पाठकगण -इस बात को अच्छी तरह जानते होंगें कि अमावस्या उस रात्रि को कहते हैं --जिसमें चन्द्रमा बिल्कुल दिखाई नहीं देता तथा पूर्णिमा उस रात्रि को कहते हैं --जिसमें पूरा चन्द्रमा आकाश में दिखाई देता है | ज्योतिष के अनुसार तिथि का निर्णय सूर्य और चन्द्रमा की पारस्परिक दुरी के नाप से होता है | सूर्य और चन्द्रमा की दूरी स्केल या माइलेज के आधार पर नहीं नापी जाती है --बल्कि डिग्री या अंशों में नापी जाती है | --------पृथ्वी सूर्य के चारो ओर घूमती है और चन्द्रमा पृथ्वी के चारो ओर घूमता है | इस भ्रमण के चक्कर में पृथ्वी से देखने वालों को कभी तो सूर्य और चन्द्रमा एक ही डिग्री --अंश -में दिखाई देते हैं और कभी 180 डिग्री दूर ! निम्न चित्र से भली भांति ज्ञात किया जा सकता है | 1
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ख ------------------- क ------------------------------ग
सूर्य पृथ्वी चन्द्र
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चन्द्रमा 0 ----अ
!
सूर्य 0 ----आ
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यदि पृथ्वी क के स्थान पर है और सूर्य ख स्थान पर तथा चंद्र ग स्थान पर --तो ख और ग में 180डिग्री -अंशों -का अन्तर होने से पूर्णिमा हुई | किन्तु यदि पृथ्वी 0 पर है और चन्द्रमा अ स्थान पर तथा सूर्य आ स्थान पर ,--तो पृथ्वी से देखने वाले को सूर्य और चन्द्रमा एक ही डिग्री -अंश - में दिखाई देने के कारण अमावस्या हुई | जैसे चांदे से रेखागणित में डिग्री नापी जाती है ---वैसे ही ज्योतिष में डिग्री -अंश -का विचार किया जाता है |
--सूर्य और चन्द्रमा जब एक ही अंश पर आ जाते हैं ,---तो सूर्य की रफ़्तार घीमी और चन्द्रमा की तेज होने के कारण चन्द्रमा आगे -आगे भागता जाता है |और क्रमशः सूर्य और चन्द्रमा में अन्तर बढ़ता जाता है | इसी अन्तर को बताने वाली तिथि है | जब चन्द्रमा और सूर्य के ठीक एक अंश आकर चन्द्रमा आगे बढ़ने लगता है --तब इन पंद्रह तिथि के पखवाड़े को शुक्ल पक्ष कहते हैं |
----अगले भाग में -तिथियोंके स्वामी कौन -कौन हैं का जिक्र करेंगें | ---- -- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com




















