ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

नन्दीमुख श्राद्ध शुभ कार्य में क्यों करना चाहिए -सुनें भाग -43 --ज्योतिषी झा 'मेरठ '



 नन्दीमुख श्राद्ध शुभ कार्य में क्यों करना चाहिए -सुनें भाग -43 --ज्योतिषी झा 'मेरठ '
जब भी कोई शुभ कार्य करें तो पहले नन्दीमुख श्राद्ध अवश्य करना चाहिए | नन्दीमुख श्राद्ध का अर्थ है -मातृपक्ष और पितृपक्ष को श्रद्धांजलि देना | ----ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-- उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

उत्तम संतान की प्राप्ति कैसे होती है -सविध बतायें -पढ़ें-ज्योतिषी झा मेरठ


  उत्तम संतान की प्राप्ति कैसे होती है -सविध बतायें -पढ़ें?




 
उत्तर --वत्स - जैसे -भवन की मजबूती नींव से होती है | किसी देश की मजबूती एकता से होती है | सृष्टी की मजबूती नियमावली से होती है --वैसे ही कर्मकाण्ड जगत में मानवों की मजबूती संस्कारों से ही संभव है | ये संस्कार सोलह प्रकार के होते हैं | प्रथम संस्कार का नाम है -"गर्भाधान संस्कार " प्राचीन समय में जब संतान की कामना होती थी तो दादी अपनी -अपनी पुत्र वधुओं से यह संस्कार की नियमावली बताती थी और सभी नियमावली का अनुशरण करतीं थीं | जो इस गर्भाधान संस्कार को सविध करती थी उसे उत्तम संतान मिलती थी | ----नियमावली ---जब भी संतान की कामना हो तो रजस्वला होने से छठे दिन पति -पतनी और सास के साथ पुरोहित जी से सविध पंचोपचार पूजन विधाता का कराना चाहिए | पति - पतनी परमपिता परमेस्वर से प्रार्थना जैसी संतान की कामना की करेंगें वैसी ही संतान संभव है | पति -पतनी का मिलन यदि सम संख्या में होगा तो उत्तम पुत्र होगा ,अगर दोनों का मिलन विषम संख्या में होगा तो उत्तम कन्या होगी | ---यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है -इस विधि से तो सभी पुत्र ही चाहेंगें तो फिर सृष्टि कैसे चलेगी ---तो जो भी यह प्रथम प्रयोग करेगा तो एकबार ही यह संभव है साथ ही -जो एकदशी को दोनों का मिलन होगा तो अधम संतान होगी ,यदि पूर्णिमा या अमावश्या का दोनों का मिलन होगा तो हानिकारक संतान होगी | मेरे विचार से इतने नियमों को जो निभाएगा उसे ही उत्तम संतान की प्राप्ति होगी जो आधुनिक समय में सभी नहीं निभा पायेंगें | ---सबसे बड़ी बात इस संसार में भले ही अत्यधिक संतान नहीं चाहते हों किन्तु दो संतान तो कम से कम सभी को जरूर चाहिए | और सभी एक कन्या और एक पुत्र की कामना अवश्य करेंगें क्योंकि कन्या की कामना वही कर सकता है जो धर्म को मानेगा और यह विधि धर्म पर ही आधारित है | इस विधि से धार्मिक व्यक्ति धर्म का पालन कर सकता है | आगे की चर्चा कल करेंगें ------ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरी जीवनी में नाटक की तरह अनन्त पात्र हैं-पढ़ें - भाग -43 ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -43 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी जीवनी में