ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

दीपावली की रात्र तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है-- ज्योतिषी झा मेरठ


 भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे.-दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है।... इस दिन तंत्र-मंत्र/टोन टोटके का प्रयोग अनेक व्यक्ति ईर्ष्या के कारण रिश्तेदार/मित्र/शत्रु के अनिष्ट के लिए करते है। दीपावली को लड़कियों को बाल खोल कर नहीं रखने चाहिए क्योकि इससे तंत्र मन्त्र प्रभाव उन पर जरूर होता है। दीपावली को व्यक्ति को अपने पास मोर पंख भी रखना चाहिए इससे तंत्र मन्त्र का प्रभाव कम होता है.हनुमानजी अजर-अमर व कलियुग में भी भक्तों के आस-पास रहते हैं दीपावली की रात को शुद्ध पारद हनुमान जी संजीविनी ब्यूटी लिए हुए मूर्ति के सामने पर लौंग डालकर दीपक प्रज्वलित करके परिवार के साथ हनुमान चालीसा, हनुमत अष्टक व बजरंग बाण का पाठ करने से घर मे किसी भी तंत्र मन्त्र के प्रभाव, पुरानी बीमारी व कर्जे से बाहर निकलने का मार्ग मिलता है.क्योकि पारद एक जीवंत धातु है और जिस प्रकार संजीवनी बूटी से लक्मण जी को तुरंत होश आकर पहले से भी अधिक शक्ति आ गयी थी उसी प्रकार कार्य स्थान/घर पर ये मूर्ति रखने से परेशानी से निकलने का मार्ग मिलता है।आप हनुमान जी की संजीवनी बूटी उठाई हुई शुद्ध पारद मूर्ति का ठीक से निरक्षण कर खरीदें . आजकल बाजार मे रांगे/गिलट को पारद बता कर बेच देते है, शुद्ध पारद वस्तु की जांच करने के लिए उस पर थोड़ा सा तरल पारद रखे, असली पारद वस्तु पर वह चिपक जायगा व पारद सामान मे चमक आ जायगी, नकली पारद (रांगा/गिलेट) पर नहीं चिपकेगा----ॐ ---- ॐ आपका


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बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है-पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


 धनतेरस के दिन{अहर्निशं } लक्ष्मी – गणेश और कुबेर की पूजा की जाती है। पर इस दिन सबसे महत्वपूर्ण पूजा होती है स्वास्थ्य और औषधियों के देवता धनवन्तरी की। इन सभी पूजाओं को घर में करने से स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है। इस दिन लोग अपने स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कामना करते हैं। इसके लिए इस दिन धनवन्तरी की पूजा की जाती है। इसके लिए अपने घर के पूजा गृह में जाकर ॐ धं धन्वन्तरये नमः मंत्र का 108 बार उच्चारण करें। ऐसा करने बाद स्वास्थ्य के भगवान धनवंतरी से अच्छी सेहत की कामना करें। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धनवन्तरी की पूजा करने से स्वास्थ्य सही रहता हैा धनवन्तरी की पूजा के बाद यह जरूरी है कि लक्ष्मी और गणेश का पूजन किया जाए। इसके लिए सबसे पहले गणेश जी को दिया अर्पित करें और धूपबत्ती चढ़ायें। इसके बाद गणेश जी के चरणों में फूल अर्पण करें और मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद इसी तरह लक्ष्मी पूजन करें। इसके अलावा इस दिन धनतेरस पूजन भी किया जाता है और कुबीर देवता की पूजा की जाती है। धनतेरस पूजन के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना ---इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें----दिये को किसी चीज से ढक दें--दिये के आस पास तीन बार गंगा जल छिड़कें---इसके बाद दीपक पर रोली का तिलक लगाएं और साथ चावल का भी तिलक लगाएं---इसके बाद दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं--फिर दीपक में 1 रुपया रखें। रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें--इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें और परिवार के लोगों से भी आशीर्वाद लेने को कहें।---इसके बाद यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें,----- ध्यान रखे कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इन तीनों पूजन के समापन से घर में लक्ष्मी सदैव विद्यमान रहती हैं और स्वास्थ्य बेहतर रहता है।------ ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

धनतेरस यानि "भगवान धन्वंतरि" के दिन क्या करें -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

 



धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए *धनतेरस* का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या?

---दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
--एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
-धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।-------ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -102 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



