जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है -इसका स्वामी शुक्र -बुध के साथ दूसरे घर में विराजमान है --वैसे शुक्र नीच का है किन्तु बुध उच्च का अतः --शुक्र का नीच होना बुध की वजह से समाप्त हो गया | दशवें घर में चन्द्रमा उच्च का है | मेरी कुण्डली में लग्नेश ,त्रिकोणेश के साथ केंद्र में अकेला चद्र उच्च का होकर मुझे बहुत ही मजबूत बनाया है | धनेश बुध +शुक्र की युति ने मेरे जीवन में चार चाँद लगा दिए | जब जन्म हुआ तो राजयोग चन्द्रमा की दशा में हुआ --किन्तु इसकी अवधि के ढाई वर्ष थी अतः कम समय का राजयोग रहा | इसके बाद मंगल की अवधि भी कम रही - जब हम 10 वर्ष के हुए तो राहु की दशा शुरू हुई जो 28 वर्ष के जब हम हुए तब तक रही | यह राहु की दशा -सभी उत्तम ग्रहों पर भारी रही --शिक्षा ,दीक्षा ,नौकरी ,विवाह ,संतान ,सभी क्षेत्रों में मुझे बहुत संघर्ष रहा | केवल एक चीज बढ़िया रही -शिक्षा चलती रही --विवाह और पुत्री होने के बाद भी बहुत उत्तम शिक्षा मिली | इस शिक्षा का लाभ कभी नहीं मिला | इस शिक्षा की वजह से आज मैं सशक्त तो हूँ किन्तु कर्मक्षेत्र आज भी प्रभु के सहारे है | अपने जीवन में शिक्षा हो या जरुरत की चीजें --खुद अर्जित की किसी ने सहता नहीं की | एक दौर ऐसा आया -शिक्षा का विरोधी पिता माता के साथ पतनी भी बन गयी | किन्तु जब हम -28 वर्ष के हुए --साथ ही फिर से उत्तम दशा शुरू हुई तो --शिक्षा भी चलने लगी और कर्मक्षेत्र भी मजबूत हो गया | अपने जीवन में जब यह अनुभव हुआ ईस्वर ही सबकुछ हैं -उनकी शरण में रहो तो प्रभु ने मुझे दोनों हाथों से उठाया | हमें जो शिक्षा मिली उससे कभी धन ज्यादा नहीं मिला | मुझे शिक्षा में जितनी मेहनत करनी पड़ी उतना कमाने में श्रम नहीं करना पड़ा | मुझे ज्योतिष विद्या या संगीत से या पढ़ाई से कोई धन नहीं मिला | मुझे अपने जीवन में ज्यादातर समय निरर्थक लगा | मुझे धन पुरस्कार स्वरुप मिला साथ ही यह व्यवस्था स्वयं भोले नाथ ने की | मेरा गुजारा कैसे चलता है --आज तक पता नहीं चला | जब भी धन की जरुरत होती है --भोले नाथ से कहा वो जरुरत से ज्यादा दे दिया करते हैं | मुझे कईबार यह अनुभव हुआ मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ --अपने आपको शिव को समर्पित कर दिया --उन्हौनें जरुरत से ज्यादा दे दिए | मेरे पास सरस्वती ज्यादा है --किन्तु लोग मुझे धन से ज्यादा जानते हैं | माता -पिता ,परिजन सभी धन से मुझे जानते हैं | जो मेरे यजमान बनते हैं या होते हैं --उन्हौनें हमारी सरस्वती को नहीं परख पाए --बल्कि धन से मुझे तौला है ---इस बात का मुझे बहु कष्ट होता है | मैं अपने समस्त परिजनों से दिल से प्रेम करता हूँ --किन्तु --प्रत्यक्ष नफ़रत का स्वरूर रखता हूँ --अतः व्यक्तिगत मैं किसी को शत्रु नहीं समझता --पर सभी को लगता है मैं अहंकारी हूँ | अंत में अपने कर्मक्षेत्र के बारे में इतना कह सकता हूँ ---अनायास विशेष धन प्राप्ति का राजयोग है --सो कोई न कोई धन रूपी पुरस्कार देता रहता है --जिसे हम खुद नहीं जानते होते हैं | अपने पिता से मैं बहुत प्रेम करता हूँ --ईस्वर और उनमें मुझे कोई अन्तर नहीं दिखा है --पर यह प्रत्यक्ष देखने पर नहीं लगता --क्योंकि दोनों में कभी बनी नहीं | कर्मक्षेत्र में मेरी सोच है --जब गारंटी ज्योतिष या कर्मकाण्ड का यजमान महत्व देते हैं तो फिर --मुद्रा को सबसे ऊपर कर दो --इससे यह फायदा होगा --शांति से भजन करोगे अन्यथा निरंतर लोग परेशान करेंगें | ---अगले भाग में मेरी कुण्डली का दशवां घर पर चर्चा करेंगें ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें ---https://khagolshastri.blogspot.com/
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
बुधवार, 19 नवंबर 2025
मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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सोमवार, 6 अक्टूबर 2025
मेरी कुण्डली का नवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -123 - ज्योतिषी झा मेरठ
हमारे ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड क्वे नियमित पाठकगण --जीवन भर लोगों की कुण्डलियों का आकलन करते रहे पर अपनी जन्मकुण्डली को देखने का गुरु का आदेश नहीं था -अतः जीवन भर कर्मकाण्ड के पथ पर मेरा जीवन चलता रहा | जब अपनी आत्मकथा में अपनी कमियों को ढूंढ रहा था --तो अनुभव हुआ -जैसे दीपक के नीचे अँधेरा होता है --वैसा ही मेरा जीवन रहा --अगर मुझे यह अनुभव होता कि हमारी कुण्डली क्या कहती है और मुझे क्या करना चाहिए साथ ही परिस्थिति होती और सही मार्गदर्शन दाता होते तो शायद मेरा भी जीवन कुछ और होता | भारत भूमि पर एक कहावत है जस देवता तस गरगरी --अर्थात -- ज्यादातर लोग केवल जन्मपत्री में यकीं तो करते हैं -पर निदान शून्य होता है --इसका प्रभाव जीवन भर भ्रान्ति में जन्मपत्री लेकर भटकते रहते हैं --थोर -बहुत जो भरोसा होता है वह भी समाप्त हो जाता है | अंत में हर व्यक्ति को ज्योतिष और ज्योतिषी पर विस्वास खत्म हो जाता है | जबकि --मुझे अनुभव हुआ है --सही मार्गदर्शन सही संस्कारों के बाद ही संभव है | आज हर व्यक्ति गरीबी रेखा से आगे है --पर संस्कार के मामले में सबसे गरीब होता जा रहा है --जब संस्कार नहीं तो ज्योतिष का लाभ वैदिक की जगह -तंत्र मन्त्र से लेना चाहते हैं --जिसका परिणाम तनिक देर के लिए लाभ दे सकता है दीर्घकाल नहीं --हो सके तो संस्कारों को अमल करें -अपने बच्चों में डालें | ---अस्तु ---कुण्डली का नवां घर --भाग्य कहलाता है | मेरा भाग्य बहुत ही अच्छा रहा भौतिक जीवन के लिए --किन्तु मेरी आत्मा कभी खुश नहीं रही --क्यों ? --एक शास्त्री ब्राहण के लिए कुछ नियम होते हैं --जिनका हमें पालन करना चाहिए -आज के समय जब केवल धन से व्यक्ति का आकलन होता है --उसमें तो मैं राजा हो गया | धन कहीं से कैसे भी आये अगर यह जीवन है तो हमारे परिजन खुश हो सकते हैं --पर मेरी आत्मा कभी खुश नहीं हुई | धन कमाना था ,गरीबी से उठना था --मेरी कुण्डली के नवम भाव में शनि नीच का विराजमान है साथ ही गुरु की पूर्ण दृस्टि पड़ रही है और नवम घर का स्वामी मंगल मित्र सूर्य की राशि में लगन में है --लगन में सूर्य और मंगल की युति है --हमने धन की चाहत में इस योग को जानने के लिए -बहुत ग्रंथों को पढ़ा, यह योग का ज्ञान मुझे केवल 13 वर्ष में श्रीमाली जी की राशिफल किताब से अनुभव हो चूका था --जब मेरी कुण्डली में दरिद्र योग चल रहा था --कईबार मुझे ग्रंथों पर भरोसा नहीं रहा --क्योंकि कुण्डली का लाभ धन का मुझे जब हम -30 वर्ष के हुए तब अनायास मिला | तबतक ज्योतिष से यकीन हट चूका था -हम अपने आपको निःसहाय मानने लगे थे | मेरा विवाह -1990 में हुआ किन्तु --अनायास --1999 में पतनी मेरे पास मेरठ आयी --तब अनायास मेरा भाग्योदय हुआ | पहले सदा हम यह सोचते थे यह उचित नहीं है -तर्क और कुतर्क के घेरे में सदा रहते थे -किन्तु पतनी आने के बाद यह सोच हट गयी --केवल धन चाहिए -- क्योकि भाग्य में नीच का शनि है --तो नीच व्यक्ति से ही लाभ मिलेगा | जो धार्मिक थे जिनके लिए जीवन भर चाकरी की उन्होनें कुछ नहीं दिया --जो नीच प्रवृत्ति के थे --उन्होनें कार्य होते ही मुठी भर -भर के दिए | --आज लोग मुझे ज्ञान से नहीं धन से जानते हैं --इस बात से मैं बहुत दुःखी रहता हूँ | जबकि जीवन भर ज्ञान के लिए ही कोशिश की है --आज भी सदा प्रयास रखता हूँ --ज्ञान की खोज करें --जिसका लाभ कभी नहीं मिला | धन अनायास और थोड़े से प्रयास में बहुत मिला है --जिसका स्वभाव से मेरे लिए महत्व नहीं होता है | --हम सदा चाहते हैं --पढ़ें ,पढ़ाएं ,दान लें दान दें ,यज्ञ करें और कराएं ---पर इन नियमों पर सभी नहीं उतरते हैं इसका मुझे बहुत ही मलाल रहता है | --अगले भाग में मेरी कुण्डली का दशवां घर पर चर्चा करेंगें ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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देश -विदेश की भविष्यवाणी -पढ़ें -08/10 /25 से 21 /10 /25 तक -ज्योतिषी झा मेरठ
