ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

ज्योतिष और यज्ञों से लाभ कैसे मिलेगा -सुनें -भाग -47 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 ज्योतिष और यज्ञों से लाभ कैसे मिलेगा -सुनें -भाग -47 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
प्रिय श्रोतागण --ज्योतिष को कुछ तूल विशेष दिया जा रहा है -जो समझ से पड़े है साथ ही अनन्त जो यज्ञ हैं कर्मकाण्ड के उनका लाभ ठीक से समझने के बाद ही मिलता है --कृपया सम्पूर्ण कथा सुनें --भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ यह पेज ,सबके योग्य है -चाहे आप बालक हैं ,युवा हैं ,प्रौढ़ हैं या फिर वृद्ध -- अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें

नामकारण संस्कार का अभिप्राय क्या है -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


  नामकारण संस्कार का अभिप्राय क्या है -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -नाम कारण संस्कार -अर्थात -नाम से ही व्यक्ति की पहचान होती है | इस सृष्टि में प्रत्येक चीजों के अलग -अलग नाम होते हैं साथ ही नामों से ही सभी चीजों के प्रभाव समझ में आ जाते हैं | ज्ञानी पुरुष प्रायः नामो से ही अच्छा बुरा का भान कर लेते हैं | यहाँ यह ध्यान देने वाली बात --सृष्टि के तमाम चीजों के नाम ज्ञानी पुरुषों ने अथक परिश्रम से रखे -तभी प्रत्येक व्यक्ति को यह समझ में आती है कि कौन सी चीज हमारे अनुकूल रहेगी या कौन सी चीज हमें हानि पंहुचायेगी | इसी प्रकार से महर्षियों ने प्रत्येक व्यक्तियों के कैसे -कैसे नाम रखें या किस नाम से यह जीवन में विख्यात होगा --इसके लिए जन्म पत्रिका का निर्माण किया गया है | वास्तव में ज्योतिष की जरुरत प्रत्येक व्यक्तियों के जीवन में नाम कारण संस्कार से शुरू होती है | यहाँ भी उत्तम पुरोहित यानि एक सक्षम आचार्य की जरुरत होती हैं | जातक का एक ऐसा नाम रखा जाता है जो जीवन पथ को तत्काल दर्शाता है | कुछ लोगों के मत से देवों के ऊपर नाम रखने से जातकों में वैसा ही स्वभाव और प्रभाव देखने को मिलते हैं | जबकि सत्य यह है जिस नक्षत्र में जातकों के जन्म होते हैं उन्हीं नक्षत्रों के चरणों से नामकरण का विधान है साथ ही अगर हम देवों के नाम अपने -अपने बच्चों के रखते हैं तो सबसे पहला फायदा -बुलाने वाले लोगों को मिलता है -जिन -जिन नामों से किसी को पुकारते हैं तो उन -उन नामों में देवों के अंश दिखाई देते हैं --इस कारण परमात्मा का भी स्मरण हो जाता है | दूसरा ---सभी बालकों को इन नामों से यह प्रेरणा मिलती है कि हम कम से कम नामों के अनुकूल कार्य करें | अतः नाम कारण संस्कार उत्तम प्रकार से सभी के होने चाहिए | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut






तमाम पात्र अपनी भूमिका नहीं निभाते -तो जीवनी कैसे लिखी जाती -पढ़ें - भाग -47 झा मेरठ


 


मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -47 -खगोलशास्त्री झा मेरठ

ये तमाम पात्र अपनी भूमिका नहीं निभाते -तो जीवनी कैसे लिखी जाती --कईबार खुद ही सवाल मन में उठते रहे -खुद की कुण्डली देखी है ,जिनका अपना घर ठीक नहीं होता तो दूसरे का घर ठीक करने चल देते हैं ---यही अभिप्राय इस जीवनी का है "---अस्तु ---मेरी जीवनी का एक पात्र मेरा अनुज है --जिसके ऊपर भी प्रकाश डालना चाहता हूँ | हम चार भाई एक बहिन हुए | एक अनुज बाल्यकाल में दिवंगत हो गया ,दूसरा अनुज जब हम 18 वर्ष के हुए तो सर्पदंश से दिवंगत हुआ | सबसे जो छोटा अनुज है --इसके मेरे बीच 8 वर्ष का अन्तर है| इसकी कुण्डली उपलब्ध है | मेरा स्नेह बाल्यकाल से इस अनुज पर रहा | इस अनुज का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ यह अब मैं जनता हूँ --अगर तब जनता भी तो शायद निदान नहीं हो पाता --क्योंकि माता पिता की अज्ञानता के कारण | बहुत से माता पिता हैं --बालक को बढ़िया बनाना भी चाहते हैं --पर इस बात को नहीं मानते हैं | भले ही बाल्यकाल में जब यह अनुज 2 वर्ष का हुआ तो मेरा राजयोग समाप्त हो चूका था इसे मैं स्नेह बहुत करता था --आज भी करता हूँ किन्तु --यह अनुज भी बहुत गरीबी देखी है | जैसे -तैसे धन की सोच लेकर शहर चला था --धन तो मिल गया पर --संयोग से मैं भी शिक्षा को छोड़कर -1994 मुम्बई से आये तो एक ही शहर में रहने लगे | मैं भटकता रहा --मरे हुए का नहीं खाना है ,दान नहीं लेना है ,मंदिर में नहीं रहना है --उस समय एक कन्या भी थी| यह अनुज को केवल धन चाहिए था --तो यह धनाढ्य होता गया | मेरी गरीबी बढ़ती गयी --संयोग से इसने अपने साथ रहने के लिए कहा --हमने सोचा एक अनुज पहले ही खो चुके हैं --तो चलो एक साथ रहेंगें --इसे भी शिक्षित करेंगें ---इसे दो तीन अध्याय वेद सिखाये ,ज्योतिष के शिशुबोध सिखाया| इतने ही बहुत थे आज के युग में कमाने के लिए --क्योंकि आज का समाज शिक्षा के लिए कम तुरन्त काम हो जाय -इसपर विशेष ध्यान देता है | --जब माता पिता को यह बात की जानकारी हुई --तो उन्हौनें सोचा -बड़ा भाई तो इसका सब खा जायेगा ,साथ में बेटी भी है ,इसकी शादी भी नहीं हुई थी ,माता पिता की खाई समाप्त हो चुकी थी --मेरे धन से | अब तो अनुज की शादी फिर कैसे होगी --इसकी चिंता शुरू हुई --दीदी -जीजा ,मामा -मामी ,सारे रिस्तेदार -अनुज के हो गए --मैं अकेला पड़ता गया --अब मेरा तिरस्कार पतनी भी करने लगी --जब ग्रहों के योग उत्तम न हों तो ऐसा ही होता है ,अनुज हर पल अपमानित करने लगा | तब सभी मुझे हेय दृष्टि से देखने लगे ,तब --जब ज्ञान प्राप्त हो जाता है --तो काहे के गुरु ,जब काम बन जाता है -----तो काहे का भगवान हो जाता है --तो मेरा क्या अस्तित्व | खैर --अब हम नगण्य हो रहे थे ,शिक्षा थी ,अनुभव था --पर ग्रहों के प्रभाव उत्तम नहीं थे | पतनी मेरी सदियों से पुजारिन रही है --तो जहाँ पूजा के लिए बैठती थी --मेरा अनुज वहाँ थूका करता था ,मैं अपने अनुज के कपड़े धोया करता था ,मेरा अनुज ड्राइक्लीन के ही कपड़े पहनता था ,नित्य एक फ़िल्म देखता था ,उसके मन्दिर की सारी जिम्मेदारी मेरी थी --केवल शान से रहता था --वही करता था जो उसे अच्छा लगता था | एकदिन मेरी पतनी पीडित होकर शहर मेरे पास आ गयी पिताजी के साथ | पिताजी चले गए -एक दिन नौवत यह आ गयी --अनुज बोला -शब्दों पर गौर करें -मुझे --अगर तुझे मेरे पास रहना है --तो मैं आजाद घूमूँगा तू सफाई करेगा ,बर्तन माँजेगा ,आरती करेगा साथ में मेरी सेवा तुम्हारी पतनी करेगी ---ये शब्द मानो मरने जैसा था --हमने कहा कुछ नहीं करूँगा --यहाँ से चला जाऊंगा --रात में बच्चों के साथ छत पर सो रहे थे --सुबह जब आँख खुली तो दरवाजे बंद थे --हमारी छोटी बिटिया भूख से तड़प रही थी --यह हाल मुझसे देखा नहीं गया -- दरवाजे में पैर मारे -- दरवाजे खुल गए --मुझ पर चोरी का इल्जाम लगाया साथ ही निकाल दिया --इसके बाद कभी नहीं मिले --अनुज के साथ--इस कथा को आगे पूरी करूँगा ----ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को समझ हेतु --इस लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

चतुर्थी संस्कार क्यों - कथा सुनें -भाग -46 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 चतुर्थी संस्कार क्यों - कथा सुनें -भाग -46 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
प्रिय श्रोतागण --आज मैं विवाह के उपरान्त चतुर्थी संस्कार क्यों होता है -इसकी कथा सुनाना चाहता हूँ साथ धर्म की सही परिभाषा क्या है --कृपया सम्पूर्ण कथा सुनें --भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

जातक संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 

 जातक संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु -पढ़ें ! खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