 दोस्तों -मानव जीवन में यद्यपि अनन्त दुःख हैं तो  अनन्त सुख भी हैं | इस प्रकृति में "बड़े भाग्य मानस तन पावा "--इस उक्ति का वास्तविक भाव यह है --हमें करना क्या चाहिए ? --हमने अपने जीवन में अनन्त बातों का अनुभव किया है --पर मानव जीवन का सार ठीक से नहीं समझ पाए --इसका परिणाम यह हुआ --जीवन भर राग -द्वेष में उलझे रहे | व्यक्ति की शत्रुता व्यक्ति से होती है --पर दिवंगत होने के बाद -वही व्यक्ति गलानि का अनुभव करता है | मेरा जन्म राजयोग  था --यह अवधि केवल 10 वर्ष तक थी | इसके बाद --राहु की दशा ने मेरे जीवन रूपी अग्नि में घी डालने का सदा काम किया | इसके बाद गुरु की दशा ने शिखर पर विराजमान कर दिया --फिर मैं तन ,धन और मन का ऐसा राजा बना --जिसनें मुझे -सशक्त तो दुनिया की नजर में बना दिया --पर मैं ये भूल गया -शास्त्री बाद में हुआ पहले अनपढ़ माता पिता के सान्निध्य में रहा --इसलिए माता पिता को  शास्त्रों से नहीं अनपढ़ता से जीत सकता था | जीवन में कईबार हम शास्त्र सम्मत बातों पर जीने का प्रयास करते हैं --इसका परिणाम यह होता है --हम सबकुछ खो देते हैं --हमारे पास केवल धन रूपी अहंकार होता है ,शास्त रूपी अहंकार होता है --जिनमें प्रमाण देने में तो अच्छे लगते हैं किन्तु यह थोड़ी देर के लिए होते हैं --इसके बाद स्वयं में ग्लानि होती है --जिसकी वजह से अकेला जीवन होता है | अपने जीवन में मुझे अनन्त कष्टों का सामना करना पड़ा --जिसमें एक ऐसा दखद पल था ---पिता दिवंगत हो चुके थे | भाई -भाई की दुश्मनी चरम सीमा पर थी | एक तरफ अनुज था -तो एक तरफ मेरी भार्या थी --दोनों परस्पर अपशब्दों के बौछार कर रहे थे | समाज के सभी लोग ठहाके लगा रहे थे | माँ बीच में तमाशा देख रही थी | सभी परिजन आनन्द ले रहे थे | एक शास्त्री होकर मुझे मरने के सिवा कुछ सूझ नहीं रहा था | -यह दृश्य कई दिनों तक मरने को लाचार कर रहा था | हमने ज्योतिष में यह पाया है --ज्योतिष सच है पर ज्योतिष दिखाने की नहीं अमल करने की चीज है --इस संसार में सबसे बड़ी भूल व्यक्ति से यही होती है -ज्योतिष को जीवन पर्यन्त दिखाता रहता है --उसे करना क्या चाहिए इस पर अमल नहीं करता है ---जिसका परिणाम हर व्यक्ति को ज्योतिषी में पोपगण्डा दीखता रहता है | इसका उदहारण मैं स्वयं हूँ | --जिस दिन मिझे यह विदित हुआ --उस दिन से जीवन में कोई पराया नहीं दिखा ,उस दिन से सभी अपने लगने लगे ,उस दिन से वास्तव में मैं सुखी हुआ | कईबार व्यक्ति के मन में एक प्रश्न उठता -रहता है --क्या भगवान दीखते हैं या सच में भगवान से व्यक्ति की बात होती है ---तो कईबार हमने अनुभव किया है -स्वप्न में कईबार अनुभव किये हैं -अगले दिन वही बात सच होती है --या किसी न किसी प्रकार से हर जिज्ञासु व्यक्ति का मार्ग ईस्वर किसी न किसी रूप में सरल अवश्य करते हैं | मेरे जीवन के  अंतिम  समय में भी राजयोग चल रहा है --और जीवन का अंतिम भाग चल रहा है | अतः जीवन जीने की एक कला है --फिर कब किससे  मिलें न मिलें --इसके लिए शत्रुता क्यों -प्रेम क्यों नहीं --इसी पथ पर चलते रहना चाहता हूँ | आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



रविवार, 20 अक्टूबर 2024

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व और पूजा विधि को जानने हेतु -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ




 24 अक्टूबर को कार्तिक कृष्ण पक्ष की


अष्टमी पर पडऩे वाली अहोई माता का व्रत है। करवा चौथ के 4 दिन बाद और दीपावली से 8 दिन पूर्व पडऩे वाला यह व्रत, पुत्रवती महिलाएं ,पुत्रों के कल्याण,दीर्घायु, सुख समृद्घि के लिए निर्जल करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सायंकाल घर की दीवार पर of कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। इसके साथ ही स्याहू माता अर्थात सेई तथा उसके बच्चों के भी चित्र बनाए जाते हैं। आप अहोई माता का कैलेंडर दीवार पर लगा सकते हैं। पूजा से पूर्व चांदी का पैंडल बनवा कर चित्र पर चढ़ाया जाता है और दीवाली के बाद अहोई माता की आरती करके उतार लिया जाता है और अगले साल के लिए रख लिया जाता है। व्रत रखने वाली महिला की जितनी संतानें हों उतने मोती इसमें पिरो दिए जाते हैं। जिसके यहां नवजात शिशु हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे अहोई माता का व्रत अवश्य करना चाहिए ।
-----विधि--------अहोई माता का आशीर्वाद पाने के लिए पुत्रवती महिलाएं करवाचौथ की भांति ही प्रात: तड़के उठकर सरगी खाती हैं तथा सारा दिन किसी प्रकार का अन्न जल ग्रहण न करते हुए निर्जला व्रत करती हैं। सायंकाल को वे दीवार को खडिय़ा मिट्टी से पोतकर उस पर अष्ट कोष्ठक (आठ कोनों वाली) की अहोई माता का स्वरूप बनाकर उनमें लाल गेरू और पीले रंग की हल्दी से सुन्दर रंग भरती हैं। साथ ही स्याहू माता (सेई) के बच्चों के भी चित्र बनाकर सजाती हैं। तारा निकलने से पहले अहोई माता के सामने जल का पात्र भरकर उस पर स्वास्तिक बनाती हैं तथा उसके सामने सरसों के तेल का दीपक जलाकर अहोई माता की कथा करती हैं।--अहोई माता के सामने मिट्टी की हांडी यानी मटकी जैसा बर्तन रखकर उसमें खाने वाला सामान प्रसाद के रूप में भरकर रखा जाता है। इस दिन ब्राह्मणों को पेठा दान में देना अति उत्तम कर्म माना जाता है।----पूजन सामग्री--------अहोई माता के व्रत में सरसों के तेल से बने पदार्थों का ही प्रयोग होता है। महिलाएं घरों में मट्ठियां, गुड़ से बना सीरा, पूड़े, गुलगुले, चावल, साबुत उड़द की दाल, गन्ना और मूली के साथ ही मक्की अथवा गेहूं के दाने रखकर उस पर तेल का दीपक रखकर जलाती हैं तथा अहोई माता से परिवार की सुख-शांति, पति व पुत्रों की रक्षा एवं उनकी लम्बी आयु की कामना से प्रार्थना करती हैं तथा तारा निकलने पर उसे अर्ध्य देकर व्रत का पारण करती हैं। अहोई माता के पूजन के पश्चात खाने वाला सामान घर के नौकरों आदि को भी प्रसाद रूप में अवश्य देना चाहिए।------ इस व्रत में बच्चों को प्रसाद रूप में तेल के बनाए गए सारे सामान के अजारण बनाकर दिए जाते हैं तथा घर के बुजुर्गों सास-ससुर को व्रत के पारण से पहले उनके चरण स्पर्श करके बया देकर सम्मानित करने की भी परम्परा है जिससे प्रसन्न होकर वे बहू को आशीर्वाद देते हैं।-------------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 19 अक्टूबर 2024

