ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

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ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

ग्रहों की उच्च तथा नीच स्थिति -जानें -पढ़ें -भाग -58 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


जन्म -कुण्डली में जिस राशि के जितने अंश गत हो चुके हों ,उसके अनुसार विभिन्न ग्रह उच्च तथा नीच स्थिति को प्राप्त करते हैं | निम्न तालिका के द्वारा ग्रहों की स्थिति को ज्ञात किया जा सकता है | 

-------ग्रह ------------------ राशि ----------------------- अंश 

------सूर्य --------------------मेष -------------------------- 10 

------ चंद्र -------------------- वृष ------------------------- 3 

-------मंगल ------------------मकर -----------------------28 

-------बुध --------------------कन्या ----------------------15 

-------गुरु -------------------कर्क ----------------------5 

-------शुक्र ------------------मीन ------------------------ 27 

------ शनि ------------------तुला -------------------------20 

राहु तथा केतु छाया ग्रह हैं ,अतः ज्योतिष शास्त्री के अनेक ग्रंथों में इनकी उच्च तथा नीच स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है ,किन्तु कुछ विद्वानों के मत से मिथुन राशि  के 15 अंश पर राहु उच्च का माना जाता है | कुछ विद्वान वृष राशि में राहु को उच्च का मानते हैं इसी प्रकार अनेक ज्योतिष धनु राशि के 15 अंश पर केतु को उच्च का मानते हैं | 

---प्रत्येक ग्रह को जिस राशि के जितने अंशों पर उच्च का बताया गया है ,उससे सातवीं राशि के उतने अंशों पर वो नीच का होता है | ---इसे नीचे दी गई तालिका के द्वारा अच्छी तरह से समझा जा सकता है | 

-----ग्रह --------------------राशि --------------------अंश 

---सूर्य -----------------------तुला ---------------------10 

----चंद्र ------------------------वृश्चिक -----------------3 

---मंगल --------------------- कर्क ------------------28 

----बुध -----------------------मीन -------------------15 

-----गुरु ----------------------मकर -----------------5 

----शुक्र -----------------------कन्या ----------------27 

----शनि -----------------------मेष -----------------20 

---राहु -केतु  के बारे में  विद्वानों का मत यह है कि धनु के 15 अंश पर राहु नीच का होता है और कुछ ज्योतिषी के मतानुसार वृश्चिक राशि में राहु नीच का होता है | कुछ मिथुन राशि के 15 अंश पर केतु को नीच का और कुछ वृष राशि में केतु को नीच का मानते हैं | ग्रहों की उच्च तथा नीच स्थिति को अपने समझ लिया -अगले भाग में बलाबल ग्रहों का पर विचार रखेंगें --  --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


बुधवार, 20 नवंबर 2024

त्रिकोण ,केंद्र ,पणकर ,अपोकिलिम तथा मारक किन -किन भावों को कहा जाता है -पढ़ें -भाग -57


--1 ---त्रिकोण --पंचम तथा नवम भावों को त्रिकोण कहते हैं | 

--2 --केन्द्र --प्रथम ,चतुर्थ ,सप्तम ,दशम --इन भावों को केन्द्र कहते हैं | 

---3 --पणकर ----द्वितीय ,पंचम ,अष्टम ,तथा एकादश --इन चारों भावों को पणकर कहते हैं | 

--4 --आपोक्लिम --तृतीय ,षष्ठ ,नवम तथा द्वादश --इन भावों को अपोक्लिम कहते हैं | 

---5 --मारक --द्वितीय तथा सप्तम भाव को मारक कहा जाता है | 

नोट --कुछ विद्वानों के मतानुसार द्वितीय तथा दशम भाव को पणकर एवं तृतीय तथा एकादश भाव को अपोक्लिम माना जाता है | 

---6 ---मूल त्रिकोण --जन्म -कुण्डली के द्वादश भावों में विभिन्न राशियां अलग -अलग भावों में रहती हैं | निम्न रूप से जिस राशि के जितने अंश पर जो ग्रह हो उसे "मूल त्रिकोण " में स्थित समझना चाहिए | 

