ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
बुधवार, 13 सितंबर 2023
"वास्तु और दिशा-ब्रह्मस्थल {ज्योतिष -विशेष }?"--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
"वास्तु और दिशा-ब्रह्मस्थल {ज्योतिष -विशेष }?"--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
----वास्तु अर्थात -निवास स्थान ----दश दिशायें होती हैं उन सभी दिशाओं का अपना -अपना प्रभाव होता है | एक आम व्यक्तियों के लिए वास्तु के अनुकूल भले ही भवन न निर्माण हो सके किन्तु एक कोशिश अवश्य हो सकती है जिस प्रकार से ज्योतिष शास्त्र में भाग्य का परिवर्तन भले ही न हो सके किन्तु कर्मकांड के द्वारा रक्षा अवश्य हो सकती है |
अस्तु -----ब्रह्मस्थल --अर्थात --भवन का "आंगन "---के देवता स्वयं ब्रह्माजी हैं तथा तत्व आकाश है | इस स्थान पर अर्थात "ब्रह्मस्थल " पर आँगन अवश्य होना चाहिए साथ ही ऊपर से खुला जाल होना भी चाहिए जिससे आँगन में धुप -हवा का आना उत्तम रहता है | भवन का साफ सुथरा निर्माण एवं भार रहित होना निवासियों को विशाल हृदय के साथ -साथ विशाल बुद्धि मिलती है |--- -----निवास और कार्यालय का अकार वर्गाकार एवं -21 %1 अनुपात तक आयताकार शुभ होता है | प्रवेशद्वार शुभ जगह होना चाहिए | निर्माण एवं गृहप्रवेश शुभ मुहूर्त में होना अति आवश्यकहोता है |भवन की उत्तर दिशा एवं पूर्व दिशा में सड़कऔर खुला होने से शुभ रहता है| छत पर कबाड़ नहीं होना चाहिए | बंद घड़ियाँ ,बेकार मशीन भी घर में नहीं रखने से वास्तु देवता प्रसन्न रहते है ,घर में रहने वाले सभी लोग प्रसन्न रहते हैं|
भाव ---जीवन में जितनी जरुरत ज्योतिष की होती है शायद अगर माने तो वास्तु भी बहुत ही जरुरत की चीज है -जिसे हम परखकर देख सकते हैं --हम अपने संस्कार और संस्कृति जीवित रखने के लिए सदियों से वास्तु का भी अनुसरण करते आये हैं जभी तो दूर से ही तुलसी ,ॐ ,स्वस्ति की अलौकिक छवि भवन के द्वार पर पहले ही दिखाई देती है यही तो वास्तु शास्त्र की वास्तविकता है |--प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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वास्तु -अर्थात निवास स्थान की शुद्धि --ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
वास्तु -अर्थात निवास स्थान की शुद्धि --ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
जिस भूमि पर जीव निवास करते हैं -उसे वास्तु कहा जाता है | वास्तु के
शुभाशुभ फल प्राप्ति के लिए -"मत्स्य पुराण-अ०-२५१ में लिखा है कि अंधकासुर
के वध के समय भगवान् शंकर के ललाट से -पृथ्वी पर जो स्वेदबिंदु गिरे उनसे
एक भयंकर आकृति का पुरुष प्रकट हुआ | जिसने अन्धकगणों का रक्त पान
किया-फिर भी अतृप ही रहा | अतृप्त होने के कारण-त्रिलोकी को भक्षण करने के
लिए चल दिया | जिसे महादेवादि देवों ने पृथ्वी पर सुलाकर -वास्तु देवता
के रूप में प्रतिष्ठित किया और उसके शरीर में सभी देवताओं ने वास किया
,इसलिए वह वास्तुपुरुष या वास्तुदेवता कहलाने लगे | देवताओं ने
वास्तुको-गृहनिर्माण आदि के वैश्वदेव बलि के तथा पूजन ,यग्य, यागादी के
समय पूजित होने का वर देकर कहाकि -वापी ,कूप ,तड़ाग ,गरी ,मंदिर ,बाग़