छलनी से क्यों देखते हैं करवा चौथ का चांद-पढ़कर अनुभव करें -ज्योतिषी झा मेरठ


 कार्तिक मास में जब कृष्ण पक्ष आता है उसकी चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है। यह व्रत सुख, सौभाग्य, दांपत्य जीवन में प्रेम बरकरार रखने के लिए होता है। इसके साथ ही परिवार में रोग, शोक और संकट को दूर करने के लिए भी होता है। सुबह से रखा जाने वाला व्रत शाम को चांद देखने के बाद ही खोला जाता है। चांद देखने की भी एक खास परंपरा है, इसे छलनी में से ही देखा जाता है। ऐसा क्यों है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी..।--भाइयों ने किया था बहन से छल करवा चौथ व्रत कथा के मुताबिक प्राचीन काल में एक बहन को भाइयों ने स्नेहवश भोजन कराने के लिए छल से चांद की बजाय छलनी की ओट में दीपक जला दिया और भोजन कराकर व्रत भंग करा दिया। इसके बाद उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब दोबारा करवा चौथ आया तो उसने विधि पूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्ति हो गई। उस करवा चौथ पर उसने हाथ में छलनी लेकर चांद के दीदार किए थे।--यह भी है एक कहानीइस दिन चांद को छलनी के जरिए देखने की यह कथा भी प्रचलित है। इसका यह महत्व है कि कोई भी छल से उनका व्रत भंग न कर सके, इसलिए छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोलने की परंपरा विकसित हो गई। इस दिन व्रत करने के लिए इस व्रत की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है।---सांस का आशीर्वाद लेकर देती हैं गिफ्ट करवा चौथ के व्रत वाले दिन एक चौकी पर जल का लौटा, करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में शक्कर और रुपए रखे जाते हैं। पूजन में रोली, चावल, और गुड़ भी रखा जाता है। फिर लौटे और करवे पर स्वस्तिक का निशान बनाया जाता है। दोनों को 13 बिंदियों से सजाया जाता है। गेहूं के तेरह दाने हाथ में लिए जाते हैं और कथा सुनी जाती है। बाद में सासू मां के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेकर उन्हें भेंट दी जाती है। चंद्रमा के दर्शन होने के बाद उसी चावल को गुड़ के साथ चढ़ाना होता है। सभी रस्मों को पूरी शिद्दत के साथ करने के बाद ही भोजन ग्रहण करने की परंपरा है।---1. यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं।--2. यह व्रत 12 से 16 साल तक लगातार हर साल करने की परंपरा है।--3. सुहागिन महिलाएं व्रत से एक दिन पहले सिर धोकर स्नान करने के बाद हाथों में मेहंदी और पैरों में माहुर लगाती हैं।---4. चतुर्थी को सुबह चार बजे महिलाएं सूर्योदय से पूर्व भोजन करती हैं। इसमें दूध, फल और मिठाइयां आदि व्यंजन शामिल किए जाते हैं। सूर्योदय के पहले किया गया यह भोजन सरगही या सरगी कहलाता है।--5. व्रत करने के बाद रात को 16 श्रंगार कर चंद्रोदय पर छलनी से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पति का चेहरा देखने की रस्म होती है। इसके बाद पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर व्रत खुलवाता है।------ ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

शरद पूर्णिमा-यानी-कोजागरी पूर्णिमा-की विशेषता-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद पूर्णिमा का एक नाम "कोजागरी पूर्णिमा" भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है?----अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।----आयुर्वेदाचार्य वर्षभर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधीश 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।----शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।-----शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं।---पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।--------ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका -


ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -101 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 दोस्तों -हर व्यक्ति में बहुत गुण तो अपगुण भी बहुत होते हैं | केवल माता पिता या गुरुजन या सत्संग के द्वारा किसी भी व्यक्ति को सही दिशा मिल सकती है | जब व्यक्ति माता -पिता या गुरुजनों या सत्संग के ऊपर तर्क और कुतर्क करने लगता है --तो दिशाहीन हो जाता है --फिर उसे उठना या गिरना निरन्तर बना रहता है | --अस्तु --मेरी कुण्डली में जितने सशक्त -मजबूत ग्रहों के प्रभाव थे उससे कई गुणा हानिकारक ग्रहों के भी प्रभाव थे --इसलिए  माता -पिता एवं गुरुजनों तथा सत्संग से -जब -जब विमुख हुआ, तब -तब बहुत कुछ खोता गया | युवावस्था हो साथ ही राहु की विपरीत दशा हो व्यक्ति स्वतन्त्र हो तो --व्यक्ति अग्नि में घी डालने का काम निरन्तर करता रहता है --उस समय उसे तर्क और कुतर्क घेरे रहते हैं --फिर वो बहुत कुछ पाने की जगह खोता रहता है | खासकर मेरे साथ ऐसा ही हुआ | अनपढ़ समाज और परिवार में मैं शास्त्री हुआ, यह अभिमान था --पर यह समझ नहीं थी अनपढ़ को शास्त्रों से नहीं प्रेम से जीता जा सकता है | इसका परिणाम यह हुआ - धन कमाना है बड़ा व्यक्ति बनना है --यह सोच तो मूर्ख व्यक्ति की भी होती है --तो फिर मुझमें और  अनपढ़ में क्या अन्तर था ---कुछ भी नहीं ---इसका परिणाम यह हुआ --जो परिवार धन के अभाव में एक था ,एक सहमति थी ,एक थाली में सभी समाहित थे --सबने राजा का सपना देखा --परिवार के सभी सदस्य धन के राजा बनें ---जब धन के राजा बनें --तो फिर धर्म और अधर्म का ज्ञान कहाँ होता है | ऐसी स्थिति में युद्ध धर्म -अधर्म पर ही आधारित होता है --पर वास्तव में यह युद्ध अहंकार का होता है ---जो एकबार शुरू हो जाय तो अपने  चपेट में सबका नाश कर देता है | जीवन भर के लिए सबसे पहले अशांत सबका जीवन हो जाता है | धन तो होता है -भाई -भाई का प्रेम नहीं होता है | धन  तो होता है माता -पता दो भागों बंट जाते हैं | धन तो होता है --समाज दो गुटों से उसी परिवार में जुड़ा रहता है | अपने -अपने  दुःखों के तर्क तो होते  हैं किन्तु दवा शान्ति नहीं अशान्ति होती है --इस युद्ध में --भाई --भाई को खो देता है ,माता पिता सन्तानों को खो देते हैं ,समाज में  उदाहरण हो जाता है --फिर समाज का दूसरा घर भी इसी का शिकार होता है | जीते जी तो सहानुभूति नहीं होती है --पर मरने पर शान्ति  के लिए -पिंडदान ,यज्ञ ,ब्राहण भोजन --अनन्त प्रकार के दान होते हैं --यह कहकर  फलाने अपने थे,विद्वान थे ,दानी थे ,अच्छे थे  --जीते जी तो पराये से भी बदतर होते है | ---हमने  अपने  जीवन काल में यही अनुभव किया है | आगे की चर्चा आगे करेंगें ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी  झा मेरठ ---ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को  इस पेज पर पढ़ें या सुनें ---https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -100 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 मेरे प्रिय पाठक गण --आत्मकथा वस्तुतः मेरा भूत ,वर्तमान और भविष्य का लेखा जोखा है | मैं अपनी आत्मकथा से बहुत कुछ सीखने का प्रयास करता हूँ --साथ ही जो  गलती मुझसे हुई है -वो मेरे इर्द -गिर्द रहने वाले न करें यही एक छोटा सा प्रयास है | आज मेरे पिता नहीं हैं -जब थे तो कईबार  अहसास  होता था -बहुत निर्दयी हैं | पर आज जब हम खुद पिता हैं -तो अपने बच्चों को सही दिशा देने के लिए कठोर निर्णय लेता रहता हूँ --तो मेरे बच्चों को भी लगता है मैं बहुत निर्दयी हूँ | इसका अभिप्राय यह है -व्यक्तिगत सोच और जिम्मेदारी की सोच में बहुत अन्तर होता है | आज जब  हम  खुद अपनी संतान के लिए कठोर निर्णय लेते हैं तो पिता कैसे कठोर निर्णय नहीं लेते --यह समझ व्यक्ति को जब आती है --तब तक पुत्र अपने पिता को खो देता है | खासकर मेरे साथ ऐसा ही हुआ --आज अपनी गलती की माफी चाहकर भी नहीं प्राप्त कर सकते --और इस कारण हम पूर्वजों के दोषी हो गए | वास्तव में व्यक्ति की  अनन्त भूल के कारण भी पितृदोष बनता है --जो प्रत्यक्ष उदाहरण होता है | मेरे जीवन में पिता का स्नेह बहुत रहा --मुझमें जो गुण हैं वो  पिता एवं आराध्य गुरु तथा सत्संग के  प्रभाव से प्राप्त हुए --जिसको  कुण्डली भी दर्शाती है --सिंह लगन का हूँ -सूर्य + मंगल की युति  लगन में हैं --यह बहुत ही प्रभावशाली योग है | चन्द्रमा उच्च का कर्म क्षेत्र  में है --इसका भावार्थ उत्तम  दर्जे का रहन -सहन से सदा युक्त रहा हूँ | जब पिता की छत्रछाया में था -गरीबी भले ही थी -उत्तम वस्त्र कर्ज लेकर भी पहनाते थे | एकबार दशवीं का पेपर देना था -धन नहीं था तो पिता अपनी घडी 30 रूपये  में बेचकर फीस जमा करि थी --यह चन्द्रमा का प्रभाव था | मेरी कुण्डली में बुध -शुक्र की युति धन +वाणी के क्षेत्र में हैं ---इसका प्रभाव मुझे बाल्य्काल से मिला --शिक्षा में भले ही निपुण नहीं था --पर मन्त्र जिह्वा पर होते थे | कोई मददगार नहीं थे --पर अपनी वाणी +कला  से मोह लेते थे --अतः सबका प्रिय  होता था | मेरी कुण्डली में गुरु तृतीय भाव और शनि भाग्य भाव में होने के कारण जितनी हानि हुई --लाभ भी उतना ही मिलना था | अतः पिता के बाद पतनी की छत्रछाया बहुत ही मजबूत रही | अपनों से बेहतर मददगार पराये बहुत रहे | ये दो योग मानों अपनी गोद में ऐसे उठाये --कि गिराने वाले थक हम गए गिरे नहीं | मेरे पिता अनपढ़ थे -यही आशीर्वाद मुझे मिला -जो हम विद्वान बनें --मेरे पिता मुझे विद्वान देखना चाहते थे --तब राहु की दशा चल रही थी --जो सम्भव नहीं था --पर आशीर्वाद का प्रभाव --गुरु की दशा आते ही हम विद्वान बन गए | पिता के आशीष के आगे तमाम विपरीत ग्रह पराजित हो गए --यह मेरा पुरुषार्थ नहीं था --पिता--एवं  पतनी के अनन्त योगदान से संभव हुआ | जब मैं 13 वर्ष का था --तो श्रीमालीजी का राशि फल स्टेशन पर खरीदकर पढता रहता था --10 रूपये में | सबसे पहली नजर मेरी मंगल पर गयी --जो तीन भवन के योग को दर्शा रहा था --तब राहु की दशा चल रही थी --गरीबी चरम सीमा पर थी --पर विस्वास से लवालव था ---इस बात को सत्य होने में कई साल लग गए | जब हम 30 वर्ष के हुए तो पहला भवन मिला ,शिक्षा की फिर से शुरुआत हो गयी ,बच्चे भी पढ़ते थे -- मैं खुद भी संगीत की दुनिया में सीखने उतर गया --| सही मायने में ज्योतिषी तो मैं बाल्य्काल से हूँ --पर जब हम 50वर्ष  के हुए तब मुझे लगा --सही ज्योतिष इसे कहते हैं --जिसमें किसी की बात दर्पण की तरह दिखने लगे --पूछने की जरुरत ही न पड़े | कईबार ऐसा भी लगता है -मैं सबसे घटिया ज्योतिषी हूँ --तब साधना में लीन होने लगता हूँ तो फिर भगवत कृपा से मार्ग  प्रशस्त होने लग जाता है | --अब मैं अपनी कुण्डली की उन बातों पर भी प्रकाश डालने की कोशिश करूँगा --जिसकी  वजह से विद्वान कम --मूर्ख में ज्यादा हूँ | आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