नाटक की तरह अनन्त पात्र हैं ,सभी पात्रों की अपनी -अपनी भूमिका है --तभी यह आत्मकथा बनी है | परमात्मा ने मेरी जीवनी में आठों रसों का स्वाद भरपूर दिया है | इस जीवनी रूपी स्वाद को जितना चखने का प्रयास करेंगें --आप में स्वतः ही निखार आता जायेगा क्योंकि यह सत्य पर आधारित है साथ ही आज जहाँ से मैं लिखने की कोशिश कर रहा हूँ --वहां केवल एक ही धेय है --आपका कल्याण --चूकि -रत्न क्या होते हैं ,ग्रह क्या होते हैं ,हमारे ऊपर प्रभाव क्यों पड़ता है ,हमें निदान क्या -क्या करने चाहिए ,कालसर्पदोष के 95 आलेख भी लिख चूका हूँ ,वास्तु दोष क्या होता है इसके भी 35 आलेख लिख चूका हूँ --देश -विदेश की तमाम बातों को लिख चूका हूँ ,लाखों लोगों को एकबार निःशुल्क ज्योतिष सेवा दे चूका हूँ | इसके बाद हमने अपनी सेवा महंगी कर दी ताकि कम लोग ही हमसे सम्पर्क कर सकें | --पर मानव हैं कामना की पूर्ति होते ही पुनः कामना शुरू होती है --साथ ही --अगर आप सभी पाठकगण पढ़े लिखे हैं ,रामायण हो ,वेद हों ,पुराण हों ,भागवत हो या फिर और ग्रन्थ सभी के बारे में बखूबी जानते हैं| हो सकता है --रत्न के बारे में ,आलेखों के बारे में या ज्योतिष के बारे में हमने आपको अपनी और तार्किक बुद्धि से खीचने का प्रयास किया हो --तो मुझे लगा --मेरी जीवनी ही एक ऐसा उदहारण हो सकती है --जो मेरी खुद की घटना है एवं अब हम उस पड़ाव पर हैं --जहाँ मुझे जरुरत की पूर्ति हो चुकी है --और आराधना की ओर जाना चाहिए | इस अवस्था में --मुझे लगता है आने वाला जो समय आयेगा --उसमें सुख कम दुःख लोगों को अति मिलेगा --तब लोगों को शान्ति की तलाश में -कैसे यकीन करेंगें कि सामने वाला जो कह रहा है --वो लोभ से या बरगलाने के लिए या फिर बहकाने के लिए --तब आपको सच की राह ,जीने की कला ,आप क्या हैं ,क्या आप जिसे शत्रु समझते हैं --वो शत्रु है ,आपके कर्तव्य क्या हैं ,आपको करना क्या चाहिए ---तथा प्रेरणा देने वाले ठीक हैं या उनकी कहानी आप जैसी ही है --तब यह जीवनी समझ में आएगी --आज भले ही न आये | बाबा तुलसी दास हों या भगवान व्यास --तब जब वो रहे तब ये दोनों ग्रन्थ --रामायण + भागवत -जिसे स्वयं भगवान स्वरूप आज मानते हैं ,वैसी ख्याति नहीं प्राप्ति की जैसे ख्याति आज मिल रही है | --अतः --जब मैं नहीं रहूँगा तब यह जीवनी एक कथा बन जायेगी --यह मुझे भरोसा एवं विस्वास है --क्योंकि मेरा ध्येय -व्यक्ति कल्याण है | मेरा ध्येय ज्योतिष को उस पायदान पर खड़ा करना है --जो उसका सही अस्तित्व है | ---यह बात साबित करने का भरसक प्रयास करूँगा --ज्योतिष का प्रभाव क्या सच में पड़ता है | कभी मैं कन्हैयालाल झा था ,कभी मैं ज्योतिषी झा था --अब हम खगोलशास्त्री झा हैं --इसका भावार्थ होता है --अन्वेषण करना ,सटिक बातों को बताना ,भेद -भाव रहित उत्तम समज की रचना करना --जन -जन का कल्याण कैसे हों ताकि सभी अपनी -अपनी जीवनी को ठीक से सवार सकें ---ॐ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -

तीन प्रकार के कौन से ऋण होते हैं सुनें -भाग 42 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 तीन प्रकार के कौन से ऋण होते हैं सुनें -भाग 42 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
प्रिय श्रोतागण ---प्रत्येक व्यक्ति तीन प्रकार का ऋणी होता है ---जिसे उसे चुकाना ही पड़ता है | यद्यपि इस संसार में मानव केवल ऋणी ही होता --लाख चाहे तब भी उऋण नहीं हो सकता है --फिर भी कुछ ऋण ऐसे हैं ---जिनको चुकाने का भरसक प्रयास अबश्य प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए | --ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-- उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

सृष्टि में वर्ण व्यवस्था की क्यों जरुरत पड़ी--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


  सृष्टि में वर्ण व्यवस्था की क्यों जरुरत पड़ी विस्तार से बतायें -गुरुदेव-पढ़ें?




--
उत्तर -वत्स --जैसे देश चलाने के लिए शासन की जरुरत होती है वैसे ही परमात्मा की सृष्टि कैसे सुदृढ़ चलती रहे इसके लिए मानवों को चार भागों में विभाजित किया --साथ ही सबसे बड़ी बात -नियमावली ,जो आज है वही थी पर जो विचार कल थे वो आज नहीं हैं --इसका प्रभाव यह हुआ -तब एक दूसरे से सब जुड़ें थे पर आज सभी स्वतंत्र हैं | ---वर्ण व्यवस्था में पहला -ब्राह्मण का स्थान पहला था -पर नियम ये थे -ब्राहण वही बनेगा जो -सत्यवादी ,शिक्षित {वेदों -पुराणों }आचरणवान ,कर्मनिष्ठ और नियम करने वाला और कराने वाला ही ब्राहण होगा | राजा को भी मार्ग बतायेगा पर सिंहासन पर विराजमान नहीं होगा | क्षत्रीय --अर्थात जिसकी छत्र छाया में सभी सुखी रहें -साथ ही -अपना सुख का त्यागी होगा ,सिंहासन का सेवक समझकर विराजमान होगा -साथ ही ब्राह्मण की बातों को अमल करेगा और गुरु समझेगा वही क्षत्रिय होगा |वैश्य --अर्थात -जो सभी का भरण पोषण करेगा उसी में अपना हित समझेगा साथ ही राजा को सही कर देगा, ब्राह्मणों के मन्त्रों से देवों को प्रसन्न करेगा वही वैश्य बनेगा | शूद्र {हरिजन }अर्थात -जो सबकी सेवा करेगा ,या ब्राह्मण ,क्षत्रिय और वैश्यों के हित के लिए अपने आप को समर्पित करेगा वही हरिजन बनेगा | --ध्यान दें --सभी राजा नहीं बन सकते है ,सभी ब्राह्मण नहीं बन सकते हैं सभी क्षत्रिय नहीं बन सकते है और न ही सभी हरिजन ही बन सकते हैं | इस बात को दूसरे तरीके से समझेँ --जैसे शरीर एक है -मुख का काम बोलने का है और खाने का -जैसा खायेगा वैसा ही बोलेगा --अतः जो यह समझ ले हम क्या खाएं और क्या बोलें तो उस शरीर का कोई अहित नहीं हो सकता हैं | इसी तरीके से -हाथों का काम है शरीर की रक्षा करने का या किसी भी कार्य को करने के लिए हाथों की जरुरत होती है ,हाथों के बिना शरीर अधूरा है काम करेगा तो शरीर ठीक रहेगा नहीं करेगा तो शरीर बेकार हो जायेगा |--इसी प्रकार से उदर का काम है जो भी उदर में डाले वो पचना चाहिए -क्योंकि शरीर की सभी इन्द्रियां उदर के ऊपर निर्भर करतीं हैं | अर्थात सही पेट की निगरानी ही शरीर को सुखद अनुभूति करा सकती है अन्यथा शरीर दुखी रहेगा | शूद्र --अर्थात शरीर की टाँगें -अगर टाँगें न हों तो शरीर कही जा आ नहीं सकता है --पर कहाँ जाये -कैसे जाएँ कब जाएँ तभी तो शरीर सुरक्षित रहेगा | वस्तुतः -जब शरीर के सभी अंग एक साथ जुड़ें हैं सभी अंग अपना -अपना काम करते हैं तभी तो शरीर की एक पहचान होती है इसमें न तो कोई छोटा है न कोई बड़ा - तो कर्म है किसी भी अंग के गलत कार्य से शरीर का पतन हो सकता है और सभी अंगों के सही कार्य से उन्नति तो --विधाता ने संसार में वर्णों की व्यवस्था इसलिए की | गलती व्यवस्था में नहीं गलती मुझमें है यह जबतक हम नहीं समझेंगें तब तक यह सृष्टि के नियम ठीक नहीं हो सकते हैं | आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameeru

मेरी जीवनी एक दिन अमर कथा हो जायेगी -पढ़ें - भाग -42 -ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -42 -ज्योतिषी झा मेरठ
मेरी जीवनी एक दिन अमर कथा हो जायेगी --भले ही पाठकगण --अभी अपने -अपने तर्क लगाते हों -----अस्तु --अब मैं अपनी दीदी की परिचर्चा करना चाहता हूँ --कैसे मेरे घर में साम्राज्य हुआ | --मेरी दीदी मुझसे ढाई वर्ष बड़ी है | अगर मुझे कहे कैसी बहिन चाहिए --तो हजार बार कहूंगा यही दीदी चाहिए --क्यों ? मेरी दीदी की भी बहुत खूबियां है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है --मेरी दीदीने भी मुझे बहुत माँ की तरह स्नेह दिया है ,जब मैं छोटा था तो अपनी गोद में बालक की तरह खिलाया है | एकबार मुझे उठाने के चक्कर में उसका हाथ टूट गया था --तब भी उतना ही स्नेह किया था जितना माँ ने किया है | जब मैं कहीं चला जाता था तो ढूंढ कर माँ के पास वही लाती थी | हम दोनों बच्चे थे तो कपडे पहले मुझे पहनाती थी --जैसे स्वेटर - खुद नहीं खाती थी पहले मुझे खिलाती थी | मेरी छोटी -छोटी गलती को छुपाती नहीं थी बल्की माँ से शिकायत करती थी ताकि मैं गलत राह न चलूँ | परन्तु --उस समय मेरा राजयोग चल रहा था -चन्द्रमा ,मंगल ये उच्च के हैं मेरे तो सभी प्रकार के सुख मुझे मिलने थे --किन्तु --दीदी की कुण्डली उपलब्ध नहीं है इसलिए कुछ कह नहीं सकता पर --मेरी कुण्डली में राहु की दशा शुरू हुई -तो 1981 में दीदी की शादी हुई -उस समय मैं 11 वर्ष का था और पातेपुर जिला वैशाली पढ़ने गया था --बिना पिता के धन के और बिना पिता की आज्ञा के --इसी बीच दीदी की शादी हो गयी | केवल तीन माह वहां रहे -वहां से भोपाल जाना था -सभी मित्र नहीं गए मैं जाना चाहता था पर मुझे भी वापस गांव आना पड़ा | मेरा घर मांसाहार था पर यहाँ से मैं शाकाहार बनने लगा | इसी बीच पिताकी जमीन बिकी ,दुकान बिक गयी ,कुछ जमीन नदी में समा गयी ,घर बाढ़ के कारण टूट गया ,जो दीदी के जेवर ,कपड़े ,बर्तन ससुराल के थे -मेरे घर में ही थे -चोरी हुई -सब सामान चोर ले गए --पिता नौकरी के लिए कलकत्ता गए थे --जो मेरा राजयोग था अब राहु की वजह से दरिद्र योग में परिवर्तन हो गया | दीदी का गोना हुआ नहीं था | हमलोग महादरिद्र हो गए --पिता वापस कलकत्ता से आ गए --क्योंकि कभी शहर गए नहीं थे ,अनुभव नहीं था ,मन नहीं लगा वापस आ गए | मेरी माँ तो पांचवी पास है --दीदी ने कभी स्कूल की शकल नहीं देखी न किसी ने दिखाई | राहु का दरिद्र योग हो तो ऐसा ही होता है --मेरे पिता ने धूमधाम से शादी की थी --जमीन बेचकर ,दुकान बेचकर और दहेज में दामाद को पढ़ाने की शर्त भी ले ली थी ---मेरा जो घर है वो शहर में है --झंझारपुर बाजार --यहाँ सभी प्रकार की सुविधा थी --कालेज भी था ---जीजा बी ए में शायद पढ़ रहे थे --तो उन्होंने सोचा ससुराल में रहकर ही पढेंगें --पर शादी के दो माह बाद ही दरिद्रभंजन मेरा परिवार हो गया | तो मेरे जीजा सबसे बड़े थे पढ़े लिखे थे --हमलोगों पर दया करनी चाहिए थी --पर हमारे घर पर रहकर पढ़ने लगे --घर में कुछ था ही नहीं --माँ इधर -उधर से मांगकर कुछ लाती थी --जिसे ईज्जत बचाने के लिए केवल जीजा को खिलाती थी | मेरा छोटा भाई बहुत छोटा था तो जीजा के साथ बैठकर खा लेता था --मुझसे भूख सहन नहीं होती थी ,माँ ,दीदी ,पिताजी भी भूखे जैसे -तैसे रह लेते थे --मुझसे रहा नहीं जाता था --मैं ऊधम मचाता था --अन्त में एकदिन जीजा के कपड़ें कीचड़ में डाल दिया --जीजा तो चले गए --मुझे लगता है --आजतक इस बात को भूले नहीं होंगें | यह बात दीदी भी आजतक भूली नहीं होगी | माता पिता तो क्षमा कर दिए होंगें --बालक समझकर ---पर इसके बाद जीजा पढ़ते तो थे नित्य मेरे घर आते थे दीदी से मिलने --उस माली हालत में पिता एकदिन मुझे आश्रम छोर आये ---घर की खाई बढ़ती रही -------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

भगवान की पूजा कैसे करें --सुनें -भाग -41 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 भगवान की पूजा कैसे करें --सुनें -भाग -41 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
सनातन संस्कृति में पूजा के अनन्त विधान हैं | एक हवनात्मक पूजा होती है | दूसरी यज्ञात्मक पूजा होती है | --हवन के द्वारा ईस्वर प्रसन्न किया जाता है --इसे हवनात्मक पूजा कहते हैं | यज्ञों के द्वारा जिसमें अनन्त सामग्री की जरुरत होती है ---उसे यज्ञात्मक पूजा कहते हैं | --तमाम बातों को क्रम से सुनते रहें -----भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

कुछ देवों को क्यों -धरती पर रहना पड़ा -विस्तार से बतायें -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ

  प्रश्न -कुछ देवों को क्यों -धरती पर रहना पड़ा -विस्तार से बतायें --पढ़ें- ज्योतिषी झा मेरठ 





