ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

ज्योतिष की दुनिया और मेरी समझ -मुझसे ही सुनें -भाग -51 ज्योतिषी झा "मेरठ "



 ज्योतिष की दुनिया और मेरी समझ -मुझसे ही सुनें -भाग -51 ज्योतिषी झा "मेरठ "

प्रिय श्रोतागण --ज्योतिष की दुनिया की विशालता और मैंने जो अनुभव किया सम्पूर्ण बातों को मुझसे ही सुनें | कभी - कभी जो सुनते हैं --वही सच नहीं होता --सच तो केवल मन के अन्दर होता है | --एकबार सुनकर देखें साथ ही ज्योतिष और कर्मकाण्ड के अनन्त प्रश्नों के जबाब प्रस्तुत पेज पर मिल सकता है --प्रवेश हेतु पधारें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

विवाह के लिए संस्कार क्यों -पढ़ें-ज्योतिषी झा 'मेरठ"


 विवाह के लिए संस्कार क्यों -पढ़ें-ज्योतिषी झा 'मेरठ"

 कर्मकाण्ड जगत में प्रत्येक व्यक्ति को षोडश संस्कारों गुजरना होता है | सभी संस्कारों के अलग -अलग महत्त्व हैं | विवाह संस्कार प्रत्येक व्यक्ति का दशवां संस्कार होता है | इस विवाह संस्कार के बाद प्रत्येक व्यक्ति अपने -अपने सुखों से वंचित होते जाते हैं | विवाह संस्कार प्रत्येक व्यक्ति का एक सुखद संस्कार है | ज्ञानी पुरुष अपनी जिम्मेदारी की पूर्ति कर वैराग की ओर चलने लगते हैं | अज्ञानी पुरुष विवाह संस्कार के बाद मोह माया में विशेष रम जाते हैं | ---वास्तव में संसार के प्रत्येक व्यक्तियों का विवाह संस्कार एक सुखद संस्कार होता है जिसे हर्षोल्लास से मनाते हैं और मनाने भी चाहिए किन्तु --ब्राह्मणों {द्वीज }का विशेष खुशी का संस्कार यज्ञोपवीत संस्कार होता क्योंकि इस संस्कार के बाद जो अलौकिक ज्ञान गुरुजनों के सान्निध्य में मिलता है --उस ज्ञान की वजह से द्विज केवल माता पिता की मर्यादा का पालन करने हेतु विवाह संस्कार में बंधते हैं --इसलिए ब्राह्मणों का विवाह संस्कार अति सरल और भव्यता विहीन होता है किन्तु मन्त्रों की विधियों की अत्यधिकता होती है | पर आज इस बात का भान ही नहीं होता -जिस कारण से विवाह संस्कार में कहीं कोई न तो अंतर दिखता है न ही किसकी शादी हो रही है इसका पत्ता रंग रूप से दिखता है | अगर दिखती है तो विवाह की भव्यता | -----अब सबसे पहले यह समझें कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी बेटी दूसरे को देता है और दूसरे की बेटी को खुद स्वीकार करता है | क्यों --?--क्योंकि एक तो इस प्रक्रिया से समाज का विस्तार होता है, प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से जुड़ते हैं ,प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के सुख -दुःख में सहभागी बनते हैं -साथ ही अत्यधिक धन खर्च और परिश्रम भी करते हैं | दूसरा ---यदि यह प्रक्रिया नहीं हो तो प्रत्येक व्यक्ति जानवरों की भांति अपने -अपने घरों में सिमट कर रह जायेंगें | न माँ का न बहिन का न ही किसी संबंधों जान पायेंगें न ही इंसान बन पायेंगें | यही विवाह एक ऐसा संस्कार है --जो प्रत्येक व्यक्ति को जीने का ढंग सीखता है ,उसको एक सामाजिक प्राणी बनाता है साथ ही आने वाली पीढ़ी को एक नियमावली बताता है | अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस बात पर विचार करना चाहिए ---न कि मदोन्मत होकर वही बोलना या करना चाहिए जो न तो आपको सुख दे पाए न ही समाज की प्रेरणा बन सके | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें |-----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जब मैं आत्महत्या की सोच रहा था --2017 -18 में -पढ़ें - भाग -51-खगोलशास्त्री झा मेरठ



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -51-खगोलशास्त्री झा मेरठ

जब मैं आत्महत्या की सोच रहा था --2017 -18 में --तो मुझे अपनी भार्या के कुछ वो काम याद आये -जो बेटी की महानता को दर्शा रहे थे | एक पुत्र होकर ,एक पिता होकर जो काम मैं नहीं कर सका वो हमारी भार्या ने किये "-- मेरी पतनी अनपढ़ परिवार से है दशवीं किसी तरह से -1987 में किया है | अपने घर को सुदृढ़ रखा -अपने पिता की शान थी ,अभिमान थी --पर विवाह होते ही पतझर की तरह पिता ,दो भाईयों को खो दिए | ससुराल के सभी नकारात्मक दृष्टि से आज भी देखते हैं| मैं पति होकर ,वेदपाठी होकर ,आचार्य होकर कभी साथ नहीं दिया --फिर भी इन बातों को अपने माता पिता से नहीं कही है| पिता के साम्राज्य में धन का ,सम्मान का कोई अभाव नहीं था --फिर भी न याचना की न ही शरण ली माईके में | --सबसे पहले मुझे योग्य बनाया -हमारी पढ़ाई ,हमारा साम्राज्य स्थापित किया | अपनी बड़ी बेटी को वहां पहुंचाया जहाँ उसे माँ की तरह दुःख के दिन न देखने पड़े | छोटी बेटी बहुत बीमार रहती थी -अपने कन्धों पर उठाकर हॉस्पिटल खुद ले जाया करती थी --उसे भी वहां पहुंचाया जहाँ उसे माँ की तरह तकलीफ न झेलने पड़े | पुत्र नहीं था -अपने परिजनों की अनन्त उलाहना सुनते -सुनते --लड़ी नहीं साधना की ,तप किया और पुत्र भी प्राप्त किया --उसके भी सुखद यज्ञोपवीत संस्कार कराया | सास -ससुर ने हिस्सा नहीं दिया --तो काली का रूप धारण करके हिस्सा लेकर रही | सास -ससुर ,अनुज -अनुजबधू को जेल से बचाया --चाची के पैर पकड़कर | पिता,भाई के नहीं होने पर अपनी माँ का भी पुत्र की तरह ध्यान रखा --कभी अपनी माँ का कुछ लिया नहीं --उन्हें वही सलाह दी --जो पुत्र देता है --अपने घर में रहो ,भजन करो ,अपने पद की गरिमा बनाकर रखो | मेरी भार्या ने --कभी फ़िल्म नहीं देखी ,कभी कहीं गयी नहीं ,साधारण यात्रा करती है ,साधारण जीवन जीती है ,ईस्वर की आराधना में लीन रहती है --प्रत्येक संतान के लिए --दान ,पुण्य करती है ,प्रत्येक संतान को सही दिशा देती है --वो कठोर भी है ,अति मुलायम भी है ,बिना सास को खिलाये खाना नहीं खाना चाहती है --पर जब गलत बात होती है तो युद्ध भी सास से करती है ---यह योगदान दुनिया को दिखता है --पर मेरी माँ को ,दीदी को, जीजा को ,मामा को ,मामी को ,पिता को ,परिजनों को --यहाँ तक कि मुझको भी नहीं दिखाई दे रहा था | -यह स्थिति मेरे घर की ही नहीं है --बहुत से घर हैं --जहाँ --माँ---माँ को ही हृदय में आत्मसात नहीं करती है | --मेरी पतनी अल्पज्ञानी होकर भी मायके को भी संभालती है ,ससुराल का मान बढाती है ,धन को सभी बच्चों के सुखों में लगाती है ,----वो जैसा कल थी वैसा आज भी है --और वैसा ही कल भी रहेगी ---मुझ जैसे अभिमानी पुत्र ,पिता और पति को -कुछ सीखने की जरुरत है --इसका कारण यह --हमलोग वही पढ़ते हैं ,जो दूसरे पढ़ाते हैं ,कभी अपने हृदय में झांककर नहीं देखते हैं --मुझे करना क्या चाहिए ---आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई------ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 19 अक्टूबर 2023