---सूर्य ---सिंह राशि में --1 से 20 अंश तक | 

--चन्द्र --वृष राशि में --4 से 30 अंश तक | 

--मंगल --मेष राशि में -1 से 18 अंश तक | 

--बुध ---कन्या राशि में --1 से 15 अंश तक | 

--गुरु --धनु राशि में --1 से 13 अंश तक 

| --शुक्र -तुला राशि में --1 से 20 अंश तक | 

--शनि --तुला राशि में --1 से 10 अंश तक | -----मूल त्रिकोण के ग्रहों की स्थिति को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुण्डली का सहारा लेना होगा साथ ही गुरु का सान्निध्य भी चाहिए | 

नोट ---राहु को कर्क राशि में मूल त्रिकोणगत माना जाता है | इसी के आधार पर ज्योतिष के विद्वान केतु को मकर राशि में मूल त्रिकोणगत मानते हैं | --अगले भाग में ग्रहों की उच्च तथा नीच स्थिति की जानकारी देंगें |  --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


जन्म-कुण्डली के द्वादश भावों की जानकारी पढ़ें --ज्योतिष कक्षा पाठ -56- पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


पाठकगण --किसी भी जन्म -कुण्डली के द्वादश भावों  के फलादेश करने हेतु - इन तमाम बातों को ठीक से समझें | 

--1 --प्रथम भाव -सूर्य ,शरीर ,जाति ,विवेक ,शील ,आकृति ,मस्तिष्क ,सुख -दुःख ,आयु | 

--2 --द्वितीय भाव --धन ,कुटुंब ,रत्न ,बंधन | 

--3 --तृतीय भाव --पराक्रम ,सहोदर ,धैर्य  | 

--4 --चतुर्थ भाव --चन्द्र ,बुध ,माता ,सुख ,भूमि ,गृह ,सम्पत्ति ,छल ,उदारता ,दया ,चतुष्पद | 

--5 --पंचम भाव --गुरु ,विद्या ,बुद्धि ,संतान ,मामा | 

--6 --षष्टम भाव --शनि ,मंगल ,शत्रु ,रोग ,चिंता ,संदेह ,पीड़ा | 

-7 --सप्तम भाव --शत्रुता ,रोग ,नाना का सुख ,आत्मबल ,मनोवृत्ति | 

--8 --अष्टम भाव --शनि ,मृत्यु ,आयु ,व्याधि ,संकट ,ऋण ,चिंता ,पुरातत्व | 

--9 --नवम भाव --सूर्य ,गुरु ,भाग्य ,धर्म ,विद्या ,प्रबास ,तीर्थ- यात्रा ,दान | 

--10 --दशम भाव --सूर्य ,बुध ,गुरु ,शनि ,राज्य ,पिता ,नौकरी ,व्यवसाय ,मान -प्रतिष्ठा | 

--11 --एकादश भाव --गुरु ,लाभ ,आय ,संपत्ति ,ऐस्वर्य ,वाहन | 

--12 ---द्वादश भाव --शनि ,व्यय ,हानि ,दंड ,रोग ,व्यसन | 

ये सब कुण्डली के भावों में स्थित समझें ------अगले भाग में त्रिकोण ,केंद्र ,पणकर ,अपोकिलिम तथा मारक किन -किन भावों को कहा जाता है --इसे बताने का प्रयास करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


मंगलवार, 19 नवंबर 2024

जन्म- कुण्डली के द्वादश भाव -ज्योतिष कक्षा पाठ -57- पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


 आपने कन्या राशि तक  जानकारी  कर ली ---आगे 

--7 -स्त्री --"जाया "--इसे केन्द्र तथा सप्तम भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा स्त्री ,मृत्यु ,कामेच्छा ,कामचिंता ,सहवास ,विवाह ,स्वास्थ जननेन्द्रिय ,अंग-विभाग ,व्यवसाय ,झगड़ा -झंझट तथा बवासीर आदि रोग के संबंध में  विचार  किया जाता है | 

--8 -आयु -इसे पणकर तथा अष्टम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक शनि है | इसके द्वारा आयु ,जीवन ,मृत्यु के कारण ,व्याधि ,मानसिक चिंताएं ,झूठ ,पुरात्तव ,समुद्र -यात्रा ,संकट ,लिंग ,योनि तथा अंडकोष के रोग आदि का विचार किया जाता है | 