बगीचा जीर्णोंधार ,यग्य मंडप ,निर्माणदि के समय -जो तुम्हारी पूजा
प्रतिष्ठा अर्चना करेंगें उन्हें सभी प्रकार की सौख्य समृद्धि मिलेगी ||
भाव
-आजकल वास्तु दोष का निदान हमलोग अपने तरीके से करने लगे हैं ,जो उचित
नहीं है | वास्तु का सही निदान पूजन ही है न कि चमक -धमक | यदि वास्तु
अर्थात भूमि कि वो जगह जहाँ हम निवास करते हैं -को ठीक रखना है तो आधुनिक
निदान नहीं प्राचीन निदान करें -जो सहज के साथ -साथ लाभदायक भी है ||
भवदीय -ज्योतिष सेवा सदन"झा शास्त्री "{मेरठ -उत्तर प्रदेश }---
} परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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निवास की जगह सोचकर लें?-ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
निवास की जगह सोचकर लें?-ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
निवास की कामना
सबको होती है । कुन्तु निवास की कोंनसी दिशा हो ,एवं कहाँ लें, यह सभी
सोचते जरुर हैं । -निवास के स्थान को {वास्तु }शास्त्रों में कहा गया है
।--स्थान बलबती राजन ? अर्थात स्थान मजबूत हो तो स्थान पर रहने वाले बहुत
ही मजबूत हो जाते हैं ।
आइये हम आपको भवन या जगह लेने में कुछ सुझाव देते हैं---?--{1}-मेष
-राशि वालों को -नगर अथवा भूखंड के उत्तर भाग की पहली जगह या मकान नहीं
लेने चाहिए ।
{२}-वृष-मिथुन सिंह और मकर राशिवालों को नगर या भूखंड के मध्य भाग की जगह या मकान अत्यधिक रास नहीं आते हैं।।
{३}-वृष एवं मिथुन राशि के लोग -भूखंड के मध्य भाग में न वसें ।
{४}-वृश्चिक राशि के लोग -भूखंड के पूर्व भाग में न वसें ।
{५}-मीन राशि के लोग -भूखंड के अग्निकोण में निवास न लें ।
{6}-कन्या राशि के लोग भूखंड के दक्षिण भाग में न वसें ।-{७}-कर्क राशि के
लोग भूखंड के नैरित्य कोण अर्थात दक्षिण एवं पश्चिम के कोण में निवास न
लें ।
{८}-धनु राशि के लोग भूखंड के पश्चिम भाग में निवास न करें ।
{९}-तुला राशि के लोग भूखंड के वायव्य कोण अर्थात उत्तर एवं पश्चिम के कोण में निवास स्थान न लें ।
{१०}-मेष राशि के लोग भूखंड के उत्तर भाग में निवास स्थान न लें ।
{११}-कुम्भ राशि के लोग ईशान कोण में अर्थात उत्तर और पूर्व के भाग में
निवास न लें ।-- --प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु
सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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"भवन निर्माण में शेषनाग का विचार अवश्य करें ---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
भवन निर्माण में शेषनाग का विचार अवश्य करें ---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
--एन्द्रियाम सिरों भाद्रपदः त्रिमासे। याम्याम शिरो मार्ग शिरस्त्रयम च । फाल्गुनी मासाद दिशि पश्चिमीयाम।ज्येष्ठात त्रिमासे च तिथोत्तरेशु ।।
-----{१}भाव -भाद्रपद ,आश्विन ,एवं कार्तिक {सितम्बर ,ओक्ट्बर ,नवम्बर }इन तीन महीनों में शेषनाग का सिर पूर्व दिशा में रहता है ।
---{२}-मार्गशीर्ष ,पौष ,एवं माघ {दिसंबर ,जनवरी ,फरवरी }इन तीन मासों में शेषनाग का सिर दक्षिण दिशा में रहता है ।।
---{३}-फाल्गुन ,चैत्र ,वैशाख { मार्च ,अप्रैल ,मई }-इन तीनों मासों में शेषनाग का सर पश्चिम दिशा में रहता है ।
----{४}-ज्येष्ठ ,आषाढ़ ,एवं श्रावण{जून ,जुलाई ,अगस्त }इन तीनों मासों में शेषनाग का सिर" उत्तर दिशा में रहता है ।।
---
"शिरः खनेत मात्री पितरोश्चा हन्ता खनेत पृष्ठं भयरोग पीड़ा । तुछ्यम
खनेत त्रिशु गोत्र हानिः स्त्री पुत्र लाभों वाम कुक्षो ।
---अर्थात
-जो कोई शेषनाग के सिर [मुख } पर से मकान की नीव रखकर चिनाई शुरू कर दे
-तो उस मकान मालिक के माता पिता को हानी पहुँचती है । पीठ पर चिनाई करने से
भय एवं रोग से पीड़ित रहते हैं भूमिपत्ति।पूंछ पर चिनाई करने से वंशावली
दोष से पीड़ित हो जाते हैं मकान के स्वामी ।और खली जगह पर चिनाई करने से
पत्नी को कष्ट होता है ,एवं पुत्र ,धन की भी हानी होती है ।।
अतः ----जब सूर्यदेव-सिंह ,कन्या,तुला राशि में हों तो--अग्नि दिशा में खोदें एवं चिनाई शुरू करें ।
------जब सूर्य देव -वृश्चिक ,धनु ,या मकर राशि में हों तो -ईशान कोण में चिनाई शुरू करनी चाहिए ।
-------जब सूर्यदेव -कुम्भ ,मीन या मेष राशि में हों तो वायव्य कोण में चिनाई शुरू करनी चाहिए । ------आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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वास्तु दोष या चमक धमक -ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
वास्तु दोष या चमक धमक -ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
"वास्तु दोष या चमक धमक ?"
परिवर्तन तो प्राकृतिक देन है | वो सबका होता रहता है ,किन्तु वास्तविकता ही बदल जाये ,तो कुछ आश्चर्य होता है | आइये अवलोकन करते हैं ,उन ग्रंथों का - कर्मकांड का प्रतिपादन सर्वप्रथम "शांडिल्य "नामक ऋषि ने किया ?भाव था - आने वाले समय में "द्विज" का भरण पोषण किस प्रकार से हो ? जिस भूमि पर हम निवास करते हैं ,वहाँ यदि किसी प्रकार के भवन का निर्माण करते हैं तो "भूमि दोष " लगता है ,अर्थात परिवार की प्रसन्नता के लिये हमें वास्तु का विचार करने चाहिए ,पर आज आबादी इतनी हो गयी है कि, आप चाहकर भी दोष मुक्त भूमि का चयन नहीं कर सकते हैं ,तो आपको वास्तु का निवारण करना चाहिए |---शास्त्रों का मत है कि "वास्तु" नाम का कोई असुर उत्पन्न हुआ ,वो इतना बलशाली था ,कि किसी भी देबता से पराजित नहीं हुआ ,अंत में "भगवान विष्णु " ने बरदान दिया ,कि किसी भी शुभ कार्ज़ में आपकी भी पूजा होगी ,और यदि भवन का निर्माण होगा तो "प्रधान देबता उस यग्य के आपही होंगें | अतः -वैदिक परम्परा में कोई भी संस्कार धार्मिक हो तो उसमें "नाग की पूजा अवश्य होती है | -मकान के निर्माण में यदि कोई दोष रह जाता है, और आज के युग में तो दोष ही दोष रहते हैं , तो इस पूजा से आप दोष से मुक्त हो जाते हैं -परन्तु आज हम भवन के निर्माण में अत्यधिक रुपयों का व्यय करते हैं ,पर जिससे हमारा कल्याण होगा, उसके प्रति विचार न कर ,हम भव्यता का अत्यधिक विचार करते हैं|--भाव -हमें मकान में ये दोष तो देखना ही चाहिए, केवल भव्यता से ही आप प्रसन्न नहीं रहेंगें ,प्रसन्नता के लिये इन बातों का भी समाधान करना चाहिए |-----प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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संतान और संतति आपके अनुसार भी संभव है--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
संतान और संतति आपके अनुसार भी संभव है--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
संतान और संतति की उत्सुकता सबको होती है -और होनी भी चाहिए -किन्तु हम या तो अनभिज्ञता वश ,या विवेक हीन होने के कारण दो चीजें अनुकूल प्राप्त नहीं कर पाते हैं |-हमारे वेद में सभी कला विद्यमान है ,परन्तु -आधुनीक तकनिकी के आगे या तो हम सात्विक प्रयत्न नहीं करते ,या मजबूरी में मानते हैं - आइये अपने जीवन में संतान एवं संतति से सभी युक्त हों -जानने का प्रयास करते हैं ||-भगवान "मनु "ने -उत्तम संतान एवं पुत्र या पुत्री की कामना रखने वाले लोगों के लिये कुछ प्रयोग बताये हैं जिसे हम जानते नहीं है और जानते हैं तो उस प्रकार से चलते नहीं हैं -जब हमें संतान की कामना हो तो-आप पुत्र चाहते हो तो -पत्ती और पतनी का मिलन यदि सम तिथियों में हो अर्थात -द्वितीया,चतुर्थी ,षष्ठी,अष्टमी ,दशमी ,द्वादशी ,चतुर्दशी तिथियों में तो पुत्र की प्राप्ति होगी || पुत्री की कामना रखने वाले -विषम तिथियों का प्रयोग कर सकते हैं अर्थात -प्रतिपदा ,तृतीया ,पंचमी ,सप्तमी ,नवमी ,त्रयोदशी || एकादशी में मिलन होने पर कलंकित संतान होती है || अमावस्या -में मिलन होने पर भी पुत्री की प्रप्ती होती है | पोर्णिमा तिथि -में भी मिलन होने पर पुत्री की प्राप्ति हो सकती है ="मनुस्मृति" का -मत है की -एकादशी ,अमावस एवं पूर्णमासी -को मिलन नहीं होना चाहिए ,इन तिथियों में देवता, पितरो की ही आराधना करनी चाहिए ||--भाव -मित्र बन्धुगन-आज हमलोग पुत्र प्राप्ति के लिये कुछ भी करते हैं ,किन्तु हमारा थोडा सा सात्विक विचार [सात्विक प्रयास ] से मनोनुकूल संतान भी मिलेगी और महिला पक्षको आत्म खिन्नता का अहसास भी नहीं कराएगी ||-----कर्मकांड में षोडश संस्कार होते हैं -गर्भाधान संस्कार ,पुंसवन संस्कार और सीमंत संस्कार ये तीनों संस्कार हमें अच्छी संतान देते हैं इन संस्कारों को भूलने के कारण ही हमलोग अपनी संतानों से दुखी होते हैं ---इन संस्कारों से हम अपनी ईच्छानुसार संतान प्राप्त आज भी कर सकते हैं --इन संस्कारों में धन नहीं मन और नियम करने पड़ते हैं ।---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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विवाह में विलम्ब क्यों होता है -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ
विवाह में विलम्ब क्यों होता है -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ
----बालक के विवाह का कारक ग्रह "शुक्र "और कारक सप्तम भाव होता है 1यदि
बालक की कुण्डली में "शुक्र "कमजोर ,नीच ,पापी ग्रहके प्रभाव में होगा तो
निश्चित विवाह में बिलम्ब के साथ -साथ बाधा भी उत्पन्न होगी !---------यदि
"शुक्र "बालक की कुण्डली में बलवान ,मित्र या उच्च राशिमें है
,किन्तु सप्तम अथवा सप्तमेश पर पापी ग्रहों का प्रभाव है ,अथवा सप्तमेश नीच
का है तो भी विवाह होने में देर होगी -अथवा विवाह में बाधा होगी !