बुधवार, 14 अगस्त 2024

रक्षाबंधन का इतिहास एवं महत्व -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अभिमान को इसी दिन चकानाचूर किया था। इसलिए यह त्योहार 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्योहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं।रक्षाबंधन के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। तभी से राखी बाँधने की प्रथा शुरू हुई। हिंदू पुराण कथाओं के अनुसार, महाभारत में, पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।एक अन्य उदहारण के अनुसार चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और वह भी संकट के समय बहन कर्मवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ आ पहुँचा था। दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बाँधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधते हैं।रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई को प्यार से राखी बाँधती है और उसके लिए अनेक शुभकामनाएँ करती है। भाई अपनी बहन को यथाशक्ति उपहार देता है। बीते हुए बचपन की झूमती हुई याद भाई-बहन की आँखों के सामने नाचने लगती है। सचमुच, रक्षाबंधन का त्योहार हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलाता है।आजकल तो बहन भाई को राखी बाँध देती है और भाई बहन को कुछ उपहार देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। लोग इस बात को भूल गए हैं कि राखी के धागों का संबंध मन की पवित्र भावनाओं से हैं।यह जीवन की प्रगति और मैत्री की ओर ले जाने वाला एकता का एक बड़ा पवित्र पर्व है। आप सभी को मेरी ओर से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ..... - -दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut--- आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

मंगलवार, 13 अगस्त 2024

"रक्षा बंधन" विशेष -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 "रक्षा और भावना का नेह-" पगा सूत्र "

राखी संस्कृत शब्द *रक्ष* से बना है जिसका तात्पर्य रक्षा करना है। श्रावण की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले पर्व रक्षाबन्धन का उद्देश्य भी रक्षा से सम्बंधित है। इसमें स्त्रियां चांदी जैसे चमकीले और सोने जैसे सुनहरे धागों से ओतप्रोत रंग-बिरंगे फूलों से सजी राखियां अपने भाइयों की कलाई पर बांधकर उनकी सुख-समृद्धि और मंगल की कामना करती हैं।
दूसरी ओर उनसे अपने लिए हर प्रकार के सहयोग और पूर्ण सुरक्षा की कामना करती हैं। बहनों द्वारा इस दिन भाई की दोनों भौंहों के मध्य तिलक करने का तात्पर्य उसके आन्तरिक प्रकाश को जागृत कर उसे जीवन के कल्याणकारी लक्ष्य की ओर अग्रसर करना है। माथे पर तिलक के साथ भाइयों को विविध प्रकार के सुस्वादु मिष्टान्न भी बड़े चाव, श्रद्धा और प्रेम से खिलाये जाते है जिससे उनका व्यवहार न केवल बहनों के लिए अपितु समस्त नारी जाति के लिए मृदुल और विनम्र बना रहे।
भारतीय संस्कृति में श्रावण मास का विशेष महत्व है। हमारे शास्त्रों में श्रावण मास की पूर्णिमा विविध रूपों में मान्य है। राखी के धागे मात्र सूत्र के होने पर भी जीवन को पावन और नैतिकतापूर्ण बनाते हैं साथ ही हमारे समस्त जीवन में सूत्र रूप में नैतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना में सहयोगी बनते हैं। ये कच्चे धागे स्वयं में मजबूत न होते हुए भी जिसकी कलाई पर बांधे जाते हैं उससे न केवल अटूट संबंध बनाते हैं वरन् नि:स्वार्थ प्रेम, शुचिता और आध्यात्मिक बन्धन में बांधकर सदैव-सदैव के लिए *वसुधैव कुटम्बम्* के बन्धन में बांध देते हैं जहां वर्गभेद, जातिभेद और विभिन्न विचारों का कोई महत्व नहीं रहता।
असुर पुलोमा की पुत्री थीं. उन्हें पौलौमी भी कहते हैं. इंद्र ने इस अक्लमंद और सुंदर कन्या के बारे में सुन रखा था. इसलिए पुलोमा को युद्ध में हराने के बाद उन्होंने दंडस्वरूप पुलोमा से उसकी बेटी शची मांग ली. पुलोमा को लगा कि उसकी बिटिया इसी बहाने देव-स्थान में पहुंच गई तो देवताओं से बार-बार की लड़ाई से भी मुक्ति मिल जाएगी. वैसे भी वह लड़ाई में हारा हुआ था. उसने इंद्र की बात मानते हुए शची इंद्र को सौंप दी.
--जब इंद्राणी ने बांधी अपने पति को राखी--
भविष्य पुराण के मुताबिक, एक बार देवता और दानवों में 12 साल तक युद्ध हुआ लेकिन देवता विजयी नहीं हुए. हार के डर से घबराए इंद्र पहुंचे देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेने. तब बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधिविधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए. स्वास्तिवाचन के साथ उन्होंने ब्राह्मण की मौजूदगी में वह सूत्र इंद्र की दाईं कलाई पर बांधा. जिसके बाद इंद्र की देव-सेना ने दानवों को युद्ध में पटक दिया.
काबिल-ए-जिक्र यह भी है कि इंद्राणी ने इंद्र को रक्षा सूत्र बांधते हुए जो मंत्र पढ़ा था, उसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है. यह मंत्र था- ‘
*येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल । !------ ॐ|--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -----https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut ----उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

