"शेषनाग "नामक कालसर्प योग की विशेषता -जानने हेतु -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ "
किसी भी जन्मकुण्डली में राहु द्वादश भाव भाव में हो एवं केतु छठे {षष्ठ }भाव में हो साथ ही सूर्यादि सातों ग्रह इन दोनों के मध्य स्थित हों तो "शेषनाग "नामक कालसर्प योग बनता है । शेषनाग नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले लोग देश --प्रदेश एवं विदेश कहीं भी एक जैसी परिस्थितियों में रहते हुए व्यक्तित्व के विकास ,खान -पान एवं रहन -सहन पर अधिक ध्यान देते हैं । ऐसे जातक के शत्रु तांत्रिक -यांत्रिक क्रियाओं द्वारा हानि पंहुचाने का षड्यंत्र करते रहते हैं । ऐसे जातक को मित्रों की भागीदारी में नुकसान उठाना पड़ता है । ऐसे जातक देश -विदेश के संपर्क से लाभ पाते हैं । ऐसे जातक को खूब सोच समझकर किये गये कामों में अक्सर हानि होती है । परन्तु अनायास या अचानक किया गया काम लाभ देता है । ----निदान ---- वैसे अपने -अपने आचार्य से कुण्डली की जानकारी करें ,फिर भी धनाभाव हो तो -शनिवार को तेल का दान एवं शरीर पर तेल मर्दन से लाभ होगा । माँ काली की उपासना या अष्टमी ,नवमी एवं चतुर्दशी की तिथियों में निम्बू +प्रसाद एवं दक्षिणा माँ को भेंट करने से रोग ,शत्रुता एवं खर्च में राहत मिलती है । ------ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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