ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुधवार, 14 अगस्त 2024

रक्षाबंधन का इतिहास एवं महत्व -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अभिमान को इसी दिन चकानाचूर किया था। इसलिए यह त्योहार 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्योहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं।रक्षाबंधन के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। तभी से राखी बाँधने की प्रथा शुरू हुई। हिंदू पुराण कथाओं के अनुसार, महाभारत में, पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।एक अन्य उदहारण के अनुसार चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और वह भी संकट के समय बहन कर्मवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ आ पहुँचा था। दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बाँधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधते हैं।रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई को प्यार से राखी बाँधती है और उसके लिए अनेक शुभकामनाएँ करती है। भाई अपनी बहन को यथाशक्ति उपहार देता है। बीते हुए बचपन की झूमती हुई याद भाई-बहन की आँखों के सामने नाचने लगती है। सचमुच, रक्षाबंधन का त्योहार हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलाता है।आजकल तो बहन भाई को राखी बाँध देती है और भाई बहन को कुछ उपहार देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। लोग इस बात को भूल गए हैं कि राखी के धागों का संबंध मन की पवित्र भावनाओं से हैं।यह जीवन की प्रगति और मैत्री की ओर ले जाने वाला एकता का एक बड़ा पवित्र पर्व है। आप सभी को मेरी ओर से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ..... - -दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut--- आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

मंगलवार, 13 अगस्त 2024

"रक्षा बंधन" विशेष -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 "रक्षा और भावना का नेह-" पगा सूत्र "

राखी संस्कृत शब्द *रक्ष* से बना है जिसका तात्पर्य रक्षा करना है। श्रावण की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले पर्व रक्षाबन्धन का उद्देश्य भी रक्षा से सम्बंधित है। इसमें स्त्रियां चांदी जैसे चमकीले और सोने जैसे सुनहरे धागों से ओतप्रोत रंग-बिरंगे फूलों से सजी राखियां अपने भाइयों की कलाई पर बांधकर उनकी सुख-समृद्धि और मंगल की कामना करती हैं।
दूसरी ओर उनसे अपने लिए हर प्रकार के सहयोग और पूर्ण सुरक्षा की कामना करती हैं। बहनों द्वारा इस दिन भाई की दोनों भौंहों के मध्य तिलक करने का तात्पर्य उसके आन्तरिक प्रकाश को जागृत कर उसे जीवन के कल्याणकारी लक्ष्य की ओर अग्रसर करना है। माथे पर तिलक के साथ भाइयों को विविध प्रकार के सुस्वादु मिष्टान्न भी बड़े चाव, श्रद्धा और प्रेम से खिलाये जाते है जिससे उनका व्यवहार न केवल बहनों के लिए अपितु समस्त नारी जाति के लिए मृदुल और विनम्र बना रहे।
भारतीय संस्कृति में श्रावण मास का विशेष महत्व है। हमारे शास्त्रों में श्रावण मास की पूर्णिमा विविध रूपों में मान्य है। राखी के धागे मात्र सूत्र के होने पर भी जीवन को पावन और नैतिकतापूर्ण बनाते हैं साथ ही हमारे समस्त जीवन में सूत्र रूप में नैतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना में सहयोगी बनते हैं। ये कच्चे धागे स्वयं में मजबूत न होते हुए भी जिसकी कलाई पर बांधे जाते हैं उससे न केवल अटूट संबंध बनाते हैं वरन् नि:स्वार्थ प्रेम, शुचिता और आध्यात्मिक बन्धन में बांधकर सदैव-सदैव के लिए *वसुधैव कुटम्बम्* के बन्धन में बांध देते हैं जहां वर्गभेद, जातिभेद और विभिन्न विचारों का कोई महत्व नहीं रहता।
असुर पुलोमा की पुत्री थीं. उन्हें पौलौमी भी कहते हैं. इंद्र ने इस अक्लमंद और सुंदर कन्या के बारे में सुन रखा था. इसलिए पुलोमा को युद्ध में हराने के बाद उन्होंने दंडस्वरूप पुलोमा से उसकी बेटी शची मांग ली. पुलोमा को लगा कि उसकी बिटिया इसी बहाने देव-स्थान में पहुंच गई तो देवताओं से बार-बार की लड़ाई से भी मुक्ति मिल जाएगी. वैसे भी वह लड़ाई में हारा हुआ था. उसने इंद्र की बात मानते हुए शची इंद्र को सौंप दी.
--जब इंद्राणी ने बांधी अपने पति को राखी--
भविष्य पुराण के मुताबिक, एक बार देवता और दानवों में 12 साल तक युद्ध हुआ लेकिन देवता विजयी नहीं हुए. हार के डर से घबराए इंद्र पहुंचे देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेने. तब बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधिविधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए. स्वास्तिवाचन के साथ उन्होंने ब्राह्मण की मौजूदगी में वह सूत्र इंद्र की दाईं कलाई पर बांधा. जिसके बाद इंद्र की देव-सेना ने दानवों को युद्ध में पटक दिया.
काबिल-ए-जिक्र यह भी है कि इंद्राणी ने इंद्र को रक्षा सूत्र बांधते हुए जो मंत्र पढ़ा था, उसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है. यह मंत्र था- ‘
*येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल । !------ ॐ|--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -----https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut ----उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

सोमवार, 22 जुलाई 2024

शिव की उपासना अनेक विधयों से करें -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "भगवान शिव अजातशत्रु हैं । शिव की उपासना कोई भी अपनी -अपनी सामर्थ के अनुसार कर सकता है । जल है तो जल से ही खुश करें ,धन है तो धन से ही प्रसन्न करें ,अन्न है तो अन्न से ही खुश करें ,मन है तो मन से ही भोले खुश हो सकते हैं ,तन है तो तन से भी खुश होते हैं । अगर कुपात्र हैं तो भी मोह सकते हैं ----शिवम भूत्वा शिवम जपेत् --केवल आपको एक क्षण के लिए शिव के लिए होना होगा फिर कृपा अवश्य होगी भोले की । --------कलौ चण्डी महेस्वरः ---कलियुग में या तो माँ भवानी की शरण से कल्याण होगा या भवानी पत्ती शिव की शरण से -----शिव या माँ भवानी की पूजन के लिए कुछ विशेष पर्व हैं -जिस पर्व पर हम क्षणिक त्याग या क्षणिक समर्पण से समस्त कामनाओं को प् सकते हैं । सबसे बड़ी बात इनके दरबार में पात्र या कुपात्र कोई भी आ सकता है और यदि दरबार में न आ पाये तो केवल दर्शन से भी विशेष फल प्राप्त कर सकता है । जितनी भी पूजाएं हैं वो समस्त पूजा नियम एवं पात्रता के आधार पर है किन्तु शिवरात्रि इन नियमों से पड़े है -तभी तो लाखों भक्त शिवरात्रि पर या नवरात्रि पर उमर पड़ते हैं । -----------गेहूं से बने पकवान से शिव की पूजा करने से वंश की उन्नति {वृद्धि }होती है । -----मूंग से पूजा करने पर सुख की प्राप्ति होती है । कंगनी {धान }-से शिव पूजन करने से -धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है । -- सबसे उत्तम पूजन जलधारा होती है और इससे शांति मिलती है । --अगर मन न लगता हो किसी काम में ,दुःख की विशेषता हो घर में ,क्लेश विशेष हो घर में ,तो दूध से अभिषेक शिव का करने से शांति मिलती है । --सहस्रनाम,के पाठ शिव समक्ष घृत {घी }से करने से संतान सुख मिलता है । -----सुगन्धित तेल से अभिषेक शिव करने से भोग सुख मिलता है । ---शहद {मधु } से अभिषेक शिव का करने पर टीवी -राजयक्ष्मा रोग से मुक्ति मिलती है । ----गन्ने का रास से अभिषेक शिव का करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । -----गंगाजल से शिव का अभिषेक करने से भोग +मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है । महामृत्युंजय के जाप शिव समक्ष करने पर आयु -आरोग्य की प्राप्ति होती है । आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -

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रविवार, 14 जुलाई 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -99 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


हर व्यक्ति का जीवन कैसा रहेगा यह पृथ्वी पर आगमन से लेकर 18 वर्ष उम्र तक निर्धारित हो जाता है | यह बात जन्मपत्रिका में निर्धारित रहती है | भले ही किसी कारण बस सही मार्गदर्शन समयानुसार न हो किन्तु ज्यों -ज्यों उम्र बढ़ती जाती है -उसी प्रारूप में व्यक्ति ढलता जाता है --इसे वह ईस्वर की कृपा मानता है या प्रारब्ध की घटना | ---अस्तु --मुझे अपने जीवन की सही यादें -10 वर्ष के बाद की हैं --जिन्हें सच  मानता हूँ | मेरे पिता अनपढ़ थे -किन्तु हिम्मत के बहुत ही बलवान थे | तार्कित बुद्धि से सबको पराजित कर देते थे | उत्तम दर्जे का रहन -सहन था जबकि जेब में कुछ नहीं होता था | मेरा राजयोग दस वर्ष तक था तभी तक जो मिला सो मिला | मेरा दारिद्र योग शुरू हुआ तो लबे समय समय तक पतन का योग चलता रहा | किसी तरह गुजर -बसर करते रहे | घर में भले ही दरिद्र योग चल रहा था --मेरा घर से गमन दस वर्ष में ही हो गया | शिक्षा -के  साथ धन का उपार्जन बाल्यकाल 10 वर्ष से ही मेरा शुरू हो गया | मेरी शिक्षा दीक्षा में पिताजी का कोई योगदान नहीं रहा --फिर भी मेरा सदा समर्पण भाव घर के प्रति रहा | अपने घर में केवल मैं ही सशक्त था -चाहे शिक्षा हो या सोच --पर हमारी कभी चलती नहीं थी | अपने सामने पिता को कई ऐसे फैसले लेते देखा जिसका परिणाम पतन की और ले गया | दीदी की शादी की जीजा को पढ़ाने का बोझ उठा लिया --जबकि हमारे घर में दरिद्र योग चल रहा था --हमने युद्ध किया तब जीजा अपने घर से पढ़ने लगे पर फ्री की खाने की सदा आदत पड़ गयी --जो आजतक नहीं बदली | हमारा एक बगीचा था -जिसे एक ताऊ को दिया बदले में घर के बगल की जमीन ली --किन्तु एकदिन ऐसा आया -वह जमीन भी लेली और बगीचा युद्ध का अखाडा बन गया | पिता के साथ सदा युद्ध होता रहा --और मैं देखता रहा  | मेरे पिता चाहते तो शारीरिक श्रम से धन का उपार्जन करते किन्तु --जीवन भर युद्ध करने का निर्णय लेते रहे ---एक दिन ऐसा आया  हम एक शास्त्री थे , मुझे शास्त्र की जगह --शस्त्र उठाने पड़े |  मुझे क्रम से सभी परिजनों का शत्रु बनना पड़ा | हमने माता पिता के होते हुए --मामा से शत्रुता करनी पड़ी --क्योंकि सक्षम और शिक्षित होते हुए मेरे घर को सही दिशा नहीं दी | मुझे दीदी +जीजा से शत्रुता करनी पड़ी --ये भी  सक्षम और शिक्षित थे  पर मेरे घर को सही दिशा नहीं दी | अंत में जिस अनुज को पुत्र की तरह मानते थे --माता पिता ने --उसे ही  मेरा शत्रु बना दिया --पर यह अशिक्षित था  और मैं शिक्षित --हम दोनों के बीच धन का ऐसा युद्ध शुरू हो गया  --जिसका समाधान मेरे पास नहीं था --और हमने पलायन करना बेहतर समझा  |  एक शास्त्री होने के नाते  माता पिता से अनन्त प्रकार के यज्ञ कराये --जिसका परिणाम बहुत जल्दी मिला --माता पिता धनाढ्य हुए  | फूस का घर महल में बदल गया | ब्याज का कारोबार लाखों में चलने लगा | मकान से किराये आने लगे  | सभी शत्रु परिजन माता पिता के सान्निध्य में रहने लगे | एक तरफ मैं था --दूसरी तरफ -दीदी -जीजा ,माता पिता ,अनुज ,मां -मामी --इनके साथ -साथ सभी परिजन  | फिर क्या था --जन्मदाता  होने के बाद भी ऐसा लगता था --मानों माँ की कोख से मैं पैदा ही नहीं हुआ | मेरे सामने एक जहर खाने का रास्ता था ---इससे मेरे बच्चे अनाथ हो जाते | दूसरा पलायन का -- सबकुछ छोड़कर किसी शहर  में रहने लगते | यह सभी चाहते भी थे  |  पर यहाँ एक समस्या थी --पतनी के गहने बेचकर पिता का कर्ज चुकाया था | सारी कमाई पिता को दे चूका था , भवन निर्माण में मेरे भी पैसे लगे थे  | पलायन मेरी पतनी को मंजूर नहीं था | इसका परिणाम यह हुआ --माता पिता और अनुज के मुँह से अपशब्द तो बहुत छोटी बात थी ---पतनी और बच्चों को बहुत ही प्रताड़ित  करते थे  | हमने शत्रु संहार के लिए बहुत यज्ञ यजमानों के लिए कराये जीवन में --किन्तु अपने परिजन के लिए ऐसा  सोच भी नहीं सकता था  |  क्योंकि भले ही परिजन मुझे अपमानित कर रहे थे किन्तु विवेक मेरा सदा जागृत रहा  | ऐसी स्थिति में -मुझे कईबार बहुत ही भयानक दृश्य देखने को मिलता था | -पिता और पतनी का युद्ध ,माँ और पतनी का युद्ध ,अनुज और पतनी का युद्ध ,मामा और पतनी का युद्ध ,दीदी और पतनी का युद्ध  ---यह दृश्य  मुझे बारबार कायरता को दर्शाता था | कईबार मैं जीते जी मरा ----पर पाषाण की तरह जीता रहा | मुझे नहीं चाहिए ऐसा युद्ध जो अपनों से करना पड़े ---पर होनी बलवान होती है |  आज मैं जहाँ खड़ा हूँ --वो भिक्षा में मिला हुआ जीवन है | आज मेरे पास धन भी है ,भवन भी है ,मान है सम्मान है --पर यह उपकार भार्या का है | भले ही मैं कहूं ये है वो है --पर मेरी आत्मा सदा धिक्कारती रहती है |  आगे की चर्चा अगले भाग में करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