--9 -धर्म ---इसे त्रिकोण तथा नवम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा तप ,शील ,धर्म ,विद्या ,प्रवास ,तीर्थ यात्रा ,दान ,मानसिक वृत्ति ,भग्योदय तथा पिता का सुख आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

--10 --कर्म --इसे केन्द्र तथा दशम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक बुध है | इसके द्वारा अधिकार ,ऐश्वर्य -भोग ,यश -प्राप्ति ,नेतृत्व ,प्रभुता ,मान -प्रतिष्ठा ,राज्य ,नौकरी ,व्यवसाय तथा पिता के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

----11 ---लाभ --इसे उपचय ,पणकर तथा एकादश भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा संपत्ति ,ऐस्वर्य ,मांगलिक कार्य , वाहन ,रत्न आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

--12 --व्यय --इसे द्वादश भाव कहा जाता है | इस भाव का कारक शनि है | इसके द्वारा दंड ,व्यय ,हानि ,व्यसन ,रोग ,दान तथा बाहरी सम्बन्ध आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

--प्रिय पाठकगण --किसी भी जन्म -कुण्डली  के भावों को  इन बातों के द्वारा समस्त व्यक्ति की जानकारी करी जा सकती है  | इन तमाम बातों को ठीक से समझने का प्रयास करेंगें --तो फलादेश करने में विशेष सहायता मिलेगी | 

--अगले भाग में किस भाव से क्या -क्या फलादेश करना चाहिए इस पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगें | ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 18 नवंबर 2024

जन्म- कुण्डली के द्वादश भाव -ज्योतिष कक्षा पाठ -56- पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


जन्म -कुण्डली  में  12 भावों के नाम इस प्रकार हैं -1 -तनु ,-2 -धन ,--3 -सहज ,--4 -सुहृद ,--5 -पुत्र ,--6 -रिपु ,--7 -स्त्री ,--8 --आयु ,--9 --धर्म ,--10 -कर्म ,--11 -लाभ ,--12 -व्यय | इन भावों के द्वारा किन -किन बातों का विचार किया जाता है --इसे इस प्रकार से समझना चाहिए --

---1 --तनु ---इसे प्रथम भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा स्वरूप ,जाति ,आयु ,विवेक ,शील ,मस्तिष्क ,चिन्ह ,दुःख -सुख तथा आकृति आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | इस भाव कारक सूर्य है | इसमें मिथुन ,कन्या ,तुला तथा कुम्भ आदि कोई राशि हो ,तो उसे बलवान माना जाता है | लग्नेश की स्थिति और बलाबल के अनुसार इस भाव से उन्नति -अवनति तथा कार्य -कुशलता का ज्ञान प्राप्त किया जाता है | 

--2 -धन ----इसे पणकर तथा द्वितीय भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा स्वर ,सौन्दर्य ,आंख ,नाक ,कान ,गायन ,प्रेम ,कुल ,मित्र ,सत्यवादिता ,सुखोपभोग ,बंधन ,क्रय -विक्रय ,स्वर्ण ,चांदी ,मणि ,रत्न आदि संचित पूंजी के संबंध में विचार किया जाता है | 

---3 --सहज --इसे आपोक्लिम तथा तृतीय भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक मंगल है | इसके द्वारा पराक्रम ,कर्म ,साहस ,धैर्य ,शौर्य ,आयुष्य ,सहोदर ,नौकर -चाकर , गायन ,क्षय ,श्वास ,कास ,दमा तथा योगाभ्यास  आदि का विचार किया जाता है | 

---4 --सुहृद -इसे केन्द्र तथा चतुर्थ भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा सुख ,गृह ,ग्राम ,मकान ,सम्पत्ति ,बाग -बगीचा ,चतुष्पद ,माता -पिता का सुख अन्तः करण की स्थिति ,दया ,उदारता ,छल ,कपट ,निधि ,यकृत तथा पेटादि रोगों के संबन्ध में विचार किया जाता है | इस भाव का कारक चंद्र है | इस स्थान को विशेषकर माता का स्थान माना जाता है | ---5 --पुत्र --इसे पणकर ,त्रिकोण तथा पंचम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा बुद्धि ,विद्या ,विनय ,नीति ,देवभक्ति ,संतान ,प्रबंध -व्यवस्था ,मामा का सुख ,धन मिलने के उपाय ,अनायास बहुत से धन  प्राप्ति ,नौकरी से विच्छेदन ,हाथ का यश ,मूत्र -पिंड ,वस्ति एवं गर्भाशय आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