ॐ श्रीसंवत -2082 -शाके -1947 कार्तिक कृष्णपक्ष --तदनुसार दिनांक -08/10 /2025 से 21 /10 /2025 तक देश -विदेश भविष्यवाणी की बात करें --एक प्रमाण देखें ---यत्र मासे महिसुनौर जायन्ते पंच वासराः ,रक्तेन पूरिता पृथ्वी छत्र भंगस्ततदा भवेत , बुधस्य पंच वाराः स्यु यत्र मासे निरन्तरम ,प्रजाश्च सुख संपन्ना सुभिक्षं च प्रजायते ,---प्रस्तुत श्लोकों का भाव है --इस मास संसार में सुख -दुःख समान देखने को मिलेगें | विश्व समुदाय अमेरिकादि देशों में तनाव बढ़ेगा ,तो कहीं शान्ति की परिचर्चा होगी | संसार की व्यवस्था को सुचारु रूप से नये नियम बनाये जा सकते हैं | एक और प्रमाण देखें ---कन्या राशि गते शुकरौ सर्वसस्य विनस्यति ,तत्र धान्य महर्घाणी शालीश्चैव विशेषतः ----अर्थात खाद्य पदार्थों में तेजी का चक्र चलेगा | इस मशीनरी ,कलपुर्जे ,वाहन ,सभी धातु ,मेवा ,मिष्ठान्न ,नाना प्रकार के फल ,चीनी ,चावल ,अचार -मुरब्बा विशेष तेज हो सकते हैं | इस महीने तिथि घटा -बढ़ी का प्रभाव यह होगा --चालू मार्किट का रुख नरम रहेगा | कर्क उच्च में गुरु का फल भी ऐसा ही घटित होता है | ----आकाश लक्षण की बात करें तो --ग्रह योगायोग से यत्र -तत्र वर्षा का योग है | पर्वतीय संभागों में कहीं अधिक वर्षा होगी | बांध विखंडन जल प्रलय का कारण बन सकता है | ---दिवाली का प्रभाव --मंगलवारी पड़े दिवारी हंसे किसान रोवे व्यापारी ----दीपावली मंगलवारी चित्रा नक्षत्र का योग फसलों की आवक को बढ़ायेगा | कृषकों को लाभ मिलेगा ,व्यापार अनिश्चित चलेगा ,घाटा बढ़ सकता है | लेन -देन सोच समझकर करें | -------भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025
मेरी कुण्डली का आठवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -122 - ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों - कुण्डली एक दर्पण है -जिसमें अध्ययन हो ,गुरुकृपा हो एवं जीवन का लक्ष्य तप पर आधारित हो साथ ही नजरें हों तो सबकुछ स्पष्ट दिखेगा | हर व्यक्ति की कुण्डली का आठवां घर वैसा ही महत्व रखता है -जैसा किसी भवन की नींव जितनी मजबूत होगी उसकी छत उसी के अनुसार टिकी रहती है | ---अस्तु --मेरी कुण्डली का पहला घर बहुत ही मजबूत है -तो आठवां घर भी बहुत ही मजबूत है | ईस्वर ने जीवन में दुःख अनन्त लिखे तो सुख भी अनन्त लिखे | जीवन में कईबार मरना चाहा पर मरे नहीं | एकबार उम्र थी -12 वर्ष अपने गांव से 15 किलोमीटर दूर पिता के साथ रहते थे --एकबार डांट दिये पिताने --फिर क्या था -बहुत तेज पैदल -पैदल भागा -रस्ते में सर्प से लिपटे पर भागते रहे -शाम -6 बजे चलना शुरू किये --अँधेरा मार्ग था पर पक्की सड़क थी | कब क्या हुआ पता नहीं रात्रि -8 बजे घर पहुंचा --माँ ने गरम पानी से दोनों टांगों को धोया --हम सही सलामत रहे | एकबार उम्र थी 14 वर्ष -सरकार ने आश्रम में गाय चराने नहीं गया बारिस हो रही थी --कारण था --मेरे पैरों में चप्पल नहीं होने के कारण तलवों में गड्डे हो गए थे --जिसका असह्य दर्द हो रहा था --न ओषधि न दुआ --दर्द से कराह रहा था --ऐसी स्थिति में सरकार ने रस्सी से मारा गरीबी चरम सीमा पर थी --सोचा कहाँ जाऊ --न तातो न माता --तो मृत्यु नजर आयी -बिजली के तारों को छूकर मरना चाहा पर --बिजली ने झटका देकर छोड़ दिया --यहाँ भी मृत्यु नहीं आयी | एकबार उम्र -15 वर्ष अनायास प्रेम पत्र लिखा -वह पत्र वापस विद्यालय आया -गुरूजी ने एक थापर जर दिया --मेरा ललाट अलवारी से टकराया --खून की धारा बहने लगी --मारने वालो को यह स्थिति देखि नहीं गयी --बोले भाग जा --हमने कहा मुझे जीना नहीं है यहीं मरना चाहता हूँ --पर -क्या विद्यालय ,क्या परिजन ,क्या गुरुजन और छात्र सभी जगह परिहास होने लगा --जीवन मृत्यु से ही बदतर हुआ पर फिर भी निर्लज की तरह जीता रहा | --उम्र 18 वर्ष --मेरा अनुज अनायास सर्पदंश से मर गया --इसके बाद मानों मैं अजर अमर हो गया --पथ्थर की तरह | -जीवन में सिर्फ यह शरीर साथ दे रहा था --जबकि इस शरीर को कभी दूध ,दही या पौष्टिक आहार नहीं मिला | इसके बाद -चाहे माता पिता हों ,परिजन हों या सगे -सम्बन्धी हों या रोजगार --सबने मृत्यु के द्वार तक पहुंचाए पर फिर भी मरे नहीं | -- इसके बाद -उम्र -30 हुई राजयोग आया --पतनी के सहारे चलना सीखा -धन मिला ,भवन मिले ,बच्चे मिले ,वाहन मिले सभी सुख मिले --किन्तु --कईबार ऐसा लगा --चूड़ियां पतनी की जगह खुद पहन लूँ --क्योंकि पतनी के साथ चलने पर सबकुछ तो था --पर स्वाभिमान बिक गया --यह स्वाभिमान एक पुरुष का ऐसा जहर होता है --जो नित्य मृत्यु के द्वार तक ले जाता है फिर वहीँ लाकर खड़ा कर देता है | कहने का अभिप्राय है --मेरी कुण्डली में दीर्घायु योग था लग्नेश और सप्तमेश की वजह से इसलिए जीते रहे | इस घर का स्वामी तृतीय भाव में विराजमान है --अतः स्वाभिमान को चोट पहुंचना निरंतर लिखा हुआ है --सो यह चोट आज जब हम 55 वर्ष के हो गए तो निरंतर चोट स स्वाभिमान की लगती रहती है --यह घूंट निरंतर पीता रहता हूँ --मरना भी चाहता हूँ पर यह अभी तक संभव नहीं हुआ है | ----अगले भाग में -नवां
घर की चर्चा करेंगें | ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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सोमवार, 22 सितंबर 2025
देश -विदेश की भविष्यवाणी -पढ़ें -22 /09 /25 से 07 /10 /25 तक -ज्योतिषी झा मेरठ
ॐ श्रीसंवत -2082 --शाके -1947 आश्विन शुक्लपक्ष -तदनुसार दिनांक -22 /09 /2025 से 07 /10 / 2025 तक देश -विदेश भविष्यवाणी की बात करें --नवरात्र की शुरुआत सोमवार से उत्तम है | माता हाथी पर सवार होकर पधारी हैं -अतः खेती में उत्पादन उत्तम होगा | गुड़ ,शक्कर ,हरी सब्जी ,रुई ,कपास ,अरहर ,मूंग ,मसूर ,आलू ,गाजर ,टमाटर ,अनाज की खेती पर्याप्त होगी | सरकार कृषकों को म प्रमुखता देगी | ---एक प्रमाण देखें ---सोमस्य पंचवाराः स्युः यत्र मासे भवन्ति हि ,धन धान्य समृद्धिः स्यात सुखं भवति सर्वदा ---भावार्थ --देश -देशान्तरों में विकास को बल मिलेगा | उत्पादन की अच्छी उम्मीद खुशहाली का कारण बनेगी | ----तेजी मन्दी की बात करें तो --बाजार का रुख नरम रहेगा | तृतीया तिथि की वृद्धि होने से चालू भावों में गिरावट होगी | --विशेष --कहीं वर्चस्व की लड़ाई आर -पार लड़ी जायेगी | आकाश लक्षण की बात करें तो ---पक्षांतर्गत घामाछायी सी चलेगी | वायुवेग के साथ यत्र -तत्र बूंदा -बांदी हो सकती है | विजयदशमी एवं शरदपूर्णिमा में मौसम खराब हो सकता है | पक्ष में हल्की ठंढ पड़ने लगेगी | --29 में अगस्त तारा उदय होगा | ---------भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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मंगलवार, 16 सितंबर 2025
मेरी कुण्डली का सातवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -121 - ज्योतिषी झा मेरठ
ॐ --आत्मकथा के पाठकगण --प्रत्येक व्यक्ति का यह सातवां घर बहुत ही मार्मिक एवं गुप्त होता है | मेरी कुण्डली की नींव लग्न प्रथम घर बहुत ही सशक्त है --तो उसकी छत भी ईस्वर ने बहुत ही बजबूत बनायीं है | मेरे जीवन में मैं जितना सशक्त ,मजबूत एक धर्म पथ पर आरूढ़ रहा तो उसमें सप्तम घर सुख की लालसा है बहुत ही योगदान रहा है | वैसे -मैं मंगली हूँ -इसका अर्थ है --या तो कई विवाह के योग हैं या खण्डित कई विवाह के योग बनेंगें | यह बात सौप्रतिशत सत्य हमने आभास किया है | यधपि बहुत सी बातों को कहने का साहस हर व्यक्ति नहीं कर सकता है --पर मुझे कहने में तनिक भी संकोच नहीं हो रहा है --क्योंकि जब दूसरे की बुराई मैंने की है --तो हम अपने चरित्र को दिखाना भी आत्मकथा का धर्म है | ---अस्तु ---मेरी कुण्डली में मंगली दोष तो है ही साथ ही सप्तम भाव का स्वामी शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में विराजमान है | लग्नेश -सूर्य एवं मंगल एवं केतु की सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि पड़ रही है | गुरु की भी पूर्ण दृष्टि पड़ रही है | खुद शनि की दृष्टि नहीं पड़ रही है | साधारणतया --इस कुण्डली को देखने पर दाम्पत्य जीवन उत्तम नहीं रहेगा --ऐसा सभी को प्रतीत होगा --बहुत दिनों तक मुझे भी ऐसा ही लगा | --अब --जब ज्योतिष का बहुत ही अनुभव देखने का हो चूका है --साथ ही अपने जीवन के उस पड़ाव पर हैं --जहाँ सीमित सुख की लालसा है --तो हमने पाया कर्मपथ उत्तम हो तो बहुत सी अनहोनी से ईस्वर रक्षा अवश्य करते हैं | उदाहरण से समझें --जब हम -14 वर्ष के हुए -तो अनायास प्रेम हुआ -जो अधूरा रहा -बदले में ऐसी चोट लगी जो अब तक गयी नहीं --उसके बाद प्रेम शब्द समाप्त हो गया --कालेज से निष्कासित हुए ,समाज से तिरस्कृत हुए --प्रेमिका को ठीक से देखा नहीं --यह था मंगली दोष का प्रभाव और बाल्यकाल | उसके बाद --किसी भी हालत में शीघ्र विवाह करना ही लक्ष था -उसके बाद पढ़ने की तमन्ना थी --जब -19 वर्ष के हुए -अनायास तीन दिन में प्रेम विवाह किया -सबके आशीर्वाद लेकर | उसके बाद पढ़ने चला गया --मुम्बई | राहु की दशा पूर्ण यौवन में थी -जब हम -29 वर्ष के हुए --तब तक राहु की दशा रही -इसी बीच-दो कन्या ईस्वर ने दी ,शिक्षा पूर्ण नहीं हुई ,दर -दर की ठोकरे खाते रहे --पर दाम्पत्य जीवन बरकरार रहा | आगे -जब हम -30 वर्ष के हुए तबसे आजतक -कई योग प्रेम के बनते रहे पर -जब पतनी मजबूत हो -व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी धर्म सम्मत निभाने का प्रयास करे तो उसकी सदा ईस्वर भी सहायता करते हैं | वैसे मेरी पतनी की कुण्डली उपलब्ध नहीं है | नानी ने यह धर्मपत्नी अपने आशीर्वाद में दिया --वो परमधार्मिक थी ,माता पिता के आशीर्वाद से विवाह किया था --हमारे माता पिता भी धार्मिक थे --अतः यह धर्म भी हमें सहायता प्रदान किया | मेरी पतनी भी परमधार्मिक है --अतः एक मैं ही तो अधर्मी था --सबके धर्म के आगे मेरा अधर्म समाप्त होता गया --और मेरा दाम्पत्य जीवन उत्तम रहा | अब अपनी कुण्डली से समझाते हैं --ऐसा कौन सा योग था --जिस पर सबकी नजर नहीं गयी ---धार्मिक विशेष ग्रहों के प्रभाव के कारण मेरा दाम्पत्य जीवन अटूट रहा --सुनें --लग्नेश सूर्य के अनुसार मंगल और केतु को चलना पड़ा --जो सप्तम दृष्टि से सुखी बनाये | शनि भले ही नीच का है --पर त्रिकोण में है --भाग्य को बढ़ाना --शनि का धर्म है --अतः दाम्पत्य जीवन ठीक रहा | गुरु भी त्रिकोण का स्वामी है --पराक्रम क्षेत्र में तो हानि हुई पर --दाम्पत्य क्षेत्र को पूर्ण सुखी बनाया | चन्द्रमा मेरा कर्मक्षेत्र में उच्च का है --अतः -धर्म सम्मत ही मन रहेगा | सबसे बड़ी बात --पतनी के भाग्य से ही भाग्यवान बने | संसार के तमाम सुख पतनी की वजह से ही प्राप्त हुए --अन्यथा मेरा जीवन नीरस होता | -चाहे ,शिक्षा हो ,संतान हों ,संपत्ति हो ,वाहन ,भवन हों ,मान -प्रतिष्ठा ,इज्जत सबकुछ अपने कर्मों से नहीं पतनी के भाग्य और कर्मों से प्राप्त हुए | ईस्वर ने हम पर बहुत कृपा करि है ---बहुत कुछ खोने के बाद भी मजबूत हैं | यह मेरी कुण्डली के सप्तम भाव का प्रभाव रहा | --अगले भाग में --आठवां घर की चर्चा करेंगें | ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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रविवार, 14 सितंबर 2025
मेरी कुण्डली का छठा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -120 - ज्योतिषी झा मेरठ
ॐ --मेरी कुण्डली का छठा घर -जो रोग और शत्रुओं का है --मेरे जीवन में जन्म से लेकर आज तक कभी ऐसा नहीं रहा जब हम रोग और शत्रुओं से घिरे न रहे हों | चूंकि --इस घर का स्वामी नीच का है --इसका अर्थ है सदा रोगी रहेंगें एवं शत्रुओं से घिरे रहेंगें --किन्तु ईस्वर की विडम्बना देंखें --बचाने का मार्ग भी बड़े ही सरल बनाया है --इस छठे घर का स्वामी शनि है -जो नीच राशि भाग्य क्षेत्र और त्रिकोण में विराजमान है --किसी की भी कुण्डली हो त्रिकोण का लाभ सबको मिलता है --अतः भाग्य मेरा बहुत सबल रहा | आज जब मैं -55 वर्ष का हो चूका हूँ --तब अपनी कुण्डली का विश्लेषण कर रहा हूँ --पहले कभी अपनी कुण्डली ठीक से देखि नहीं --क्योंकि --गुरुदेव का आदेश था | अब जीवन के अन्तिम पड़ाव पर हूं --तो कोई दोष नहीं लगेगा | अस्तु ===जब बालक था तबसे सदा बीमार रहा ,तबसे ही सबके शत्रु रहा -यह कथा जीवनी में लिख चूका हूँ | कभी माँ ने बचाया तो कभी पिता ने बचाया ,कभी दीदी ने बचाया तो कभी मामा ने बचाया --इसके बाद गुरुकुल में गुरुदेव ने बचाया --चलते -चलते कईबार घिरे -तो कोई अनायास बचाया --उसने बचाया -जिसको हम जानते तक नहीं थे | इसके बाद पतनी ने बचाया -जिस -जिस ने पीड़ित किया उससे बचने का मार्ग ईस्वर ने स्वयं बनाया --जो मैं खुद नहीं जनता था | ऐसे ही रोगों की दस्ता रही है --कोई दिन ऐसा नहीं होगा --जब हम किसी न किसी कारण से बीमार नहीं रहे होंगें ==पर तमाम रोगों पर सदा भाग्य ने विजय दिलाया | अपने जीवन में रोगों पर मेरा -50 प्रतिशत खर्च रहा है --देखने में मैं कभी किसी को बीमार नहीं दीखता पर --अंदर ही अन्दर बीमार रहा | --आज मुझे अपनी कुण्डली से यह अनुभव हो रहा है -कोई सगे -सम्बन्धी हों या रोजगार से जुड़े लोग या फिर पतनी या बच्चे हों सबसे मेरा सदा युद्ध होता रहता है -कईबार मरने का सोचा पर मरे नहीं --चलते रहे ,स्थान बदलते रहे ,मित्रों से बचते रहे ,अपनापन से दूर रहे --कईबार ऐसा लगा --अब कैसे बचेंगें --अब कैसे आगे बढ़ेंगें --पर अपने आप को फिर ईस्वर को सौंप दिए --तो वही --सभी शत्रुओं से बचाया भी आगे बढ़ाया भी --कभी रोग हो या फिर शत्रु --झुके नहीं ,थके नहीं -अपनी मस्ती में चलते रहे --यह था वास्तव में भाग्य का प्रभाव --जिसे कभी अहसास नहीं कर पाए | एक भाग्य की कथा जो कहना छठा हूँ --सुनें --मेरी चाची ने -24 मुकदमें किये मेरे पिता पर -उसमें सबको जेल जाना पड़ा -पर मुझे चाची ने कुछ नहीं कहा -यह अब समझ में आ रहा है --इतना ही नहीं -उस मुकदमें से मेरी पतनी ने सबको -माता पिता एवं अनुज के परिवार को निकाला --इसे ही भाग्य कहते हैं | -----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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शुक्रवार, 12 सितंबर 2025
मेरी कुण्डली का पांचवा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -119 - ज्योतिषी झा मेरठ
ॐ --हमारे पाठकगण --मेरी कुण्डली सिंह लग्न की है | पांचवा घर गुरु का है एवं गुरु- शुक्र राशि तृतीय घर -पराक्रम क्षेत्र में विराजमान हैं | इस पंचम घर पर गुरु की त्रिपाद दृस्टि पड़ रही है | पूर्ण दृस्टि किसी भी ग्रहों की नहीं पड़ रही है --इस पंचम घर पर | इसका अर्थ है --शिक्षा एवं बुद्धि का विशेष कोई लाभ नहीं मिलेगा | यह बात सौ प्रतिशत सही है | न तो मैं मान्यता प्राप्त ज्योतिषी ,वैदिक या फिर गायक कुछ भी नहीं हूँ --जबकि इन तीनों क्षेत्रों में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया | जब ज्योतिष की डिग्री ले रहा था --तो अनुज सर्पदंश से दिवंगत हो गया --फिर भी सभी ज्योतिष के ग्रन्थ जिह्वा पर थे | वैदिक -केवल 11 वर्ष के हुए तो रुद्राष्टाध्यायी जिह्वा पर थी -किन्तु दरिद्र योग चल रहा था -न तो किसी ने मदद की न ही मार्ग मिला ,यहाँ भी -संहिता के 20 अध्याय जिह्वा पर हुए --पर यह विद्या अधूरी रही | संगीत के दसों ठाठ केवल 13 वर्ष के थे तो जिह्वा पर थे पर गुरु का विद्यालय से निष्कसन हुआ तो यह विद्या अधूरी रही --जब हम --30 वर्ष के हुए -तो पहली कमाई से हारमोनियम खरीदा और 10 वर्ष संगीत का अध्ययन किया --एक दिन पतनी ने अपमान किया --उसके बाद यह विद्या का परित्याग कर दिया | अब देखें --गुरु की त्रिपाद दृष्टि से --तीन विद्या सफलता पूर्वक प्राप्त हुई | फिर भी अधूरे रहे | मुझे तीन संतान प्राप्त हुई -बड़ी ही ईस्वर की कृपा से पुत्र प्राप्त हुआ | दरिद्र योग में होने के बाद भी -बिहार ,उत्तर प्रदेश एवं मुम्बई में उत्तम शिक्षा मिली फिर भी अधूरे रहे | सदा धर्म पथ पर रहे ,सबकी उन्नति सदा चाही ,एक सुन्दर समाज की सोच सदा रही ,शिक्षा का महत्व सर्व प्रथम दिया ,जहाँ भी रहा उसे सदा अपना समझा फिर भी किसी का नहीं हो सका | ---अब आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा --ऐसा क्यों --तो सुनें ---भले ही ज्ञान से परिपूर्ण था ---मेरा पराक्रम क्षेत्र एवं सगे -सम्बन्धियों से कदापि लाभ नहीं मिलना था --पर मेरे कोई मार्गदर्शक नहीं थे --अगर होते तो हमें क्या करना चाहिए यह बताते --ऐसा नहीं होने पर --चूँकि मैं सिंह लग्न का हूँ एवं मंगल से युक्त सूर्य देव लग्न में हैं --अर्थात नहीं कैसे होगा कोई काम --यह जो हौसला था मेरा-- बहुत ही मजबूत था | ऐसी स्थिति में व्यक्ति की एक अलग धुन होती है -वो केवल पागल की तरह चलता रहता है कर्मपथ पर --ऐसी स्थिति में उसका विस्वास ही प्रेरणादायक बन जाता है --फिर स्वयं ऐसे अभागे को भी परमात्मा अपने दोनों हाथों से उठाते हैं | अगर मुझे ज्योतिष का ज्ञान तब होता --तो कदापि आगे नहीं बढ़ता --क्योंकि जीवन में भाग्य कर्म से ही बनता है --अतः मैं कर्म पथ पर आरूढ़ रहा --भाग्य की परवाह नहीं की -जबकि भाग्य मेरा अच्छा है --उसकी चर्चा आगे करूँगा | आप सभी से एक ही बात कहना चाहते हैं --भले ही भाग्य साथ न दे पर कर्मक्षेत्र पर हर व्यक्ति को आरूढ़ रहना चाहिए --आज मैं जहाँ हूँ -भले ही मान्यता प्राप्त एक शिक्षक नहीं हूँ किन्तु मेरी सोच सही है तो मुझे ईस्वर की कृपा प्राप्त है --हर पल वो मुझे मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते रहते हैं | --आज के समय जबकत बालक कामयाव नहीं होता है तब तक विवाह नहीं होता है --किन्तु मेरा विवाह भी हो चूका था एक बच्ची भी थी -तब दरिद्र होकर भी मुम्बई पढ़ने गया और पढ़कर ही आया | -------भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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गुरुवार, 11 सितंबर 2025
आत्मकथा का उत्तर भाग -2 -सुनें -खगोलशास्त्री झा मेरठ
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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मेरी कुण्डली का चौथा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -118 - ज्योतिषी झा मेरठ
ॐ -प्रिय पाठकगण --ज्योतिष वास्तव में एक दर्पण है | जैसे ऑंखें भी होतीं हैं ,नजदीक वस्तु भी होती है --पर कभी -कभी दिखती आँखों को वस्तु नहीं है | --इसका अर्थ जल्दबाजी होती है --थोड़ी सी शान्ति व्यक्ति रखे तो वह वस्तु जो दिखती नहीं थी --थी सामने -शान्ति हुए तो मिल जाती है --वैसे ही जीवन में गुरु का मार्गदर्शन होता है | -मेरी कुण्डली की नीव बहुत ही मजबूत है --तो धन एवं कुटुंब अच्छे रहे भले ही हमने महत्व नहीं दिया | जब धन और कुटुंब का महत्व नहीं दिया --तो फिर प्रभाव कमजोर होना लाजमी था --क्योंकि जो व्यक्ति धन और परिजनों का आदर नहीं करेगा तो -उसे ये दोनों परित्याग कर देते हैं --इसका परिणाम यह होता है -व्यक्ति के पास अपने संसाधन तो होते हैं -पर वह अकेला होता है --यह स्थिति मेरे साथ रही | ---अस्तु ---अब चौथे घर की बात करें तो -यह घर सुख पूर्ण रूपेण मिले --क्यों --क्योंकि चौथे घर और भाग्य का स्वामी सूर्य के साथ बहुत ही मजबूत है | सम्पूर्ण जीवन हमने इस घर पर बहुत ही अन्वेषण किया --हमने देखा ज्यादातर बड़े लोगों की कुण्डली में ऐसा योग था | जब हम -11 वर्ष के थे तब से इस स्थिति को बहुत ही ढूंढा --जहाँ भी गया उन ज्योतिषी गुरु ने कहा एक दिन तुम राजा बनोगे | जब हम -10 वर्ष के हुए --तो राहु की दशा प्रारम्भ हुई --यह दशा -28 वर्ष के जब हुए तब तक रही --संयोग से -शिक्षा ,दीक्षा ,विवाह ,संतान ,पालयन इसी दशा में हुए | मेरी कुण्डली में राजयोग था फिर भी हम महादरिद्र थे | जब हम -28 वर्ष के हुए और गुरु की दशा प्रारम्भ हुई --अनायास राजयोग शुरू हुआ --फिर वाहन ,भवन ,दाम्पत्य सुख ,शिक्षा ,संतान सभी राजयोग में बदल गए | तब मैं अधूरा पंडित था --सभी ग्रन्थ तो जिह्वा पर थे पर मार्गदर्शन नहीं था | एकदिन अनायास शिव की शरण में रोने लगे -कैसे चलूँ ,क्या करू --मानों अनायास राजयोग का दौर शुरू होने वाला था तो ईस्वर प्रेरणा भी अनायास ही दी | मानों स्वयं भोलेनाथ -मंदिर से मेरे ह्रदय में समा गए --और प्रेरणा के श्रोत बन गए | 10 वर्ष से लेकर जब हम -28 वर्ष के हुए -अपने हों या पराये सभी ठोकर मारते गए | सारे परिजन होते हुए भी अकेले चल रहे थे ,हमारे धन पर सभी राज कर रहे थे फिर भी हम उनके लिए ही जी रहे थे | किसी तरह से पनाह मिले यही सोच थी --सबसे पहले माँ ने त्याग दिया ,फिर पिता ने त्याग दिया ,फिर भाई ,बहिन ,मामा सबने त्याग दिया | मेरी पतनी और बच्ची को जो तकलीफ हुई -उसकी क्या गाथा लिखू | जब राजयोग शुरू हुआ तो अकेले चलने लगा --क्योंकि ठोकर से अकल आ चुकी थी | --ऐसा इसलिए हुआ --मेरी कुण्डली में सूर्य लग्न का राजा है --जो मुझे जन्मजात वसूलों का पक्का बनाता है ,थोड़े में खुश रहने का सिद्धांत देता है --मंगल होने से कर्मठ और जुझारू बनाता है --किन्तु यहाँ केतु है --इसका अर्थ है --जो मेरी मातृ सुख है -जो दिखता है --वो सच नहीं है --माँ ऊपर से तो प्रेम करेगी --किन्तु ह्रदय में छल है साथ ही भाग्य के क्षेत्र का स्वामी भी केतु के साथ लग्न में है --इसका अर्थ है --सबकुछ होने के बाद भी भाग्य का सुख एक छलावा रहेगा | जबतक -परिजन हों ,शिष्य हों ,मित्र हों ,पड़ोसी हों --खिलाते रहेंगें --ये अपने रहेंगें --अन्यथा ये सभी शतु की तरह व्यवहार करेंगें | --यह अनुभव जब हम -55 वर्ष के हुए तब हुआ | अगर मुझे एक सही मार्गदर्शन दाता मेरे पास होते तो हम सुखी होते --जब मुझे आज ईस्वर की प्रेरणा से अब अनुभव हुआ --तो वास्तव में मैं अब सुखी हुआ | अतः सभी पाठक जीवन में किसी न किसी का मार्गदर्शन अवश्य लें सुखी होना है तो ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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गुरुवार, 4 सितंबर 2025
मेरी कुण्डली का तीसरा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -117 - ज्योतिषी झा मेरठ
ज्योतिष के मेरे प्रिय पाठकगण --मेरी कुण्डली वैसे बहुत ही सशक्त ,मजबूत है --किन्तु यह तीसरा घर -जिससे व्यक्ति का पराक्रम का अनुमान लगाया जाता है एवं -भाई -बहिन के साथ कितनी मजबूती रहेगी -इसका विचार किया जाता है | -ईस्वर ने हमें जोर का झटका दिया --क्यों ? --क्योंकि यहाँ गुरु -बृहस्पति शुक्र राशि में उपस्थित हैं --एक तो यह घर गुरु का अपना नहीं है -शत्रु क्षेत्र में गुरुदेव हैं साथ ही इस तीसरे घर पर शनिदेव जो भाग्य में विराजमान हैं --इस घर को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं --इसका अभिप्राय है -मैं भले ही कितना ही ज्ञानी हूँ या धर्मानुरागी या फिर अनंत गुणों से युक्त हूँ --जीवन भर यहाँ मेरी नहीं चली | हमने कभी किसी को धोखा नहीं दिया ,हमने कभी किसी का कुछ नहीं लिया ,हम अपने धन में ही खुश सदा रहे हैं ,सबको शिक्षाविद एवं सुसभ्य बनाने का सदा प्रयास किये | कोई भी शिष्य हो या अपने सबको धर्म युक्त मार्ग ही बताया है --केवल एक अवगुण मेरे में था --गलती मत करो ,याचना मत करो ,परिश्रम से धन कमाओ ,स्वाभिमान से जिओ ,जितना है प्रसन्न रहो --अधिक पाने के लिए सार्थक प्रयास करो या फिर ईस्वर अधीन हो जाओं --इन अवगुणों के कारण कभी भी मैं जीत नहीं सका --पराक्रम को या प्रजाओं को --क्यों ? --क्योंकि -मेरे भाग्य के क्षेत्र में नीच का शनि है --अतः मेरे जितने भी सगे -सम्बन्धी रहे या शिष्य या यजमान वो -धनाढ्य तो थे किन्तु अल्पज्ञानी थे ---अतः जिस प्रकार चोर के सामने व्यक्ति लाचार होकर अपने को तो समर्पित कर देता है --किन्तु मन यह रहता है -अगर कोई मेरी सहायता करे तो इस चोर को बता दूंगा मैं भी कोई चीज हूँ | ऐसा ही मेरे साथ सदा रहा --सबसे पहले माता पिता को सशक्त बनाना चाहा --वो बनें भी किन्तु अनुज का साथ मिलने पर हमें सबसे पहले नकार दिए | अपने अनुज को शिक्षित करना चाहा ,आज भी उसके पास उतनी सरस्वती हैं -पर धन आने पर -वो सबसे पहले मुझे ही तिरस्कृत किया | -जब हम 29 वर्ष के हुए --सभी परिजन होते हुए भी मैं अकेला था -तो एक यजमान को ही सगा समझने लगा --पर अंत में बाल -बाल धन से बचा अन्यथा -कुछ नहीं बचता | एक और दौर आया --20 17 में एक और यजमान से दोस्ती हो गयी --हुआ यह उसकी एक पूजा की जिसके प्रभाव से उसके घर की एक विषम कथा उजागर हो गयी जिसे न तो हम जानते थे न वो | इस बात से वो मित्र विक्षिप्त रहने लगा -उसकी आयु के लिए फिर जाप किये -वो मृत्यु से बच गया ,उसके बाद एक और पूजा हुई -उसके बाद --उसकी दुकान माँ के नाम थी -जो हमने प्रयास किया उसके नाम हो जाय हो गयी | उसके बाद मकान उसकी पतनी के नाम करबाने का प्रयास किया वो भी हो गया ,उसके बाद --उसका कारोबार समाप्त हो गया -हमारा उठना -बैठना एक साथ था -हमने कईबार कहा अगर तुम सही राह नहीं चलोगे तो बदनामी हमारी होगी --बहुत दिनों के बाद पत्ता चला -इसके पास धन बहुत है पर कर्जदारों को देना नहीं चाह रहा है --ऐसी स्थिति में --हमने कहा दुकान सबसे - कहो बेच दी और बैंक का कर्ज चुकाया --यह दुकान पंडितजी को दे दी जबकि सच यह था -दुकान उसकी ही थी ,जीएसटी उसके नाम ,पूंजीं उसकी थी, कमाई में आधा -आधा के दोनों हक़दार थे | उसकी पतनी को भी इस सच्चाई से दूर रखा ,--इसका परिणाम यह हुआ वो सबके कर्जदार होने के बाद भी मेरी वजह से बिना धन दिए मुक्त हो गया | अब कारोबार भी ठीक हो गया ,बाल बच्चे भी सही हो गए | जब वो चारो तरफ से सुरक्षित हो गया तो हम चाहने लगे उसकी पतनी को सभी बातों से अवगत करा दूँ --एवं हम अलग हो जाय क्योंकि मेरा मकसद उसे सही करने का था --एक दिन उसने मेरा इतना अपमान किया कि हम अपना -50 हजार छोड़कर एवं माह का हिस्सा छोड़कर चल दिए-- पर --कभी उस व्यक्ति ने न हो हिसाब दिया न ही गलती की क्षमा मांगी | --अब आपलोगों के मन में एक प्रश्न उठा होगा --ऐसे-- कैसे अपमान कर दिया --तो सुनें --जब हम साथ -साथ थे और बाहर से मुझे गरीब दिखा --तो हमने अपने घर का कूलर और अपने बालक की साइकिल दी --एकदिन बोला -मेरी घरवाली बोली शनिदान दिया है अतः बेचकर पैसे खा गया , हमने पूछा --जो धन खाया उसमें शनि नहीं था --और सुनों वो साइकिल मेरे बालक की थी --तुमने बेचकर अच्छा नहीं किया --मैं तुमसे बहुत नाराज हूँ --इसके बाद हमने कहा मैं तुम्हारा गुरु नहीं हूँ --पैर मत छूआ करो --उसके मन कई शंका उठने लगी --फिर क्या था -उसके सब काम बन चुके थे --जब दुनिया का धन खा गया तो मेरा धन खा जाये --इसमें कौन सी बड़ी बात है | ---अस्तु --कहने का अभिप्राय है --कुण्डली का यह ज्ञान मुझे था --पर मेरे कोई मार्गदर्शक नहीं थे --जिनसे कोई सलाह लेता --अतः कईबार मैं भावनाओं में बहक जाता हूँ --इससे चाहे अपने हों या पराये मुझे चोट बहुत ही पहुंची है | --मेरी कुण्डली --यह तीसरा घर सबसे हानि दी है --जिसका अनुभव अब हो रहा है ----अगले भाग में कुण्डली के चौथे
