पाठकों को ग्रहों के आपसी -सम्बन्ध के बारे में जानकारी अवश्य होनी चाहिए | जन्म कुण्डली का फल लिखने ,बताने अथवा जानने के लिए इस जानकारी का बहुत अधिक महत्व है | कौन -सा ग्रह किस दूसरे ग्रह का मित्र ,शत्रु अथवा सम -न मित्र न शत्रु -है --इसे निम्न रूप में समझना चाहिए |
--1 --सूर्य के चंद्र ,मंगल तथा गुरु मित्र हैं ,शुक्र तथा शनि शत्रु हैं एवं बुध सम है |
--2 ---चंद्र के सूर्य तथा बुध मित्र हैं | मंगल ,शुक्र ,शनि तथा गुरु सम हैं |
--3 --मंगल के सूर्य ,चंद्र और गुरु मित्र हैं ,बुध शत्रु है तथा शुक्र और शनि सम है |
---4 --बुध के सूर्य तथा शुक्र मित्र हैं | चंद्र शत्रु है और मंगल ,गुरु तथा शनि सम है |
--5 --गुरु के सूर्य ,चंद्र और मंगल मित्र हैं ,शुक्र व बुध शत्रु हैं तथा शनि सम है |
--6 -शुक्र के बुध और शनि मित्र हैं ,सूर्य और चंद्र शत्रु हैं तथा मंगल और गुरु सम हैं |
--7 --शनि के बुध और शुक्र मित्र हैं ,सूर्य ,चंद्र और मंगल शत्रु हैं तथा गुरु सम है |
---कुछ ज्योतिष शास्त्री चंद्र गुरु से शत्रुता मानते हैं | राहु तथा केतु छाया ग्रह हैं | अतः ग्रहों के नैसर्गिक मैत्री चक्र में इन दोनों का उल्लेख नहीं किया गया है | विद्वानों के मतानुसार राहु और केतु --ये दोनों ग्रह शुक्र तथा शनि से मित्रता रखते हैं एवं सूर्य ,चंद्र ,मंगल तथा गुरु --इन चारों ग्रह से शत्रुता रखते हैं | बुध इन दोनों राहु +केतु के लिए सम हैं | इसी प्रकार सूर्य ,चंद्र ,मंगल तथा गुरु --ये चारों ग्रह राहु तथा केतु से शत्रुता मानते हैं | शुक्र और शनि ,राहु तथा केतु के मित्र हैं तथा बुध इन दोनों से सम भाव रखता है | उदाहरण से समझें
--1 -----------------जो ग्रह जिससे द्वितीय ,तृतीय ,चतुर्थ ,दशम ,एकादश और द्वादश में होता है वो उसका तात्कालिक मित्र होता है |
----2 ------जो दोनों ग्रह एक ही राशि में बैठे होते हैं ,वो परस्पर तात्कालिक शत्रु होते हैं |
---3 ----जो ग्रह परस्पर पंचम -नवम ,षष्ठ -अष्टम या प्रथम -द्वितीय से सप्तम बैठे हों तो वो तात्कालिक शत्रु होते हैं |
--ज्योतिष की परिपाटी यही है | ---अगले भाग में जन्म -कुण्डली के द्वादश भाव पर विवेचन करेंगें |
-भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com
