--कर्मकाण्ड जगत में "जातक "संस्कार -यह प्रत्येक जातकों का चौथा संस्कार होता है | अभी तक के जितने भी संस्कारों को आपने जाना है -इन सभी संस्कारों में सभी के माता पिता अपनी -अपनी संतानों को एक जैसा प्रारूप दे सकते हैं | प्रत्येक माता पिता चाहें तो -राम जैसा मर्यादापुरुषोत्तम ,श्री कृष्ण जैसा निति निपुण ,माँ सरस्वती जैसी शिक्षा की अधिष्ठात्री ,श्री हनुमान जैसा बुद्धिवान -ज्ञानी ,शक्तिशाली संतानों को जन्म दे सकते हैं | माता पिता चाहें तो कुमार्ग गामी या धर्म विरोधी संतानों को जन्म दे सकते हैं | यहाँ न तो शास्त्रों ने भेद भाव किया न ही शास्त्रकारों ने न ही महर्षियों ने --ये केवल अफवाह या अनसुनी बातों के कारण हम आप में भ्रम है कि ऐसी संतानों को केवल धनाढ्य या बड़े लोग ही जन्म दे सकते हैं | इस बात को ऐसे समझें --प्रत्येक छात्रों को प्राथमिक शिक्षा एक जैसी ही मिलती है अंतर तो केवल छात्रों को निखारने का होता है --जो शिक्षकों और माता पिता या संगति के कमियों के कारण कोई उत्तम छात्र या अधम बन जाते हैं | एक और उदहारण देखें -प्रत्येक छात्रों को दशवीं कक्षा तक सभी विषयों को पढ़ना अनिवार्य होता है -उसके बाद अपनी -अपनी समझ के अनुसार विषयों का चयन करना होता है | जब पढ़ाई की ऐसी ही व्यवस्था है तो फिर जातिबाद या बड़े छोटे की बात कहाँ से आयी -इसे हमें ठीक से समझना चाहिए | ----अस्तु --प्रत्येक जातक जब छे दिन के होते हैं -तो षष्ठी पूजन होता है -इस दिन स्वयं विधाता जातकों को दर्शन देते हैं और जातकों -की आयु ,कर्म ,वित्त ,विद्या और निर्धनता का आशीर्वाद देकर चले जाते हैं तथा पुनः जीवन में कभी दर्शन नहीं देते हैं | दशवें दिन शुद्धिकरण होता है तब जातकों को सभी को देखने का और आशीर्वाद लेने का दिन होता है |---आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जीवनी में अभी मैं सभी पात्रों की भूमिका को दर्शा रहा हूँ -पढ़ें - भाग -46 -ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -46 -ज्योतिषी झा मेरठ

' कृपया ध्यान दें --जीवनी में अभी मैं सभी पात्रों की भूमिका को दर्शा रहा हूँ | यह कहानी कारीब -करीब सभी लोगों के जीवन में होती है --पर मेरा उद्देश्य इसे लाभ कहें या हानि ,इसे भाग्य कहें या कर्म ,--तो यह समझें दुःख से सभी जीव बचना चाहते हैं --ज्ञानी पुरुष खोज करते हैं ,साधारण पुरुष विधि का विधान समझकर रूक जाते हैं --मेरा मानना है --मानव का उद्देश्य सार्थकता होनी चाहिए --"---आज मैं जीजा के ऊपर प्रकाश डालना चाहता हूँ | मेरे जीजा धनाढ्य परिवार से हैं| जीजा के माता पिता वैष्णव थे| --मेरे जीजा मुझसे ज्यादा पढ़े -लिखे थे ,मुझसे बहुत बड़े थे | जीजा के कुछ कर्तव्य थे --पर कर्तव्य विमुख क्यों हुए ---अपने जीवन में कभी भी एक रुपया नहीं दिया मुझको ,कभी भी कोई सलाह नहीं दी | बदले की भावना न सही पर मेरे घर को पुत्र की तरह संभालना चाहिए था --उसकी जगह अपना घर छोड़कर मेरे घर में साम्राज्य स्थापित किया --मुझे दीदी एवं जीजा की कुण्डली नहीं मिली --जिससे यह पता करते --राहु की वजह से हम दरिद्र हुए या इनकी कुण्डली कुछ और कहती थी | मेरे माता पिता अनपढ़ थे --तो उनको सही राह दिखाते --इसकी जगह उन्होनें कैसे राज्य स्थापित किया सुनें ---कुछ धन व्याज पर चलने लगा मेरे गांव में ,यह लत इतनी बढ़ गयी --किआज तक चल रही है | माँ ऐसे लिप्त हुई --मानों उसे दीदी जीजा से उत्तम कोई दिखाई ही दिया| --बहुत कम उम्र से अपने घर को संभालने का काम हमने किया --पर जब मेरठ मैं आ गया तो पूर्ण रूप से स्थापित मेरे घर में हो गए बच्चों के साथ | तब मैं अकेला था --इस बात पर ध्यान नहीं देता था ,जब 1990 में मेरा विवाह हुआ --जिम्मेदारी बढ़ गयी तब तक मेरा घर रसातल पहुंच चूका था | जीजा का घाटा मेरी कमाई से पूरा होता था | मेरी कमाई से चौपाल लगता था जिसमें सभी लोग चाय ,सरबत का आनन्द लेते थे ,कुछ ननिहाल तो कुछ सभी रिश्तेदारों तक कमाई जाती रही ,ऊपर से खाई इतनी थी --जब मैं मुम्बई पढ़ने गया तो एक जमीन जिससे दीदी का गोना हुआ था -1000 से यह ऋण --1992 में चुकाया | दीदी -जीजा ,मामा,अनुज का तालमेल एक था मैं नगण्य था |पिता के मुकदमें में कभी जीजा नहीं बोले युद्ध मत करो --समझौता कर लो ,जब मेरी पतनी आयी --माँ बनने वाली थी --सभी मौज करते थे --खाना घरवाली बनाती थी | किसी दिन व्रत होता था --तो माँ और दीदी दूसरे के आंगन में फलाहार करती थी ताकि देख न ले --पर बात कब तक छुप सकती थी | यह कहानी जानने के बाद भी --मुझे धर्म दिखता था | --अन्त में भाग कर मेरठ मेरे पास पतनी आ गयी -----अन्त में भाग कर मेरठ मेरे पास पतनी आ गयी ---इसे राहु का चक्र कहें या कायरता --जबाब आगे दूंगा | ----ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को समझ हेतु --इस लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