---6 --रिपु ---इसे आपोक्लिम तथा षष्ठ भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक मंगल है | इस  भाव के  द्वारा शत्रु ,चिंता ,संदेह ,जागीर ,मामा की स्थिति ,यश ,गुदा -स्थान ,पीड़ा ,रोग  तथा व्रणादि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | ------आगे की जानकरी 62 वे भाग में पढ़ें ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

भाई दूज "यम द्वितीया"पर्व की पौराणिक कथा --पढ़ें --ज्योतिषी झा "मेरठ"




 ----यम द्वितीया ---------------------------

-------कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज या यम द्वितीया का पर्व मनाया जाता है। इस दिन यमराज की पूजा करना चाहिए। जानिए यमराज के पूजन का महत्वपूर्ण मंत्र -----------
------यम पूजा के लिए : ------------------
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज।
पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते।।
----------यमराज को अर्घ्य के लिए -----------
एह्योहि मार्तंडज पाशहस्त यमांतकालोकधरामेश।
भ्रातृद्वितीयाकृतदेवपूजां गृहाण चार्घ्यं भगवन्नमोऽस्तु ते॥
-----------भाई दूज --------------------------------------:
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाईदूज पर्व मनाया जाता है ।
भाईदूज के दिन बहनों को अपने भाइयों को आसन पर बैठाकर उसकी आरती उतारकर एवं तिलक लगाकर उसे विभिन्न प्रकार के व्यंजन अपने हाथ से बनाकर खिलाना चाहिए।
-----भाई को अपनी शक्ति अनुसार बहन को द्रव्य, वस्त्र, स्वर्ण आदि देकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
-----इस दिन भाई का अपने घर भोजन न करके बहन के घर भोजन करने से उसे धन, यश, आयुष्य, धर्म, अर्थ एवं सुख की प्राप्ति होती है।
-------भाई दूज पर्व की पौराणिक कथा --------
सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे।
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा।
----तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज 'तथास्तु' कहकर यमपुरी चले गए।
----ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता।
---चित्रगुप्त पूजा ----------------
भैयादूज के दिन चित्रगुप्त की पूजा के साथ-साथ लेखनी, दवात तथा पुस्तकों की भी पूजा की जाती है। यमराज के आलेखक चित्रगुप्त की पूजा करते समय यह कहा जाता है- लेखनी पट्टिकाहस्तं चित्रगुप्त नमाम्यहम् ।
वणिक वर्ग के लिए यह नवीन वर्ष का प्रारंभिक दिन कहलाता है। इस दिन नवीन बहियों पर 'श्री' लिखकर कार्य प्रारंभ किया जाता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को चित्रगुप्त का पूजन लेखनी के रूप में किया जाता है।
---चित्रगुप्त की प्रार्थना के लिए --
मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्।
लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।----------- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गोवर्धन पूजा कब करें -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ "


 कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 02/11/24


को है। -----जानिए गोवर्धन पूजा की सरल विधि-

---------पूजन विधि----------
गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन सुबह शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गोबर से प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत बनाएं। इस पर्वत के बीच में पास में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। अब गोवर्धन पर्वत व भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाएं। साथ ही देवराज इंद्र, वरुण, अग्नि और राजा बलि की भी पूजा करें। पूजा के बाद कथा सुनें। प्रसाद के रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें। इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा देकर प्रसन्न करें।
------शुभ मुहूर्त----------
-----सुबह 06:20 से 07:20 बजे तक
-----सुबह 09:20 से 10:30 बजे तक
-------दोपहर 01:30 से 2:00 बजे तक
------दोपहर 02:50 से 04:10 बजे तक
--------शाम 04:10 से 05:30 बजे तक
-----------------------गोवर्धन पर्वत की पूजा------------
एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मनाई जा रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा- आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए।
तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह बात जाकर नारद ने देवराज इंद्र को बता दी। यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलधार बारिश करें। बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो। वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप-ग्वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया।
गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह चमत्कार देखकर ब्रह्माजी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात जान कर इंद्रदेव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि- अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व गोवर्धन पूजा के रूप में प्रचलित है।-----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