गुरुवार, 11 जुलाई 2024

कुण्डली के विशेष भावों को -जानें -ज्योतिष कक्षा -पाठ 55 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


 जन्मकुण्डली के द्वादश भावों को जाना ---अब त्रिकोण ,केन्द्र ,पणकर,आपोक्लिम तथा मारक किन -किन भावों को कहा जाता है ? इसे नीचे लिखें अनुसार समझें ---

---1 ---त्रिकोण ---पंचम तथा नवम भावों को त्रिकोण कहते हैं | 

--2 ---केन्द्र -प्रथम ,चतुर्थ ,सप्तम तथा दशम --इन भावों को केन्द्र कहते हैं | 

--3 ---पणकर ---द्वितीय ,पंचम ,अष्टम तथा एकादश -इन चारों भावों को पणकर कहते हैं | 

--4 --आपोक्लिम ---तृतीय ,षष्ठ ,नवम तथा द्वादश --इन भावों को आपकलिम कहते हैं | 

---5 ---मारक ---द्वितीय तथा सप्तम भाव को "मारक " कहा जाता है | 

--ध्यान दें ---कुछ विद्वानों के मतानुसार द्वितीय तथा दशम भाव को पणकर एवं तृतीय तथा एकादश भाव को अपोक्लिम माना जाता है | कुछ अन्य विद्वान षष्ठ तथा अष्टम भाव को पणकर तथा द्वितीय एवं द्वादश भाव को अपोक्लिम मानते हैं | 

----अगले भाग में मूल त्रिकोण पर परिचर्चा करेंगें ------- ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 1 जुलाई 2024

कुण्डली के भावों को जानें -ज्योतिष कक्षा -पाठ 54 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


पाठकगण --वैसे ज्योतिष का फलादेश विशाल सागर की भांति है फिर भी कुछ उदहारण देना चाहता हूँ किस भाव से क्या -क्या जानकारी करनी चाहिए ----

----प्रथमभाव --सूर्य ,शरीर ,जाति ,विवेक ,शील ,आकृति ,मस्तिष्क ,सुख -दुःख ,आयु  | 

---द्वितीयभाव ----धन ,कुटुंब ,रत्न ,बंधन   | 

--तृतीय भाव ----पराक्रम ,सहोदर ,धैर्य   | 

---चतुर्थ भाव ---चन्द्र ,बुध ,माता ,सुख ,भूमि ,गृह ,सम्पत्ति ,छल ,उदारता ,दया ,चतुष्पद   | 

--पंचम भाव --गुरु ,विद्या ,बुद्धि ,संतान ,मामा   | 

--षष्ठ भाव ---शनि ,मंगल ,शत्रु ,रोग ,चिंता ,संदेह ,पीड़ा  | 

--सप्तम भाव -- भार्या ,प्रेम ,वैवाहिक जीवन  | 

--अष्टम भाव ---शनि ,मृत्यु ,आयु ,व्याधि ,संकट ,ऋण ,चिंता  ,पुरातत्व  | 

--नवमभाव ---सूर्य ,गुरु ,भाग्य ,धर्म ,विद्या ,प्रवास ,तीर्थ -यात्रा ,दान  | 

---दशम भाव --- सूर्य ,बुध ,गुरु ,शनि ,राज्य ,पिता ,नौकरी ,व्यवसाय ,मान -प्रतिष्ठा | 

---एकादश भाव --गुरु ,लाभ ,आय ,संपत्ति ,ऐश्वर्य , वाहन  | 

--द्वादश भाव --शनि ,व्यय ,हानि ,दंड ,रोग ,व्यसन  | ---ये सब कुण्डली  के भावों में स्थित समझें  | 

---ध्यान दें --अगले भाग में  त्रिकोण ,केन्द्र ,पणकर,आपोक्लिम  तथा मारक किन -किन  भावों को कहा जाता है  ? इसे लिखकर समझाने का प्रयास करेंगें  |  ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



शनिवार, 29 जून 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -98 -ज्योतिषी झा मेरठ