रविवार, 15 अक्टूबर 2023

शिक्षा और अशिक्षा की एक कथा सुनें -भाग -45 -ज्योतिषी झा "मेरठ "


 


शिक्षा और अशिक्षा की एक कथा सुनें -भाग -45 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
दोस्तों -आज हमारे समाज में ज्ञान का पैमाना बदल चूका है --जिसका परिणाम यह होता है -सही क्या है ,गलत क्या है --इसकी जानकारी दूसरे के द्वारा मिलती है ,अगर कानों से सुना जाय और आँखों से देखा जाय साथ ही दोनों में समानता हो तो ठीक ज्ञान हो सकता है | आज एक कथा सुनाता हूँ सुनें -----भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

सीमन्त संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 

 सीमन्त संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु -पढ़ें


खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ  




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कर्मकाण्ड जगत में तीसरा संस्कार का नाम -सीमन्त संस्कार है | प्रत्येक देश की सुरक्षा हेतु सीमा की व्यवस्था होती है |सीमा को आर- पार करने हेतु दोनों देशों को कुछ नियमावली का पालन करना पड़ता है | तभी मित्रता बनी रहती है | इसी प्रकार से जब माँ का गर्भ सातवां माह पूर्ण करता है तब जच्चा -बच्चा दोनों को अंदर और बाहर से खतरा रहता है -इस अनहोनी की घटना से माँ को बहुत ही सतर्क और सावधान रहना होता है --इसी का नाम महर्षियों ने सीमन्त संस्कार रखा है | नियमावली --वैसे यह संस्कार आज भी सभी माताएं तो नहीं करती है किन्तु -कुछ सतर्कता जरूर रखती हैं | -----अस्तु ---जब गर्भ सात माह का हो जाय तो सास को चाहिए -पुरोहित जी को बुलाकर पंचांग पूजन करायें पुत्रवधु से एवं घर की सीमा के बाहर न जायें साथ ही अपने आप को परमात्मा में तल्लीन करें जिससे गर्भ के अंदर शिशु की रक्षा परमात्मा करें और बहरी सुरक्षा माँ करें इससे दोनों का कल्याण होता है | ----ध्यान दें --प्रत्येक जातकों के तीनों संस्कार अवश्य होने चाहिए | आज हमलोग आधुनिकता में विशेष खो रहे हैं प्राचीन को विस्मृत करते जा रहे हैं ----क्योंकि जब हम आज भी -सूर्य ,चंद्र,अग्नि ,पवन ,वरुणदेव के बिना जी नहीं सकते हैं तो इन संस्कारों को कैसे भूल सकते हैं | जब हम आज भी उन्हीं मन्त्रों को मानते हैं अपनी -अपनी तमाम मनोरथों को उन्हों मन्त्रों से पूर्ण करने का प्रयास भी करते हैं तो भला सोचें हम अपने संस्कारों के बिना इनका सामना कैसे करेंगें | ---अतः इस पर अवश्य विचार करें | ---आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरे मामा का साम्राज्य मेरे घर में कैसे हुआ --पढ़ें ?--- भाग -45 -खगोलशास्त्री झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -45 -खगोलशास्त्री झा मेरठ