 --उत्तर -वत्स -सृष्टि की रचना के बाद जब पृथ्वी को स्थापित किया श्री हरि ने तो घरती पर -अग्नि ,वायु ,जल ,सूर्य देवों के बिना जीवों का रहना कठिन था | अतः सभी देव तो अपने -अपने लोकों को गये किन्तु ये देव सभी जीवों की रक्षा हेतु मृत्यलोक में ही रहे | ---वत्स हम सबके प्रत्यक्ष देवता वर्तमान में यहीं है साथ ही समस्त जीव प्रथम इनकी ही आराधना करते हैं | ----प्रमाण --चराचर जगत में भले ही भाषा अलग-अलग हों या शकल अलग -अलग हों या रहन -सहन भिन्न -भिन्न हों पर निर्विरोध अग्नि ,सूर्य ,वायु ,जल की पूजा सभी करते हैं | कर्मकाण्ड जगत में सर्वप्रथम अग्नि की पूजा होती हैं ,संसार के प्रत्येक प्राणी दीप अवश्य जलाते हैं | इसी प्रकार से कर्मकाण्ड जगत में सूर्यदेव की पूजा दीप प्रज्ज्वलित होने के बाद ही होती है -संसार के समस्त प्राणी भगवान भास्कर को नमन अवश्य करते हैं | कर्मकाण्ड जगत में वायु को शुद्ध रखने हेतु हवन का विधान है साथ ही जो हवन में सामग्री डलती है उसका नाम शाकल्य है -इसका निर्माण -तिल ,जौ ,चवाल ,शक्कर एवं गुड़ से होता है जो वायु को शुद्ध तो करता ही है साथ ही जीवों को आरोग्य भी प्रदान करता है | प्रायः विश्व के सभी लोग वायु को शुद्ध रखने का प्रयत्न भी करते रहते हैं | जल अर्थात वरुणदेव -कर्मकाण्ड जगत में अग्नि ,सूर्य के बाद कलश यानि वरुणदेव का ही पूजन होता है --संसार में प्रायः सभी किसी ,न किसी आयोजन में कलश को सिरोधार्य अवश्य ही करते हैं | ये चारो देव प्रत्यक्ष देवता हैं जबतक जगत रहेगा इनकी आराधना सभी जन निर्विघ्नता पूर्वक करते रहेगें | आगे की चर्चा कल करेंगें | -----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

2023 -अपनी जीवनी हमने --2017+18 में लिखी थी -पढ़ें - भाग -41 -ज्योतिषी झा मेरठ

2023 -अपनी जीवनी हमने --2017+18 में लिखी थी | जीवनी लिखने में बहुत सी ऐसी बातें होतीं हैं --जिनका उल्लेख करें या नहीं करें --जो हम कह रहे हैं वो तार्किक शब्द हैं या प्रामाणिक --इन तमाम बातों की वजह से केवल --34 भाग हमने प्रसारित किया था | आज -27 /01 /2023 है --अब मुझे जब तमाम साक्ष्य मिल चुके हैं --अब मैं बिल्कुल शान्त स्वभाव में हूँ --तो मुझको लगता है -जो भी हमारे तमाम पाठकगण हैं उनके जीवन में किसी भी प्रकार के कष्ट आते हैं --तो सामना कैसे करना चाहिए --यही मेरा उदेश्य है --क्योंकि ग्रहों के खेल निराले होते हैं --जिसे अनुभवी व्यक्ति ठीक से सामना करता है | ---अस्तु --माँ बढियाँ थी, है और रहेगी --पर माँ का दायित्व भी बड़ा होता है जिसे शाम ,दाम ,भेद का भी प्रयोग करना होता है| --प्रत्येक माँ को चाहिए जब बहु माँ बन जाये --तो अपना दायित्व सौंप देना चाहिए और ईस्वर का सान्निध्य प्राप्त करना चाहिए| ---माँ ने जो समर्पण दिखाया था मुझे बाल्य्काल में बदले में --हमने भी अपने आप को माँ को ही समर्पित कर दिया था --जब मेरी उम्र -14 वर्ष थी घर की जिम्मेदारी उठा ली थी | आश्रम में जब पढ़ रहा था -जब मैं यज्ञ में जाने लगा तो आय का साधन मिला --सारा धन माँ के हाथों में ही दिया था | --1988 -जब मेरठ आये यहाँ भी जो धन कमाया -माँ के हाथों में ही दिए | अपनी कमाई से ही मुम्बई पढ़ने गया था --पढ़ते -समय भी घर की जिम्मेदारी हमने ही उठाई थी | जमीन गिरवी थी तो हमने छुराई ,पिताजी का लोन बैंक का था -पतनी के जेवर भी मैं ही बेचा था | किसी ने पढ़ने के लिए -15000 दिए --1995 में -उससे ईंट हमने ही खरीदी थी | माँ की हर बातों का पालन सच्चे मन से किया हमने ---क्या ये तमाम बातें माँ को याद नहीं रही ----याद आज भी होगी ---मेरी कुण्डली में राजयोग है --इसके लिए जब मैं 13 वर्ष का था --रेलवे स्टेशन पर श्रीमाली जी किताब राशिफल --10 रूपये में खरीद कर पढ़ा करता था --ये मैं तभी से जनता हूँ | मैंने बहुत सी किताबों को इसलिए खरीदी ताकि मेरी कुण्डली में -सूर्य ,मंगल ,चन्द्रमा -बुध शुक्र की युति क्या -क्या लाभ देंगें --पर --इस और मेरा कभी ध्यान नहीं गया -शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है साथ ही गुरु भी तीसरे भाव में हैं --ये क्या लाभ या हानि देंगें ---ये समझ जब आयी --तब मैं 30 वर्ष का हो चूका था | दो कन्या भी थी ,गरीबी भी थी --पर सावधान होने लगे --जब हम सावधान होने लगे तब तक खाई बहुत बढ़ चुकी थी | विवाह --1990 में हुआ --कभी पतनी की नहीं सुनी --सोचता था सारा धन पर अधिकार माँ का है --इसी का परिणाम यह था --दीदी का साम्राज्य हमारे यहाँ था | मामा का साम्राज्य हमारे घर में था | माँ साहूकार बन चुकी थी | मेरी पतनी और बच्चों को कुछ नहीं --पतनी ने बहुत मुझे समझाने की कोशिश की पर --दिल है कि मानता नहीं ---परिणाम -बढियाँ आलीशान भवन बना ,किरायेदार रहने लगे ,अनुज भी बढियाँ कमाने लगा --जब मुझे अकल आयी तो सब एक हो गए ---क्योंकि तब मेरी दो बेटियाँ --भाई ,बहिन मामा ,पिता माता को दिखने लगी --सभी सोचने लगे -मौज करो --अब इससे दूरी बनालो --क्योंकि हमारे सुख में टांड अड़ायेगा ----भाई की शादी हुई मुझे नहीं पता --बारात आने का निमंत्रण मिला था --नहीं जाना उचित समझें | --जो जीजा मेरी शादी में नहीं गए --वो अनुज की शादी में जरूर गए| --मैंने कहा मुझे मकान नहीं चाहिए --खुद बनाऊंगा --पिता बोले मेरी लाज की पगड़ी रखो --50000 दिए --2000 सन में | फिर तीन माह बाद बोले छत बनानी है 85000 भेज दो --हमने 10000 दिए | फिर क्या था सभी एक साथ हो गए --बोले कुछ नहीं मिलेगा --मेरे जीते जी -------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