आत्मकथा के उत्तर भाग संख्या 98 में उन बातों पर प्रकाश डालना चाहता हूँ --जिसकी  वजह से वास्तव में व्यक्ति किसी का नहीं हो पाता है | तनिक सा प्रयास स्थिरता अवश्य प्रदान करता है | --मेरी  प्रथम मातृभाषा -माँ और मातृभूमि से  दूरी केवल 10 वर्ष का था तभी हो गयी | जब हम 20 वर्ष के हुए तो दूसरा परिवार विवाह से जुड़ा | यह मेरा दूसरा परिवार भी आगे चलकर बहुत विशाल हुआ --जिसमें दो बेटियां और एक बालक हुए | जैसे रोजगार की तलाश में लोग देश -विदेश जाते हैं सिर्फ धन के लिए --किन्तु मातृभूमि और परिवार का स्नेह निरन्तर व्यक्ति को अपनी ओर खींचता रहता है | ऐसे ही मुझे विवाह होने के बाद भले ही पतनी और बच्चों के हो गए --येन -केन प्रकारेण -अपने बच्चों को शिक्षा कैसे बढियाँ मिले ,उत्तम वर कैसे मिले ,उत्तम घर कैसे बेटियों को मिले ,ये बच्चे कैसे सुखी रहें ,इन्हें कोई कभी तकलीफ न हो -इसके लिए अपना सुख परित्याग कर निरन्तर योजनाओं में लगे रहे | यद्यपि मेरे माता पिता का परिवार बहुत ही कष्टप्रद रहा --इसकी अपेक्षा मेरे बच्चों को पूर्ण सुख मिला | शहर में भी घर मिला ,मातृभूमि पर भी घर मिला | मैं पढता भी था और अपने माता पिता का भरण -पोषण कैसे हो इसके लिए भी सतत प्रयास करता रहा | --जब मेरा परिवार हुआ तो माता पिता का भी ख्याल रखता था | अपने बच्चों के सुख के लिए अपने सुख  का बलिदान भी कर दिए  | बच्चों के लिए  हर प्रकार की व्यवस्था करने में कभी मन में कोई तकलीफ नहीं हुई | मैं खुद पैदल चलता हूँ पर मेरे बच्चे  कभी पैदल न चलें --यह सोच सदा रही  | बेटी के सुख के लिए  एक झटके में कई लाख लगा दिए --हँसते -हँसते --मेरी बेटी सुखी रहे  | बालक की शिक्षा में जितना लगे -मंजूर है | --पर  इतना होते हुए भी मैं सुखी नहीं हो सका  | पतनी बच्चों के साथ रहते हुए भी -माता पिता और सगे -सम्बन्धियों की यादें निरन्तर  मुझे दुःखी करती रहती हैं | --जिस अग्नि को साक्षी मानकर पतनी को लेकर आया था -आजतक उसका दिल से नहीं हो सका ---उस दिल में पहला माता पिता का परिवार बैठा रहता है और मैं चाहकर भी एक शास्त्री होकर भी बाहर नहीं निकल पाता हूँ | भार्या कईबार उलाहना देती रहती है -- कुछ दिन माँ के पास ही क्यों नहीं रहते हो ---जिस प्रकार व्यक्ति रोजगार की तलाश में बाहर आ जाता है -- वो व्यक्ति धन तो कमाता है ,उसकी यादें तो सताती रहती हैं किन्तु  --धन एक ऐसी व्यक्ति की जरुरत है --जिसके आगे व्यक्ति --अजीवाल या तो मृत्यु की तलाश करता है ताकि छुटकारा मिले या फिर केवल धन चाहिए  | --धन न जानें कितने सम्बन्धों को जोड़ता है --तोड़ता है --पर क्षणिक देर के लिए जोड़ता है -तोड़ता है --वास्तव में किसी का होने नहीं देता है | हमने अपने जीवन में यही अनुभव किया है | धन की वजह से न तो माता पिता और परिजन का हुआ ,न ही धन की वजह से अपनी पतनी और बच्चों का हो सका --अगर होता --तो --?पतनी कईबार बोली -वृन्दावन  घुमा दो ,हरिद्वार घुमा दो ? --हमने कईबार कहा -बड़ी बेटी की शादी हो जाने दो ,फिर बोला --छोटी बेटी की शादी हो जाने दो ,फिर बोला --बालक को कामयाब होने दो --न जाने बोलते -बोलते थक गया पर घुमा न सका | माता पिता कई बार बोले -ये कर दो -वो कर दो --केवल कहता ही रहा --ये करूँगा --वो करूँगा --करना तो दूर --वैवाहिक जीवन में जाने के बाद --और दूरी बनाली --अतः मुझे लगा है ---जीवन में धन के आगे सभी नतमस्तक होते हैं --चाहे -शास्त्री हो या ज्योतिषी ,चाहे -ज्ञानी हो या अज्ञानी -- आगे की चर्चा अगले भाग में करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


शनिवार, 15 जून 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -97 -ज्योतिषी झा मेरठ


 व्यक्ति के जीवन में कई पड़ाव आते हैं | वहां पहुँचने से पहले आशा होती है आगे ऐसा करेंगें ,वैसा करेंगें --जो नहीं कर सके उसे पाने की कोशिश करेंगें --पर ये बातें स्वप्न जैसी होतीं हैं ---खासकर हमने यही अहसास किया है | मेरा पहला परिवार बाल्यकाल में माता पिता ,तीन भाई और एक बहिन से जुड़ा था | राजयोग से दरिद्र योग केवल जब हम 10 वर्ष के हुए तभी प्राप्त  हुआ -पर सहमति एक थी | भले ही अनन्त दुःख थे किन्तु प्रेम अनमोल था | माता पिता का अनुपम स्नेह था ,दीदी की ममतामयि दया की छत्र छाया में निरंतर रहता था | अनुजों के संग बाहुबली था | छत नहीं थी पर हम खुश थे ,वस्त्र नहीं थे फिर भी खुश थे ,पेट में दाना नहीं थे पर स्वर्ग में थे | सबसे पहले दीदी की शादी हुई -मेरी टोली में से एक सदस्य कम हो गया | फिर गरीबी थी पिता एक आश्रम में दे आये -उस टोली से दूसरा सदस्य गायब हो गया | एक अनुज को सर्प दंश के कारण मृत्यु हो गयी --एक और सदस्य कम हो गया | एक और अनुज रोजी -रोटी की तलाश में में मेरठ आ गया --उस टोली -परिवार में दो सदस्य बचे -माता पिता जिनपर कोई वजन नहीं था | जब वजन कम हो तो व्यक्ति की तरक्की होती है --पर विवेक नहीं हो तो एक क्षेत्र मजबूत होता है तो दूसरा क्षेत्र कमजोर स्वतः ही होने वाला होता है --इससे बचने के लिए ईस्वर की कृपा और विवेक का सदुपयोग करना चाहिए | आज के समय में किसी भी व्यक्ति को पहले धन चाहिए -हर व्यक्ति धन के क्षेत्र में आज मजबूत तो होता है पर बहुत कुछ खो देता है --जिसकी वो परवाह नहीं करता | मेरे माता पिता धनवान तो हुए -पर विवेक का प्रयोग नहीं करके राजनीति -छल -कपट का सहारा लिए --जिसकी वजह से धन ही विवाद का कारण बना | धन की वजह से बड़े पुत्र को खो दिया ,फिर अनुज को भी खो दिये | एक दिन धन माँ के हाथों में चला गया -अन्न -दवाई के बिना प्राण चले गए -कोई साथ नहीं दिया | माँ का धन अनुज ने समेट लिया --शून्य बनाकर दर -दर भटकने के लिए छोड़ दिया | जिन परिजनों ने यह अविवेक बनने की सलाह दी और जिनको सत्य मानकर अमल किया --वही मृत्यु का पाश बन गया | ऐसी स्थिति में महा भारत अपने सामने घर में ही शुरू हो जाता  है  | --क्योंकि जो मेरा पहला परिवार माता पिता भाई -बहिन थे --उससे हम सभी आगे बढ़ चुके थे --हमारा परिवार -पतनी ,और बच्चे थे -बाद में माता पिता या परिजन थे | ऐसे ही अनुज के बच्चे पहले थे ,ऐसे ही दीदी के बच्चे पहले अपने थे --कभी माता पिता हमारे थे अब हम खुद माता पिता हो चुके थे  | -मेरे माता पिता ईस्वर की आराधना तो बहुत करते थे --पर अज्ञानी थे सलाहकार भी अज्ञानी थे इसलिए समय के साथ चलना नहीं सिख पाये | -केवल मैं यहाँ यही कहना चाहता हूँ --अगर जीवन में सुखी होना चाहते हैं --तो ईस्वर की आराधना अवश्य करें पर अविवेकी कदापि न बनें ,वही निर्णय लें जो शास्त्र कहते हैं ,जो आपका  विवेक मन कहता है --जिसमें भले ही दुःख हो पर सत्य पर आधारित हो --तभी एक परिवार से निकलकर दूसरे परिवार का सुख लिया जा सकता है --अन्यथा धन तो होगा एकता नहीं होगी ,संगठन नहीं होगा ,सुखद अनुभूति नहीं होगी | आगे की चर्चा अगले भाग में करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


