीज हमारे अनुकूल रहेगी या कौन सी चीज हमें हानि पंहुचायेगी | इसी प्रकार से महर्षियों ने प्रत्येक व्यक्तियों के कैसे -कैसे नाम रखें या किस नाम से यह जीवन में विख्यात होगा --इसके लिए जन्म पत्रिका का निर्माण किया गया है | वास्तव में ज्योतिष की जरुरत प्रत्येक व्यक्तियों के जीवन में नाम कारण संस्कार से शुरू होती है | यहाँ भी उत्तम पुरोहित यानि एक सक्षम आचार्य की जरुरत होती हैं | जातक का एक ऐसा नाम रखा जाता है जो जीवन पथ को तत्काल दर्शाता है | कुछ लोगों के मत से देवों के ऊपर नाम रखने से जातकों में वैसा ही स्वभाव और प्रभाव देखने को मिलते हैं | जबकि सत्य यह है जिस नक्षत्र में जातकों के जन्म होते हैं उन्हीं नक्षत्रों के चरणों से नामकरण का विधान है साथ ही अगर हम देवों के नाम अपने -अपने बच्चों के रखते हैं तो सबसे पहला फायदा -बुलाने वाले लोगों को मिलता है -जिन -जिन नामों से किसी को पुकारते हैं तो उन -उन नामों में देवों के अंश दिखाई देते हैं --इस कारण परमात्मा का भी स्मरण हो जाता है | दूसरा ---सभी बालकों को इन नामों से यह प्रेरणा मिलती है कि हम कम से कम नामों के अनुकूल कार्य करें | अतः नाम कारण संस्कार उत्तम प्रकार से सभी के होने चाहिए | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सर्पदेव का कालसर्पयोग से क्यूँ है सम्बन्ध -पढ़ें ?--ज्योतिषी झा मेरठ


 सर्पदेव का कालसर्पयोग से क्यूँ है सम्बन्ध -पढ़ें ?--ज्योतिषी झा मेरठ 

  यूँ तो सनातन धर्म की संस्कृति हर जीव का सम्मान करती है -यहाँ तो सर्पों को माना जाता है देव हैं -जिनकी कृपा समस्त पृथ्वी वासी पर है -चाहे पृध्वी का धारण करना हो ,समुद्र मंथन करना हो या फिर आशीर्वाद ही क्यों न प्राप्त करना हो ,सर्पदेव की चर्चा के बिना सनातन धर्म की शुरुआत हो ही नहीं सकती है । -- अस्तु ------एकबार महर्षि सुश्रुत ने वैद्य धन्वन्तरि से पूछा कि हे प्रभु !सर्पों की संख्या और उनके भेद बतायें ?वैद्य धन्वन्तरिजी ने कहा कि सर्पदेव के समूहों में वासुकि सर्वश्रेष्ठ हैं ,ऐसे तक्षकादि सर्पदेव असंख्य हैं । ये सर्पदेव अंतरिक्ष एवं पाताल के भी वासी हैं ,तथा धरातल पर पाये जाने वाले नामधारी सर्पदेवों की संख्या प्रजाति करीब अस्सी प्रकार के हैं । हम सभी लोग जानते हैं कि सनातन धर्म की संस्कृति में सर्पदेवों की पूजा भी होती है । सनातन धर्म में सर्पों को मारना अनुचित माना जाता है एवं जहाँ -तहाँ सर्पदेव के मंदिर भी विद्यमान हैं । नागपंचमी को विधिवत सर्पदेवों की विशेष पूजा भी की जाती है । कथा ,पुराणों में सर्पदेवों का वर्णन भी मिलता है । भगवान वासुदेव ने यमुना नदी से कालिया नाग को नाथा भी था । सर्पों के बारे में लोकमत में भी अनंत कथाएँ सुनने को मिलती रहतीं हैं । सर्पों को देवयोनि का प्राणी भी माना जाता है। नूतन भवन के निर्माण में नीव रखते समय चाँदी ,स्वर्ण ,के सर्पों की पूजाकर रखा जाता है । वेदों के अनेक मन्त्रों का सर्पदेवों से सम्बन्ध हैं । नाग की हत्या जन्म जन्मान्तर तक पीछा करती है -इस कारण इसकी पहचान कालसर्प दोष के रूप में फलित +गणित ज्योतिष शास्त्रों में मिलता है । कई जगहों पर नागवध शाप को दूर करने के लिए "पिष्टमय "नागदेव का विधिवत पूजन करके दहन किया जाता है -और उस नागदेव की भस्मी बराबर स्वर्णदान किया जाता है -जो कर्मकाण्ड शास्त्र बताते हैं । शास्त्रों में सर्प को काल की संज्ञा दी गयी है । काल आदि ,मध्य ,अन्त से रहित होता है । सभी जीवों का मरण काल के अधीन ही रहता है । काल निरंतर अपनी गति से चलता रहता है । काल किसी का इन्तजार नहीं करता है । मेरे विचार से जब इन तमाम बातों पर विचार करते हैं -तो कालसर्पयोग अनुचित नहीं दीखता है -और संभवतः कालसर्पयोग -समय की गति से ही जुड़ा हुआ योग है -जिसे नकारा नहीं जा सकता है । आगे राहु +केतु का सर्पयोग से सम्बन्ध पर परिचर्चा कल करेंगें ।--- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut





मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -29 ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - "भाग "-{29} ज्योतिषी झा मेरठ