जानिए गोवर्धन पूजा का महत्व--पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ "


 हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।

-----अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है।
---ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है। बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इन पर्वों से गायों का कल्याण होता है, पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी फल प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभ कामनाएं-------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

दीपावली की रात्र तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है-- ज्योतिषी झा मेरठ


 भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे.-दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है।... इस दिन तंत्र-मंत्र/टोन टोटके का प्रयोग अनेक व्यक्ति ईर्ष्या के कारण रिश्तेदार/मित्र/शत्रु के अनिष्ट के लिए करते है। दीपावली को लड़कियों को बाल खोल कर नहीं रखने चाहिए क्योकि इससे तंत्र मन्त्र प्रभाव उन पर जरूर होता है। दीपावली को व्यक्ति को अपने पास मोर पंख भी रखना चाहिए इससे तंत्र मन्त्र का प्रभाव कम होता है.हनुमानजी अजर-अमर व कलियुग में भी भक्तों के आस-पास रहते हैं दीपावली की रात को शुद्ध पारद हनुमान जी संजीविनी ब्यूटी लिए हुए मूर्ति के सामने पर लौंग डालकर दीपक प्रज्वलित करके परिवार के साथ हनुमान चालीसा, हनुमत अष्टक व बजरंग बाण का पाठ करने से घर मे किसी भी तंत्र मन्त्र के प्रभाव, पुरानी बीमारी व कर्जे से बाहर निकलने का मार्ग मिलता है.क्योकि पारद एक जीवंत धातु है और जिस प्रकार संजीवनी बूटी से लक्मण जी को तुरंत होश आकर पहले से भी अधिक शक्ति आ गयी थी उसी प्रकार कार्य स्थान/घर पर ये मूर्ति रखने से परेशानी से निकलने का मार्ग मिलता है।आप हनुमान जी की संजीवनी बूटी उठाई हुई शुद्ध पारद मूर्ति का ठीक से निरक्षण कर खरीदें . आजकल बाजार मे रांगे/गिलट को पारद बता कर बेच देते है, शुद्ध पारद वस्तु की जांच करने के लिए उस पर थोड़ा सा तरल पारद रखे, असली पारद वस्तु पर वह चिपक जायगा व पारद सामान मे चमक आ जायगी, नकली पारद (रांगा/गिलेट) पर नहीं चिपकेगा----ॐ ---- ॐ आपका


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बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है-पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


 धनतेरस के दिन{अहर्निशं } लक्ष्मी – गणेश और कुबेर की पूजा की जाती है। पर इस दिन सबसे महत्वपूर्ण पूजा होती है स्वास्थ्य और औषधियों के देवता धनवन्तरी की। इन सभी पूजाओं को घर में करने से स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है। इस दिन लोग अपने स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कामना करते हैं। इसके लिए इस दिन धनवन्तरी की पूजा की जाती है। इसके लिए अपने घर के पूजा गृह में जाकर ॐ धं धन्वन्तरये नमः मंत्र का 108 बार उच्चारण करें। ऐसा करने बाद स्वास्थ्य के भगवान धनवंतरी से अच्छी सेहत की कामना करें। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धनवन्तरी की पूजा करने से स्वास्थ्य सही रहता हैा धनवन्तरी की पूजा के बाद यह जरूरी है कि लक्ष्मी और गणेश का पूजन किया जाए। इसके लिए सबसे पहले गणेश जी को दिया अर्पित करें और धूपबत्ती चढ़ायें। इसके बाद गणेश जी के चरणों में फूल अर्पण करें और मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद इसी तरह लक्ष्मी पूजन करें। इसके अलावा इस दिन धनतेरस पूजन भी किया जाता है और कुबीर देवता की पूजा की जाती है। धनतेरस पूजन के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना ---इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें----दिये को किसी चीज से ढक दें--दिये के आस पास तीन बार गंगा जल छिड़कें---इसके बाद दीपक पर रोली का तिलक लगाएं और साथ चावल का भी तिलक लगाएं---इसके बाद दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं--फिर दीपक में 1 रुपया रखें। रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें--इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें और परिवार के लोगों से भी आशीर्वाद लेने को कहें।---इसके बाद यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें,----- ध्यान रखे कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इन तीनों पूजन के समापन से घर में लक्ष्मी सदैव विद्यमान रहती हैं और स्वास्थ्य बेहतर रहता है।------ ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