मंगलवार, 11 जून 2024

जन्म -कुण्डली के द्वादश भाव -ज्योतिष कक्षा -पाठ -53-पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


जन्म -कुण्डली में 12 खाने होते हैं | इन्हें घर ,स्थान अथवा भाव कहा जाता है | ---

जन्म -कुण्डली के 12 भावों के नाम इस प्रकार हैं ---1 --तनु ,--2 --धन ,--3 सहज ,--4 -सुहृद ,--5 --पुत्र ,-6 --रिपु ,---7 -स्त्री ,--8 --आयु ,--9 --धर्म ,---10 --कर्म ,--11 --लाभ ,---12 --व्यय | ---इन भावों के द्वारा किन -किन बातों का विचार किया जाता है ,इसे इस प्रकार से समझना चाहिए | 

--1 --तनु ---इसे प्रथम भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा स्वरूप ,जाति ,आयु ,विवेक ,शील ,मस्तिष्क ,चिन्ह ,दुःख -सुख तथा आकृति आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | इस भाव का कारक सूर्य है | इसमें मिथुन ,कन्या ,तुला तथा कुम्भ आदि कोई राशि हो ,तो उसे बलवान माना जाता है | लग्नेश की स्थिति और बलाबल के अनुसार इस भाव से उन्नति -अवनति तथा कार्य -कुशलता का ज्ञान प्राप्त किया जाता है | 

--2 --धन --इसे फणकर तथा द्वितीय भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा स्वर ,सौंदर्य ,आँख ,नाक ,कान ,गायन ,प्रेम ,कुल ,मित्र ,सत्यवादिता ,सुखोपभोग ,बंधन ,क्रय -विक्रय ,स्वर्ण ,चांदी ,मणि ,रत्न आदि संचित पूंजी के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

---3 --सहज --इसे आपोक्लिम तथा तृतीय भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक मंगल है | इसके द्वारा पराक्रम ,कर्म ,साहस ,धैर्य ,शौर्य ,आयुष्य ,सहोदर ,नौकर -चाकर ,गायन ,क्षय ,श्वास ,कास ,दमा ,तथा योगाभ्यास आदि का विचार किया जाता है | 

--4 --सुहृद --इसे केन्द्र तथा चतुर्थ भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा सुख ,गृह ,ग्राम ,मकान ,संपत्ति ,बाग -बगीचा ,चतुष्पद ,माता -पिता का सुख ,अन्तः करण की स्थिति ,दया ,उदारता ,छल ,कपट ,निधि ,यकृत तथा पेटादि रोगों के संबंध में विचार किया जाता है | इस भाव का कारक चन्द्र है | इस स्थान को विशेषकर माता का स्थान माना जाता है | 

---5 --पुत्र --इसे पणकर ,त्रिकोण तथा पंचम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा बुद्धि ,विद्या ,विनय ,नीति ,देवभक्ति ,संतान ,प्रबन्ध -व्यवस्था ,मामा का सुख ,धन मिलने के उपाय ,अनायास बहुत धन की प्राप्ति ,नौकरी से विच्छेदन ,हाथ का यश ,मूत्र -पिंड ,वस्ति एवं गर्भाशय  आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

---6 --रिपु --इसे आपोक्लिम तथा षष्ठ भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक मंगल है | इस भाव के द्वारा शत्रु ,चिंता ,संदेह ,जागीर ,मामा की स्थिति ,यश ,गुदा -स्थान ,पीड़ा ,रोग तथा व्रणादि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

---7 ---स्त्री --जाया ---इसे केन्द्र तथा सप्तम भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा स्त्री ,मृत्य ,कामेच्छा ,कामचिंता ,सहवास ,विवाह ,स्वास्थ ,जननेन्द्रिय ,अंग -विभाग ,व्यवसाय ,झगड़ा -झंझट ,तथा बबासीर आदि रोग के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

---8 --आयु --इसे पणकर तथा अष्टम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक शनि है | इसके द्वारा आयु ,जीवन ,मृत्यु के कारण ,व्याधि ,मानसिक चिंताएं ,झूठ ,पुरातत्व ,समुद्र -यात्रा ,संकट ,लिंग ,योनि तथा अंडकोष के रोग आदि का विचार किया जाता है | 

--9 --धर्म --इसे त्रिकोण तथा नवम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा तप ,शील ,धर्म ,विद्या ,प्रवास ,तीर्थ यात्रा ,दान ,मानसिक -वृत्ति ,भग्योदय तथा पिता का सुख आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

---10 --कर्म --इसे केन्द्र तथा दशम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक बुध है | इसके द्वारा अधिकार ,ऐश्वर्य -भोग ,यश -प्राप्ति ,नेतृत्व ,प्रभुता ,मान -प्रतिष्ठा राज्य ,नौकरी ,व्यवसाय तथा पिता के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

--11 --लाभ --इसे उपचय ,पणकर तथा एकादश भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा सम्पत्ति ,ऐस्वर्य ,मांगलिक कार्य ,वाहन ,रत्न आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

--12 --व्यय --इसे द्वादश भाव कहा जाता है | इस भाव का कारक शनि है | इसके द्वारा दंड ,व्यय ,हानि ,व्यसन ,रोग ,दान तथा बाहरी सम्बन्ध आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

---इन द्वादश भावों के फलादेश जानने के बाद --किसी भी कुण्डली का सही आकलन करने में मदद मिलेगी | ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



शनिवार, 1 जून 2024

ग्रहों के पारस्परिक संबंध-ज्योतिष कक्षा पाठ -52 - पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