ज्योतिष की भविष्यवाणी सत्य क्यों होती है -सुनें भाग -50 ज्योतिषी झा 'मेरठ "



 ज्योतिष की भविष्यवाणी सत्य क्यों होती है -सुनें भाग -50 -ज्योतिषी झा 'मेरठ "

ज्योतिष के जिज्ञासु पाठकगण --ज्योतिष की तमाम बातों को जाना जा सकता है --अगर गणित और फलित के साथ ईष्ट की कृपा तो --तमाम बातों को एकबार सुनें साथ ही अपनी कसौटी पर परखकर देखें | --आपके समस्त ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत पेज में हैं ---खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

विद्याअध्ययन संस्कार-क्यों -पढ़ें - ज्योतिषी झा "मेरठ"


 विद्याअध्ययन संस्कार-क्यों -पढ़ें - ज्योतिषी झा "मेरठ"

या विद्या सा विमुक्तये --वास्तवित बात तो यह विद्या ऐसी होनी चाहिए जो लोभ ,अर्थ ,काम, मोह का परित्याग कराकर मोक्ष की ओर ले चले | धयान दें ---जब आप उत्तम शिक्षा की प्राप्ति करते हैं तो उत्तम पद और उत्तम धन की जिज्ञासा अवश्य रखेंगें | जब आप उत्तम भवन की नींव रखते हैं तो भवन को भव्य अवश्य बनायेंगें | ठीक इसी प्रकार से जब उत्तम संतान की कामना करते हैं तो शिक्षा भी उत्तम होनी चाहिए | पर जिस विद्याध्ययन संस्कार का प्रतिपादन मह्रषियों ने किया उस विद्याध्ययन के लिए माता पिता परिजनों के साथ साथ उत्तम रहन -सहन का भी त्याग करना होता है तभी अलौकिक विद्या प्रभाव दे पाती है | यहाँ से दो मार्ग शुरू होते हैं सभी जातकों के -{1 }पहला -संसार में जीने हेतु या जीवन को समझने हेतु लौकिक विद्या का ज्ञान अनिवार्य है --इसके लिए किसी भी चीज का त्याग करना अनिवार्य नहीं होता बल्कि केवल समझना अनिवार्य होता है | {2 }यह संसार मोह माया से लिप्त है और जो इस धरा पर आया है उसे जाना भी होगा तो ज्ञानी पुरुष संसार चक्र से निकलने हेतु अलौकिक विद्या के साथ -साथ अलौकिक जीवन जीते हैं साथ ही दूसरे को भी इस मार्ग का अवलोकन भी कराते हैं | --यहाँ भी कोई भेद -भाव नहीं है बल्कि -जो अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति करेगा -उसे यज्ञोपवीत धारण करना होगा --क्योंकि ब्रह्म सूत्र को धारण करने वाला ही ब्रह्म को जान सकता है ---इसके साथ -साथ -संध्या -गायत्री के जाप ,सही दिनचर्या का पालन करेगा ,आचार -विचार के प्रति सजग रहेगा ,संसारिक उन्हीं वस्तुओं को अपनायेगा जो सत मार्ग पर ले जाने लायक होगी तभी -वेद वेदान्त ,पुराण ,शास्त्रों को पढ़ेगा ---ऐसा बनकर ही सभी लोगों का प्रिय हो पायेगा | -----जो सांसारिक अन्य कार्यों से जुड़ेगा उसे केवल अपने -अपने मार्गों का चयन करना होगा साथ ही सांसारिक सभी वस्तुओं से लिप्त होगा ,उसे किसी वस्तु का त्याग नहीं करना होगा बल्कि उसे केवल एक सतगुरु की बातों को अमल करनी होगी ---उन गुरु की कृपा से मोह माया में रहकर भी परमात्मा की प्राप्ति करेगा | -----यहाँ ध्यान दें ---वैरागी व्यक्ति ही अलौकिक विद्या की प्राप्ति कर सकता है और सक्षम व्यक्ति {तन -मन -धन }ही उस विद्या से लाभ प्राप्त कर सकता है ----यहाँ दोनों चीजें दोनों के पास नहीं हो सकती है अगर है तो निष्फल हो जाएगी साथ ही फिर एक दूसरे से कोई जुड़ा भी नहीं रह सकता है --इसलिए इस विद्या अध्ययन संस्कार की जरुरत होती है|आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जीवन में लाभ + हानि ज्योतिष के महादशा पर विशेष निर्भर है -पढ़ें- भाग -50-खगोलशास्त्री झा मेरठ


