"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?-"भाग -{5}-ज्योतिषी झा मेरठ
-1983 में पिताजी गुरुकुल आश्रम में छोड़ आये | एक थैला ,दो धोती ,एक बनियान ,एक कुर्ता ,थाली और लोटा के साथ | अपने परिजनों से दूर होना ,नवीन जगह पर अपना कोई न हो तो समय काटना कठिन होता है | खैर -अब हमारे माता- पिता गुरूजी थे जिन्हें लोग सरकार कहकर पुकारते थे | वहां के सभी छात्र हृष्ट -पुष्ट थे किन्तु मैं दुवला -पतला | सभी मित्रों के माता पिता कुछ न कुछ अपने बच्चों के लिए लाते थे किन्तु मेरा होते हुए भी कोई देखने भी नहीं आते थे | हम अपने आप को असहाय समझते थे | वहां दो समय भोजन मिलता था | दूध ,नास्ता ,दवाई ,फल ,सोने का कोई इंतजाम नहीं ,यहाँ तक कि घंटी बजी और भोजन में नहीं पंहुचे तो भूखे रहना पड़ता था | सर्वप्रथम इस आश्रम में मुझको दीक्षा दी गयी हम शाकाहार तो बनना चाहते थे पर तुलसी की माला नहीं पहनना चाहते थे क्योंकि हम बालक थे 13 वर्ष के नियमावली का पालन नहीं कर सकते थे | फिर भी तुलसी की माला तिलक धारण किया | अब पहला कार्य मिला भिक्षा मांगने का | एक छात्र ने पहले दिन गांव -लगमा, जिला दरभंगा- में भिक्षा कैसे मांगी जाती है सिखाया संयोग देखें -शुरुआत का पहला भवन मेरी मौसी का था जिनको हम तो नहीं जानते थे पर वो मुझको जानती थीं | उन्होंने अपना समझकर नास्ता कराया और भिक्षा दी | यह स्थिति मृत्यु तुल्य थी क्योंकि पराये से मांगना अपनों से बेहतर होता है | उस दिन से हम और निर्लज हो गए | ऐसा नहीं की हम ही मांगते थे सभी छात्र म,मांगते थे और जो हमलोग मांगकर लाते थे वही भोजन बनता था | अतः इस प्रकार की आदत पड़ गयी | यह प्रक्रिया तीन महीने तक चली | अब गुरूजी ने हमारा काम बदला -बोले तुम दोनों समय का भोजन बनाओगे क्यों -क्योंकि तुम्हारे पिता ने गुरुकुल की फीस नहीं जमा की इसलिए | अब भोजन बनाने की शिक्षा दी गई | रात को भोजन पाने के बाद सरकार को दूध पिलाना होता था और दूध पिलाना बहुत कठिन कार्य होता था क्योंकि जो दूध लेकर जाता था वो पहले सरकार के चरणों को दबाएगा चलो सेवा तो करनी चाहिए पर चरणों को दबाते -दबाते दूध ठंढा हो जाता था और फिर गर्म करके लाना पड़ता था पर सरकार कभी ये नहीं कहते थे कि जाओ सो जाओ देर रात हो गई है | इसके साथ एक और समस्या थी दिन रात का समय खाना बनाने में कट जायेगा तो पढ़ेगा कब इस बात से सरकार को कोई लेनी देनी नहीं थी |फिर भी हम जो समय मिलता था पढ़ने की कोशिश करते रहे | क्योंकि अपनी बात किससे कहते इसी तरह 1984 में मध्यमा यानि दसवीं कक्षा पास की | आगे कथा कल लिखेंगें | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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