भचक्र में भ्रमण करता हुआ सूर्य जब एक चक्र पूरा कर देता है ,तो उसे वर्ष की संज्ञा दी जाती है | ऋग्वेद में वर्ष के वाचक शरद और हेमन्त शब्द आये हैं ,वहां इन शब्दों का अर्थ ऋतु न मानकर संवत्सर बताया गया है |
---गोपथ ब्राह्मण में वर्ष के लिए "हायन " शब्द आया है | बाजसनेयि संहिता में वर्ष के लिए "समा " शब्द का व्यवहार हुआ है | ऋग्वेद के दसवें मंडल में " समानां मास आकृतिः --इस मन्त्र में "समा " शब्द के द्वारा ही वर्ष शब्द का प्रतिपादन किया गया है |
----वर्ष या संवत्सर की व्युत्पत्ति करते हुए शतपथ ब्राह्मण में लिखा है --ऋतुभिहि संवत्सरः शकपनोति स्थातुम -- अर्थात जिसमें ऋतुएं वास करती हैं --वह वर्ष या संवत्सर कहलाता है | वर्ष को दो भागों में विभाजित किया गया है ---{1 }-सौर वर्ष ,---{2 }--चांद वर्ष -------सौर वर्ष --पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने के लिए 365 दिन 15 घंटे और 11 मिनट का जो समय लगता है --उसे सौर वर्ष कहते हैं |
----चांद वर्ष --चन्द्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए 354 दिन का जो समय लगता है --उसे चांद वर्ष कहते हैं | ----हमारे ज्योतिष के पाठकगण --ज्योतिष जगत की जानकारी में सूर्य और चन्द्रमा से ही सम्पूर्व ग्रहों की जानकारी संभव है --अतः -पहला सूर्य मास जिसे सौर वर्ष कहते हैं ,---दूसरा चांद वर्ष --चंद्र वर्ष कहते हैं | --आगे मास शब्द की व्याख्या करेंगें ------भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com

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