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -50-खगोलशास्त्री झा मेरठ


"जीवन में लाभ और हानि ज्योतिष के मत से महादशा पर विशेष निर्भर है --जिसकी सटिक जानकारी और निदान से ही मानव का जीवन सुदृढ़ हो सकता है ---आज मैं अपनी जीवनी की प्रमुख नायिका पर प्रकाश डालना चाहता हूँ "--अस्तु --भले ही मैं शास्त्री था ,तमाम ग्रन्थ मेरी जिह्वा पर थे --पर मुझमें बदलाव --इसके लिए जब गुरु की दशा आयी तब आया -- जब हम 29 वर्ष के हुए | मेरा विवाह 19 वर्ष में हुआ और तीन दिन में ही हुआ | विवाह मुझे अपने कलंक को धोना था --न हम कामयाब थे ,न ही विवाह कब करना चाहिए यह ज्ञान था --फिर भी कभी -कभी ईस्वर आपको स्वतः ही देता है जिसकी आप उम्मीद भी नहीं करते हैं --खासकर मेरे साथ ऐसा ही हुआ | आज मैं जहाँ हूँ वो सिर्फ अपनी भार्या के कर्म और भाग्य की वजह से --यद्पि हमने ,हमारे परिवार ने ,हमारे परिजनों ने उसे दुःख ही दिए --विवाह करके तो ले आये --उस समय भले ही मेरी कुण्डली में राहु की दशा चल रही थी --जो मुझे विदित नहीं थी ,न ही अकल थी --इसके बावयुद जो संघर्ष किया मेरी भार्या ने --वो सिर्फ मैं अहसास कर सकता हूँ --मैं चाहकर भी उन दुःखों के दर्द को अब समाप्त नहीं कर सकता हूँ | --आज जब मैं एक दक्ष ज्योतिषी हूँ ,आचार्य हूँ --तो मुझे लगता है --मातृदेवो भव जो शब्द है --ये इतना सरल नहीं है --इसकी गरिमा बहुत है --बेटी ही किसी की पतनी बनती है ,पतनी ही माँ बनती है --इसलिए इन तीनों रूपों में हमें आदिशक्ति ही शास्त्र दिखाते हैं | आज माँ -तो माँ रहती है किन्तु --जो बेटी ,बहू और बहू से माँ बनती है --तो भेद भाव पुरुष नहीं करते हैं बल्कि माँ ही सिखाती है | आज किम्बदन्ति यह है -पुरुष गड़बड़ करते हैं --पर उन पुरुषों को भी तो माँ ही जन्म देतीं हैं | --ये माँ के संस्कारों पर निर्भर है माँ अपनी संतानों को क्या और कैसा बनाना चाहती है | -विवाह के बाद मैं अपने माता पिता परिजनों के पास छोड़कर आया था कमाने -वो धन भी हमने माता पिता को ही दिए थे --पर वो धन उन्हें मिला जो हकदार नहीं थे| जिस दिन ब्रत होता था तो दीदी +माँ दूसरे के आंगन में फलाहार करतीं थीं --बहू को लगे हम भी भूखे हैं --ये घटना केवल मेरी ही नहीं है --बहुत से घर आज भी हैं --जहाँ ऐसा ही होता है | मेरी भार्या का विवाह होते ही भाई ,पिता सब यकाएक गुजर गए | मंगलसूत्र बेचकर दे दिए --खाई भरने के लिए ,ससुराल की इज्जत बनी रहे ,भूखी रहकर भी मायके में नहीं गयी जबकि इतना तो धन मेरी ससुराल में आज भी है ---जिससे मेरे सभी बच्चों का भरण -पोषण हो जायेगा | स्वाभिमान बनाने के लिए इससे बड़ा त्याग क्या हो सकता है | मेरी दीदी है --ससुराल में कोई अभाव न होने के बाद भी माईके को निवास स्थान बनाया --अगर बनाया तो -मेरी भार्या को अपने हृदय की तारह समझती | 1990 में विवाह हुआ था मेरा -पतनी के सुख के दिन -2000 में आये -तबतक दो बेटियां हो चुकी थी ,दहेज में भैस बची थी --ससुर ,साले सभी गुजर गए पर -माता पिता को अपनी गरीबी मिटाने के लिए वो भी चाहिए थी --मेरी सास ने भैस भी दी --उसे भी बेचकर खा गए --खा गए कोई बात नहीं पर ह्रदय से तो लगाते --"यहाँ मैं एकबात कहना चाहता हूँ माँ से सुन्दर कुछ नहीं --इस हिसाब से तो मैं बहुत बड़ा व्यक्ति बना गया --किन्तु जब ग्रहों की चाल बदलती है --तो वही माँ भार्या काली का भी रूप धारण कर लेती है --इसका जिक्र आगे करूँगा -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

पिता बिना जीवन कैसा होता है - सुनें भाग -49 -ज्योतिषी झा मेरठ



 पिता बिना जीवन कैसा होता है - सुनें भाग -49 -ज्योतिषी झा मेरठ

प्रिय श्रोतागण --अब मैं अपने जीवन का उत्तरार्ध भाग सुनाना चाहता हूँ | पिता के बिना जीवन निरर्थक हो जाता है | पिता कैसे भी हों छत्र छाया व्यक्ति के ऊपर बनी रहती है --जो जीतेजी समझ में नहीं आती है --सम्पूर्ण बातों को सुनने का अवश्य प्रयास करें | -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --यह पेज सभी लोगों के लिए उपयोगी है --परखकर देखें ,आपका लाभ ही सेवा का आधार है | - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें - ज्योतिषी झा 'मेरठ"


  जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें - ज्योतिषी झा 'मेरठ"

कर्मकाण्ड जगत में -जनेऊ संस्कार अर्थात --चयनित मार्ग पर चलना हो तो प्रत्येक जातकों को द्वीज बनना होता है | जैसे प्रत्येक छात्रों को दशवीं कक्षा के बाद अपने -अपने विषयों का चयन करना होता है जो खुद ही करना होता है --अगर आप कर्मकाण्ड करना चाहते हैं तो वेद पढ़ें | अंग्रेजी विषय में -आर्ट पढ़ें | आप ज्योतिषी बनना चाहते हैं तो ज्योतिष विषय पढ़ें | अंग्रेजी के छात्र हैं -आर्ट या और भी विषयों का चयन कर सकते हैं | आपको पढ़ाना है या नौकरी करनी है तो संस्कृत के विषय -साहित्य या व्याकरण का चयन कर सकते हैं | अंग्रेजी में साइंस विषय का चयन करते हैं | अर्थात प्रत्येक बालकों को अपने -अपने मार्ग का चयन खुद ही करना होता है | ठीक इसी प्रकार से --जनेऊ ,या उपनयन संस्कार का शाब्दिक अर्थ है उपवस्त्र या विशेष प्रकार की क्षमता प्राप्त करने हेतु यह संस्कार होना चाहिए --इस संस्कार के बिना न तो कर्मकाण्ड जानने के न ही कराने के अधिकारी हो सकते हैं | सवाल यह उठ सकता है --कोई क्यों नहीं पढ़ सकता है तो --जो संध्यावंदन करेगा ,शिखा धारण करेगा ,धौत वस्त्र पहनेगा ,सात्विक भोजन करेगा ,निष्पक्ष और निःस्वार्थ ज्ञान प्रदान करेगा साथ ही अपना व्यवहार सरल और परमात्मा के साथ रखेगा वही कर्मकाण्ड करेगा या वेद -वेदान्त का अध्ययन करेगा अध्यापन करायेगा | इसलिए प्रत्येक यज्ञ में यजमान को भी द्विज बनना होता है तभी यज्ञ सफल होते हैं | यहाँ एक बात सोचें -अगर सभी द्विज बन जायेंगें या सभी राजा ही बन जायेंगें या सभी वैश्य ही बन जायेंगें तो सामाजिक सभी कार्य कैसे चलेंगें | एक व्यक्ति ने महर्षि से पूछा अगर कोई द्विज भगवान के पास निरंतर रहेगा तो भगवान तो केवल उनके ही होंगें ,तो महर्षि ने कहा कोई द्विज भगवान के पास 24 घण्टे रहेगा उसे पूजा करने से जितना पुण्य मिलेगा अगर समाज का कोई भी कार्य करने वाला समाज के हित लिए कार्य करें और केवल भगवान का स्मरण या दर्शन दूर से भी एकबार कर लेगा तो उसको भी उतना ही पुण्य मिलेगा जितना द्विज को मिलेगा | तो फिर सभी को द्विज बनना उचित नहीं रहेगा | अतः समाज हित, देश हित ,विश्व हित के लिए सभी एक दूसरे के पूरक हैं न कि यहाँ कोई विरोधाभाष है | विरोधाभाष संस्कारों में नहीं हमारे व्यवहारों में है अतः उसे ठीक करना या ठीक से समझना हितकर रहेगा | आगे की परिचर्चा आगे करेंगें |-----ॐ आपका -




ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

प्रत्येक व्यक्ति का जीवन वास्तव में एक नाटक ही होता है-पढ़ें भाग-49-ज्योतिषी झा मेरठ


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -49 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


प्रत्येक व्यक्ति का जीवन वास्तव में एक नाटक ही होता है, किन्तु इस बात को नाटककार ही समझ सकता है | इसलिए उसे काल्पनिक कहानी कहता है | पर जब कोई भी व्यक्ति पीछे मुरकर देखता है --तो उसे खुद ही असम्भव --संभव कैसे हुआ समझ में आता है --तो उसे प्रेरणादायी कथा कहता है ---यही मुझे अनुभव हो रहा है | अस्तु ----आज मैं खुद का चित्रण करना चाहता हूँ ---जब मेरा राजयोग था -उम्र थी 5 वर्ष मुझे ज्ञात नहीं --पिताने कभी यह बात कही थी --तो एक ज्योतिषी के पास पिता गए थे --मेरा राजयोग था ,झेल सकते थे ,धन था ,मन था ,जिज्ञासा पुत्र ठीक हो की थी --मेरे बालों में अकारण आग लग जाया करती थी | --ज्योतिषी जी ने कहा एक दिन राजा बनेगा | बालक की अभी मंगल की दशा चल रही है --अमुक उपचार करें ठीक हो जायेगा | मैं ठीक भी हो गया| जिस दिन मैं ज्योतिषी बना तो सर्वप्रथम अपनी ही कुण्डली देखने की विशेष जिज्ञासा उत्पन्न हुई --तो उसमें सुख कम दुःख विशेष दिखाई देने लगा तो सोचने लगा --इससे अच्छा तो मैं ज्योतिषी ही नहीं होता तो ठीक था | यही स्थिति प्रायः सभी लोगों की होती है | आज जहाँ -52 वर्ष में हूँ एवं अब 2014 से शनि की दशा चल रही है | शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है --नीचता ही सही भाग्य तो उत्तम रहेगा | --इसकी चर्चा मैं आगे करूँगा | जिस जातक के लग्न में सूर्य +मंगल +केतु हो सप्तम भाव में राहु विद्यमान हो साथ ही सिंह लग्न का भी हो --ऐसा जातक अहंकार ,क्रोध ,जिद्दी स्वभाव एवं क्रूर शासन करने वाला होता है | मेरे पिता भी मकर लग्न के थे उच्च का मंगल लग्न में था --तो वो भी बड़े जिद्दी स्वभाव के थे --शायद इसलिए --मेरे जैसा बालक के लिए सोच लिए पढ़ाना जरूर है ,अन्यथा मेरे जैसा बालक कहीं का नहीं होता --ऐसा एक और योग था मेरी कुण्डली में -चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में था --तो कैसा भी सही पिता का स्नेह मिलना लाजमी था --अन्यथा मैं यहाँ नहीं होता | मेरी माँ की कुण्डली उपलब्ध नहीं है --पर मेरे चौथे घर और भागयक्षेत्र का स्वामी मंगल लग्न में है ----वह योग बहुत ही उत्तम है --घर ,वाहन ,भाग्य एवं सम्पन्नता का योग है --किन्तु --चुगली ,झूठ बोलना ,झगड़ा लगाना ,विवाद बढ़ाना ,बहुत बोलना ,लज्जा विहीन ये तमाम गुण --मेरी माँ से मेरे मिलते हैं | मेरे पिता कईबार माँ पर दोष लगाया करते थे --इसका वजूद नहीं है ,इसे अपनी कमी दिखती नहीं है --जबकि ये सारे अवगुण मेरे पिता में नहीं थे | मेरे पिता जिद्दी थे अधर्मी नहीं थे ,दूसरे का अहित हो यह कदापि नहीं चाहते थे --ऐसे गुण मेरी माँ में भी थे ----पर ये सारे अवगुण मुझमें थे | मेरी कुण्डली में राहु का सप्तम भाव में होना साथ ही लग्न में सूर्य ,मंगल ,केतु का होना --विवाह सुख नहीं था --पर पतनी के आने के बाद ही सही धार्मिक बनें ,सही आचरणवान बनें ,सभी सुखों से परिपूर्ण हुए | --एक और विशेष बात --जब राहु की दशा रही --तो मैं भागा -भागा फिरता था और पतनी छत्र छाया की तरह हर पल ,हर घड़ी मेरी रक्षा में लगी रहती थी --यह थी गुरु बृहस्पति की दृष्टि | ---आज मैं इतना ही कहना चाहता हूँ --बहुत बड़ा योग लाभ या हानि उतना नहीं देता है --जितना --समभाव योग ,परस्पर सहिष्णुता की दृष्टि ,--मोठे तौर पर नवग्रहों को जानना अच्छी बात है --अगर तप का मार्ग है ,निदान का मार्ग है ,तो बड़ी -बड़ी हानियों से बचा जा सकता है |----आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