 

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

कर्मकण्ड का प्रतिपादन शाण्डिल्य ऋषि ने क्यों किया सुनें -भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ



 कर्मकण्ड का प्रतिपादन शाण्डिल्य ऋषि ने क्यों किया सुनें -भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ 

पूजा से सम्बन्धित अनन्त बातों को सुनें भाग -40 --ज्योतिषी झा मेरठ
पूजा किसे कहते हैं | पूजा कैसे करनी चाहिए --कर्मकाण्ड की तमाम बातों को ठीक से सुनें और पथ का अनुशरण करें -लाभ मिलेगा | ------दोस्तों ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड जगत की तमाम बातों को लोग जो पढ़ते हैं वो या तो किसी के पूर्व उल्लेख हैं या कभी किसी आचार्य ने ये बातें कहीं थीं किन्तु हम आपको वर्तमान समय में अपनी कुण्डली से समस्त अपनी जीवनी को दर्शाऊँगा --जो केवल सत्य पर आधारित होगी | न लोभ से ,न द्वेष से ,न मोह से केवल जिज्ञासा से तो --सभी बातों को वीडियों के माध्यम से सुनते रहें और अपना -अपना आशीष प्रदान करते रहें ---आपका -खगोलशास्त्री झा मेरठ --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में उपलब्ध हैं |

सृष्टि पर अजर अमर क्यों और कौन -कौन हैं-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ



 सृष्टि पर अजर अमर क्यों और कौन -कौन हैं-पढ़ें-ज्योतिषी झा मेरठ 



 --वत्स -सृष्टि के नियम हैं -जो आया है उसको जाना होता है | पर कुछ चीजें अमर रहतीं हैं अतः सृष्टि पर आजतक कोई उत्पन्न हुआ व्यक्ति अजर अमर नहीं हुए किन्तु उन्होंने कुछ ऐसे कर्म किये जिसकी वजह से जबतक सृष्टि रहेगी अजर और अमर रहेंगें | ---1 -अश्व्थामा का नाम अजर और अमर रहेगा | --2 राजा वली का नाम अजर और अमर रहेगा | 3 -श्री व्यासजी का नाम अजर अमर रहेगा | 4 -श्री हनुमानजी का नाम अजर और अमर रहेगा |5 विभीषणजी का नाम अजर और अमर रहेगा |6 - कृपाचार्यजी का नाम अजर और अमर रहेगा | 7 महर्षि -परशुरामजी का नाम अजर और अमर रहेगा | ----इन सभी महान पुरुषों ने ऐसे कार्य किये जिनकी वजह से जबतक सृष्टि रहेगी इनके नाम चलते रहेंगें या ये कहें -इनके उदाहरणों का दृष्टान्त मिलते रहेंगें | ---दोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा अपनी करनी के कारण क्योंकि जबतक भागवत की चर्चा होती रहेगी इनके नाम भी सामने आते रहेगें | राजा वली --जैसा महादानी आजतक पृथ्वी पर नहीं हुआ --इसलिए जब भी दान की बात होगी या भागवत कथा रहेगी इनके नाम की चर्चा होती रहेगी | भगवान व्यास ने वेदों की रचना की पुराणों की रचना की जबतक -कथा ,पूजा, पाठ या यज्ञों की बात होती रहेगी ये अमर रहेंगें | श्री हनुमानजी महराज ने भक्ति का ऐसा उदारहरण प्रस्तुत किया जबतक धर्म की चर्चा होती रहेगी भक्ति के कारण अटल श्री हनुमानजी का नाम अजर -अमर रहेगा | श्री विभीषणजी ने श्री रामजी की सहायता कर अमर हो गए जबतक रामायण की परिचर्चा होगी अमर रहेंगें श्री विभीषणजी | कुलगुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है अतः जबतक यज्ञादि में गुरुजनों की चर्चा होगी तो कृपाचार्य जी अमर रहेंगें | --भगवान श्री परशुरामजी ने पिता की भक्ति का जो उदारण दिए वो जब -जब पुत्र का कर्तव्य क्या है कि चर्चा होगी -नाम अजर और अमर रहेंगें --इन सभी महापुरुषों के | ज्योतिष की फ्री एकबार सेवा कैसे मिलेगी -ठीक से पढ़ें या सुनें !------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

