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विवाह -चतुर्थी संस्कार से पूर्ण होता है -जानें -पढ़ें-सुनें -भाग -32--खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ------------------------------------------------------
भारतीय संस्कृति संस्कारों के बिना अधूरी रहती है | सनातन संस्कृति में षोडश संस्कारों को सुनते तो हैं अमल नहीं करते हैं | वास्तव में सम -सरति इति संस्कृति -जो भेद भाव रहित प्रगति पथ पर ले चले उसे संस्कृति कहते हैं | सम -सरति -अंशः --इति संस्कारः -भेद भाव रहित -जिस क्रिया से नई पहचान मिले उसे संस्कार कहते हैं | यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है | -विवाह संस्कार को सभी जानते हैं -इस संस्कार को सभी मानते भी हैं किन्तु यह विवाह संस्कार चतुर्थी संस्कार के बिना पूर्ण नहीं होता है |----अर्थात -प्रकति की सुरक्षा - सूर्य ,पवन ,वरुण और अग्निदेव के बिना संभव नहीं था --अतः सभी देव स्वर्गलोग को चले गए किन्तु ये देव समस्त जीवों की रक्षा हेतु इस जगत में ही रहे --इसलिए चाहे जगत के कोई व्यक्ति हो, राज्य हो, देश हों ,भाषा हों ,राजा हों या प्रजा सभी अपनी -अपनी संस्कति और संस्कारों में इन देवों को पूजते हैं -जैसे -सूर्य को सभी सम्मान करते हैं। अग्नि को सभी सम्मान करते हैं ,पवन को सभी सम्मान करते हैं ,वरुण {जल }का सम्मान सभी करते हैं | इन देवों को जगत के प्रत्यक्ष देवता शास्त्रों में माना गया है | किसी भी शुभ कार्य में इन देवों का स्थान प्रथम होता है | मानवों के षोडश संस्कारों में भी पहले इनकी ही आराधना होती हैं | प्रत्येक कन्या का युवा अवस्था में सर्वांग स्पर्श -सूर्य से ,अग्नि से ,वरुण से ,पवन से होता है इसलिए प्रत्येक कन्या के विवाह के उपरांत चौथे दिन चतुर्थी संस्कार का विधान बताया गया है |साथ ही जिस व्यक्ति से विवाह होता है -उस व्यक्ति को कन्या की देह का स्पर्श करने का वास्तविक अधिकार विवाह के चौथे दिन से प्राप्त होता है | विवाह संस्कार के प्रथम दिन सूर्य का ,दूसरा दिन अग्नि का तीसरा --------दिन पवन का और चौथा दिन वरुणदेव का समझकर व्यतीत किया जाता है | ये केवल कन्या के लिए है ऐसा नहीं है पुरुषों को भी इन देवों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए | चौथे दिन चतुर्थी संस्कार के बाद अपनी अर्धांगिनी का स्पर्श करना चाहिए | इसका एक प्रमाण और शास्त्रों में -जब मासिक धर्म होता है तब भी चार दिनों के बाद ही महिला शुद्ध होती हैं --यहाँ भी यही अभिप्राय है --और प्रत्येक पुरुषों को इन स्थिति में अपनी -अपनी अर्धांगिनी का स्पर्श नहीं करना चाहिए ----जो नियम का पालन करते हैं -उन्हें आयु आरोग्य की सुखद अनुभूति होती हैं साथ ही संतान उत्तम और स्वस्थ होती है | आगे की चर्चा आगे करेंगें |------ ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"-
भारतीय संस्कृति संस्कारों के बिना अधूरी रहती है | सनातन संस्कृति में षोडश संस्कारों को सुनते तो हैं अमल नहीं करते हैं | वास्तव में सम -सरति इति संस्कृति -जो भेद भाव रहित प्रगति पथ पर ले चले उसे संस्कृति कहते हैं | सम -सरति -अंशः --इति संस्कारः -भेद भाव रहित -जिस क्रिया से नई पहचान मिले उसे संस्कार कहते हैं | यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है | -विवाह संस्कार को सभी जानते हैं -इस संस्कार को सभी मानते भी हैं किन्तु यह विवाह संस्कार चतुर्थी संस्कार के बिना पूर्ण नहीं होता है |----अर्थात -प्रकति की सुरक्षा - सूर्य ,पवन ,वरुण और अग्निदेव के बिना संभव नहीं था --अतः सभी देव स्वर्गलोग को चले गए किन्तु ये देव समस्त जीवों की रक्षा हेतु इस जगत में ही रहे --इसलिए चाहे जगत के कोई व्यक्ति हो, राज्य हो, देश हों ,भाषा हों ,राजा हों या प्रजा सभी अपनी -अपनी संस्कति और संस्कारों में इन देवों को पूजते हैं -जैसे -सूर्य को सभी सम्मान करते हैं। अग्नि को सभी सम्मान करते हैं ,पवन को सभी सम्मान करते हैं ,वरुण {जल }का सम्मान सभी करते हैं | इन देवों को जगत के प्रत्यक्ष देवता शास्त्रों में माना गया है | किसी भी शुभ कार्य में इन देवों का स्थान प्रथम होता है | मानवों के षोडश संस्कारों में भी पहले इनकी ही आराधना होती हैं | प्रत्येक कन्या का युवा अवस्था में सर्वांग स्पर्श -सूर्य से ,अग्नि से ,वरुण से ,पवन से होता है इसलिए प्रत्येक कन्या के विवाह के उपरांत चौथे दिन चतुर्थी संस्कार का विधान बताया गया है |साथ ही जिस व्यक्ति से विवाह होता है -उस व्यक्ति को कन्या की देह का स्पर्श करने का वास्तविक अधिकार विवाह के चौथे दिन से प्राप्त होता है | विवाह संस्कार के प्रथम दिन सूर्य का ,दूसरा दिन अग्नि का तीसरा --------दिन पवन का और चौथा दिन वरुणदेव का समझकर व्यतीत किया जाता है | ये केवल कन्या के लिए है ऐसा नहीं है पुरुषों को भी इन देवों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए | चौथे दिन चतुर्थी संस्कार के बाद अपनी अर्धांगिनी का स्पर्श करना चाहिए | इसका एक प्रमाण और शास्त्रों में -जब मासिक धर्म होता है तब भी चार दिनों के बाद ही महिला शुद्ध होती हैं --यहाँ भी यही अभिप्राय है --और प्रत्येक पुरुषों को इन स्थिति में अपनी -अपनी अर्धांगिनी का स्पर्श नहीं करना चाहिए ----जो नियम का पालन करते हैं -उन्हें आयु आरोग्य की सुखद अनुभूति होती हैं साथ ही संतान उत्तम और स्वस्थ होती है | आगे की चर्चा आगे करेंगें |------ ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"-
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