घर की चर्चा करेंगें ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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मंगलवार, 2 सितंबर 2025
मेरी कुण्डली का दूसरा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -116 - ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों -किसी भी जन्मकुण्डली के दूसरे घर से --व्यक्ति का धन और कुटुम्ब सुख देखा जाता है | --अस्तु -मेरे पास धन स्थिर रहेगा या चलायमान एवं कुंटुंब के सुख कैसे रहेंगें --इस पर जब मेरी नजर गयी --तब तक मैं 55 वर्ष का हो चूका था --इसका अर्थ है -हम एक ज्योतिषी होकर भी अपने जीवन में इन दोनों चीजों का समुचित लाभ नहीं ले सके | ज्यादातर व्यक्ति की चाहत धन प्राप्ति की तो होती है पर उसका लाभ कैसे मिलें या उसकी हानि से कैसे बचें --इस मामले में सही मार्गदर्शन लोगों को नहीं मिलता है --परिणाम आय से ज्यादा खर्च होता है या वो सिद्धान्तों की वजह से धन के मामले में अधूरा रह जाता है --अगर भूल से धन मिल भी जाय तो किसी न किसी कारण से धन खो देता है | --मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ -मेरा चन्द्रमा उच्च का है -जो मेरा मनोभाव को दर्शाता है --थोड़ा सा स्नेह मिले या तारीफ मेरी कोई कर दें --मेरे लिए धन मायने नहीं रखता है | इस बात का लाभ सबसे पहले माँ ने उठाया ,फिर पिता ने ,फिर परिजनों ने ,फिर पतनी ने --जब -जब पतनी की नजर से बचे तो शिष्यों ने खूब धन लाभ उठाया | यह जानते हुए कि यह व्यक्ति मेरा धन लेना चाहता है --फिर भी भावुकता में आकर हमने अपना धन तो खोया ही --मान -सम्मान भी खो दिया | --दूसरे घर का स्वामी मेरा बुध है जो उच्च का है -इसके साथ कर्मेश और पराक्रम क्षेत्र का शुक्र है जो नीच का है --इसका अर्थ है -धन देने के बाद भी हम किसी का नहीं हो सके न ही कोई सहायक रहे --वो तबतक रहे जबतक उनका काम बनता रहा --चाहे शिक्षा लेनी हो ,ज्योतिष की जिज्ञासा हो या फिर अपना काम आसान बनाना हो --ये लाभ आजीवन मुझसे लोग लेते रहे | इतना होने के बाद भी मुझे धन कमाने का तो लगाव रहा पर समेटने या अपने ऊपर खर्च करने का कोई शौक नहीं रहा | हम अपने जीवन अगर कोई चीज खोने में माहिर रहे तो वो या तो धन था या कुटुंब | इन दोनों को त्याग करने में तनिक भी कष्ट नहीं हुआ | इसका परिणाम यह हुआ -- जिसके हाथ हम आये तब तक उसके रहे जबतक उसके हाथ रहे -उसके बाद उस व्यक्ति ने चाहे अपने हों या परायें --इतनी जोर से पटका --कि हम उससे बहुत दूर होते चले गए | हमने किसी यजमान को यह कहा यह काम इतने में होगा --अगर उसने तनिक भी धन कम किया तो हम उसके चक्कर में सारा धन छोड़ दिए -साथ ही उस व्यक्ति को भी छोड़ दिए --इस बात का मुझे कभी भी मलाल नहीं रहा | अगर किसी मित्र से या अपनों से मेरी बातें नहीं मिलती हैं --तो हम उससे सदा दूर हो जाते हैं --चाहे वो पतनी या बच्चे ही क्यों न हों --इस बात का मुझे कभी मलाल नहीं होता है | --जीवन में हमने सदा एक प्रयास किया है --किसी को धोखा नहीं दो,किसी की आशा मत तोड़ों --अगर उसने ये काम किया तो हम सदा -सदा के लिए चल देते हैं --इस बात का मुझे कभी मलाल नहीं रहता है | --जीवन में कईबार किसी के साथ चलना चाहा --पर उस -उस ने अपने काम बनते ही मुझे शून्य बना दिया | लोग किसी को कर्ज देते हैं तो ब्याज लेते हैं --किन्तु हमने जितने को धन दिया व्याज तो दूर मूल धन ही नहीं दिया --साथ ही कभी न तो माँगा न ही उसके सामने गया --इसका लाभ बहुत लोगों ने उठाया | --अब आप पाठकों के मन में एक प्रश्न उठ सकता है --अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में ऐसा योग हो तो कैसे बचे --इसका जवाब है --होनी को कोई टाल नहीं सकता है --अगर किसी जातक को सही सत्संग या मार्गदर्शन मिले तो बच सकता है ---यह मार्गदर्शन मुझे नहीं मिला -जब हम केवल 11 वर्ष के हुए तभी मेरा पलायन मातृभूमि से हुआ --यह पलायन जब हम -30 वर्ष के हुए तब तक चलता रहा | इसके बाद -पतनी का आंचल ने संभाला -किन्तु भारत भूमि पर पतनी की लोग कितनी सुनते हैं --अतः ये दोनों हानि -धन एवं कुटुंब की थोड़ बहुत आज भी होती है | --अगले भाग में कुण्डली के तीसरे घर की चर्चा करेंगें ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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रविवार, 31 अगस्त 2025
मेरी आत्मकथा का उत्तर भाग 1 ज्योतिषी झा मेरठ
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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शनिवार, 30 अगस्त 2025
मेरी कुण्डली का प्रथम भाव -आत्मकथा पढ़ें -भाग -115 - ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों -आत्मकथा के कुछ भाग शेष रह गए हैं | जब हम आत्मकथा लिखने लगे तो सोच केवल मेरी यह थी -मुझसे गलती कहाँ हुई -क्या अब कुछ ठीक कर सकते हैं | -2017 से चलते -चलते अब यह समझ में आया है --केवल गुरु का मागदर्शन ही किसी व्यक्ति को सही जगह आसीन कर सकता है | इसके सिवा भटकाव से बचने का कोई मार्ग नहीं हो सकता होता है | ---अस्तु --दोस्तों ज्योतिष की खोज केवल मानव के लिए हुई थी | इसका सही लाभ राजा -महराजा ही ले पाए | आज भले ही ज्योतिष सर्वमान्य है --किन्तु मार्गदर्शन शून्य है | आज भले ही घर -घर ज्योतिष है किन्तु भरोसा शून्य है | क्योंकि ज्योतिष वैदिक कर्मकाण्ड विहीन हो रहा है साथ ही संस्कृत भाषा से भी बहुत दूर हो चूका है | इसकी वजह से गुप्त शून्य है -जब सबकुछ उजागर हो जाता है तो फिर --व्यक्ति को कल का फिक्र नहीं होता है --इसकी आर में अधर्म एवं गलत राह से भी चिंता मुक्त रहता है | अतः हो सके तो अपनी ज्योतिष खुद न पढ़ें -गुरु जनों का सान्निध्य प्राप्त करें -इसमें ही किसी व्यक्ति का कल्याण हो सकता है | --मेरा जन्म निम्न परिवार में हुआ किन्तु गुरुजनों के सान्निध्य से वैदिक और ज्योतिषी भी बनें | कम उम्र में पलायन धन के लिए हुआ | दर -दर भटकता रहा | कुण्डली भी थी ,एक शास्त्री भी थे पर उपचार का सामर्थ नहीं था, न ही गुरु जनों का सान्निध्य | कुण्डली में राजयोग ,धन ,संपत्ति ,वाहन ,भवन को तो ढूंढते रहे पर सही गुरु जनों का मार्ग दर्शन नहीं होने के कारण --दुनिया की सभी वस्तुओं को प्राप्त करने के बाद भी दुःखी रहा | जब पहलीबार अपनी कुण्डली में ज्ञात हुआ --सिंह लग्न का हूँ --तो किताब के अनुसार अपने आप को राजा समझा | जब यह ज्ञात हुआ कि सूर्य के साथ मंगल भी लग्न में दो -दो त्रिकोण का स्वामी होकर बैठे हैं --तो अपने आपको प्रधानमंत्री से कम नहीं रहेंगें --किताबों के अनुसार और ऐसा हुआ भी | ---जीवन भर यह सुख मिला --राजा की तरह जीये ,कभी झुके नहीं ,तनिक सी गड़बड़ बात पसंद नहीं ,तनिक सी असभ्यता पसंद नहीं ,अपनी शान में कोई कमी न रहे ,जैसा मैं चाहू वही हो ,सभी मेरी बातों को अमल करें ,सबको बेहतर जीवन मिले ,सभी सुखी से रहें ,नित्य परोपकार करें ,एक सुन्दर समाज की रचना करें ,सत्य पथ पर सभी चलें ,सभी कर्मठ हों ,सबके घर में राम राज्य हो --इतने तमाम गुण मेरी कुण्डली के प्रथम भाव में थे ---ध्यान दें --समाज में धर्म है तो अधर्म भी हैं ,सत्य है तो असत्य भी है --अतः इतने गुण होने के बाद भी अपने घर को नहीं संभाल पाए ---क्यों ? क्योंकि जो व्यक्ति केवल किताब के आधार पर चलता है --वो ज्ञानी होते हुए भी अधूरा रहता है --अतः हर व्यक्ति को किताबों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए --पर मार्गदर्शन किताबों से संभव नहीं है --अध्यात्म की दुनिया के लिए तो किताब सही है पर जीवंत दुनिया के लिए -एक मार्ग दर्शन दाता की जरुरत होती है --जो दोनों ज्ञान से जीने की कला सिखाये --इस मामले में मैं अधूरा रहा ,गुरु का सान्निध्य बाल्यकाल में समाप्त हो गया --अतः केवल किताबी ज्ञान पर चला --जो अहंकार से भरा था --अतः अधूरा रहा | हो सके तो सभी श्रोताओं से अनुरोध करना चाहता हूँ --एक सफल व्यक्ति बनना है --तो खूब ज्योतिष को मानें पर मार्ग दर्शन के बिना न चलें हमारी तरह अधूरा रह जायेंगें | --अगले भाग में अपनी कुण्डली के द्वितीय भाव क पर प्रकाश डालेंगें ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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शुक्रवार, 29 अगस्त 2025
तीसरी कुण्डली का मेरा अनुभव -आत्मकथा --पढ़ें भाग -114 - ज्योतिषी झा मेरठ
हमारे प्रिय आत्मकथा के पाठकगण -मेरी कुण्डली में शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में विराजमान है साथ ही गुरु तृतीय भाव में विराजमान हैं --यह जो मेरा तृतीय भाव कुण्डली का है -इसकी सबसे बड़ी विशेषता है --मेरा भाग्य -शनि और गुरु की वजह से सर्वोत्तम है --किन्तु --तृतीय भाव सबसे गड़बड़ है --इसकी वजह से मेरा प्रभाव क्षेत्र उत्तम होने के बाद भी धूमिल हो जाता है एवं सगे -सम्बन्धियों के हम सबसे शत्रु बन जाते हैं | --अस्तु -जिस मित्र यजमान से दोस्ती -2017 में हुई थी -वो देखने में तो धनाढ्य था किन्तु --जड़ खोखला था जो मुझे ज्ञात नहीं था | हमने एक यज्ञ किया भलाई के लिए किन्तु यज्ञ के प्रभाव से वो सात्विक व्यक्ति बन गया ,जब धर्म के पथ पर चलता है व्यक्ति तो कष्ट भी सहने होते हैं -- आज के समय में धार्मिक दोस्त कम मिलेंगें ,अधर्म पथ पर बहुत सारे मित्र बन जाते हैं | सो उस व्यक्ति के सभी मित्र वास्तव में शत्रु थे और सभी दूर हो गए | हमने धर्म की स्थापना एवं सुखद और संतोष जनक जीवन जीने की सलाह दी साथ ही रास्ते की हर बाधा को दूर कर चलना सिखाया | यह कार्य इतना सरल भी नहीं था -उसके परिजनों का सबसे बड़ा शत्रु बना फिर भी आगे बढ़ाता रहा | सारे अपयश अपने ऊपर लिया --और एक सही पति ,सही पिता ,सही व्यापारी ,सही व्यक्ति सही जीवन देने का प्रयास किया | किन्तु ज्ञान नहीं दिया क्योंकि ज्ञान के योग्य वो पात्र नहीं था न ही कभी ज्ञानी बनने की याचना की | अब आते हैं उसकी कुण्डली पर --उसकी कुण्डली में मंगल एवं राहु की युति लग्न में थी --इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह होता है --ऐसा व्यक्ति किसी का नहीं होता है ,ऐसा व्यक्ति किसी के कहने पर कुछ भी कर सकता है --क्योंकि उसका अपना कुछ होता ही नहीं है --वो भले ही ज्योतिषी न हो किन्तु सबसे उत्तम वो अपने आप को ज्योतिषी भी मानता है | उस व्यक्ति को भले ही विवेक न हो पर सबसे बड़ा धार्मिक अपने आप को मानता है | --मेरी कुण्डली में सूर्य और मंगल मित्र होकर स्वराशि का सूर्य लग्न में विराजमान हैं --मेरे जीवन में एक बहुत बड़ी बात रही है -अगर मन में मैल थोड़ा भी आ गया तो कदपि उस व्यक्ति के साथ नहीं रह सकता | मुझे जीवन में भाग्य का बहुत ही लाभ मिला है --व्यक्ति और परिस्थिति कैसी भी हो हमने ठान लिया इसे ठीक करना है तो ठीक वो व्यक्ति अवश्य होगा | दूसरा स्वभाव मेरा स्वभाव ऐसा रहा है --दाग अपने जीवन में लगने नहीं देता हूँ साथ ही अगर पता चल जाये --यह राह गलत है तो तत्काल वो राह छोड़कर चल देता हूँ --चाहे इसमें कितना ही घाटा हो | और होता भी यही है --चाहे घर हो, शिक्षा हो ,संतान हो ,सगे -सम्बन्धी हों ,धन हो या फिर संसार की कोई वस्तु --इनसे हम बहुत ही स्नेह करते हैं किन्तु --परित्याग करने में सोचते नहीं हैं --बेफिक्र होकर वहां से चल देते हैं | जब इस व्यक्ति को सब प्रकार से ठीक कर दिया --और हम दोनों के बीच थोड़ा विचार में मैल आ गया तो अपना सबकुछ छोड़कर चल दिया --यहाँ तक की किताब ,सौन्दर्यता की चीजें साथ में नगद पचास हजार रूपये भी | पर उस व्यक्ति ने कभी नहीं पूछा --हिसाब तो कर लो --अगर जीवन की सारी संपत्ति होती तो भी छोड़कर चल देता --कभी घूमकर देखता भी नहीं ---किन्तु ईस्वर की मेरे ऊपर कितनी बड़ी कृपा ---सप्तक भाव पर गुरु की दृष्टि और सप्तक का स्वामी भाग्य क्षेत्र में है --अतः अगर यह योग मेरी कुण्डली में नहीं होता तो सबकुछ बर्बाद हो जाता --क्योंकि आज के समय में सबकुछ संभव है --त्याग करना संभव नहीं है | जो मैं त्याग करता हूँ --मानों भार्या का आंचल रक्षा हेतु तैयार रहता है | इसको कहते हैं धर्मो रक्षति रक्षकः --अगर आप धर्म के पथ पर चलेंगें --तो धर्म आपकी रक्षा अवश्य करेगा | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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गुरुवार, 28 अगस्त 2025
दूसरी कुण्डली का मेरा अनुभव -आत्मकथा --पढ़ें भाग -113 - ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों --अगर नेट की दुनिया नहीं होती तो ज्यादा से ज्यादा जीवन में 5000 कुण्डली देख पाते ,किन्तु नेट के कारण और फ्री सेवा के कारण लाखों कुण्डलियों को देखने का अनुभव हुआ | सबसे बड़ी बात जिन तीन कुण्डलियों से व्यक्तिगत मेरा सम्बन्ध रहा उन पर प्रकाश डाल रहे हैं | --अस्तु --दूसरी कुण्डली का अनुभव जब हम -29 वर्ष के हुए तब हुआ --यह बात मेरठ की है -एक यजमान मित्र से सम्बन्ध हुआ --उनकी कुण्डली के चतुर्थ भाव में नीच का चन्द्रमा और पराक्रम क्षेत्र में नीच का सूर्य यह योग उत्तम नहीं था | जिस व्यक्ति की कुण्डली में दोनों सशक्त ग्रह नीच के हों तो बहुत ही गड़बड़ जीवन होता है --धर्म एवं अधर्म के लिए | मेरी कुण्डली में ये दोनों बहुत ही मजबूत हैं सूर्य एवं चन्द्रमा --इनके प्रभाव के कारण न तो कभी मैं झुका न ही कभी किसी से याचना की | सबसे बड़ी बात स्वतंत्र और प्रभावशाली जीवन जीने की कोशिश की है | छोटी -छोटी गलती पर सदा धयान रखा है --जबसे सही व्यक्ति बनें | किन्तु ईस्वर की बिडम्बना देखें --समाज में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं -जिनको भले ही अकल कम हो किन्तु वो अपनी चाल चलने में माहिर होते हैं --इसी चाल के बल पर जीवन शान से काटते हैं | हमारी दोस्ती दूसरी कुण्डली वाले से हुई और बहुत दिनों तक चली -हम इस बात को जानते थे -हमारे विचार अलग -अलग हैं अतः दूर हो जाना चाहिए -किन्तु मौका की तलाश में रहे पर जुड़ना और टूटना सरल नहीं होता है --जैसे जुड़ने में समय लगता है वैसे ही टूटने में भी बहुत समय लगता है | जो सच का व्यक्ति होता है वो तबतक जुड़ें रहना चाहता है -जबतक अधर्म की पूर्ण सत्ता न हो जाये | जो अधर्म का व्यक्ति होता है --वो तबतक प्रहार करता है --जबतक किसी लायक न रहे ---सनातन विचार में धर्म से जो व्यक्ति ओत -प्रोत होता है --वो छोटी -छोटी बातों पर भी धर्म का विचार करता है किन्तु भारतीय समाज में लोगों का जीवन दो तरह का होता है --एक धर्मयुक्त ऐसे लोग छोटी बात पर भी गिर जाते हैं और कभी नहीं उठ पाते हैं | दूसरे लोग जो कूटनीति के जीवन पर आधारित होते हैं --ऐसे लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता है --किसी भी तरह मुद्रा मिलनी चाहिए --अपना काम बनना चाहिए --ऐसे लोग कितनी बार भी गिरे --फिर उठ जाते हैं --जैसे कपड़े में धूल -मिटटी लग जाये और दोनों हाथों से झार कर चल देते हैं | मेरे साथ ऐसा ही हुआ --दोस्ती की अंतिम अवस्था तक बचाने का प्रयास किया किन्तु --दोस्त अन्तिम क्षण तक धन की चाहत में रहे | आज दोस्ती को टूटे हुए कई वर्ष हो गए --तमाम बातें याद हैं किन्तु उनको हमने देखा कोई फर्क नहीं पड़ा | ---अंत यह कहना चाहता हूँ --कुण्डली देखने की चीज नहीं है --वास्तव में कुण्डली के पथ को अमल करने से ही लाभ संभव है --अन्यथा ज्योतिष का कोई लाभ नहीं है | अगले भाग में तीसरी
कुण्डली पर विचार साझा करेंगें ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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मंगलवार, 26 अगस्त 2025
पहली कुण्डली का मेरा अनुभव -आत्मकथा --पढ़ें भाग -112 - ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों -हमने अपने मामा के सानिधय रहकर जो प्रथम किसी जातक एवं जातिका की कुण्डली से अनुभव किया -वो मेरा युवाकाल था एवं ज्योतिष की जिज्ञासा थी तो उस समय यह ज्ञात हुआ --कुण्डली वास्तव में दर्पण होती है जिसे गणना से जाना जा सकता है | यह दशा प्रत्येक जातक जिज्ञासु की होती है | --------अस्तु -- दोस्तों भारतीय जो नियमा बली है उसमें व्यवहारिकता का अस्तित्व बहुत ही बड़ा है ---तत्काल आपको भारतीय -नियम ,संयम ,जप ,तप ,हवन ,व्रत स्वाध्याय में बहुत ही परिबर्तन देखने को मिलेगा | इसका परिणाम -उनीसवीं सदी में भ्रष्टता कम देखने को मिलती थी | लोग मान -मर्जादा में विशेष रहते थे -आधुनिकता में ज्यादा विस्वास नहीं करते थे | आज के समय में हर व्यक्ति के पास आधुनिकता की चीजें उपलब्ध हैं --इसका परिणाम यह हो रहा है -व्रत -व्रत जैसे नहीं होते हैं ,जप --जप की तरह नहीं लोग करते हैं , तप --तप की तरह नहीं करते हैं लोग ,नियम --नियम की तरह पालन नहीं करते हैं लोग ,स्वाध्याय --स्वाध्याय की तरह नहीं होते हैं ,हवन -हवन की तरह नहीं होते हैं | ---इसका परिणाम यह हो रहा है -बालक युवा होने के बाद भी ,बालिका युवा होने के बाद भी -नियम और संयम माता पिता ,परिजन ,पडोसी या समाज से वो नहीं सीखते हैं जो भारतीय हैं --इसका परिणाम भी भटकाव है --आज के समय में किसी कुण्डली में यह कह देना कि प्रेम है आसान बात है किन्तु उस समय जब भारत में लोकाचार का विशेष महत्व होता था --बहुत ही कठिन बात थी | आज जब मैं 55 वर्ष का हो चूका हूँ --तो जब मैं 19 वर्ष का था तब प्रेम करना कठिन बात थी उसका कारण भाई -भाई के पास सोता था ,बेटी- माँ के पास सोती थी -या सबके बिस्तर भले ही छोटा घर होता था --अलग -अलग होते थे --इसलिए भ्रष्टता कम थी --साथ ही कुण्डली से पहचान करना कठिन था --इसलिए यह बात मेरे लिए जिज्ञासा की थी ,किन्तु आज के समय में भले ही घर बड़ा हो पर शयन एक ही जगह देखने को मिलता है --आज के समय में मानों ममता ने कठोरता पर अंकुश लगा रखी है --माँ को बेटे का ,बेटे को माँ का ,भाई को बहिन का ,बहिन को भाई का या फिर और भी बहुत रिश्ते नाते हैं --जिन पर सत्संग का प्रभाव पड़ रहा है | --आज के समय में किसी भी ज्योतिषी के लिए सरल है --उससे --उसका प्रेम है --उस समय प्रेम होते हुए भी प्रतीत नहीं होता था | -सनातन संस्कृति में अपनी बेटी दूसरे घर के घर -मान ,मर्जादा ,नियम ,संयम ,व्रत ,जप ,तप ,हवन ,स्वाध्याय के अनुसार दी जाती है --साथ ही दूसरे की बेटी को इसी सभी नियम के तहत लक्ष्मी स्वरूपा अपने घर लायी जाती है --इससे एक सुसम्भ्य और सुन्दर समाज का निर्माण होता है --आज इसका हनन हो रहा है | अगले भाग में दूसरी कुण्डली पर विचार साझा करेंगें ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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सोमवार, 25 अगस्त 2025
24 /08 /2025 से 07 /09 /2025 तक की भविष्यवाणी पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ
ॐ --श्रीसंवत -2082 शाके -1947 --भाद्र शुक्ल पक्ष --तदनुसार दिनांक -24/08 /2025 से 07 /09 /2025 तक की भविष्यवाणी की बात करें --इस माह पांच रविवार का योग उत्तम नहीं है --प्रमाण देखें --यत्र मासे रवेर्वारा जायन्ते पंच संततम ,दुर्भिक्षं छत्र भंगः स्यात दास्ते च महदभयम ---प्रस्तुत प्रमाण के अनुसार देश के किसी भाग प्रदेश विशेष में दैनिक उपयोगी खाद्य सामग्री की कमी पड़ सकती है | हो हल्ला मचेगा ,मारपीट ,झीना झपटी के चलते जनता अपने को असहाय महसूस करेगी | राजनीती के पटेबाज नेता एक -दूसरे की उठा -पटक नीचा दिखाने की फिराक में राज्य की झीना झपटी में लगे रहेंगें | कहीं आश्चर्यजनक बदलाव हो सकता है | राजस्थान ,महाराष्ट्र ,पंजाब ,उत्तराखंड ,बिहार ,पश्चिम बंगाल ,उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई हलचल के योग हैं | कोई नया नेता प्रसिद्धि पायेगा | ---तेजी मंदी की बात करें तो --चल रहे सम्यक भावों में घट -बढ़ चलेगी | पक्षारम्भ के भाव अंत में प्रतिकूल हो सकते हैं | --दाल ,चावल ,चीनी ,चायपत्ती ,नमकीन भुजिया ,पापड़ ,मूंगदाल ,मिर्च -मसाले ,अचार -मुरब्बा ,घी ,दूध ,दही के भावों में इजाफा हो सकता है | सूत्री वस्त्र ,पूजा सामग्री ,दालें ,अनाज ,मटर ,राजमा में तेजी अन्य चीजों में मंदी का झटका लग सकता है | -----आकाश लक्षण की बात करें तो --यत्र -तत्र बादल चाल ,मेघगर्जना ,वायुवेग ,जहाँ -तहाँ न्यूनाधिक वर्षा होगी | कहीं भूकंप ,दिग्दाह ,झंझावात के चलते क्षति होगी | पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक वर्षा होगी | कहीं ज्वालामुखी विस्फोट ,पहाड़ खिसकने से क्षति तो कहीं यान -खान कुघटना ,वाहन टकराव से नुकसान हो सकता है | --- ----भवदीय --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
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सोमवार, 18 अगस्त 2025
आत्मकथा में अपने अनुभव पर कुछ कहना चाहता हूँ -पढ़ें भाग -111 - ज्योतिषी झा मेरठ
आज आत्मकथा में अपने अनुभव पर कुछ कहना चाहता हूँ | हमने 55 वर्ष के होने पर अपने जीवन में तीन जन्म -कुण्डली को देखने पर आश्चर्य चकित रहा | --अस्तु --प्रथम कुण्डली जब हम केवल 20 वर्ष के थे स्थान -प्रह्लाद नगर मेरठ अपने चचेरे मामा के पास रहते थे --वो ज्योतिषी थे हम वैदिक तो थे ही ज्योतिष गणित मजबूत था पर फलित का अनुभव कम था --हम दोनों का सम्बन्ध मामा -भांजा का तो था ही किन्तु मित्र का भी था अतः यह निर्णय हुआ वेद हम पढायेंगें और फलित वो हमें सिखाएंगें | यह सत्संग का समय केवल एक वर्ष का रहा -उसके बाद हम मुम्बई पढ़ने चले गए --मेरे मामा के पास दो कुण्डलिया आयी -दोनों का सम्बन्ध भाई -बहिन का था -किन्तु में प्रेम था -एक पण्डित के लिए यह कहना बहुत ही कठिंन था किन्तु जब मामाने यह प्रेम की बात कही उन दोनों ने स्वीकार कर लिया --यह ज्योतिष के विस्वास को सबसे पहले मुझे बढ़ाया और मुझे लगा ज्योतिष के द्वारा बहुत कुछ जाना जा सकता है | ---दूसरी घटना मेरठ किशनपुरी की है --जब हम 30 वर्ष के हुए | एक यजमान मित्र मिले --जिनकी कुण्डली में सूर्य और चन्द्रमा दोनों नीच के एक मातृ क्षेत्र चंद्र तो दूसरा सूर्य पिता और कर्मक्षेत्र में --इसका अर्थ जानने के बाद भी उनसे मेरा सम्बन्ध बहुत दिनों तक रहा और मैं तलाश करता रहा --जब ऐसा योग कुण्डली में है तो दिखता क्यों नहीं है | उनसे बहुत ही घनिष्ठता थी उठना -बैठना सबकुछ एकसाथ था | जब यह अनुभव हुआ नीचता का प्रभाव का -तबतक बहुत कुछ खोने के बाद भी बहुत बड़ी हानि से बच गया फिर हमने दूरी बनाली | --तीसरा -उदहारण मेरठ शारदारोड का रहा -तब मैं 47 वर्ष का था -एक व्यक्ति की कुण्डली में -राहु और केतु का प्रभाव उलटा था और मेरी कुण्डली में सुलटा था --जब ऐसा योग हो तो मुझे दूरी बना लेनी चाहिए | किन्तु -दोस्ती उस व्यक्ति से पहले हुई और कुण्डली देखी बाद में परिणाम यह हुआ | इसका परिणाम देखने की इच्छा हुई -कईबार सोचता रहा देखने में भले मानुष है ,इसकी रक्षा तहे दिल से करनी चाहिए | दुनिया की सारी बदनामी अपने नाम किया ,मकान बचाया ,दुकान बचायी ,बाल -बच्चों को बचाया ,रोजगार खड़ा किया ,सभी रिश्तेदारों से शत्रुता की ,पूंजी बचायी ,देनदारों से बचाया ,दाम्पत्य सुख कैसे मिले ,समाज में सशक्त कैसे हो प्रयास किया | कोई भी व्यक्ति सुखी होना चाहे तो सबसे पहले खर्च को सीमित करे इस फार्मूला के तहत आगे बढ़ाया --जब सबकुछ हो गया तो सोचा --इस कुण्डली का जो योग है -उसका प्रभाव देखने के लिए इसकी परीक्षा लें --तो पता चला --हम सबसे बड़े इसके गुनाहगार हैं | इस बारे किसी और आलेख में जिक्र करेंगें | हमने अनुभव किया --वृथा न होहि देव् ऋषि वाणी --अर्थात ज्योतिष सच है --गलती हम जैसे अल्पज्ञानी ज्योतिषी करते हैं | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs
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रविवार, 10 अगस्त 2025
10 /08 /2025 से 23 /08 /2025 तक की भविष्यवाणी पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ
ॐ मास में पांच रविवार रोग ,जनता में उपद्रवों को प्रोत्साहन देने वाले हैं --एक प्रमाण देखें --पंचार्क वासरे रोग पीड़ा लोकेषु जायते | आगे शनिवारों का फल भी देखें --शनिवारा यदा पंच जायन्ते रवि पञ्चकं ,महार्घं जायते धान्यं रोग शोका कुलामही ---भावार्थ ---चालू बाजार का रुख गरम रहेगा | शोक संतापों से जनता त्रस्त रहेगी | सीमावर्ती राज्यों में आतंकी नई गतिविधियां चला सकते हैं | कश्मीर के मामले में पड़ौसी देश बयानबाजी कर सकता है | सरकार दूसरे देशों से अस्त्र -शस्त्र आयात बढ़ा सकती है | एक और प्रमाण देखें --यदैक मासे ग्रहण जायन्तेचंद्र सूर्ययोः ,शस्त्र कोपे क्षयं यान्ति तदा भूपा परस्परम | इस मास पूर्णिमा में ग्रहण का फल राजनेताओं में तनाव बढेगा | पार्टीबेस पर उठा -पटक मारपीट हो सकती है | किसी प्रदेश की सत्ता बदल सकती है | ---तेजी मंदी की बात करें तो --इस वर्ष कर्क और मकर दोनों संक्रांतियां बुधवार में बैठी है --भाव --इस वर्ष युद्धादि संकट के चलते किसी देश -प्रदेश का नायक संकट में पड़ सकता है | वस्तुओं के अभाव में महंगाई बढ़ेगी | इस वर्ष आलू ,टमाटर ,गोभी ,मूंगफली ,प्याज ,लहसुन ,मेथी ,मटर ,बथुआ ,मक्का ,बाजरा की फसल अच्छी होगी | आकाश लक्षण की बात करें तो --शनिवारी अमावस झंझाबात ,दुर्दिन होने के संकेत है | कहीं कम तो कहीं अधिक वर्षा हो सकती है | हिमाचल ,पंजाब ,उत्तराखण्ड ,बिहार ,उड़ीसा में जलाधिक्य से परेशानी होगी | मध्यभारत में सूखा पद सकता है| -- ----भवदीय --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