पाठकों को ग्रहों के आपसी -सम्बन्ध के बारे में जानकारी अवश्य होनी चाहिए | जन्म कुण्डली का फल लिखने ,बताने अथवा जानने के लिए इस जानकारी का बहुत अधिक महत्व है | कौन -सा ग्रह किस दूसरे ग्रह का मित्र ,शत्रु अथवा सम -न मित्र न शत्रु -है --इसे निम्न रूप में समझना चाहिए | 

--1 --सूर्य के चंद्र ,मंगल तथा गुरु मित्र हैं ,शुक्र तथा शनि शत्रु हैं एवं बुध सम है | 

--2 ---चंद्र के सूर्य तथा बुध मित्र हैं | मंगल ,शुक्र ,शनि तथा गुरु सम हैं | 

--3 --मंगल के सूर्य ,चंद्र और गुरु मित्र हैं ,बुध शत्रु है तथा शुक्र और शनि सम है | 

---4 --बुध के सूर्य तथा शुक्र मित्र हैं | चंद्र शत्रु है और मंगल ,गुरु तथा शनि सम है | 

--5 --गुरु के सूर्य ,चंद्र और मंगल मित्र हैं ,शुक्र व बुध शत्रु हैं तथा शनि सम है | 

--6 -शुक्र के बुध और शनि मित्र हैं ,सूर्य और चंद्र शत्रु हैं तथा मंगल और गुरु सम हैं | 

--7 --शनि के बुध और शुक्र मित्र हैं ,सूर्य ,चंद्र और मंगल शत्रु हैं तथा गुरु सम है | 

---कुछ ज्योतिष शास्त्री चंद्र गुरु से शत्रुता मानते हैं | राहु तथा केतु छाया ग्रह हैं | अतः ग्रहों के नैसर्गिक मैत्री चक्र में इन दोनों का उल्लेख नहीं किया गया है | विद्वानों के मतानुसार राहु और केतु --ये दोनों ग्रह शुक्र तथा शनि से मित्रता रखते हैं एवं सूर्य ,चंद्र ,मंगल तथा गुरु --इन चारों ग्रह से शत्रुता रखते हैं | बुध इन दोनों राहु +केतु के लिए सम हैं | इसी प्रकार सूर्य ,चंद्र ,मंगल तथा गुरु --ये चारों ग्रह राहु तथा केतु से शत्रुता मानते हैं | शुक्र और शनि ,राहु तथा केतु के मित्र हैं तथा बुध इन दोनों से सम भाव रखता है | उदाहरण से समझें 

--1 -----------------जो ग्रह जिससे द्वितीय ,तृतीय ,चतुर्थ ,दशम ,एकादश और द्वादश में होता है वो उसका तात्कालिक मित्र होता है | 

----2 ------जो दोनों ग्रह एक ही राशि में बैठे होते हैं ,वो परस्पर तात्कालिक शत्रु होते हैं | 

---3 ----जो ग्रह परस्पर पंचम -नवम ,षष्ठ -अष्टम या प्रथम -द्वितीय से सप्तम बैठे हों तो वो तात्कालिक शत्रु होते हैं | 

--ज्योतिष की परिपाटी यही है | ---अगले भाग में जन्म -कुण्डली के द्वादश भाव पर विवेचन करेंगें | 

-भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 27 मई 2024

ज्योतिष की कुछ विशेष बातें पढ़ें -ज्योतिष कक्षा -पाठ -51 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


पुरुष और स्त्री राशि तथा ग्रह --

-मेष ,मिथुन ,सिंह ,तुला ,धनु और कुम्भ पुरुष राशि है | --वृष ,कर्क ,वृष्चिक ,मकर ,कन्या और मीन ये स्त्री राशि हैं | चन्द्र और शनि स्त्री ग्रह हैं | बुध नपुंसक है | शनि -स्त्री नपुंसक है | 

--दिशाओं के स्वामी -----

---सूर्य पूर्व का ,शुक्र पूर्व -दक्षिण का ,मंगल दक्षिण का , राहु दक्षिण -पश्चिम कोण का ,शनि पश्चिम का ,चंद्र पश्चिमोत्तर कोण का ,बुध उत्तर का ,गुरु पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी है | किस ग्रह से कौन -सी दिशा में भाग्योदय होगा ,या चोरी गई है ,या पथिक गया है आदि जातक विचार तथा प्रश्न में इस ज्ञान का प्रयोजन होता है | 

-----मेष ,सिंह ,धनु की पूर्व दिशा है ,वृष ,कन्या ,मकर की दक्षिण ,मिथुन ,तुला ,कुम्भ की पश्चिम तथा कर्क ,वृश्चिक ,मीन की उत्तर दिशा है | 

----तत्व ,रंग और वर्ण तथा ऋतु एवं स्वाद ----

--1 ---सूर्य और मंगल का अग्नितत्व ,चन्द्र और शुक्र का जलतत्व ,बुध का पृथ्वी तत्व ,गुरु का आकाश तत्व तथा शनि का वायु तत्व है | मेष ,सिंह ,धनु ,अग्नितत्व की राशि है | वृष ,कन्या ,मकर पृथ्वी तत्व की राशि है ,मिथुन ,तुला ,कुम्भ वायु तत्व की राशि मानी जाती है | 

---2 --सूर्य का ताम्र वर्ण ,चंद्र का श्वेत वर्ण ,मंगल का लाल ,बुध का हरा ,गुरु का पीला ,शुक्र का विविध रंग ,शनि का काला है | राहु का भी काला रंग होता है ,जबकि केतु का धब्बेदार माना जाता है | 

----3 --गुरु व शुक्र ब्राह्मण वर्ण ,सूर्य व मंगल क्षत्रिय वर्ण ,चंद्र वैश्य वर्ण ,शनि संकर जातियों का तथा बुध वैश्य है | अनेक ज्योतिषियों के अनुसार चंद्र ब्राहण और बुध वैश्य है | 

---4 --सूर्य और मंगल की ग्रीष्म ऋतु ,चन्द्रमा की वर्षा ,बुध की शरद ,हुरु की हेमन्त ,शुक्र की बसंत और शनि की शिशिर ऋतु है | 

----5 ---सूर्य कटु {कड़वे रस }का ,चंद्र नमकीन स्वाद का ,मंगल तिक्त का ,बुध मिश्रित -कई मिले -जुले स्वादों का --रस का ,गुरु मधुर मीठे रस का ,शुक्र खट्टे रस का ,शनि कषाय कसैले रस का स्वामी है | ----नोट अगले भाग में ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्ध पर चर्चा करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


शुक्रवार, 24 मई 2024

ग्रहों का राशि -भोगकाल पढ़ें -ज्योतिष कक्षा -पाठ -50 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


कौन -सा ग्रह किस राशि पर कितने काल /समय अथवा अवधि तक ठहरता है | इसे निम्न तालिका के अनुसार समझ लेना चाहिए ---