- 2012 --यह मानों हमें बहुत कुछ देना चाह रहा था | पहली पुत्री -20 वर्ष की हो चुकी थी | मैं भले ही दरिद्र नारायण रहा पर मेरी पुत्री बड़े घर में रहे यह सबकी कामना होती है मेरी भी थी ---अस्तु --आज विवाह की परिभाषा बदल चुकी है -आज रूप सुन्दर ,धन उत्तम ,शिक्षा उत्तम ,कार्यरत कन्या ,माता पिता भी उत्तम दर्जे के होने चाहिए --भला ये सारी बातें मेरे जैसे साधारण पंडित के यहाँ कैसे संभव है | मेरे पास तो सुन्दर कन्या थी ,पढ़ी लिखी थी ,धन भी था पर कन्या की नौकरी नहीं थी ,कन्या नौकरी क्यों करें ,अगर कन्या नौकरी करें -तो वर घर क्यों न संभाले -साथ ही भारत नौकरी का तो निरंतर अभाव रहेगा ,जब सभी नौकरी ही करेंगें तो और कार्य कौन करेगा | खैर मत पूछिए ---मेरी सोच है -माता पिता अपनी -अपनी मातृ भूमि से जुड़े हों ,वर शिक्षा युक्त और कार्यरत हों ,कोई भी किसी के सहारे न हों पर प्रेम से ओत -प्रोत हों --तभी तो समधी का प्रेम समधी से वर का प्रेम कन्या से और संतान के संस्कार मातृ भूमि से जुड़े होंगें | --बहुत कठिनाई के बाद यह मुराद पूरी हुई | पुत्री बेंगलुरु में रहती है समधी मातृभूमि पर और संतान अब दोनों संस्कारों को समझेगी | मेरा जनेऊ संस्कार पिताने बड़े धूम -धाम से कराया था -आज यह मेरे लिए सुभाग्य की बात है पुनः उस मातृ भूमि पर जब हम 42 वर्ष के हुए तो जिस घर में अन्न ,वस्त्र के बिना बाल्यकाल बीता था वहां पहलीबार पिता को एक मुस्कुराहट दे पाया |अगर मुझको दान लेना होता तो मेरठ जैसे शहर में बहुत दानी हैं जिनके बदौलत उत्तम प्रकार से चिंता मुक्त विवाह संस्कार होते -पर --जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसे ---माता पिता और समाज के साथ -साथ अपनी मातृ भूमि के भी हम ऋणी हैं --उनका सम्मान हमारे ह्रदय में पहले होने चाहिए | ----आगे की चर्चा कल करेंगें --ॐ |-----आपका -खगोलशास्त्री झा मेरठ --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में उपलब्ध हैं |

जातक संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु --सुनें -भाग -28- ज्योतिषी झा मेरठ


 


जातक संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु --सुनें -भाग -28--खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ----------------------------------
कर्मकाण्ड जगत में "जातक "संस्कार -यह प्रत्येक जातकों का चौथा संस्कार होता है | अभी तक के जितने भी संस्कारों को आपने जाना है -इन सभी संस्कारों में सभी के माता पिता अपनी -अपनी संतानों को एक जैसा प्रारूप दे सकते हैं | प्रत्येक माता पिता चाहें तो -राम जैसा मर्यादापुरुषोत्तम ,श्री कृष्ण जैसा निति निपुण ,माँ सरस्वती जैसी शिक्षा की अधिष्ठात्री ,श्री हनुमान जैसा बुद्धिवान -ज्ञानी ,शक्तिशाली संतानों को जन्म दे सकते हैं | माता पिता चाहें तो कुमार्ग गामी या धर्म विरोधी संतानों को जन्म दे सकते हैं | यहाँ न तो शास्त्रों ने भेद भाव किया न ही शास्त्रकारों ने न ही महर्षियों ने --ये केवल अफवाह या अनसुनी बातों के कारण हम आप में भ्रम है कि ऐसी संतानों को केवल धनाढ्य या बड़े लोग ही जन्म दे सकते हैं | इस बात को ऐसे समझें --प्रत्येक छात्रों को प्राथमिक शिक्षा एक जैसी ही मिलती है अंतर तो केवल छात्रों को निखारने का होता है --जो शिक्षकों और माता पिता या संगति के कमियों के कारण कोई उत्तम छात्र या अधम बन जाते हैं | एक और उदहारण देखें -प्रत्येक छात्रों को दशवीं कक्षा तक सभी विषयों को पढ़ना अनिवार्य होता है -उसके बाद अपनी -अपनी समझ के अनुसार विषयों का चयन करना होता है | जब पढ़ाई की ऐसी ही व्यवस्था है तो फिर जातिबाद या बड़े छोटे की बात कहाँ से आयी -इसे हमें ठीक से समझना चाहिए | ----अस्तु --प्रत्येक जातक जब छे दिन के होते हैं -तो षष्ठी पूजन होता है -इस दिन स्वयं विधाता जातकों को दर्शन देते हैं और जातकों -की आयु ,कर्म ,वित्त ,विद्या और निर्धनता का आशीर्वाद देकर चले जाते हैं तथा पुनः जीवन में कभी दर्शन नहीं देते हैं | दशवें दिन शुद्धिकरण होता है तब जातकों को सभी को देखने का और आशीर्वाद लेने का दिन होता है |---आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका -
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मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...