-------इसी प्रकार बालिका की कुण्डली में "गुरु "पतिकारक ग्रह तथा सप्तमभाव
व सप्तमेश विवाह कारकहोता है !---बालिका की कुण्डली में "गुरु "शत्रुराशि
,नीच ,अस्त या पापी ग्रह के प्रभाव में होगा तो बालिका के विवाह में दिक्कत
का सामना करना पड़ेगा !-----बालिका की कुण्डली में "गुरु "के साथ सप्तमभाव
एवं सप्तमेश को मित्र राशि,उच्चराशि के साथ -साथ शुभ प्रभाव में होना जरुरी
है !----
-----यदि "शुक्र एवं "गुरु "शुभ या मित्र राशि में हो या अपनी उच्च राशि
में हो लेकिन सप्तम भाव अथवा सप्तमेश पापी प्रभाव में हो या नीच राशि के
साथ -साथ अस्त हो तो विवाह तो होगा ,किन्तु विरोधाभास {परस्पर विरोध }या
अस्वस्थता तो रहेगी ही वैवाहिक जीवन के सुख में अशांति रहेगी !-------नोट
---दाम्पत्य सुख में सप्तम भाव और सप्तमेश साथ ही सप्तमेश और
द्वादश भाव का स्वामी ग्रह कमजोर ,नीच ,पापी ग्रह के प्रभाव में हो तो
विवाह सुख में बाधा आती है !----ज्योतिष
से सम्बंधित सभी लेख इस पेज में उपलब्ध हैं कृपया इस लिंक पर प्रवेश करें
और अपने अनुकूल फ्री में पढ़ते रहें -अगर किसी भी लेखों से आपका कल्याण होता
है यही मेरी दक्षिणा होती है । = --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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मंगलसूत्र का मंगल ग्रह से सम्बन्ध -पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ
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दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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मंगली दोष युक्त विवाह उत्तम नहीं होता है --ज्योतिष विशेष---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
"मंगली दोष युक्त विवाह उत्तम नहीं होता है --ज्योतिष विशेष---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
--------यद्यपि मंगली
दोष के जातक एवं जातिका हों ,तो मंगली दोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है|
यदि एक मंगली दोष से युक्त हो और दूसरा मंगली दोष विहीन हो तो दोष लगता है |
मंगली दोष का शाब्दिक अर्थ है -दो से अत्यधिक शरीर का मिलन [आज के युग
में ये बात खड़ी नहीं उतरती है]क्योंकि जब हमारा रहन सहन आधुनिक है तो
व्यवहार भी आधुनिक भी होगा !-फिर भी जब हम शास्त्र सम्बंधित बातें करते हैं
-तो बतायेंगें जरुर | मंगली दोष युक्त होने पर विवाह देर से होता है और
दाम्पत्य जीवन में हमें बहुत ही कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है |
[१]-कुंडली--के द्वादश भाव होते हैं इनमें ,१,४,७,८,१२ इन भावों में यदि
मंगल ग्रह
विराजमान हो तो मंगली दोष होता है,किन्तु -यदि १,४,७,८,१२ इन भावों में शनि
ग्रह विराजमान हो तो स्वतः ही दोष समाप्त हो जाता है | कभी -कभी प्रश्न
उठता है -यदि कुंडली के १२ भाव होते हैं -इन्हीं भावों से संसार की गणना
होती है -तो क्या ५ भावों का अर्थ है ४५ प्रतिशत लोगों के दाम्पत्य सुख
कठिनाइयों से भरे होंगें !-शास्त्रकारों का मानना है -कि सच तो यही है ,या
तो इस योग से पीड़ित लोग ,दाम्पत्य जीवनको झेलते हैं ,या अपने भाग्य के
अनुसार स्वीकार कर लेते हैं || मेरे विचार से -आत्मा से जो लोग प्रेम करते
हैं उनके लिये रंग रूप से अत्यधिक व्यवहार कुशलता को सही मानते हैं उनकी