सोमवार, 22 जुलाई 2024

शिव की उपासना अनेक विधयों से करें -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "भगवान शिव अजातशत्रु हैं । शिव की उपासना कोई भी अपनी -अपनी सामर्थ के अनुसार कर सकता है । जल है तो जल से ही खुश करें ,धन है तो धन से ही प्रसन्न करें ,अन्न है तो अन्न से ही खुश करें ,मन है तो मन से ही भोले खुश हो सकते हैं ,तन है तो तन से भी खुश होते हैं । अगर कुपात्र हैं तो भी मोह सकते हैं ----शिवम भूत्वा शिवम जपेत् --केवल आपको एक क्षण के लिए शिव के लिए होना होगा फिर कृपा अवश्य होगी भोले की । --------कलौ चण्डी महेस्वरः ---कलियुग में या तो माँ भवानी की शरण से कल्याण होगा या भवानी पत्ती शिव की शरण से -----शिव या माँ भवानी की पूजन के लिए कुछ विशेष पर्व हैं -जिस पर्व पर हम क्षणिक त्याग या क्षणिक समर्पण से समस्त कामनाओं को प् सकते हैं । सबसे बड़ी बात इनके दरबार में पात्र या कुपात्र कोई भी आ सकता है और यदि दरबार में न आ पाये तो केवल दर्शन से भी विशेष फल प्राप्त कर सकता है । जितनी भी पूजाएं हैं वो समस्त पूजा नियम एवं पात्रता के आधार पर है किन्तु शिवरात्रि इन नियमों से पड़े है -तभी तो लाखों भक्त शिवरात्रि पर या नवरात्रि पर उमर पड़ते हैं । -----------गेहूं से बने पकवान से शिव की पूजा करने से वंश की उन्नति {वृद्धि }होती है । -----मूंग से पूजा करने पर सुख की प्राप्ति होती है । कंगनी {धान }-से शिव पूजन करने से -धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है । -- सबसे उत्तम पूजन जलधारा होती है और इससे शांति मिलती है । --अगर मन न लगता हो किसी काम में ,दुःख की विशेषता हो घर में ,क्लेश विशेष हो घर में ,तो दूध से अभिषेक शिव का करने से शांति मिलती है । --सहस्रनाम,के पाठ शिव समक्ष घृत {घी }से करने से संतान सुख मिलता है । -----सुगन्धित तेल से अभिषेक शिव करने से भोग सुख मिलता है । ---शहद {मधु } से अभिषेक शिव का करने पर टीवी -राजयक्ष्मा रोग से मुक्ति मिलती है । ----गन्ने का रास से अभिषेक शिव का करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । -----गंगाजल से शिव का अभिषेक करने से भोग +मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है । महामृत्युंजय के जाप शिव समक्ष करने पर आयु -आरोग्य की प्राप्ति होती है । आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -

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रविवार, 14 जुलाई 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -99 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


हर व्यक्ति का जीवन कैसा रहेगा यह पृथ्वी पर आगमन से लेकर 18 वर्ष उम्र तक निर्धारित हो जाता है | यह बात जन्मपत्रिका में निर्धारित रहती है | भले ही किसी कारण बस सही मार्गदर्शन समयानुसार न हो किन्तु ज्यों -ज्यों उम्र बढ़ती जाती है -उसी प्रारूप में व्यक्ति ढलता जाता है --इसे वह ईस्वर की कृपा मानता है या प्रारब्ध की घटना | ---अस्तु --मुझे अपने जीवन की सही यादें -10 वर्ष के बाद की हैं --जिन्हें सच  मानता हूँ | मेरे पिता अनपढ़ थे -किन्तु हिम्मत के बहुत ही बलवान थे | तार्कित बुद्धि से सबको पराजित कर देते थे | उत्तम दर्जे का रहन -सहन था जबकि जेब में कुछ नहीं होता था | मेरा राजयोग दस वर्ष तक था तभी तक जो मिला सो मिला | मेरा दारिद्र योग शुरू हुआ तो लबे समय समय तक पतन का योग चलता रहा | किसी तरह गुजर -बसर करते रहे | घर में भले ही दरिद्र योग चल रहा था --मेरा घर से गमन दस वर्ष में ही हो गया | शिक्षा -के  साथ धन का उपार्जन बाल्यकाल 10 वर्ष से ही मेरा शुरू हो गया | मेरी शिक्षा दीक्षा में पिताजी का कोई योगदान नहीं रहा --फिर भी मेरा सदा समर्पण भाव घर के प्रति रहा | अपने घर में केवल मैं ही सशक्त था -चाहे शिक्षा हो या सोच --पर हमारी कभी चलती नहीं थी | अपने सामने पिता को कई ऐसे फैसले लेते देखा जिसका परिणाम पतन की और ले गया | दीदी की शादी की जीजा को पढ़ाने का बोझ उठा लिया --जबकि हमारे घर में दरिद्र योग चल रहा था --हमने युद्ध किया तब जीजा अपने घर से पढ़ने लगे पर फ्री की खाने की सदा आदत पड़ गयी --जो आजतक नहीं बदली | हमारा एक बगीचा था -जिसे एक ताऊ को दिया बदले में घर के बगल की जमीन ली --किन्तु एकदिन ऐसा आया -वह जमीन भी लेली और बगीचा युद्ध का अखाडा बन गया | पिता के साथ सदा युद्ध होता रहा --और मैं देखता रहा  | मेरे पिता चाहते तो शारीरिक श्रम से धन का उपार्जन करते किन्तु --जीवन भर युद्ध करने का निर्णय लेते रहे ---एक दिन ऐसा आया  हम एक शास्त्री थे , मुझे शास्त्र की जगह --शस्त्र उठाने पड़े |  मुझे क्रम से सभी परिजनों का शत्रु बनना पड़ा | हमने माता पिता के होते हुए --मामा से शत्रुता करनी पड़ी --क्योंकि सक्षम और शिक्षित होते हुए मेरे घर को सही दिशा नहीं दी | मुझे दीदी +जीजा से शत्रुता करनी पड़ी --ये भी  सक्षम और शिक्षित थे  पर मेरे घर को सही दिशा नहीं दी | अंत में जिस अनुज को पुत्र की तरह मानते थे --माता पिता ने --उसे ही  मेरा शत्रु बना दिया --पर यह अशिक्षित था  और मैं शिक्षित --हम दोनों के बीच धन का ऐसा युद्ध शुरू हो गया  --जिसका समाधान मेरे पास नहीं था --और हमने पलायन करना बेहतर समझा  |  एक शास्त्री होने के नाते  माता पिता से अनन्त प्रकार के यज्ञ कराये --जिसका परिणाम बहुत जल्दी मिला --माता पिता धनाढ्य हुए  | फूस का घर महल में बदल गया | ब्याज का कारोबार लाखों में चलने लगा | मकान से किराये आने लगे  | सभी शत्रु परिजन माता पिता के सान्निध्य में रहने लगे | एक तरफ मैं था --दूसरी तरफ -दीदी -जीजा ,माता पिता ,अनुज ,मां -मामी --इनके साथ -साथ सभी परिजन  | फिर क्या था --जन्मदाता  होने के बाद भी ऐसा लगता था --मानों माँ की कोख से मैं पैदा ही नहीं हुआ | मेरे सामने एक जहर खाने का रास्ता था ---इससे मेरे बच्चे अनाथ हो जाते | दूसरा पलायन का -- सबकुछ छोड़कर किसी शहर  में रहने लगते | यह सभी चाहते भी थे  |  पर यहाँ एक समस्या थी --पतनी के गहने बेचकर पिता का कर्ज चुकाया था | सारी कमाई पिता को दे चूका था , भवन निर्माण में मेरे भी पैसे लगे थे  | पलायन मेरी पतनी को मंजूर नहीं था | इसका परिणाम यह हुआ --माता पिता और अनुज के मुँह से अपशब्द तो बहुत छोटी बात थी ---पतनी और बच्चों को बहुत ही प्रताड़ित  करते थे  | हमने शत्रु संहार के लिए बहुत यज्ञ यजमानों के लिए कराये जीवन में --किन्तु अपने परिजन के लिए ऐसा  सोच भी नहीं सकता था  |  क्योंकि भले ही परिजन मुझे अपमानित कर रहे थे किन्तु विवेक मेरा सदा जागृत रहा  | ऐसी स्थिति में -मुझे कईबार बहुत ही भयानक दृश्य देखने को मिलता था | -पिता और पतनी का युद्ध ,माँ और पतनी का युद्ध ,अनुज और पतनी का युद्ध ,मामा और पतनी का युद्ध ,दीदी और पतनी का युद्ध  ---यह दृश्य  मुझे बारबार कायरता को दर्शाता था | कईबार मैं जीते जी मरा ----पर पाषाण की तरह जीता रहा | मुझे नहीं चाहिए ऐसा युद्ध जो अपनों से करना पड़े ---पर होनी बलवान होती है |  आज मैं जहाँ खड़ा हूँ --वो भिक्षा में मिला हुआ जीवन है | आज मेरे पास धन भी है ,भवन भी है ,मान है सम्मान है --पर यह उपकार भार्या का है | भले ही मैं कहूं ये है वो है --पर मेरी आत्मा सदा धिक्कारती रहती है |  आगे की चर्चा अगले भाग में करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