ज्योतिष विद्या की कसौटी क्या है सुनें भाग -48 -ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष विद्या की कसौटी क्या है सुनें भाग -48 -ज्योतिषी झा मेरठ

महानुभावों --ज्योतिष विद्या या कर्मकाण्ड श्रम की कसौटी पर ही परखा जा सकता है | अधूरी चीजें क्षणिक लाभ तो दे सकती है --भविष्य का लाभ संभव नहीं है --सम्पूर्ण बातों को सुनने का अवश्य प्रयास करें | -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --यह पेज सभी लोगों के लिए उपयोगी है --परखकर देखें ,आपका लाभ ही सेवा का आधार है | - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

 

मुण्डन संस्कार क्यों होता है -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

 





 मुण्डन संस्कार क्यों होता है -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ ----सनातन संस्कृति में -मुण्डन संस्कार -छठा संस्कार है जो प्रत्येक जातक एवं जातिकाओं के होते हैं | यह मुण्डन संस्कार भी भेद भाव रहित होता है साथ ही चाहे बालक हो या बालिका सभी के -एक वर्ष ,तीन बर्ष या फिर पांच वर्षों के होने पर अवश्य होते हैं | मुण्डन अर्थात बालों का परित्याग करना होता है किन्तु -अपने -अपने कुलदेवताओं के आशीर्वाद के बिना नहीं होता है न ही करना चाहिए | ---क्यों होता है --का जबाब है -जैसे किसी खेत में बढियाँ अनाज का उत्पादन करना है तो भूमि को खोदे बिना संभव नहीं है | इसी प्रकार से सभी शिशुओं के मस्तक में समस्त चीजें विद्यमान रहती हैं बिना मुण्डन किये उन समस्त चीजों को निखारा नहीं जा सकता है | यह मस्तक वास्तव में जितना दिखने में सरल लगता है उतना सरल है नहीं इस मस्तक के बालों का जितना मुण्डन होता रहेगा यह मस्तक उतना ही कठोर होता जाता है साथ ही शरीर के समस्त अवयवों को सुरक्षित और संचार प्रवाह देता रहता है | अगर इन बालों का कम से कम दो बार मुण्डन न हो तो वह व्यक्ति केवल एक दिशा गामी ही रहता है | अतः सृष्टि पर जब से ज्ञान मिला लोगों को मुण्डन अवश्य कराते हैं | ब्राह्मणों को तो निरन्तर मुण्डन कराते रहना चाहिए क्योंकि संसार में ज्ञान दाता तो भूदेव ही होते हैं अगर कोई मुण्डन नहीं करता है तो अलौकिक चीजों की जानकारी नहीं मिल पाती है या फिर अपने मार्ग से भटक जाता है | कृपया ध्यान दें --जिनको ज्ञान की जरुरत है या जो अपना अस्तित्व को जानना चाहता है या जो परोपकारी होते हैं वो सदा मुण्डन अवश्य कराते हैं | ----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut



इस जीवनी रूपी कथा में कुछ उत्साह और आनन्द भी है -पढ़ें-- भाग -48 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


 "मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -48 -खगोलशास्त्री झा मेरठ,

