कालसर्प योग की परिभाषा और प्रभाव -पढ़ें ?--ज्योतिषी झा मेरठ
--सभी ग्रह ---राहु -केतु के मध्य हों तो कालसर्पयोग बनता है । वैसे कालसर्प योग दो प्रकार के होते हैं । एक उदित गोलार्ध के रूप में और दूसरा अनुदित गोलार्ध के रूप में । उदित गोलार्ध को ग्रस्त योग एवं अनूदित गोलार्ध को मुक्त योग कहते हैं । लग्न में राहु एवं सप्तम भाव में केतु हो -और सभी ग्रह 7 /8 /9 /10 /11 /12 वें स्थानों में हों तो यह उदित कालसर्प योग कहलाता है । राहु +केतु का भ्रमण सदा उलटा चलता है । इस योग में सभी ग्रह क्रमशः राहु के मुख में चले जाते हैं । ----अस्तु -----{1 }-कालसर्प योग में आधुनिक खोज वाले ग्रह यूरेनस ,नेप्च्यून एवं प्लूटो का कोई स्थान महर्षियों ने नहीं दिया है । {2 }-राहु मिथुन एवं कन्या राशि का हो तो अन्धा होता है -यदि कालसर्प योग मिथुन या कन्या राशि में बना हो तो विशेष कष्टकारी होता है । साथ ही राहु या केतु की दशा -अंतर में या गोचर में राहु 6 /8 /12 वें भावों पीड़ा देता है । {3 }-जातक की कुण्डली में कालसर्प योग हो तथा शुभ ग्रह राहु से पीड़ित हो या राहु खुद पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो जातक को राहु की महादशा में कष्टों का सामना करना पड़ता है । {4 }-किसी -किसी जन्मकुण्डली में ऐसा होता है कि राहु +केतु के मध्य सातो ग्रह न आकर एकाध ग्रह बाहर निकले हों ऐसे में उस कुण्डली के जातक को आंशिक कालसर्प योग का दोष लगता है एवं निदान अनिवार्य होता है । {5 }-यदि कोई ग्रह सामान राशि में बैठा हो ,नक्षत्र या अंशों की गणना से राहु +केतु दूर चला जाए -तो ऐसी स्थिति में कालसर्प योग भंग हो जाता है -यह सोचना गलत है ।{6 }-अनुभव की कसौटी पर परखने पर वृष ,मिथुन ,कन्या एवं तुला इन लग्नों में बना कालसर्प योग विशेष पीड़ा दायक होता है । {7 }-राहु 6 /8 /12 वें भाव में हो तो आंशिक कालसर्प योग बनेगा । {8 }-राहु से आठवें भाव में सूर्य हों तो आंशिक कालसर्प योग बनेगा । {9 }-चन्द्रमा से राहु -केतु आठवें भाव में हो तो आंशिक कालसर्प योग बनेगा । {10 }-राहु +मंगल ,राहु +गुरु ,राहु +बुध ,राहु +शुक्र ,राहु +शनि ये युतियाँ अनिष्टफल देती हैं तथा शापित दोषयुक्त कुण्डली होती है । {11 }-चन्द्र +केतु ,चन्द्र +राहु ,सूर्य +केतु की युतियाँ एवं प्रतियुतियाँ कालसर्पयोग की तीव्रता को भी बताती हैं । और पीड़ा उत्पन भी करती हैं । ---नोट ----वास्तविकता यह है -जन्मकुण्डली पूर्व जन्म कृत पाप +पुण्य का ही लेखा जोखा चिटठा है । यदि पुण्य विशेष होगा तो बलवान ग्रहों की विशेषता रहती है और जातक भाग्यशाली भी होता है । कल हम कालसर्प योग के अन्य मतों का उल्लेख करेंगें -लेख अभी जारी रहेंगें ।-----दोस्तों -इस पेज -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में ज्योतिष से सम्बंधित नवीन{शास्त्र सम्मत } बातों का हलचल रोज होता है -जो आपको ज्योतिष और ज्योतिषियों के प्रति कुभाव को मिटाकर -श्रद्धा ,स्नेह और आस्था तो जगाता है ही -आप इस भारतीय सत्य धरोहर "ज्योतिष "से विमुख नहीं हो सकेंगें । आप चाहे बालक हों ,युवा हों ,अभिभावक हों या फिर ज्योतिषाचार्य सबके योग्य है ---यकीं नहीं आता तो इस पेज को अपनाकर देखें !--आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई

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