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शुक्रवार, 1 अगस्त 2025
मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -110 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों --आज मैं अपनी आत्मकथा में जो कुछ कहना चाहता हूँ वो सत्य होते हुए भी असत्य सा प्रतीत होता है | ऐसा हर व्यक्ति के साथ होता है --ऐसी स्थिति में मेरा अनुभव है -केवल गुरु ही हर व्यक्ति का सही मार्गदर्शन कर सकते हैं --जिसपर भारत भूमि पर सबसे विशेष मतान्तर देखने को मिलता है | हर व्यक्ति का प्रथम गुरु माता पिता होते हैं किन्तु इनका लाभ आज के समय में बहुत कम लोगों को मिल पाता है --इसका कारण है सही शिक्षा और सही अनुभव --इन कसौटी पर बहुत से माता पिता खड़े नहीं उतरते हैं --जिसका परिणाम यह होता है केवल तार्किक बुद्धि जो संतान और माता पिता के बीच सही सेतु का काम नहीं करती हैं | --दूसरा उदहारण जो माता पिता से भी बड़े होते हैं -मार्गदर्शन देने वाले सदगुरु -जिनका केवक सार्थक प्रयास यह होता है -सही शिष्य का निर्माण करना -जिसमें लोभ ,अर्थ काम ,मद और मोह से पड़े बनाना | यह मार्ग बड़ा ही कठिन होता है -सबसे पहले गुरु त्याग करना सिखाते हैं -केवक एकबार कह देने से शिष्य गुरु के लिए सबकुछ समर्पित कर देता है | इस संसार में धन हो, मन हो या फिर सांसारिक वस्तु इन्हें छोड़ना सहज नहीं होता है -अगर कोई छोड़ता है तो सिर्फ डर के कारण डर न हो तो काहे का दान ,काहे का त्याग सबकुछ मेरा है --ऐसी स्थिति में सिर्फ विवेक ही काम आता है -जिसपर केवल गुरु की कृपा से ही विवेक संभव है जो आज सबसे असंभव है | अस्तु --हम वैसे एक निम्न परिवार से आते हैं किन्तु मेरे पिता दक्षिणा अवश्य चढ़ाते थे किसी भी मन्दिर में यह सत्संग पिता का मेरे जीवन में केवल 13 वर्ष तक ही रहा | मेरा 13 वर्ष से 29 वर्ष तक का जीवन अति दरिद्र योग में बीता किन्तु -गुरुजनों के सत्संग से हमने यह अनुभव किया धन दान करने से धन अवश्य मिलता है | अतः अमीर बनने का सबसे बड़ा सपना था पर गरीबी चरम सीमा पर थी फिर भी जो भी धन दान में मिलता था उसे हमने किताब खरीदने पर या दान -यज्ञ करने पर लगाया --यह मेरा परम विस्वास था -जबकि गुरुजनों का सत्संग तो जब हम -18 वर्ष के हुए तभी छूट चूका था | पर आत्म विस्वास से लबालव था --मुझे धन दान देने में आनन्द आता था ,कभी गम नहीं होता था | आगे चलकर कई यजमान मेरे रहे जिन्होनें हमारा धन खा गए पर हम कभी मांगने नहीं गए | जब भी हम धन से या मन से दुःखी हुए तो किसी व्यक्ति के पास नहीं गए --उस परमात्मा भोलेनाथ के पास गए जो सबके दाता हैं --उन्होनें कईबार उठाया | मुझे कईबार लगा अब आगे नहीं बढ़ पायेंगें पर भोलेनाथ ने खुद उठाया -इस संसार में सबसे ज्यादा अपनों ने ही गिराया --चाहे सगे -सम्बन्धी हों या शिष्य सबने अपना -अपना भरपूर लाभ उठाया --जब तक लाभ नहीं मिला गुरूजी थे ,अपने थे ,सर माथे पर थे पर लाभ मिलते ही काहे के गुरु --पर फिर भी हमने याचना न तो अपनों से की न ही शिष्यों से --अगर याचना की तो सिर्फ भोले नाथ से और मानों मेरे साक्षात् गुरु के रूप में मार्ग भी दिखते हैं और लाज भी बचाते हैं | --अगले भाग में कुछ और बातों का जिक्र करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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सोमवार, 28 जुलाई 2025
जन्म राशि के सम्बन्ध में भविष्यवाणी पढ़ें -भाग -75 ज्योतिषी झा मेरठ
--जन्म राशि के सम्बन्ध का अगला भाग --
--11 --लग्न -5 -9 तथा 10 वें घरों के स्वामियों के अपने -अपने घर परस्पर बदल लेने से महान समृद्धि ,शक्ति तथा यश की प्राप्ति होती है | 9 -10 वें घरों के स्वामियों के एक दूसरे के घर में होने से अथवा 5 -9 वे घरों के स्वामियों के परस्पर घर बदल लेने से ,अथवा लग्न व 9 वें घर के स्वामियों के परस्पर घर परिवर्तन से महान सौभाग्य का उदय होता है | ऐसी अवस्थाओं में बुरे ग्रह भी उस व्यक्ति को धनि व यशस्वी बना देते हैं |
--12 --भाग्य -स्थान " नवां घर अथवा सौभाग्य का घर " का स्वामी लग्न में होना पर्याप्त अच्छा है | इसी प्रकार लग्न के स्वामी का भाग्यस्थान में होना भी अच्छा है |
--13 --यदि 5 -9 वें घरों के स्वामी दोनों ही लग्न हैं ,तो वो व्यक्ति यश और धन को प्राप्त करेगा |
--14 --नवें घर में एक या अधिक ग्रहों का एकत्र होना सौभाग्य और समृद्धि का दाता है | इस घर में ग्रहों की जितनी अधिक संख्या होगी ,उतनी ही स्थिति सुखद होगी |
--15 --पांचवें घर में भी एक या अधिक ग्रहों का एकत्र होना समृद्धि का द्योतक है |
--16 --लग्न में या दूसरे ,तीसरे अथवा ग्यारहवें घरों में तीन या चार ग्रहों की उपस्थिति भी महान समृद्धि देती है ,क्योंकि दो -दो घरों के स्वामी होने के कारण उनमें से कुछ का पांचवें ,नवें व दसवें घरों का मालिक होना निश्चित ही है |
--17 --उचित यही है कि 6 -8 -12 वे भाव में कोई ग्रह न हो जिनके इन घरों में अनेक ग्रह होते हैं ,उनको प्रायः जीवन में अनेक विफलताओं ,पराजयों का मुख देखना पड़ता है |
--18 --सभी जन्म -कुण्डलियों में लग्न का स्वामी व्यक्ति के शरीर का ,सूर्य उसकी आत्मा का ,चंद्र उसके मस्तिष्क का और पांचवें घर का स्वामी उस व्यक्ति का स्वामी उस व्यक्ति की बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है |
--19 --जिन लोगों को जीवन में महान कार्य करने होते हैं ,उनकी जन्म -कुण्डली में अधिकांश ग्रह परस्पर सम्बंधित होते हैं ,चाहे वो उसी घर में हो अथवा अपनी दृष्टि रखते हों |
--20 --अन्य ग्रहों से बिलकुल अलग शनिग्रह विलक्षण सामर्थ्य है | 3 -7 -10 वें घरों पर दृष्टि डालने के साथ -साथ जिस घर में हों ,उसके आगे पीछे के एकेक घर को भी यह दूषित करता है ,प्रभावित करता है |
---अगले आलेख में शनि की साधें साती पर परिचर्चा करेंगें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ
जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...
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ॐ --इस वर्ष यानि -2024 +25 ----13 /04 /2024 शनिवार चैत्र शुल्कपक्ष पंचमी तिथि -09 /05 रात्रि पर वृश्चिक लग्न से सौर वर्ष की शुरुआत हो रही ह...
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ॐ श्रीसंवत -2082 --शाके -1947 आश्विन शुक्लपक्ष -तदनुसार दिनांक -22 /09 /2025 से 07 /10 / 2025 तक देश -विदेश भविष्यवाणी की बात करें --नवरात्...
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ॐ इस वर्ष 2024 +25 में ग्रहपरिषदों के चुनाव में राजा का पद मंगल ,मन्त्री का पद शनि को मिला है | राजा मंगल युद्धप्रिय होने से किन्हीं देशो...
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ॐ आषाढ़ शुक्ल गुरुवार ,26 जून 2025 को 1447 को हिजरी सन प्रारम्भ होगा | भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम वर्ग की प्रवित्तियों के अध्ययन के लिए दै...
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ॐ -श्रीसंवत 2081 -का शुभारम्भ -08 /04 /2024 सोमवार को रात्रि 11 -50 पर धनु लग्न से हो रहा है | लग्न का स्वामी गुरु पंचम भाव में शुभ ग्रह बु...
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ॐ -हिजरी सन 1946 का आरम्भ मुहर्रम मास के प्रथम दिवस दिनांक -08 /07 /2024 की शाम को धनु लगन से होगा | उक्त कुण्डली के अनुसार लग्नेश रोग ,ऋण ...
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ॐ नववर्ष -2025 ,संवत -2082 का आगमन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिनांक -29 /03 /2025 को मीन के चन्द्रमा के समय होगा | नववर्ष प्रवेश के समय देश की रा...
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ॐ दोस्तों -ज्योतिष जगत में लेखन का कार्य 2010 से शुरू किया था --कुछ महान विभूतियों के बारे में लिखने का सौभाग्य मिला -जैसे श्री प्रणवदा ,डॉक...
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ॐ --पाकिस्तान --की कुण्डली में मेष लग्न उदित है | अप्रैल से सितम्बर -2025 में पाकिस्तान अन्तरराष्ट्रीय कूटनीति असमंजस्य और आतंरिक ,राजनैतिक ...
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ॐ --संवत -2082 ब्रिटेन के समाज और ब्रिटिश राजनीति के लिए अशुभ संकेत है | जुलाई -2025 -के उपरान्त अंग्रेजी राजनीति एवं कूटनीति में बदलाव प्रक...









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