'आज मैं मेरे मामा का साम्राज्य मेरे घर में कैसे हुआ पर प्रकाश डालना चाहता हूँ --इसके बाद दीदी की कथा सुनाऊंगा जो अधूरी रह गयी है "----अस्तु --मेरी माँ के दो बहिन एक भाय हुए | नाना बहुत छोटी 8 वर्ष की उम्र में चले गए | माँ का पालन नानी के पिता ने की जिनको हमने बहुत करीब से देखा है --उन्हौने ही मेरी माँ का विवाह मेरे पिता से कराया था साथ ही मेरे घर में बहुत सम्मान था --पर निर्लोभी थे कुछ दिया ही होगा लिया नहीं किन्तु जब मेरी गरीबी आयी उससे पहले ही दिवंगत हो गए थे| मेरे पिता के विवाह के बाद मामा मेरे घर पर रहे, नानी का खर्च भी पिता ने ही उठाया था | मौसी का लालन -पालन नानी ने ही किया --नानी पे जमीन तो थी पर आय का साधन नहीं था --अतः मेरी माँ ने भार उठाया | मेरे मामा बहुत जल्दी दसवीं पास कर सरकारी नौकरी रेलवे में प्राप्त की और दिल्ली चले गए | तब मेरी उम्र 7 वर्ष थी जो ठीक से ज्ञात नहीं है| तब जब मामा थे तो मेरा राजयोग चल रहा था पिता-ने जमीं ली, दुकान ली --पर सुना है --सारी पूंजी चोरी हो गयी थी| ---हम दोनों भाईयों के जनेऊ संस्कार 1980 में हुए --तब मामा दिल्ली से हमलोगों के लिए बहुत कुछ ला रहे थे जो ट्रेन में ही खो गए | उपनयन संस्कार बड़े ही धूमधाम से हुए थे --तत्काल ही कुछ पैसों की जरुरत हुई थी --पिताने मामा से उधार 2000 मांगें थे --बोले पैसे तो नहीं हैं मेरी पतनी के गहने ले लो और व्याज पर पैसे लेलो --मेरी माँ ने ऐसा ही किया| कुछ दिन बाद गहने वापस कर दिए --मेरे पिता ने | ---इसके बाद मेरे घर में दीदी की शादी हुई मामाने मदद नहीं की बल्की जमीन बेचकर शादी हुई थी | इसके बाद पूर्ण रूप से गरीबी मेरे परिवार में चल रही थी --कभी भी एक रूपये देते हुए मामा को नहीं देखा| --1984 में दीदी का गोना {द्विरागमन }हुआ जो जमीन फिर गिरबी रखकर हुआ --तब मैं 14 वर्ष का था ,सबकुछ जानता था | मेरा भाई सर्पदंश से दिवंगत हुआ --कर्य लेकर संस्कार हुए थे --तब भी कोई मदद नहीं की थी | मामा की शादी पिता ने करायी थी --तो मामा को पुत्र नहीं था --माँ ने कहा हमने पहली जन्मपत्री फ्री में बनायीं थी --और कहा बालक अवश्य होगा --तत्काल ही दो बालक हुए --उनको पहले से दो कन्या थीं | मुझे याद नहीं है कभी ममाने एक रुपया मुझको दिया हो --एकबार बोले दसवीं प्रथम स्थान से पास करोगे तो किताब दिलाऊंगा ---आजतक नहीं दिलाये |1981 जबसे मुझे ज्ञान हुआ -1988 जब मैं मेरठ आ गया --गुप्त रहे | मेरठ मेरा आना और मामा का अधिपत्य बनना हुआ| मामा जब भी घर आते रहे थैला ले जाते रहे ---हमने --14 वर्ष से ही अपने घर को संभालने की कोशिश की है | --मेरी माँ सदावहार रही क्योंकि मेरे घर से तब से धन जा रहा था --जब हम नहीं थे \मेरे घर में वही होता था जो माँ चाहती थी | पिता हमारे सदा नाराज रहते थे इस बात से --मुझसे बारबार कहते थे --दोनों -जीजा और मामा पे कभी भी भरोसा मत करना | --जब हम मेरठ आये --तो धन और बरसने लगा मेरे घर में मामा की तो चांदी दी ही चांदी हो गयी | ---यहाँ मैं आपलोगों से ही मत जानना चाहता हूँ --क्या मेरे मामा सही थे --अगर सही थे तो हमारी ह्रदय से कोई मदद क्यों नहीं की जबकि हमारे माता पिता ने तो बहुत किया था| --चलो जो दूसरा प्रश्न है --मेरे पिता ने पढ़ाया तो हम तीन भाई एक बहिन थे एक को ही पढ़ा देते | यदि मदद नहीं की तो मेरी माँ को सही दिशा देते | ---मेरे मामा की सारी बातें ,दीदी को ,अनुज को ,माँ को, पिता को ,जीजा को अच्छी लगती है मेरी बात या मेरी पतनी की बात अच्छी क्यों नहीं लगती है | --मैं तो कभी मांगने भी नहीं गया ==एकबार जब मुम्बई पढ़ने जा रहे थे तो --एक रास्ता बताया था मुर्दा उठाकर कमाने का जो हमने अमल नहीं किया | ---बात यह जिस व्यक्ति को खाने की लेने की आदत हो जाती है यह उसका स्वभाव बन जाता है ---मेरे मामा देना नहीं लेना सीखें हैं | जब मेरे घर में सुख के दिन आते हैं तो फिर मामा प्रकट हुए --मेरा मकान बना मामा की सलाह पर ,भाई का विवाह हुआ मामा की सलाह पर ,मुकदमें हुए मामा की सलाह पर --जब माता पिता ,अनुज -अनुज भार्या की जेल हुई तो बचाने जीजा ,मामा नहीं यह कार्य मेरी भार्या ने की |-----अब आगे ज्योतिष के माध्यम से साबित करने का प्रयास करूँगा --किसी जातक के जीवन में मातृपक्ष का सुख क्यों नहीं है | ---ॐ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

क्या हम सुपात्र हैं -ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के- सुनें -भाग -44 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 क्या हम सुपात्र हैं -ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के सुनें --भाग -44 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
दोस्तों -उपदेश देना सरल होता है किन्तु पालन करना बहुत ही कठिन होता है | पर सीख मिलती है तो व्यक्ति सुधरने का प्रयास भी करता है | -----भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

पुंसवन संस्कार क्यों होता है -पढ़ें--खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 

 पुंसवन संस्कार क्यों होता है  -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ ---



-उत्तर ----वत्स -इस प्रकृति में जो भी वस्तु या चीजें हैं -सभी का विस्तार होता रहता है | जो छोटा है वो बड़ा होगा जो बड़ा होगा वो एक दिन समाप्त होगा | एक जैसा कोई भी इस प्रकृति में नहीं रहता है | एक जैसा केवल श्री हरी ही इस प्रकृति में रहते हैं | पर मानवों में वो कला है जो चाहे बन सकता है ,बना सकता है --वो चाहे तो असंभव हो संभव बना सकता है | ----मानवों के पूर्वज रिषि -महर्षियों ने -मानवों के हित के लिए षोडश संस्कार की रचना की | इन संस्कारों के बल पर ही असंभव को संभव किया जा सकता है | पर दुर्भाग्य यह है --इनमें से बहुत से संस्कार जातकों के होते ही नहीं हैं या माता पिता -उन संस्कारों से अनभिज्ञ हैं | वत्स हम भी इन संस्कारों को संतान होने के बाद जाना -अतः हमारे भी बहुत से संस्कार नहीं हुए किन्तु हम चाहते हैं --तुम सब इन संस्कारों को समझों और अपनाने की कोशिश करो | ------अस्तु ---जब माँ का गर्भ तीन माह का होता है -तो पूर्व के विधियों का परित्याग कर पुंसवन संस्कार --यानि जातक कैसे हृष्ट -पुष्ट हो-इस संस्कार से जातक हृष्ट -पुष्ट ही नहीं होता बल्कि ---नियमावली -यह है -जब गर्भ तीन माह का हो तो सास को पुरोहित जी को बुलाकर पहले पंचांग पूजन करना चाहिए फिर बट वृक्ष के पास जाकर उत्तम संतान यानि निरोगी संतान की कामना करनी चाहिए इतना ही नहीं -कृपया ध्यान दें आप सभी के मन में एक शंका आ सकती है कि इतने वृक्षों में बट वृक्ष ही क्यों -आम क्यों नहीं तो ध्यान दें --बट वृक्ष एक ऐसा वृक्ष इस जगत में है जो बिना खाद पानी के सभी वृक्षों से बलिष्ठ होता है --तो संतान कैसी होनी चाहिए बलिष्ठ या दुबला -पतला ----इसलिए इस वृक्ष से यह कामना करनी चाहिए -हे बटवृक्ष आपकी तरह हमारी संतान बलिष्ठ हो और प्रार्थना के बाद इस वृक्ष के दूध को मां के वायी नाक में दूध डालने से कन्या और दायीं नाक में दूध डालने से पुत्र की प्राप्ति होती है | ---आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जीवनी लिखते समय अपने को अनन्त कसौटी पर परखें -भाग -44 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -44 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

"हम अपनी जीवनी लिखते समय सबसे पहले अपने आप को अनन्त कसौटी पर परखें --जैसे क्या मेरे माता यहीं हैं ,क्या मैं इनकी ही संतान हूँ ,मेरी जीवनी में जितने पात्र हैं सच में मेरे परिजन हैं या आपको भ्रमित करने के लिए आधार बनाया गया है --आईये आप लोग भी अपनी -अपनी कसौटी पर अपने आपको परखकर देखें "----अस्तु -- ज्योतिष की दुनिया में कोई भी जातक या जातिका यह जान सकते हैं --मैं किसकी संतान हूँ ,जो वर्तमान में मेरे माता पिता हैं क्या सच में हैं --इसके लिए ज्योतिष जगत हमें सटिक जानकारी देता है | --मेरी कुण्डली में चौथे भाव का और नवम भाव का स्वामी मंगल है जो लग्नेश सूर्य के साथ लग्न में ही विराजमान हैं ,इनकी यानि मंगल ग्रह -4 ,7 ,8 भाव पर पूर्ण दृष्टि डालता है | सूर्य स्वराशि का लग्न में है | --यह तो निश्चित हो गया जो मेरी माँ है -उसका मैं पूर्ण अंश हूँ | --कर्मेश --जिसे पिता का क्षेत्र भी कहा जाता है ज्योतिष की दुनिया में --मेरा शुक्र कर्मेश है किन्तु दूसरे घर में में बुध के साथ उपस्थित है ---बुध की वजह से नीचता भंग हो गयी है साथ ही कर्मक्षेत्र में चन्द्रमा उच्च का है --अतः मैं अपने पिता का ही आत्मज हूँ | अब दूसरी शंका थी --जो मेरा रंग है ,कद है क्या मेरी कुण्डली से सही मिलान है --मैं सिंह लग्न का हूँ सूर्य ,मंगल और केतु लगन में हैं एवं सप्तम भाव में राहु है और किसी ग्रह की पूर्ण दृष्टि नहीं पड़ रही है ---अतः देदीप्यमान चेहरा ,कद्दावर शक्ल ,लाल वर्ण होते हुए भी --स्थान के अनुसार रूप दिखाई देगा | जैसे ग्रहण लगने पर सूर्य +चन्द्र अपनी कान्ति खो देते हैं इसी प्रकार से मैं मातृभूमि पर जब भी रहूँगा तो रूप धूमिल रहेगा ,अगर किसी और प्रदेश या जगह पर रहूँगा तो लाल-गौर वर्ण स्वरूप मेरा रहेगा ---यह बात भी सही है --वास्तविक जो मेरा रूप है वो काला है पर ग्रहण से दूर होने पर मेरा रूप गौर वर्ण हो जाता है | --अतः यह जो उपलब्ध कुण्डली है यह भी सही है और मैं भी सही हूँ ---| --अब आपलोगों के मन में भी कई प्रश्न उठ रहे होंगें --आधार क्या है --तो ताजिकनीलकण्ठी ,मुहूर्तचिन्तामणि ,वृहत्पराशर ,जातकाभरणं ,जातकतत्वम --बहुत सारे जो संस्कृत के ग्रन्थ हैं -सांख्यकारिका --तमाम ग्रन्थों को जानने के बाद ही यह निष्कर्ष संभव है ,इसके साथ ही --व्यक्ति की अनुभव की कला ---अब फिर एक शंका आपके मन में उठ सकती है --कोई कम पढ़ा हो या नहीं जनता हो तो उसे सही ज्ञान नहीं हो सकता है ---इसका जबाब है --ज्योतिष का लाभ केवल राजा महराजा लेते थे ----इसके लिए -गणना और साधना होती थी --ब्रह्मण की जिम्मेदारी राजा की होती थी राजा का दायित्व ज्योतिषी का होता था --एवं सदा अन्वेषण में ज्योतिषी लगे रहते थे | आज अन्वेषण कम तर्क और कुतर्क ज्यादा होते हैं | आज अगर एक कुण्डली सही बनाई जाय तो लाख रूपये भी कम हैं --पर आपकी हां में हां मिलानी है ,अपनी जीविका चलानी है --तो हम लाचार होते हैं ,न अपना भला कर पाते हैं न आपका | ----ॐ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