--1 --सूर्य --एक राशि पर एक मास 

--2 --चन्द्र -एक राशि पर सवा दो दिन 

--3 --मंगल --एक राशि पर डेढ़ मास 

--4 --बुध --एक राशि पर पौन मास 

--5 --बृहस्पति ---एक राशि पर तेरह मास 

--6 --शुक्र --एक राशि पर पौन मास 

--7 --शनि एक राशि पर ढाई वर्ष 

--8 --राहु --रक राशि पर डेढ़ वर्ष 

--9 --केतु ---एक राशि पर डेढ़ वर्ष 

------सूर्य ,चन्द्र ,राहु तथा केतु के अलावा शेष पांचों ग्रह -1 -मंगल ,-2 -बुध ,--3 --गुरु ,4 --शुक्र ,--5 -शनि --ये कभी -कभी वक्री ,मार्गी अथवा अतिचारी हो जाया करते हैं ,जिसके कारण ये ग्रह -1 राशि पर अपनी निश्चित अवधि के समय को एक साथ लगातार भोगने के अलावा कुछ आगे -पीछे भी भोगा करते हैं | किस समय कौन -सा ग्रह मार्गी ,वक्री अथवा अतिचारी है --इसका पता पंचांग -पतरा -को देखकर चल सकता है | यदि किसी जातक के जन्म समय कोई ग्रह वक्री ,मार्गी अथवा अतिचारी होता है --तो उसे जीवन भर उसी प्रकार फल देता है | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 20 मई 2024

राशियों के स्वामी और ग्रह पढ़ें -ज्योतिष कक्षा पाठ -49 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


प्रत्येक ग्रह किसी न किसी राशि का स्वामी होता है | कौन -सा ग्रह किस राशि का स्वामी है --इसे नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए --

--1 --मेष + वृश्चिक का स्वामी मंगल है | 

--2 --वृष +तुला  का स्वामी शुक्र है | 

--3 --मिथुन +कन्या का स्वामी बुध है | 

--4 --कर्क का स्वामी चन्द्रमा है | 

--5 --सिंह का स्वामी -सूर्य है | 

--6 --धनु +मीन का स्वामी -गुरु बृहस्पति है | 

--7 --मकर +कुम्भ का स्वामी शनि है | 

---नोट --राहु और केतु ,ये दोनों छाया ग्रह हैं ,इसलिए ये किसी पृथक राशि के स्वामी नहीं हैं फिर भी कुछ ज्योतिषाचार्य राहु को कन्या का स्वामी तथा केतु को मिथुन का स्वामी मानते हैं | निम्न तालिका में हमने राशि और स्वामियों को दर्शाया है | 

अंक ---------राशि ---------अंग्रेजी नाम ----------स्वामी ------------अंग्रेजी नाम 

1 ---------------मेष ------------एरिस --------------मंगल ------------------मार्स 

--2 ------------- वृष ------------तौरूस -------------शुक्र -----------------वीनस 

---3 -----------मिथुन ------------जैमिनी -------------बुध -----------------मर्करी 

--4 ---------------कर्क ------------कैंसर -------------चन्द --------------------मून 

--5 -----------सिंह -----------------लिओ --------------सूर्य -------------------सन 

--6 ------------कन्या ----------------विरगो -------------बुध ----------------मर्करी 

--7 ------------तुला ------------------लिब्रा ---------------शुक्र ---------------वीनस 

--8 -----------वृष्चिक --------------स्कॉर्पियो -------------मंगल ----------------मार्स 

--9 -------------धनु ---------------सैगिटेरियस -------------गुरु ---------------जुपिटर 

--10 ---------मकर ---------------कैपरीकॉर्न -------------शनि -----------------सैटर्न 

--11 ----------कुम्भ ---------------अकवेरिअस ------- ---शनि ------------------सैटर्न 

--12 ----------मीन -------------------पीसेस ---------------गुरु ------------------जुपिटर 

---भारतीय शैली पर बनी जन्मपत्रिकाओं में अनेकों ज्योतिषियों द्वारा मंगल को कुज ,भौम अथवा मंगल की संज्ञा दी जाती है | इसी प्रकार सूर्य को रवि और गुरु को बृहस्पति भी लिखा जाता है | ----अगले भाग में ग्रहों का राशि -भोगकाल की चर्चा करेंगें | ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



गुरुवार, 9 मई 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -96 -ज्योतिषी झा मेरठ


 ॐ हमने अपने जीवन में जो अनुभव किया है अब उन तमाम बातों पर क्रम से प्रकाश डालने की कोशिश करेंगें | 