धनतेरस यानि "भगवान धन्वंतरि" के दिन क्या करें -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

 



धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए *धनतेरस* का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या?

---दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
--एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
-धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।-------ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -102 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



 दोस्तों -मानव जीवन में यद्यपि अनन्त दुःख हैं तो  अनन्त सुख भी हैं | इस प्रकृति में "बड़े भाग्य मानस तन पावा "--इस उक्ति का वास्तविक भाव यह है --हमें करना क्या चाहिए ? --हमने अपने जीवन में अनन्त बातों का अनुभव किया है --पर मानव जीवन का सार ठीक से नहीं समझ पाए --इसका परिणाम यह हुआ --जीवन भर राग -द्वेष में उलझे रहे | व्यक्ति की शत्रुता व्यक्ति से होती है --पर दिवंगत होने के बाद -वही व्यक्ति गलानि का अनुभव करता है | मेरा जन्म राजयोग  था --यह अवधि केवल 10 वर्ष तक थी | इसके बाद --राहु की दशा ने मेरे जीवन रूपी अग्नि में घी डालने का सदा काम किया | इसके बाद गुरु की दशा ने शिखर पर विराजमान कर दिया --फिर मैं तन ,धन और मन का ऐसा राजा बना --जिसनें मुझे -सशक्त तो दुनिया की नजर में बना दिया --पर मैं ये भूल गया -शास्त्री बाद में हुआ पहले अनपढ़ माता पिता के सान्निध्य में रहा --इसलिए माता पिता को  शास्त्रों से नहीं अनपढ़ता से जीत सकता था | जीवन में कईबार हम शास्त्र सम्मत बातों पर जीने का प्रयास करते हैं --इसका परिणाम यह होता है --हम सबकुछ खो देते हैं --हमारे पास केवल धन रूपी अहंकार होता है ,शास्त रूपी अहंकार होता है --जिनमें प्रमाण देने में तो अच्छे लगते हैं किन्तु यह थोड़ी देर के लिए होते हैं --इसके बाद स्वयं में ग्लानि होती है --जिसकी वजह से अकेला जीवन होता है | अपने जीवन में मुझे अनन्त कष्टों का सामना करना पड़ा --जिसमें एक ऐसा दखद पल था ---पिता दिवंगत हो चुके थे | भाई -भाई की दुश्मनी चरम सीमा पर थी | एक तरफ अनुज था -तो एक तरफ मेरी भार्या थी --दोनों परस्पर अपशब्दों के बौछार कर रहे थे | समाज के सभी लोग ठहाके लगा रहे थे | माँ बीच में तमाशा देख रही थी | सभी परिजन आनन्द ले रहे थे | एक शास्त्री होकर मुझे मरने के सिवा कुछ सूझ नहीं रहा था | -यह दृश्य कई दिनों तक मरने को लाचार कर रहा था | हमने ज्योतिष में यह पाया है --ज्योतिष सच है पर ज्योतिष दिखाने की नहीं अमल करने की चीज है --इस संसार में सबसे बड़ी भूल व्यक्ति से यही होती है -ज्योतिष को जीवन पर्यन्त दिखाता रहता है --उसे करना क्या चाहिए इस पर अमल नहीं करता है ---जिसका परिणाम हर व्यक्ति को ज्योतिषी में पोपगण्डा दीखता रहता है | इसका उदहारण मैं स्वयं हूँ | --जिस दिन मिझे यह विदित हुआ --उस दिन से जीवन में कोई पराया नहीं दिखा ,उस दिन से सभी अपने लगने लगे ,उस दिन से वास्तव में मैं सुखी हुआ | कईबार व्यक्ति के मन में एक प्रश्न उठता -रहता है --क्या भगवान दीखते हैं या सच में भगवान से व्यक्ति की बात होती है ---तो कईबार हमने अनुभव किया है -स्वप्न में कईबार अनुभव किये हैं -अगले दिन वही बात सच होती है --या किसी न किसी प्रकार से हर जिज्ञासु व्यक्ति का मार्ग ईस्वर किसी न किसी रूप में सरल अवश्य करते हैं | मेरे जीवन के  अंतिम  समय में भी राजयोग चल रहा है --और जीवन का अंतिम भाग चल रहा है | अतः जीवन जीने की एक कला है --फिर कब किससे  मिलें न मिलें --इसके लिए शत्रुता क्यों -प्रेम क्यों नहीं --इसी पथ पर चलते रहना चाहता हूँ | आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