माँ शब्द की व्याख्या या व्युत्पत्ति या भावार्थ निकालना बहुत सहज नहीं है -पढ़ें - भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ


 "मेरा" कल आज और कल -


पढ़ें ?--- भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ

माँ शब्द की व्याख्या या व्युत्पत्ति या भावार्थ निकालना बहुत सहज नहीं है | --माँ छत्रछाया है ,माँ कृपा की मूर्ति है ,माँ ममतामयी है ---माँ के लिए सबका द्वार एक जैसा ही होता है --चाहे उसकी कोख से जन्मा अज्ञानी हो या ज्ञानी --सभी संतानें एक जैसी ही माँ को लगती है --माँ के दर पे कोई भेद भाव नहीं होता है | --मैं जब चोर था तब भी माँ के लिए वैसा ही था ,मेरे जीवन में माँ का भी बड़ा योगदान रहा है --भले ही मेरी माँ अनपढ़ थी -पर मुझको पढ़ाया है ,आश्रम में वही तो गयी थी नानी के साथ और 10 रूपये भी दिए थे | जब दीवाल गिरी तो न दीपक था न लालटेन पर माँ मुझको सबसे पहले ढूंढ रही थी | जब मैं कॉलेज में पढ़ने लगा तो 100 प्रतिमाह यही तो देती थी | एकबार पिता से युद्ध हुआ तो मैं रात के समय भागा गन्धराईन {अंधराठाढ़ी} से अपने गांव आया 15 किलोमाटर का सफर था --सांप मेरे पैरों में लिपट गया --मुझे पता नहीं मेरे पैरों में खून था क्योंकि मैं भागा -भागा माँ के पास ही तो आया था --भले ही औषधि की सामर्थ नहीं थी पर गरम पानी से साफ किया और देवताओं से दुआ मांगी थी --आज मैं इसलिए तो जिन्दा हूँ| जब भी घर से निकला तो पलकें बिछाये मेरी राह तो माँ ही देख रही थी | जब मैं रेडियो चुराया --गरीबी सही ईमानदार थी तभी तो चचेरे भाई से बोली गाली मत दो मैं रेडियो अपने भाई से दिल्ली से मंगबाकर दूंगीं --जबकि मैं तो चोर था | जिस पिता को घर की जिम्मेदारी सम्भालनी चाहिए वो काम तो माँ ने किया | शादी भी माँ ने करायी भले ही नानी का योगदान था --पर नानी भी तो माँ की माँ थी | --जब गरीबी थी तो खुद कई दिन खाना नहीं खाया पर मुझको तो पहले खिलाती थी | ---मेरी माँ में अनन्त गुण हैं --पर एक अबगुण ने --मुझे मरने पर विवस कर दिया --सत्ता और प्रभुता --बड़ा होना सहज है --पर उन धर्मों का भी पालन करना होता है जो सत्ता और प्रभुता के लिए अनिवार्य हैं --और मैं यही करना चाहता था --मैं चाहता था --मेरी माँ भले ही गरीबी देखी है --अब बढियाँ पहनें ,बढियाँ खाये ,अपने घर से बाहर न जाये ,मेरी माँ के पास लोग आये ,मेरी माँ सबकी अवश्य मदद करें पर सामर्थ के अनुसार ,मेरी माँ केवल दुआ मांगें तप की दुनिया में रहे ,किसी से लेनी -देनी ऐसी न करे जो जो दूसरे की हो ,अपने समय का सदुपयोग करे | ----ये वो राहें थी --जो असंभव थी --क्योंकि मेरे घर में दीदी का सदा साम्राज्य रहा है ,दीदी के पैसे व्याज पर लगाती रही है --घाटा होने पर हमारे पैसों से पूर्ति करती थी | सम्पूर्ण जीवन दीदी अपने बच्चों के साथ मेरे यहाँ निवास किया है----जबकि कोई अभाव नहीं है --ये बात मेरी माँ की समझ में क्यों नहीं आयी है | दूसरा कारण मेरे मामा रहे मेरे यहाँ शिक्षा मिली -सरकारी नौकरी मिली --करोड़पति हैं कभी भी --इतना नहीं कह सके --दीदी --जैसा बेटा -बहु कहते हैं वही करो ---बच्चों के सुख में ही माता पिता सुखी होते हैं | ---मैं अपनी कुण्डली देखी तो-- मेरा भाग्येश ,चतुर्थेश लग्न में विराजमान है --लग्नेश के साथ यह सर्वोत्तम योग है --सिंह लग्न की कुण्डली में सूर्य और मंगल लग्न में विराजमान हो चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में विराजमान हो --उस जातक को माता ,सम्पत्ति ,वाहन ,भवन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है ---ये तमाम सुख मुझे मिले ---फिर ऐसा क्या था ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