'आपलोग यह सोचते होंगें --इस जीवनी रूपी कथा में केवल चोट और खोट ही है या कुछ उत्साह और आनन्द भी --इसका जबाब है --जिस पर ईस्वर की कृपा हो ,जिसकी कुण्डली में कुछ विशेष योग हो ,जिसका मनोबल मजबूत हो --उसे दुःख के बाद सुख भी मिलते हैं "---आज मैं अपनी नानी का चित्रण करना चाहता हूँ --क्यों सुनें ?--मेरा राजयोग केवल 10 वर्ष बाल्यकाल का था --मैं नानी के पास बहुत रहा 10 वर्ष के अन्दर| मेरी नानी मुझे बहुत स्नेह करती थी --मामा मेरे माता पिता के पास पढ़ते थे --शीघ्र नौकरी मिली तो दिल्ली चले गए | मेरी नानी वैष्णव थी ,शिव भक्त थी --अपना जीवन चरखा चलाकर जीती थी | कभी हमने माता पिता के पास नहीं देखा नानी को जाते हुए --दूर जगह पर मिल लेती थी | मैं नानी के साथ पैदल खूब चलता था --नानी के खेत हों ,उपज हो ,चरखा के लिए -रुई लानी हो या खादी ग्रामोद्योग से कपड़े लाने हो या एक विदेश्वर स्थान {भगवान शिव }का प्रमुख स्थान हो ,सभी जगह गरीबी थी तो मेरे साथ नानी जाया करती थी ---पढ़ी लिखी तो नहीं थी --पर आचरणवान थी ,कर्मनिष्ठ थी --एक और विशेषता थी स्वाभिमानी थी --ये सारे --गुण मुझे नानी से प्राप्त हुए | मेरी माँ और नानी के स्वभाव में बहुत अन्तर था | मेरी माँ के पास सबकुछ था पर सब खत्म हो गया | मेरी नानी के पास कुछ नहीं था --फिर भी एक साम्राज्य बनाया | नाना को हमने नहीं देखा --पर मामा को साम्राज्य देकर नानी गयी | जो नाना देकर गए --उस संतान को एक दक्ष और योग्य बनाया --यह बात मेरी माँ ने नहीं सीखी | नानी की कुण्डली उपलब्ध नहीं है --किन्तु मेरी कुण्डली में --छठे घर से छठे घर का स्वामी बुध शुक्र से युति बनाकर धन क्षेत्र में है | अतः मामा का धनिक होने का योग है सो मेरे मामा -करोड़ पति बहुत पहले से हैं | जब मेरे घर में गरीबी शुरू हुई तो नानी ने मामा का धन नहीं दिया --ये बात मुझे अच्छी लगी | पर एकबार जब मैं आश्रम में पढता था तो मुझसे मिलने गयी थी माँ के साथ --1984 में तब 10 रूपये दिए थे | एकबार भिक्षाटन हेतु मामा गांव बोहरबा {उजान -दरभंगा }गए --यह बात इतनी बुरी लगी मेरी नानी को उस गांव में भिक्षा मांगने नहीं दी बल्कि --इतनी भिक्षा नानी ने दे दी --जिससे कहीं जाना ही न पड़े --साथ में बोली कभी इस गांव कभी मांगने मत आना | इतना दर्द मेरी माँ को भी कभी नहीं हुआ --जितना नानी को हुआ | जब मेरठ आया और नानी से मिलने गया --केवल 3 दिन में विवाह करा दिया --शायद मेरी नानी को आभास था --मेरा घर माँ नहीं संभाल सकती है --मेरी पतनी ही मुझे आगे बढ़ा सकती है ----यह बात आज आभास हो रही है | मेरी नानी मेरी पतनी को बहू की तरह स्नेह करती थी | इतना स्नेह तो मेरी माँ ने भी कभी नही किया | --नानी की एक तमन्ना थी --मुझे देखकर बार -बार कहती थी --एकादशी का उद्यापन तुम ही करोगे | मैं छोटा था --पर कहती थी मेरे यज्ञ का तुम ही आचार्य बनोगे | मैं भी वैष्णव था मेरी पतनी भी बैष्णव थी --हम दोनों में उसे लक्ष्मी नारायण दिखते थे | आज मैं जहाँ हूँ नानी का ही आशीर्वाद है | जब नानी एकदशी का उद्यापन करने लगी तो --मामाने हमें आचार्य नहीं बनाया --बोले यज्ञ का सामान सभी बहिनों को दूंगा --हमने कहा ये आचार्य का काम है --आप केवल यजमान हो --बोले जो मैं कहूंगा वही होगा --इसके बाद मैं कभी मामा गांव भाव से नहीं गया | ---न ही कभी नानी के दर्शन ही किये | ---दोस्तों --एक ज्योतिषी होने के नाते एक बात मेरी समझ में आयी है --कुण्डली वो दर्पण है -जिसमें सबकुछ विद्यमान है ,पर आधुनिक समय में इसका जितना विस्तार हो रहा है --वो हनन की ओर विशेष जा रहा है | यह विद्या अन्वेषण की है ,सात्विक है ,धार्मिक है ,जनहित की है --आज अल्पज्ञान अर्थात खोज कम चोरी ज्यादा है --इसलिए किसी का कल्याण कारक नहीं है | जैसे गोली चलनी कहीं और थी चल कहीं और गयी --इसे ज्योतिष में योग कहते हैं | इसकी खोज मर्मज्ञ विद्वानही कर पाते हैं | --कथा को आगे पूरी करूँगा ----ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को समझ हेतु --इस लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut- -आपका खगोलशास्त्री झा मेरठ

सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

ज्योतिष और यज्ञों से लाभ कैसे मिलेगा -सुनें -भाग -47 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 ज्योतिष और यज्ञों से लाभ कैसे मिलेगा -सुनें -भाग -47 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
प्रिय श्रोतागण --ज्योतिष को कुछ तूल विशेष दिया जा रहा है -जो समझ से पड़े है साथ ही अनन्त जो यज्ञ हैं कर्मकाण्ड के उनका लाभ ठीक से समझने के बाद ही मिलता है --कृपया सम्पूर्ण कथा सुनें --भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ यह पेज ,सबके योग्य है -चाहे आप बालक हैं ,युवा हैं ,प्रौढ़ हैं या फिर वृद्ध -- अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें

नामकारण संस्कार का अभिप्राय क्या है -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


  नामकारण संस्कार का अभिप्राय क्या है -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -नाम कारण संस्कार -अर्थात -नाम से ही व्यक्ति की पहचान होती है | इस सृष्टि में प्रत्येक चीजों के अलग -अलग नाम होते हैं साथ ही नामों से ही सभी चीजों के प्रभाव समझ में आ जाते हैं | ज्ञानी पुरुष प्रायः नामो से ही अच्छा बुरा का भान कर लेते हैं | यहाँ यह ध्यान देने वाली बात --सृष्टि के तमाम चीजों के नाम ज्ञानी पुरुषों ने अथक परिश्रम से रखे -तभी प्रत्येक व्यक्ति को यह समझ में आती है कि कौन सी चीज हमारे अनुकूल रहेगी या कौन सी चीज हमें हानि पंहुचायेगी | इसी प्रकार से महर्षियों ने प्रत्येक व्यक्तियों के कैसे -कैसे नाम रखें या किस नाम से यह जीवन में विख्यात होगा --इसके लिए जन्म पत्रिका का निर्माण किया गया है | वास्तव में ज्योतिष की जरुरत प्रत्येक व्यक्तियों के जीवन में नाम कारण संस्कार से शुरू होती है | यहाँ भी उत्तम पुरोहित यानि एक सक्षम आचार्य की जरुरत होती हैं | जातक का एक ऐसा नाम रखा जाता है जो जीवन पथ को तत्काल दर्शाता है | कुछ लोगों के मत से देवों के ऊपर नाम रखने से जातकों में वैसा ही स्वभाव और प्रभाव देखने को मिलते हैं | जबकि सत्य यह है जिस नक्षत्र में जातकों के जन्म होते हैं उन्हीं नक्षत्रों के चरणों से नामकरण का विधान है साथ ही अगर हम देवों के नाम अपने -अपने बच्चों के रखते हैं तो सबसे पहला फायदा -बुलाने वाले लोगों को मिलता है -जिन -जिन नामों से किसी को पुकारते हैं तो उन -उन नामों में देवों के अंश दिखाई देते हैं --इस कारण परमात्मा का भी स्मरण हो जाता है | दूसरा ---सभी बालकों को इन नामों से यह प्रेरणा मिलती है कि हम कम से कम नामों के अनुकूल कार्य करें | अतः नाम कारण संस्कार उत्तम प्रकार से सभी के होने चाहिए | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut






तमाम पात्र अपनी भूमिका नहीं निभाते -तो जीवनी कैसे लिखी जाती -पढ़ें - भाग -47 झा मेरठ


 


मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -47 -खगोलशास्त्री झा मेरठ

ये तमाम पात्र अपनी भूमिका नहीं निभाते -तो जीवनी कैसे लिखी जाती --कईबार खुद ही सवाल मन में उठते रहे -खुद की कुण्डली देखी है ,जिनका अपना घर ठीक नहीं होता तो दूसरे का घर ठीक करने चल देते हैं ---यही अभिप्राय इस जीवनी का है "---अस्तु ---मेरी जीवनी का एक पात्र मेरा अनुज है --जिसके ऊपर भी प्रकाश डालना चाहता हूँ | हम चार भाई एक बहिन हुए | एक अनुज बाल्यकाल में दिवंगत हो गया ,दूसरा अनुज जब हम 18 वर्ष के हुए तो सर्पदंश से दिवंगत हुआ | सबसे जो छोटा अनुज है --इसके मेरे बीच 8 वर्ष का अन्तर है| इसकी कुण्डली उपलब्ध है | मेरा स्नेह बाल्यकाल से इस अनुज पर रहा | इस अनुज का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ यह अब मैं जनता हूँ --अगर तब जनता भी तो शायद निदान नहीं हो पाता --क्योंकि माता पिता की अज्ञानता के कारण | बहुत से माता पिता हैं --बालक को बढ़िया बनाना भी चाहते हैं --पर इस बात को नहीं मानते हैं | भले ही बाल्यकाल में जब यह अनुज 2 वर्ष का हुआ तो मेरा राजयोग समाप्त हो चूका था इसे मैं स्नेह बहुत करता था --आज भी करता हूँ किन्तु --यह अनुज भी बहुत गरीबी देखी है | जैसे -तैसे धन की सोच लेकर शहर चला था --धन तो मिल गया पर --संयोग से मैं भी शिक्षा को छोड़कर -1994 मुम्बई से आये तो एक ही शहर में रहने लगे | मैं भटकता रहा --मरे हुए का नहीं खाना है ,दान नहीं लेना है ,मंदिर में नहीं रहना है --उस समय एक कन्या भी थी| यह अनुज को केवल धन चाहिए था --तो यह धनाढ्य होता गया | मेरी गरीबी बढ़ती गयी --संयोग से इसने अपने साथ रहने के लिए कहा --हमने सोचा एक अनुज पहले ही खो चुके हैं --तो चलो एक साथ रहेंगें --इसे भी शिक्षित करेंगें ---इसे दो तीन अध्याय वेद सिखाये ,ज्योतिष के शिशुबोध सिखाया| इतने ही बहुत थे आज के युग में कमाने के लिए --क्योंकि आज का समाज शिक्षा के लिए कम तुरन्त काम हो जाय -इसपर विशेष ध्यान देता है | --जब माता पिता को यह बात की जानकारी हुई --तो उन्हौनें सोचा -बड़ा भाई तो इसका सब खा जायेगा ,साथ में बेटी भी है ,इसकी शादी भी नहीं हुई थी ,माता पिता की खाई समाप्त हो चुकी थी --मेरे धन से | अब तो अनुज की शादी फिर कैसे होगी --इसकी चिंता शुरू हुई --दीदी -जीजा ,मामा -मामी ,सारे रिस्तेदार -अनुज के हो गए --मैं अकेला पड़ता गया --अब मेरा तिरस्कार पतनी भी करने लगी --जब ग्रहों के योग उत्तम न हों तो ऐसा ही होता है ,अनुज हर पल अपमानित करने लगा | तब सभी मुझे हेय दृष्टि से देखने लगे ,तब --जब ज्ञान प्राप्त हो जाता है --तो काहे के गुरु ,जब काम बन जाता है -----तो काहे का भगवान हो जाता है --तो मेरा क्या अस्तित्व | खैर --अब हम नगण्य हो रहे थे ,शिक्षा थी ,अनुभव था --पर ग्रहों के प्रभाव उत्तम नहीं थे | पतनी मेरी सदियों से पुजारिन रही है --तो जहाँ पूजा के लिए बैठती थी --मेरा अनुज वहाँ थूका करता था ,मैं अपने अनुज के कपड़े धोया करता था ,मेरा अनुज ड्राइक्लीन के ही कपड़े पहनता था ,नित्य एक फ़िल्म देखता था ,उसके मन्दिर की सारी जिम्मेदारी मेरी थी --केवल शान से रहता था --वही करता था जो उसे अच्छा लगता था | एकदिन मेरी पतनी पीडित होकर शहर मेरे पास आ गयी पिताजी के साथ | पिताजी चले गए -एक दिन नौवत यह आ गयी --अनुज बोला -शब्दों पर गौर करें -मुझे --अगर तुझे मेरे पास रहना है --तो मैं आजाद घूमूँगा तू सफाई करेगा ,बर्तन माँजेगा ,आरती करेगा साथ में मेरी सेवा तुम्हारी पतनी करेगी ---ये शब्द मानो मरने जैसा था --हमने कहा कुछ नहीं करूँगा --यहाँ से चला जाऊंगा --रात में बच्चों के साथ छत पर सो रहे थे --सुबह जब आँख खुली तो दरवाजे बंद थे --हमारी छोटी बिटिया भूख से तड़प रही थी --यह हाल मुझसे देखा नहीं गया -- दरवाजे में पैर मारे -- दरवाजे खुल गए --मुझ पर चोरी का इल्जाम लगाया साथ ही निकाल दिया --इसके बाद कभी नहीं मिले --अनुज के साथ--इस कथा को आगे पूरी करूँगा ----ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को समझ हेतु --इस लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

चतुर्थी संस्कार क्यों - कथा सुनें -भाग -46 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 चतुर्थी संस्कार क्यों - कथा सुनें -भाग -46 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
प्रिय श्रोतागण --आज मैं विवाह के उपरान्त चतुर्थी संस्कार क्यों होता है -इसकी कथा सुनाना चाहता हूँ साथ धर्म की सही परिभाषा क्या है --कृपया सम्पूर्ण कथा सुनें --भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

जातक संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 

 जातक संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु -पढ़ें ! खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