गिनती ५५ प्रतिशत होती है और जो रंग रूप को दाम्पत्य जीवन में सही
मानते---हैं उनकी संख्या ४५ पर्तिशत होती है [ये धर्म संबधित बाते हैं
,पुराकाल
की-----
भाव -हमारी
संस्कृति और संस्कार तभी सार्थक होंगें जब दाम्पत्य सुख उत्तम होगा ,तभी
हमारी संताने इस संस्कृति और संस्कार से जुडेंगें ||----
----प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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सम्मुख "शुक्र "का विचार कब करें -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ "
सम्मुख "शुक्र "का विचार कब करें -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ "
जिस दिशा में 'शुक्र "सम्मुख एवं जिस दिशा में दक्षिण हो ,उन दिशाओं में बालक ,गर्भवती स्त्री तथा नूतन विवाहिता स्त्री को यात्रा नहीं करनी चाहिए ?-यदि बालक यात्रा करे तो --विपत्ति पड़ती है ।नूतन विवाहिता स्त्री यात्रा करे तो --सन्तान को दिक्कत होती है ।गर्भवती स्त्री यात्रा करे तो --गर्भपात होने का भय होता है ।यदि पिता के घर कन्या आये तथा रजो दर्शन होने लगे तो --सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।----यथा --भृगु ,अंगीरा ,वत्स ,वशिष्ठ ,भारद्वाज -गोत्र वालों को सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।-----सम्मुख "शुक्र "तीन प्रकार का होता है ------{1}-जिस दिशा में शुक्र का उदय हो ।---{2}--उत्तर दक्षिण गोल -भ्रमण वशात जिस दिशा शुक्र रहे ।---{3}--अथवा --कृतिका आदि नक्षत्रों के वश जिस दिशा में हो -उस दिशा में जाने वालों को शुक्र सम्मुख होगा ।---जिस उदय में हो -उस दिशा में यात्रा न करें ।-{1}-यदि पूर्व में शुक्र का उदय हो -तो पश्चिम और दक्षिण दिशाओं तथा नैरित्य तथा अग्निकोण विदिशाओं को जाना शुभ होगा ।{2}-यदि पश्चिम में उदय हो -तो पूर्व एवं उत्तर दिशाओं तथा ईशान ,वायव्य विदिशाओं में जाना शुभ रहेगा ।-{3}-जब गुरु अथवा शुक्र अस्त हो गये हों -अथवा सिंहस्त गुरु हो ,कन्या का रजो दर्शन पिता के घर में होने लगा हो ,अच्छा मुहूर्त न मिले तो --दीपावली के दिन कन्या पति के घर जा सकती है ।{4}--गुरु उपचय में हो ,शुक्र केंद्र में हो एवं लग्न शुभ हो तथा शुभ ग्रह से युक्त हो --तब स्त्री पति के घर की यात्रा कर सकती है ।{5}--जब चन्द्र रेवती से लेकर कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण के बीच में रहता है --तब तक शुक्र अन्धा हो जाता है --इसमें सम्मुख अथवा दक्षिण शुक्र का दोष नहीं लगता है ।{6}-एक ही ग्राम या एक ही नगर में ,राज्य परिवर्तन के समय -विवाह तथा तीर्थयात्रा के समय शुक्र का दोष नहीं लगता है ।--नोट समय का वेशक आभाव हो -किन्तु सम्मुख शुक्र का अवश्य विचार करके शुभ यात्रा करें ?"- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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"मंगली" दोष विवाह में क्यों लगता है -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ
"मंगली" दोष विवाह में क्यों लगता है -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ
"लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजः ,कन्या भर्तु विनाशाय भर्तु कन्या विनाशकः ||