कर्मकाण्ड -"पूजा +पाठ " कहते किसे हैं सुनें भाग -39 -ज्योतिषी झा मेरठ



कर्मकाण्ड -"पूजा +पाठ " कहते किसे हैं सुनें भाग -39 -ज्योतिषी झा मेरठ 

कर्मकाण्ड एवं ज्योतिष किसे कहते हैं सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ - भाग 39
ज्योतिष और कर्मकाण्ड के श्रोतागण --आप सबके मन में ज्योतिष और कर्मकाण्ड से सम्बंधित अनन्त प्रश्न मन में उठते होगें | यद्पि मैं स्वयं अल्प ज्ञानी हूँ --फिर भी जितना अनुभव है उतना तो बताने का प्रयास कर ही सकता हूँ --तो सुनें --पूजा कैसे करनी चाहिए ,ज्योतिष का सहारा कब लेना चाहिए ----ज्योतिष या कर्मकाण्ड विषय से सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज में-https://www.facebook.com/astrologerjha/ उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई "

सृष्टि को जाने बिना ज्योतिष और कर्मकाण्ड को समझाना अनुचित है-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 प्रश्न -क्या सृष्टि को जाने बिना ज्योतिष और कर्मकाण्ड को समझाना अनुचित है-पढ़ें?-ज्योतिषी झा मेरठ



उतर -यद्पि आप ज्योतिष और कर्मकाण्ड को समझ सकते हैं किन्तु --जैसे परीक्षा के लिए छात्र किताब की जगह प्रश्नोत्तरी का अध्ययन करते हैं -और उनका ज्ञान अधूरा रहता है | जबकि उपाधि से विभूषित भी रहते हैं | ---अतः ज्योतिष और कर्मकाण्ड को समझने से पहले यथार्थ को समझें | तभी आप एक योग्य पण्डित या ज्योतिषी हो सकते हैं | -प्रश्न ---क्या विधाता ब्रह्मा भी सृष्टि में उलझ गए थे ?उत्तर --कुछ पुराणों में यह कथा आती है -ब्रह्माजी भी आदि शक्ति को देखकर मोहित हो चुके थे | ज्योतिष में जब कोई योग नहीं बनता है तब सर्बार्थ सिद्ध योग में कोई भी कार्य कर कर सकते हैं किन्तु --जबसे यह कथा बनी तबसे -विवाह संस्कार सभी नक्षत्रों में हो सकता है किन्तु सर्बार्थ सिद्ध योग में वर्जित होता है | पंचकों में भी विवाह होता है कोई दोष नहीं लगता है | -----सृष्टि में हमलोग कहाँ स्थित हैं ?उत्तर ---भू लोक ,भुवर लोक, स्वर लोक,मध्यलोक ,जनलोक ,तप लोक और सत्य लोक --ये सतलोक पृथ्वी के ऊपर हैं और तल ,अतल इत्यादि सप्तलोक पृथ्वी के नीचे हैं | हमलोग मध्यलोक अर्थात बीच में स्थित हैं | --प्रश्न --देवता किसे कहते हैं ?-उत्तर ---जो अवतरित होते हैं उन्हें देवता कहते हैं --ये वास्तव में परमशक्ति के अंश होते हैं -जिनको कर्मकाण्ड के प्रत्येक {अनुष्ठान} यज्ञ में भाग दिया जाता है --ये तभी समझ में आते हैं | --प्रश्न ---फिर भगवान कौन होते हैं ?उत्तर ---गर्भ से उत्पन्न होने वाले को भगवान कहते हैं | कोई भी माँ कर्मनिष्ठ बनकर ऐसी संतान को जन्म दे सकतीं हैं | --तथा जो अविरल अचम्भित करने वाले जन्म लेते हैं उनके कर्मो से उनको भगवान का पद प्राप्त होता हैं ---गौतम बुध ,भगवान व्यास इत्यादि | प्रश्न ---फिर परमतत्व क्या होता है ?उतर --संसार में एक ही परमतत्व है -वो अजन्मा है अविनाशी है -वही अनंत रूप धारण करते हैं | वही स्रष्टा है -वही श्री हरी हैं - वही ब्रह्मा है- वही शिव हैं | संसार की सभी चीजें उनमें ही हैं वो जब चाहे जैसे चाहें चलाते हैं किन्तु नियमावली से वो भी बंधे होते हैं ---इसलिए कोई सत्य तो चित तो कोई आनंद के नामों से जनता है |--आगे की चर्चा आगे करेंगें "ॐ "--दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...