रविवार, 20 अक्टूबर 2024

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व और पूजा विधि को जानने हेतु -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ




 24 अक्टूबर को कार्तिक कृष्ण पक्ष की


अष्टमी पर पडऩे वाली अहोई माता का व्रत है। करवा चौथ के 4 दिन बाद और दीपावली से 8 दिन पूर्व पडऩे वाला यह व्रत, पुत्रवती महिलाएं ,पुत्रों के कल्याण,दीर्घायु, सुख समृद्घि के लिए निर्जल करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सायंकाल घर की दीवार पर of कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। इसके साथ ही स्याहू माता अर्थात सेई तथा उसके बच्चों के भी चित्र बनाए जाते हैं। आप अहोई माता का कैलेंडर दीवार पर लगा सकते हैं। पूजा से पूर्व चांदी का पैंडल बनवा कर चित्र पर चढ़ाया जाता है और दीवाली के बाद अहोई माता की आरती करके उतार लिया जाता है और अगले साल के लिए रख लिया जाता है। व्रत रखने वाली महिला की जितनी संतानें हों उतने मोती इसमें पिरो दिए जाते हैं। जिसके यहां नवजात शिशु हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे अहोई माता का व्रत अवश्य करना चाहिए ।
-----विधि--------अहोई माता का आशीर्वाद पाने के लिए पुत्रवती महिलाएं करवाचौथ की भांति ही प्रात: तड़के उठकर सरगी खाती हैं तथा सारा दिन किसी प्रकार का अन्न जल ग्रहण न करते हुए निर्जला व्रत करती हैं। सायंकाल को वे दीवार को खडिय़ा मिट्टी से पोतकर उस पर अष्ट कोष्ठक (आठ कोनों वाली) की अहोई माता का स्वरूप बनाकर उनमें लाल गेरू और पीले रंग की हल्दी से सुन्दर रंग भरती हैं। साथ ही स्याहू माता (सेई) के बच्चों के भी चित्र बनाकर सजाती हैं। तारा निकलने से पहले अहोई माता के सामने जल का पात्र भरकर उस पर स्वास्तिक बनाती हैं तथा उसके सामने सरसों के तेल का दीपक जलाकर अहोई माता की कथा करती हैं।--अहोई माता के सामने मिट्टी की हांडी यानी मटकी जैसा बर्तन रखकर उसमें खाने वाला सामान प्रसाद के रूप में भरकर रखा जाता है। इस दिन ब्राह्मणों को पेठा दान में देना अति उत्तम कर्म माना जाता है।----पूजन सामग्री--------अहोई माता के व्रत में सरसों के तेल से बने पदार्थों का ही प्रयोग होता है। महिलाएं घरों में मट्ठियां, गुड़ से बना सीरा, पूड़े, गुलगुले, चावल, साबुत उड़द की दाल, गन्ना और मूली के साथ ही मक्की अथवा गेहूं के दाने रखकर उस पर तेल का दीपक रखकर जलाती हैं तथा अहोई माता से परिवार की सुख-शांति, पति व पुत्रों की रक्षा एवं उनकी लम्बी आयु की कामना से प्रार्थना करती हैं तथा तारा निकलने पर उसे अर्ध्य देकर व्रत का पारण करती हैं। अहोई माता के पूजन के पश्चात खाने वाला सामान घर के नौकरों आदि को भी प्रसाद रूप में अवश्य देना चाहिए।------ इस व्रत में बच्चों को प्रसाद रूप में तेल के बनाए गए सारे सामान के अजारण बनाकर दिए जाते हैं तथा घर के बुजुर्गों सास-ससुर को व्रत के पारण से पहले उनके चरण स्पर्श करके बया देकर सम्मानित करने की भी परम्परा है जिससे प्रसन्न होकर वे बहू को आशीर्वाद देते हैं।-------------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 19 अक्टूबर 2024

