"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?-"भाग -{32}-ज्योतिषी झा मेरठ
गुरु बृहस्पति मेरी कुण्डली में तृतीय भाव में विराजमान हैं --अतः पंचम दृष्टि सप्तम भाव पर होने से दाम्पत्य सुख उत्तम मिला ,साथ ही पतनी के सान्निध्य में रहने से उन्नति हो पायी अन्यथा मेरी कथा निरस होती | क्योंकि सप्तम भाव में राहु विराजमान है साथ ही यह घर शनि का है जिसका स्वामी नीच का भाग्य में विराजमान है | लग्न में सूर्य ,मंगल और केतु हैं जिनकी पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर है इन सभी ग्रहों के प्रभाव से दाम्पत्य सुख मेरे जीवन में था ही नहीं | इसलिए मेरा जीवन रस से भरा हुआ नहीं रहा | यद्पि भाग्य का स्वामी मंगल त्रिकोण में है लग्नेश सूर्य के साथ है ,साथ ही भाग्य पर गुरु की पूर्ण दृष्टि है- यह अनुपम योग ही भाग्यवान बनाया है ,किन्तु शनि का नीच होना भाग्य क्षेत्र में साथ ही प्रभाव क्षेत्र पर पूर्ण दृष्टि के कारण मेरा प्रभाव क्षेत्र उत्तम नहीं रहा साथ ही परिजनों का भी स्नेह कभी नहीं मिला | ----अस्तु --गुरु की पंचम भाव पर दृष्टि होने से तीसरी संतान पुत्र सभव हुआ | मेरी शिक्षा का उत्तम क्षेत्र गुरु ,बुध ,सूर्य, चंद्र और शुक्र के कारण हुआ ---इसलिए जीवन में शिक्षा नही रुकी बल्कि आजीवन कुछ न कुछ खोज करते रहेंगें | जब हम 28 वर्ष के हुए तो गुरु की दशा की शुरुआत हुई और सबसे पहली कमाई से हारमोनियम खरीदा और सीखा भी यह समय 40 वर्ष के जब हम हुए तब तक चलता रहा | जब हम 40 वर्ष के हुए तो नेट की दुनिया में आये बिना ज्ञान और बिना संगती के | धन की पहली बचत से पहला छोटा सा भवन प्रेम विहार माधवपुरम मेरठ में लिया 2003 में | मंगल की वजह से 2007 में एक वाहन मिला यह पारितोषिक ईनाम था | जीवन की दूसरी धन बचत से एक भूखण्ड लिया 2008 में यह सोचकर की अगर आवश्यकता पड़ी तो व्यापार की दुकान से जीवन चलायेंगें -झंझारपुर बिहार में | क्योंकि मेरे पिता गरीब इसलिए हुए थे उनपे अपनी दुकान नहीं थी | तीसरा भूखण्ड मातृभूमि पर एक भव्य भवन बना -2010 में | 2012 -पुत्री की शादी भव्यता से की इसमें हमने उतना ही धन खर्च किया, जीतना उसका हिस्सा होता | मेरी सोच है पुत्री भी तो पुत्र की तरह है जितना पुत्र को दो उतना ही पुत्री को भी | 2013 फिर से एक वाहन लिया और आयकर दाता भी बनें यद्पि पंडित के लिए कोई टेक्स नहीं लगता पर मेरी सोच है सच्चे भारतीय नागरिक अवश्य बनें | मेरे जीवन का यह सुखद समय भी 2014 में समाप्त हो गया | मेरे जीवन में जब मैं जन्मा -1970 तो चन्द्रमा की दशा राजयोग कारक थी अतःकेवल ढाई वर्ष राजा की भाँति रहे ,फिर मंगल की दशा आयी 7 वर्ष यह भी राजयोग था | -- इसके बाद राहु की दशा आयी -1980 से 1998 तक दरिद्रयोग था दरिद्र बनकर ही जीये | इसके बाद गुरु की दशा आयी फिर राजयोग आया किन्तु यह भी 2014 में समाप्त हो गया | अब शनि दशा की चर्चा आगे करेंगें -ॐ ----आपका -खगोलशास्त्री झा मेरठ --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में उपलब्ध हैं |

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें