दोस्तों -मानव जीवन में यद्यपि अनन्त दुःख हैं तो अनन्त सुख भी हैं | इस प्रकृति में "बड़े भाग्य मानस तन पावा "--इस उक्ति का वास्तविक भाव यह है --हमें करना क्या चाहिए ? --हमने अपने जीवन में अनन्त बातों का अनुभव किया है --पर मानव जीवन का सार ठीक से नहीं समझ पाए --इसका परिणाम यह हुआ --जीवन भर राग -द्वेष में उलझे रहे | व्यक्ति की शत्रुता व्यक्ति से होती है --पर दिवंगत होने के बाद -वही व्यक्ति गलानि का अनुभव करता है | मेरा जन्म राजयोग था --यह अवधि केवल 10 वर्ष तक थी | इसके बाद --राहु की दशा ने मेरे जीवन रूपी अग्नि में घी डालने का सदा काम किया | इसके बाद गुरु की दशा ने शिखर पर विराजमान कर दिया --फिर मैं तन ,धन और मन का ऐसा राजा बना --जिसनें मुझे -सशक्त तो दुनिया की नजर में बना दिया --पर मैं ये भूल गया -शास्त्री बाद में हुआ पहले अनपढ़ माता पिता के सान्निध्य में रहा --इसलिए माता पिता को शास्त्रों से नहीं अनपढ़ता से जीत सकता था | जीवन में कईबार हम शास्त्र सम्मत बातों पर जीने का प्रयास करते हैं --इसका परिणाम यह होता है --हम सबकुछ खो देते हैं --हमारे पास केवल धन रूपी अहंकार होता है ,शास्त रूपी अहंकार होता है --जिनमें प्रमाण देने में तो अच्छे लगते हैं किन्तु यह थोड़ी देर के लिए होते हैं --इसके बाद स्वयं में ग्लानि होती है --जिसकी वजह से अकेला जीवन होता है | अपने जीवन में मुझे अनन्त कष्टों का सामना करना पड़ा --जिसमें एक ऐसा दखद पल था ---पिता दिवंगत हो चुके थे | भाई -भाई की दुश्मनी चरम सीमा पर थी | एक तरफ अनुज था -तो एक तरफ मेरी भार्या थी --दोनों परस्पर अपशब्दों के बौछार कर रहे थे | समाज के सभी लोग ठहाके लगा रहे थे | माँ बीच में तमाशा देख रही थी | सभी परिजन आनन्द ले रहे थे | एक शास्त्री होकर मुझे मरने के सिवा कुछ सूझ नहीं रहा था | -यह दृश्य कई दिनों तक मरने को लाचार कर रहा था | हमने ज्योतिष में यह पाया है --ज्योतिष सच है पर ज्योतिष दिखाने की नहीं अमल करने की चीज है --इस संसार में सबसे बड़ी भूल व्यक्ति से यही होती है -ज्योतिष को जीवन पर्यन्त दिखाता रहता है --उसे करना क्या चाहिए इस पर अमल नहीं करता है ---जिसका परिणाम हर व्यक्ति को ज्योतिषी में पोपगण्डा दीखता रहता है | इसका उदहारण मैं स्वयं हूँ | --जिस दिन मिझे यह विदित हुआ --उस दिन से जीवन में कोई पराया नहीं दिखा ,उस दिन से सभी अपने लगने लगे ,उस दिन से वास्तव में मैं सुखी हुआ | कईबार व्यक्ति के मन में एक प्रश्न उठता -रहता है --क्या भगवान दीखते हैं या सच में भगवान से व्यक्ति की बात होती है ---तो कईबार हमने अनुभव किया है -स्वप्न में कईबार अनुभव किये हैं -अगले दिन वही बात सच होती है --या किसी न किसी प्रकार से हर जिज्ञासु व्यक्ति का मार्ग ईस्वर किसी न किसी रूप में सरल अवश्य करते हैं | मेरे जीवन के अंतिम समय में भी राजयोग चल रहा है --और जीवन का अंतिम भाग चल रहा है | अतः जीवन जीने की एक कला है --फिर कब किससे मिलें न मिलें --इसके लिए शत्रुता क्यों -प्रेम क्यों नहीं --इसी पथ पर चलते रहना चाहता हूँ | आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
सोमवार, 21 अक्टूबर 2024
मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -102 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों -मानव जीवन में यद्यपि अनन्त दुःख हैं तो अनन्त सुख भी हैं | इस प्रकृति में "बड़े भाग्य मानस तन पावा "--इस उक्ति का वास्तविक भाव यह है --हमें करना क्या चाहिए ? --हमने अपने जीवन में अनन्त बातों का अनुभव किया है --पर मानव जीवन का सार ठीक से नहीं समझ पाए --इसका परिणाम यह हुआ --जीवन भर राग -द्वेष में उलझे रहे | व्यक्ति की शत्रुता व्यक्ति से होती है --पर दिवंगत होने के बाद -वही व्यक्ति गलानि का अनुभव करता है | मेरा जन्म राजयोग था --यह अवधि केवल 10 वर्ष तक थी | इसके बाद --राहु की दशा ने मेरे जीवन रूपी अग्नि में घी डालने का सदा काम किया | इसके बाद गुरु की दशा ने शिखर पर विराजमान कर दिया --फिर मैं तन ,धन और मन का ऐसा राजा बना --जिसनें मुझे -सशक्त तो दुनिया की नजर में बना दिया --पर मैं ये भूल गया -शास्त्री बाद में हुआ पहले अनपढ़ माता पिता के सान्निध्य में रहा --इसलिए माता पिता को शास्त्रों से नहीं अनपढ़ता से जीत सकता था | जीवन में कईबार हम शास्त्र सम्मत बातों पर जीने का प्रयास करते हैं --इसका परिणाम यह होता है --हम सबकुछ खो देते हैं --हमारे पास केवल धन रूपी अहंकार होता है ,शास्त रूपी अहंकार होता है --जिनमें प्रमाण देने में तो अच्छे लगते हैं किन्तु यह थोड़ी देर के लिए होते हैं --इसके बाद स्वयं में ग्लानि होती है --जिसकी वजह से अकेला जीवन होता है | अपने जीवन में मुझे अनन्त कष्टों का सामना करना पड़ा --जिसमें एक ऐसा दखद पल था ---पिता दिवंगत हो चुके थे | भाई -भाई की दुश्मनी चरम सीमा पर थी | एक तरफ अनुज था -तो एक तरफ मेरी भार्या थी --दोनों परस्पर अपशब्दों के बौछार कर रहे थे | समाज के सभी लोग ठहाके लगा रहे थे | माँ बीच में तमाशा देख रही थी | सभी परिजन आनन्द ले रहे थे | एक शास्त्री होकर मुझे मरने के सिवा कुछ सूझ नहीं रहा था | -यह दृश्य कई दिनों तक मरने को लाचार कर रहा था | हमने ज्योतिष में यह पाया है --ज्योतिष सच है पर ज्योतिष दिखाने की नहीं अमल करने की चीज है --इस संसार में सबसे बड़ी भूल व्यक्ति से यही होती है -ज्योतिष को जीवन पर्यन्त दिखाता रहता है --उसे करना क्या चाहिए इस पर अमल नहीं करता है ---जिसका परिणाम हर व्यक्ति को ज्योतिषी में पोपगण्डा दीखता रहता है | इसका उदहारण मैं स्वयं हूँ | --जिस दिन मिझे यह विदित हुआ --उस दिन से जीवन में कोई पराया नहीं दिखा ,उस दिन से सभी अपने लगने लगे ,उस दिन से वास्तव में मैं सुखी हुआ | कईबार व्यक्ति के मन में एक प्रश्न उठता -रहता है --क्या भगवान दीखते हैं या सच में भगवान से व्यक्ति की बात होती है ---तो कईबार हमने अनुभव किया है -स्वप्न में कईबार अनुभव किये हैं -अगले दिन वही बात सच होती है --या किसी न किसी प्रकार से हर जिज्ञासु व्यक्ति का मार्ग ईस्वर किसी न किसी रूप में सरल अवश्य करते हैं | मेरे जीवन के अंतिम समय में भी राजयोग चल रहा है --और जीवन का अंतिम भाग चल रहा है | अतः जीवन जीने की एक कला है --फिर कब किससे मिलें न मिलें --इसके लिए शत्रुता क्यों -प्रेम क्यों नहीं --इसी पथ पर चलते रहना चाहता हूँ | आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
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