ज्योतिष का वास्तविक अर्थ नेत्र होता है --व्यक्ति धर्म -अधर्म को अपनी आँखों से सदा देखता -रहता है -स्थूल शरीर और मोह -माया का पाश इतना भयंकर होता है - जो सच पथ पर चलने नहीं देता है | निरन्तर भूल पर भूल करता रहता है --यद्यपि -सभी को ज्ञान का पाठ तो पढ़ाता है पर खुद छुपके से निरन्तर अन्धकार में जीता रहता है | --अस्तु -----अब हम 55 वर्ष के होने वाले हैं | कभी पुत्र था-- तो माता पिता और परिजनों के साथ चलने की तमन्ना रखता था | इस पथ पर चलता रहा -कभी माँ को कष्ट न मिले ,कभी पिता को कष्ट न मिले ,कभी -भाई -बहिन को कष्ट न मिले यही सोचता रहा | मेरे शरीर के हर अंग समर्पित रहते थे - चार भाई + -बहिन और माता पिता ही हमारा साम्राज्य था | घर में रोटी नहीं थी ,वस्त्र नहीं थे ,घर नहीं था ,कुछ जमीन नदी में समा गयी ,कुछ जमीन बेची गई दीदी की शादी के लिए ,कुछ जमीन गिरबी रखी गयी गौना के लिए ,माँ और दीदी खुद नहीं खातीं थीं पर पहला टुकड़ा मुझे मिलता था -मैं उस टुकड़े को अपने अनुज को देना पसन्द करता था | उस समय मेरा एक ही सपना होता था -मेरा परिवार कैसे अन्न -वस्त्र से सम्पन्न हो -मेरे घर में कोई बीमार होता था तो सिर्फ परमात्मा की दुआ या कृपा का ही सहारा होता था | --इतना गरीब मेरा परिवार जन्मजात नहीं था --मेरा जन्म राजयोग में हुआ था पर इसकी अवधि केवल 10 वर्ष थी | इन दस वर्षों में -पिताजी ने जमीन खरीदी ,बढ़िया दुकान चलती थी ,उपज उत्तम थी ,मामा मेरे यहाँ ही रहते थे | हम दोनों भाई पब्लिक स्कुल में पढ़ते थे --उस समय ऐसे स्कूलों का महत्व था | हमारा रहन -सहन उत्तम था | --पर ग्रहों के खेल निराले होते हैं ---मैं किसी के सहारे जीना नहीं चाहता था --अतः श्री महर्षि महेश योगी की संस्था में बिना पूछे माता पिता को चले गये पढ़ने --पातेपुर जिला वैशाली -बिहार -1981 में | -1982 में दीदी की शादी जमीन बेचकर हुई -मैं पातेपुर में था | इसके बाद मानों -रसातल जाने का योग शुरू हुआ --पातेपुर से 1982 में दीदी की शादी के बाद आया -वहां की शिक्षा छूट गयी | जमीन बिक गयी ,चोर दीदी के जेवर के साथ घर से सबकुछ ले गए | भोजन हेतु थाली भी नहीं बची | पिताजी नौकरी हेतु कलकत्ता गए --नाकाम होकर वापस आ गए | मुझे एक आश्रम में छोड़ आये --कभी सूद -बुध मेरी नहीं ली | अब मेरे माता पिता और परिजन मेरे आश्रम के लोग ही रहे | यहाँ जो मेरे साथ हुआ --उसका बखान क्या करूँ --अन्न -वस्त्र के लिए तड़प -तड़प कर मरते रहे | मुझसे शारीरिक इतना परिश्रम कराया गया --पहले भिक्षा मांगने की शिक्षा दी गयी ,फिर -50 लोगों का दोनों समय भोजन बनाना अनिवार्य था | इसके बाद गायों को चराना काम मिला -चप्पल नहीं होने के कारण -तलवों में गढ़े बड़े -बड़े थे --न औषधि न सहानुभूति थी | मैं परिजनों से दूर होकर नित्य मृत्यु को ढूंढा करता था --पर मृत्यु मिली नहीं |  एक दिन ऐसा हुआ --मेरा अनुज सर्प दंश से दिवंगत हो गया ---गरीबी इतनी थी --कफन की जगह --एक चचेरे भाई ने अपनी लुंगी-तहमत  खोलकर -उस शरीर को ढक दिया | -कर्ज लेकर अपने अनुज की आत्मा की शान्ति हेतु सभी संस्कार पूरे  किये | --आगे की चर्चा अगले भाग में करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

जम्मू कश्मीर का प्रभाव -2024 -में -ज्योतिष -विशेष -पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


ॐ -नूतन -संवत -2081 -सन -2024 +25 के मार्च तक --यह नूतन साल -2024 -25 -भारतीय प्रान्त -जम्मू कश्मीर के लिए विशेष महत्वपूर्ण है | आतंकवाद  के ढांचे को ध्वस्त करने के लिए भारतीय सेनाएं प्रचण्ड और अचूक कार्यवाही करेगी | पड़ौसी देश द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का खात्मा करने के लिए भारतीय सेनाएं सीमा उलंघन कर भयानक अस्त्र गर्जना करेगी | भारतीय सेना के पराक्रम की चर्चा अमेरिकी चुनाव में भी सुनाई देगी | समय ईशारा कर रहा है कि भारतीय थल और वायु सेना का दबदबा -बखान सम्पर्क पट्टी -में अनुभव  होगा | महायज्ञ के बाद कश्मीर में सुख शान्ति एवं समृद्धि के योग बनना प्रारम्भ होंगें | ---- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com



राजस्थान का प्रभाव -2024 -में -ज्योतिष -विशेष -पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


ॐ ज्योतिष मतानुसार - -भारतीय प्रान्त -राजस्थान -तुला राशि से प्रभावित है | शनि +मंगल के नवम -पंचम --योगायोग के कारण -नूतन संवत -2081 -सन -2024 +25 के मार्च तक -राजस्थान की राजनीति चर्चा में रहेगी | राजस्थान के प्रमुख दिग्गज नेताओं पर कारावास में जाने का योग उत्पन्न हो रहा है | अन्तर्राष्ट्रीय निवेश और ओद्योगिक प्रगति के लिए सर्वोत्तम योग बन रहे हैं | ऊर्जा के क्षेत्र में राजस्थान बड़ी छलांग लगायेगा | भविष्य में सेमि कंडक्टर इंडस्ट्री के आगमन का बीजारोपण भी इसी -2024 +25 में होगा | --- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com



गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

दिल्ली का प्रभाव -2024 में -ज्योतिष -विशेष -पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


ॐ ---भारतीय राज्य संघ -दिल्ली -प्रदेश  में संवत -2081 ,सन -1924 +25 के मार्च तक -महोदय  मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल जी  की "आप सरकार " तनावग्रस्त रहेगी | श्री केजरीवाल जी का राजसुख भंग होगा | लगभग एक दशक पूर्व -2013 +14 में दिल्ली ने आम आदमी पार्टी की बड़ी चुनावी लहर का लाभ लिया था | इस चुनावी लहर का समापन -2024 +25 में होना शुरू हो जायेगा | आप के राजनेताओं की जन लोकप्रियता में भारी गिरावट का योगायोग उत्पन्न हो रहे हैं | --भविष्य में दिल्ली राज्य की शासन व्यवस्था केन्द्र के अधीन होगी | -- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


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पंजाब प्रान्त का प्रभाव -2024 में -ज्योतिष -विशेष -पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


ॐ -ज्योतिष मत के अनुसार -भारतीय पंजाब प्रान्त मीन राशि से प्रभावित है | हमने गत  वर्ष -2023 में उल्लेख किया था कि अलगाववाद और खालिस्तान की बात सम्पूर्ण वर्ष उठती रहेगी | --इस अलगाववादी विषैले नाग का फन कुचलना अत्यन्त आवश्यक है | सन -2023 में भारत सरकार ने पंजाब के अलगाववाद पर सटिक प्रहार करने के लिए उपयुक्त कदम उठाये -इन सटिक कदमों की गूंज अमेरिकी महाद्वीप में ठीक से सुनाई दी | --भारतीय सरकार ने  एकता और अखण्डता बनाने के लिए यह जो कार्य किया --भारतीय सरकार साधुवाद की पात्र है | --इस नूतन संवत -2081 यानि -2024 +25 के मार्च तक प्राकृतिक कारणों से पंजाब की फसल की हानि के योगायोग बन रहे हैं | -विगत वर्ष -2023 में एक और उल्लेख किया था --कि पंजाब ,हरियाणा में चली आ रही चावल की अप्राकृतिक खेती को पृथ्वी अब अनुमति नहीं देगी | इसी श्रृंखला में -पंजाब +हरियाणा को अब खेती के तरीके बदलने पड़ेंगें | आर्थिक संकट के कारण -आप सरकार तनावग्रस्त रहेगी | ---- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


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मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

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