गुरुवार, 11 जुलाई 2024

कुण्डली के विशेष भावों को -जानें -ज्योतिष कक्षा -पाठ 55 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


 जन्मकुण्डली के द्वादश भावों को जाना ---अब त्रिकोण ,केन्द्र ,पणकर,आपोक्लिम तथा मारक किन -किन भावों को कहा जाता है ? इसे नीचे लिखें अनुसार समझें ---

---1 ---त्रिकोण ---पंचम तथा नवम भावों को त्रिकोण कहते हैं | 

--2 ---केन्द्र -प्रथम ,चतुर्थ ,सप्तम तथा दशम --इन भावों को केन्द्र कहते हैं | 

--3 ---पणकर ---द्वितीय ,पंचम ,अष्टम तथा एकादश -इन चारों भावों को पणकर कहते हैं | 

--4 --आपोक्लिम ---तृतीय ,षष्ठ ,नवम तथा द्वादश --इन भावों को आपकलिम कहते हैं | 

---5 ---मारक ---द्वितीय तथा सप्तम भाव को "मारक " कहा जाता है | 

--ध्यान दें ---कुछ विद्वानों के मतानुसार द्वितीय तथा दशम भाव को पणकर एवं तृतीय तथा एकादश भाव को अपोक्लिम माना जाता है | कुछ अन्य विद्वान षष्ठ तथा अष्टम भाव को पणकर तथा द्वितीय एवं द्वादश भाव को अपोक्लिम मानते हैं | 

----अगले भाग में मूल त्रिकोण पर परिचर्चा करेंगें ------- ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 1 जुलाई 2024

कुण्डली के भावों को जानें -ज्योतिष कक्षा -पाठ 54 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


पाठकगण --वैसे ज्योतिष का फलादेश विशाल सागर की भांति है फिर भी कुछ उदहारण देना चाहता हूँ किस भाव से क्या -क्या जानकारी करनी चाहिए ----

----प्रथमभाव --सूर्य ,शरीर ,जाति ,विवेक ,शील ,आकृति ,मस्तिष्क ,सुख -दुःख ,आयु  | 

---द्वितीयभाव ----धन ,कुटुंब ,रत्न ,बंधन   | 

--तृतीय भाव ----पराक्रम ,सहोदर ,धैर्य   | 

---चतुर्थ भाव ---चन्द्र ,बुध ,माता ,सुख ,भूमि ,गृह ,सम्पत्ति ,छल ,उदारता ,दया ,चतुष्पद   | 