नन्दीमुख श्राद्ध शुभ कार्य में क्यों करना चाहिए -सुनें भाग -43 --ज्योतिषी झा 'मेरठ '



 नन्दीमुख श्राद्ध शुभ कार्य में क्यों करना चाहिए -सुनें भाग -43 --ज्योतिषी झा 'मेरठ '
जब भी कोई शुभ कार्य करें तो पहले नन्दीमुख श्राद्ध अवश्य करना चाहिए | नन्दीमुख श्राद्ध का अर्थ है -मातृपक्ष और पितृपक्ष को श्रद्धांजलि देना | ----ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-- उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

उत्तम संतान की प्राप्ति कैसे होती है -सविध बतायें -पढ़ें-ज्योतिषी झा मेरठ


  उत्तम संतान की प्राप्ति कैसे होती है -सविध बतायें -पढ़ें?




 
उत्तर --वत्स - जैसे -भवन की मजबूती नींव से होती है | किसी देश की मजबूती एकता से होती है | सृष्टी की मजबूती नियमावली से होती है --वैसे ही कर्मकाण्ड जगत में मानवों की मजबूती संस्कारों से ही संभव है | ये संस्कार सोलह प्रकार के होते हैं | प्रथम संस्कार का नाम है -"गर्भाधान संस्कार " प्राचीन समय में जब संतान की कामना होती थी तो दादी अपनी -अपनी पुत्र वधुओं से यह संस्कार की नियमावली बताती थी और सभी नियमावली का अनुशरण करतीं थीं | जो इस गर्भाधान संस्कार को सविध करती थी उसे उत्तम संतान मिलती थी | ----नियमावली ---जब भी संतान की कामना हो तो रजस्वला होने से छठे दिन पति -पतनी और सास के साथ पुरोहित जी से सविध पंचोपचार पूजन विधाता का कराना चाहिए | पति - पतनी परमपिता परमेस्वर से प्रार्थना जैसी संतान की कामना की करेंगें वैसी ही संतान संभव है | पति -पतनी का मिलन यदि सम संख्या में होगा तो उत्तम पुत्र होगा ,अगर दोनों का मिलन विषम संख्या में होगा तो उत्तम कन्या होगी | ---यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है -इस विधि से तो सभी पुत्र ही चाहेंगें तो फिर सृष्टि कैसे चलेगी ---तो जो भी यह प्रथम प्रयोग करेगा तो एकबार ही यह संभव है साथ ही -जो एकदशी को दोनों का मिलन होगा तो अधम संतान होगी ,यदि पूर्णिमा या अमावश्या का दोनों का मिलन होगा तो हानिकारक संतान होगी | मेरे विचार से इतने नियमों को जो निभाएगा उसे ही उत्तम संतान की प्राप्ति होगी जो आधुनिक समय में सभी नहीं निभा पायेंगें | ---सबसे बड़ी बात इस संसार में भले ही अत्यधिक संतान नहीं चाहते हों किन्तु दो संतान तो कम से कम सभी को जरूर चाहिए | और सभी एक कन्या और एक पुत्र की कामना अवश्य करेंगें क्योंकि कन्या की कामना वही कर सकता है जो धर्म को मानेगा और यह विधि धर्म पर ही आधारित है | इस विधि से धार्मिक व्यक्ति धर्म का पालन कर सकता है | आगे की चर्चा कल करेंगें ------ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरी जीवनी में नाटक की तरह अनन्त पात्र हैं-पढ़ें - भाग -43 ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -43 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी जीवनी में नाटक की तरह अनन्त पात्र हैं ,सभी पात्रों की अपनी -अपनी भूमिका है --तभी यह आत्मकथा बनी है | परमात्मा ने मेरी जीवनी में आठों रसों का स्वाद भरपूर दिया है | इस जीवनी रूपी स्वाद को जितना चखने का प्रयास करेंगें --आप में स्वतः ही निखार आता जायेगा क्योंकि यह सत्य पर आधारित है साथ ही आज जहाँ से मैं लिखने की कोशिश कर रहा हूँ --वहां केवल एक ही धेय है --आपका कल्याण --चूकि -रत्न क्या होते हैं ,ग्रह क्या होते हैं ,हमारे ऊपर प्रभाव क्यों पड़ता है ,हमें निदान क्या -क्या करने चाहिए ,कालसर्पदोष के 95 आलेख भी लिख चूका हूँ ,वास्तु दोष क्या होता है इसके भी 35 आलेख लिख चूका हूँ --देश -विदेश की तमाम बातों को लिख चूका हूँ ,लाखों लोगों को एकबार निःशुल्क ज्योतिष सेवा दे चूका हूँ | इसके बाद हमने अपनी सेवा महंगी कर दी ताकि कम लोग ही हमसे सम्पर्क कर सकें | --पर मानव हैं कामना की पूर्ति होते ही पुनः कामना शुरू होती है --साथ ही --अगर आप सभी पाठकगण पढ़े लिखे हैं ,रामायण हो ,वेद हों ,पुराण हों ,भागवत हो या फिर और ग्रन्थ सभी के बारे में बखूबी जानते हैं| हो सकता है --रत्न के बारे में ,आलेखों के बारे में या ज्योतिष के बारे में हमने आपको अपनी और तार्किक बुद्धि से खीचने का प्रयास किया हो --तो मुझे लगा --मेरी जीवनी ही एक ऐसा उदहारण हो सकती है --जो मेरी खुद की घटना है एवं अब हम उस पड़ाव पर हैं --जहाँ मुझे जरुरत की पूर्ति हो चुकी है --और आराधना की ओर जाना चाहिए | इस अवस्था में --मुझे लगता है आने वाला जो समय आयेगा --उसमें सुख कम दुःख लोगों को अति मिलेगा --तब लोगों को शान्ति की तलाश में -कैसे यकीन करेंगें कि सामने वाला जो कह रहा है --वो लोभ से या बरगलाने के लिए या फिर बहकाने के लिए --तब आपको सच की राह ,जीने की कला ,आप क्या हैं ,क्या आप जिसे शत्रु समझते हैं --वो शत्रु है ,आपके कर्तव्य क्या हैं ,आपको करना क्या चाहिए ---तथा प्रेरणा देने वाले ठीक हैं या उनकी कहानी आप जैसी ही है --तब यह जीवनी समझ में आएगी --आज भले ही न आये | बाबा तुलसी दास हों या भगवान व्यास --तब जब वो रहे तब ये दोनों ग्रन्थ --रामायण + भागवत -जिसे स्वयं भगवान स्वरूप आज मानते हैं ,वैसी ख्याति नहीं प्राप्ति की जैसे ख्याति आज मिल रही है | --अतः --जब मैं नहीं रहूँगा तब यह जीवनी एक कथा बन जायेगी --यह मुझे भरोसा एवं विस्वास है --क्योंकि मेरा ध्येय -व्यक्ति कल्याण है | मेरा ध्येय ज्योतिष को उस पायदान पर खड़ा करना है --जो उसका सही अस्तित्व है | ---यह बात साबित करने का भरसक प्रयास करूँगा --ज्योतिष का प्रभाव क्या सच में पड़ता है | कभी मैं कन्हैयालाल झा था ,कभी मैं ज्योतिषी झा था --अब हम खगोलशास्त्री झा हैं --इसका भावार्थ होता है --अन्वेषण करना ,सटिक बातों को बताना ,भेद -भाव रहित उत्तम समज की रचना करना --जन -जन का कल्याण कैसे हों ताकि सभी अपनी -अपनी जीवनी को ठीक से सवार सकें ---ॐ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -

तीन प्रकार के कौन से ऋण होते हैं सुनें -भाग 42 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 तीन प्रकार के कौन से ऋण होते हैं सुनें -भाग 42 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
प्रिय श्रोतागण ---प्रत्येक व्यक्ति तीन प्रकार का ऋणी होता है ---जिसे उसे चुकाना ही पड़ता है | यद्यपि इस संसार में मानव केवल ऋणी ही होता --लाख चाहे तब भी उऋण नहीं हो सकता है --फिर भी कुछ ऋण ऐसे हैं ---जिनको चुकाने का भरसक प्रयास अबश्य प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए | --ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-- उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...