छलनी से क्यों देखते हैं करवा चौथ का चांद-पढ़कर अनुभव करें -ज्योतिषी झा मेरठ


 कार्तिक मास में जब कृष्ण पक्ष आता है उसकी चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है। यह व्रत सुख, सौभाग्य, दांपत्य जीवन में प्रेम बरकरार रखने के लिए होता है। इसके साथ ही परिवार में रोग, शोक और संकट को दूर करने के लिए भी होता है। सुबह से रखा जाने वाला व्रत शाम को चांद देखने के बाद ही खोला जाता है। चांद देखने की भी एक खास परंपरा है, इसे छलनी में से ही देखा जाता है। ऐसा क्यों है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी..।--भाइयों ने किया था बहन से छल करवा चौथ व्रत कथा के मुताबिक प्राचीन काल में एक बहन को भाइयों ने स्नेहवश भोजन कराने के लिए छल से चांद की बजाय छलनी की ओट में दीपक जला दिया और भोजन कराकर व्रत भंग करा दिया। इसके बाद उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब दोबारा करवा चौथ आया तो उसने विधि पूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्ति हो गई। उस करवा चौथ पर उसने हाथ में छलनी लेकर चांद के दीदार किए थे।--यह भी है एक कहानीइस दिन चांद को छलनी के जरिए देखने की यह कथा भी प्रचलित है। इसका यह महत्व है कि कोई भी छल से उनका व्रत भंग न कर सके, इसलिए छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोलने की परंपरा विकसित हो गई। इस दिन व्रत करने के लिए इस व्रत की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है।---सांस का आशीर्वाद लेकर देती हैं गिफ्ट करवा चौथ के व्रत वाले दिन एक चौकी पर जल का लौटा, करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में शक्कर और रुपए रखे जाते हैं। पूजन में रोली, चावल, और गुड़ भी रखा जाता है। फिर लौटे और करवे पर स्वस्तिक का निशान बनाया जाता है। दोनों को 13 बिंदियों से सजाया जाता है। गेहूं के तेरह दाने हाथ में लिए जाते हैं और कथा सुनी जाती है। बाद में सासू मां के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेकर उन्हें भेंट दी जाती है। चंद्रमा के दर्शन होने के बाद उसी चावल को गुड़ के साथ चढ़ाना होता है। सभी रस्मों को पूरी शिद्दत के साथ करने के बाद ही भोजन ग्रहण करने की परंपरा है।---1. यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं।--2. यह व्रत 12 से 16 साल तक लगातार हर साल करने की परंपरा है।--3. सुहागिन महिलाएं व्रत से एक दिन पहले सिर धोकर स्नान करने के बाद हाथों में मेहंदी और पैरों में माहुर लगाती हैं।---4. चतुर्थी को सुबह चार बजे महिलाएं सूर्योदय से पूर्व भोजन करती हैं। इसमें दूध, फल और मिठाइयां आदि व्यंजन शामिल किए जाते हैं। सूर्योदय के पहले किया गया यह भोजन सरगही या सरगी कहलाता है।--5. व्रत करने के बाद रात को 16 श्रंगार कर चंद्रोदय पर छलनी से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पति का चेहरा देखने की रस्म होती है। इसके बाद पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर व्रत खुलवाता है।------ ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

शरद पूर्णिमा-यानी-कोजागरी पूर्णिमा-की विशेषता-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद पूर्णिमा का एक नाम "कोजागरी पूर्णिमा" भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है?----अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।----आयुर्वेदाचार्य वर्षभर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधीश 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।----शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।-----शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं।---पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।--------ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका -


ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...