--पंचम भाव --गुरु ,विद्या ,बुद्धि ,संतान ,मामा   | 

--षष्ठ भाव ---शनि ,मंगल ,शत्रु ,रोग ,चिंता ,संदेह ,पीड़ा  | 

--सप्तम भाव -- भार्या ,प्रेम ,वैवाहिक जीवन  | 

--अष्टम भाव ---शनि ,मृत्यु ,आयु ,व्याधि ,संकट ,ऋण ,चिंता  ,पुरातत्व  | 

--नवमभाव ---सूर्य ,गुरु ,भाग्य ,धर्म ,विद्या ,प्रवास ,तीर्थ -यात्रा ,दान  | 

---दशम भाव --- सूर्य ,बुध ,गुरु ,शनि ,राज्य ,पिता ,नौकरी ,व्यवसाय ,मान -प्रतिष्ठा | 

---एकादश भाव --गुरु ,लाभ ,आय ,संपत्ति ,ऐश्वर्य , वाहन  | 

--द्वादश भाव --शनि ,व्यय ,हानि ,दंड ,रोग ,व्यसन  | ---ये सब कुण्डली  के भावों में स्थित समझें  | 

---ध्यान दें --अगले भाग में  त्रिकोण ,केन्द्र ,पणकर,आपोक्लिम  तथा मारक किन -किन  भावों को कहा जाता है  ? इसे लिखकर समझाने का प्रयास करेंगें  |  ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



शनिवार, 29 जून 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -98 -ज्योतिषी झा मेरठ


आत्मकथा के उत्तर भाग संख्या 98 में उन बातों पर प्रकाश डालना चाहता हूँ --जिसकी  वजह से वास्तव में व्यक्ति किसी का नहीं हो पाता है | तनिक सा प्रयास स्थिरता अवश्य प्रदान करता है | --मेरी  प्रथम मातृभाषा -माँ और मातृभूमि से  दूरी केवल 10 वर्ष का था तभी हो गयी | जब हम 20 वर्ष के हुए तो दूसरा परिवार विवाह से जुड़ा | यह मेरा दूसरा परिवार भी आगे चलकर बहुत विशाल हुआ --जिसमें दो बेटियां और एक बालक हुए | जैसे रोजगार की तलाश में लोग देश -विदेश जाते हैं सिर्फ धन के लिए --किन्तु मातृभूमि और परिवार का स्नेह निरन्तर व्यक्ति को अपनी ओर खींचता रहता है | ऐसे ही मुझे विवाह होने के बाद भले ही पतनी और बच्चों के हो गए --येन -केन प्रकारेण -अपने बच्चों को शिक्षा कैसे बढियाँ मिले ,उत्तम वर कैसे मिले ,उत्तम घर कैसे बेटियों को मिले ,ये बच्चे कैसे सुखी रहें ,इन्हें कोई कभी तकलीफ न हो -इसके लिए अपना सुख परित्याग कर निरन्तर योजनाओं में लगे रहे | यद्यपि मेरे माता पिता का परिवार बहुत ही कष्टप्रद रहा --इसकी अपेक्षा मेरे बच्चों को पूर्ण सुख मिला | शहर में भी घर मिला ,मातृभूमि पर भी घर मिला | मैं पढता भी था और अपने माता पिता का भरण -पोषण कैसे हो इसके लिए भी सतत प्रयास करता रहा | --जब मेरा परिवार हुआ तो माता पिता का भी ख्याल रखता था | अपने बच्चों के सुख के लिए अपने सुख  का बलिदान भी कर दिए  | बच्चों के लिए  हर प्रकार की व्यवस्था करने में कभी मन में कोई तकलीफ नहीं हुई | मैं खुद पैदल चलता हूँ पर मेरे बच्चे  कभी पैदल न चलें --यह सोच सदा रही  | बेटी के सुख के लिए  एक झटके में कई लाख लगा दिए --हँसते -हँसते --मेरी बेटी सुखी रहे  | बालक की शिक्षा में जितना लगे -मंजूर है | --पर  इतना होते हुए भी मैं सुखी नहीं हो सका  | पतनी बच्चों के साथ रहते हुए भी -माता पिता और सगे -सम्बन्धियों की यादें निरन्तर  मुझे दुःखी करती रहती हैं | --जिस अग्नि को साक्षी मानकर पतनी को लेकर आया था -आजतक उसका दिल से नहीं हो सका ---उस दिल में पहला माता पिता का परिवार बैठा रहता है और मैं चाहकर भी एक शास्त्री होकर भी बाहर नहीं निकल पाता हूँ | भार्या कईबार उलाहना देती रहती है -- कुछ दिन माँ के पास ही क्यों नहीं रहते हो ---जिस प्रकार व्यक्ति रोजगार की तलाश में बाहर आ जाता है -- वो व्यक्ति धन तो कमाता है ,उसकी यादें तो सताती रहती हैं किन्तु  --धन एक ऐसी व्यक्ति की जरुरत है --जिसके आगे व्यक्ति --अजीवाल या तो मृत्यु की तलाश करता है ताकि छुटकारा मिले या फिर केवल धन चाहिए  | --धन न जानें कितने सम्बन्धों को जोड़ता है --तोड़ता है --पर क्षणिक देर के लिए जोड़ता है -तोड़ता है --वास्तव में किसी का होने नहीं देता है | हमने अपने जीवन में यही अनुभव किया है | धन की वजह से न तो माता पिता और परिजन का हुआ ,न ही धन की वजह से अपनी पतनी और बच्चों का हो सका --अगर होता --तो --?पतनी कईबार बोली -वृन्दावन  घुमा दो ,हरिद्वार घुमा दो ? --हमने कईबार कहा -बड़ी बेटी की शादी हो जाने दो ,फिर बोला --छोटी बेटी की शादी हो जाने दो ,फिर बोला --बालक को कामयाब होने दो --न जाने बोलते -बोलते थक गया पर घुमा न सका | माता पिता कई बार बोले -ये कर दो -वो कर दो --केवल कहता ही रहा --ये करूँगा --वो करूँगा --करना तो दूर --वैवाहिक जीवन में जाने के बाद --और दूरी बनाली --अतः मुझे लगा है ---जीवन में धन के आगे सभी नतमस्तक होते हैं --चाहे -शास्त्री हो या ज्योतिषी ,चाहे -ज्ञानी हो या अज्ञानी -- आगे की चर्चा अगले भाग में करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...