--कर्मकाण्ड जगत में "जातक "संस्कार -यह प्रत्येक जातकों का चौथा संस्कार होता है | अभी तक के जितने भी संस्कारों को आपने जाना है -इन सभी संस्कारों में सभी के माता पिता अपनी -अपनी संतानों को एक जैसा प्रारूप दे सकते हैं | प्रत्येक माता पिता चाहें तो -राम जैसा मर्यादापुरुषोत्तम ,श्री कृष्ण जैसा निति निपुण ,माँ सरस्वती जैसी शिक्षा की अधिष्ठात्री ,श्री हनुमान जैसा बुद्धिवान -ज्ञानी ,शक्तिशाली संतानों को जन्म दे सकते हैं | माता पिता चाहें तो कुमार्ग गामी या धर्म विरोधी संतानों को जन्म दे सकते हैं | यहाँ न तो शास्त्रों ने भेद भाव किया न ही शास्त्रकारों ने न ही महर्षियों ने --ये केवल अफवाह या अनसुनी बातों के कारण हम आप में भ्रम है कि ऐसी संतानों को केवल धनाढ्य या बड़े लोग ही जन्म दे सकते हैं | इस बात को ऐसे समझें --प्रत्येक छात्रों को प्राथमिक शिक्षा एक जैसी ही मिलती है अंतर तो केवल छात्रों को निखारने का होता है --जो शिक्षकों और माता पिता या संगति के कमियों के कारण कोई उत्तम छात्र या अधम बन जाते हैं | एक और उदहारण देखें -प्रत्येक छात्रों को दशवीं कक्षा तक सभी विषयों को पढ़ना अनिवार्य होता है -उसके बाद अपनी -अपनी समझ के अनुसार विषयों का चयन करना होता है | जब पढ़ाई की ऐसी ही व्यवस्था है तो फिर जातिबाद या बड़े छोटे की बात कहाँ से आयी -इसे हमें ठीक से समझना चाहिए | ----अस्तु --प्रत्येक जातक जब छे दिन के होते हैं -तो षष्ठी पूजन होता है -इस दिन स्वयं विधाता जातकों को दर्शन देते हैं और जातकों -की आयु ,कर्म ,वित्त ,विद्या और निर्धनता का आशीर्वाद देकर चले जाते हैं तथा पुनः जीवन में कभी दर्शन नहीं देते हैं | दशवें दिन शुद्धिकरण होता है तब जातकों को सभी को देखने का और आशीर्वाद लेने का दिन होता है |---आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जीवनी में अभी मैं सभी पात्रों की भूमिका को दर्शा रहा हूँ -पढ़ें - भाग -46 -ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -46 -ज्योतिषी झा मेरठ

' कृपया ध्यान दें --जीवनी में अभी मैं सभी पात्रों की भूमिका को दर्शा रहा हूँ | यह कहानी कारीब -करीब सभी लोगों के जीवन में होती है --पर मेरा उद्देश्य इसे लाभ कहें या हानि ,इसे भाग्य कहें या कर्म ,--तो यह समझें दुःख से सभी जीव बचना चाहते हैं --ज्ञानी पुरुष खोज करते हैं ,साधारण पुरुष विधि का विधान समझकर रूक जाते हैं --मेरा मानना है --मानव का उद्देश्य सार्थकता होनी चाहिए --"---आज मैं जीजा के ऊपर प्रकाश डालना चाहता हूँ | मेरे जीजा धनाढ्य परिवार से हैं| जीजा के माता पिता वैष्णव थे| --मेरे जीजा मुझसे ज्यादा पढ़े -लिखे थे ,मुझसे बहुत बड़े थे | जीजा के कुछ कर्तव्य थे --पर कर्तव्य विमुख क्यों हुए ---अपने जीवन में कभी भी एक रुपया नहीं दिया मुझको ,कभी भी कोई सलाह नहीं दी | बदले की भावना न सही पर मेरे घर को पुत्र की तरह संभालना चाहिए था --उसकी जगह अपना घर छोड़कर मेरे घर में साम्राज्य स्थापित किया --मुझे दीदी एवं जीजा की कुण्डली नहीं मिली --जिससे यह पता करते --राहु की वजह से हम दरिद्र हुए या इनकी कुण्डली कुछ और कहती थी | मेरे माता पिता अनपढ़ थे --तो उनको सही राह दिखाते --इसकी जगह उन्होनें कैसे राज्य स्थापित किया सुनें ---कुछ धन व्याज पर चलने लगा मेरे गांव में ,यह लत इतनी बढ़ गयी --किआज तक चल रही है | माँ ऐसे लिप्त हुई --मानों उसे दीदी जीजा से उत्तम कोई दिखाई ही दिया| --बहुत कम उम्र से अपने घर को संभालने का काम हमने किया --पर जब मेरठ मैं आ गया तो पूर्ण रूप से स्थापित मेरे घर में हो गए बच्चों के साथ | तब मैं अकेला था --इस बात पर ध्यान नहीं देता था ,जब 1990 में मेरा विवाह हुआ --जिम्मेदारी बढ़ गयी तब तक मेरा घर रसातल पहुंच चूका था | जीजा का घाटा मेरी कमाई से पूरा होता था | मेरी कमाई से चौपाल लगता था जिसमें सभी लोग चाय ,सरबत का आनन्द लेते थे ,कुछ ननिहाल तो कुछ सभी रिश्तेदारों तक कमाई जाती रही ,ऊपर से खाई इतनी थी --जब मैं मुम्बई पढ़ने गया तो एक जमीन जिससे दीदी का गोना हुआ था -1000 से यह ऋण --1992 में चुकाया | दीदी -जीजा ,मामा,अनुज का तालमेल एक था मैं नगण्य था |पिता के मुकदमें में कभी जीजा नहीं बोले युद्ध मत करो --समझौता कर लो ,जब मेरी पतनी आयी --माँ बनने वाली थी --सभी मौज करते थे --खाना घरवाली बनाती थी | किसी दिन व्रत होता था --तो माँ और दीदी दूसरे के आंगन में फलाहार करती थी ताकि देख न ले --पर बात कब तक छुप सकती थी | यह कहानी जानने के बाद भी --मुझे धर्म दिखता था | --अन्त में भाग कर मेरठ मेरे पास पतनी आ गयी -----अन्त में भाग कर मेरठ मेरे पास पतनी आ गयी ---इसे राहु का चक्र कहें या कायरता --जबाब आगे दूंगा | ----ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को समझ हेतु --इस लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

रविवार, 15 अक्टूबर 2023

शिक्षा और अशिक्षा की एक कथा सुनें -भाग -45 -ज्योतिषी झा "मेरठ "


 


शिक्षा और अशिक्षा की एक कथा सुनें -भाग -45 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
दोस्तों -आज हमारे समाज में ज्ञान का पैमाना बदल चूका है --जिसका परिणाम यह होता है -सही क्या है ,गलत क्या है --इसकी जानकारी दूसरे के द्वारा मिलती है ,अगर कानों से सुना जाय और आँखों से देखा जाय साथ ही दोनों में समानता हो तो ठीक ज्ञान हो सकता है | आज एक कथा सुनाता हूँ सुनें -----भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...