भाव -यदि जन्मकुण्डली के -1,4 ,7 ,8 ,12 इन स्थानों में से किसी एक स्थान में मंगल हो तो मंगली योग माना जाता है | यदि लड़की की कुंडली में मंगली योग हो तो उसके पति के लिए तथा लड़के की कुंडली में मंगली दोष हो तो पत्नी के लिए कष्टकारी होता है |--- अस्तु --जन्मकुण्डली का सातवाँ भाव अर्थात जामित्र स्थान दाम्पत्य जीवन में मिलने वाले दुःख -सुख से सम्बन्ध रखता है| दाम्पत्य जीवन कैसा रहेगा यह निर्णय सप्तम भाव से करते हैं साथ ही उक्त भाव स्थित ग्रहों से तथा ग्रहों की दृष्टि से अनुभव किया जाता है | मंगल ग्रह अग्नितत्व कारक स्वभाव से उग्र होता है | अगर कुण्डली के 1 ,4 ,12 वें भावों में बैठा हो तो तब सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है सातवें +आठवें भाव में होने उन्हें विशेष पीड़ित करता है | मंगल का तीक्ष्ण प्रभाव ही दुःख का कारण बनता है | फलित के प्रणेता कार आठवें भाव को भी दाम्पत्य जीवन से सम्बन्धित मानते हैं ----- जैसे----"यत्कुजस्य फलं प्रोक्तं लग्ने तुर्येव्ययेअष्टमे,सप्तमे सैंहिके यार्क सौरिणाम च तथा स्मृतं || भाव -1 ,4 ,7 ,8 ,12 वें भावों में मंगल के अतिरिक्त और भी पापक्रूर ग्रह बैठे हों तो भी मंगली दोष के समान हानि देते हैं जैसे -सूर्य ,शनि ,राहु ,केतु इत्यादि |ध्यान दें --सप्तम भाव का कारक शुक्र है और मन का कारक चंद्रमा है | अतः शुक्र +चंद्रमा से भी योग कारक ग्रहयोगों का विचार अवश्य करना चाहिए --वैसे मेरे अनुभव में यह बात सामने आयी -मंगल दोष होने पर या तो दो विवाह जातक या जातिका के होते हैं -प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष,अथवा वैवाहिक बात देर से और मनोनुकूल नहीं बन पाती है | अतः मंगली दोष होने पर या तो मंगली वर हो तो मंगली कन्या से विवाह करना चाहिए ऐसा नहीं होने पर ,मांगलिक विवाह करा देना चाहिए -इससे दाम्पत्य जीवन कष्टमय नहीं रहता है | कुछ लोगों को यह जानकारी होती है कि वर या वधु के 27 वर्ष होने पर मंगल दोष नहीं लगता है --मेरे विचार से यह सच नहीं है अतः उपचार अवश्य ही करना चाहिए अन्यथा जीवन पर्यन्त वर -वधू को कष्ट झेलना होता है | - संचालक -पंडित -के ० एल ० झा शास्त्री {शिक्षा -दरभंगा ,मेरठ ,मुम्बई }-----ज्योतिष की सेवा जानने हेतु पढ़ें - झा मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई " --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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संतान सुख "शुक्र +मंगल से ही मिलता है --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
संतान सुख "शुक्र +मंगल से ही मिलता है ?"-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
संतान सुख "शुक्र +मंगल से ही मिलता है ?"
------दाम्पत्य जीवन में अनन्त की बाधाएँ आती हैं ---सभी सुख हैं किन्तु
संतान सुख नहीं है तो जीवन नीरस सा प्रतीत होने लगता है इसके लिए प्रत्येक
जातकों की कुण्डलियों मिलान करते समय इस पर भी विचार अवश्य करना चाहिए
---"पापहि ग्रहयुत लगन्पति ,परै लग्न मह आय ।
वीर्यहीन नर होय तब ,अधिक ब्याधि रुज ताय । ।
---अर्थात ----मंगल स्त्रियों में रजः स्राव का कारक होता है और शुक्र
पुरुषों में वीर्य सशक्त शुक्राणुओं का कारण माना जाता है ---इन दोनों का
कुंडलियों में सही सम्बन्ध नहीं होने से दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहता है ।
चाहे स्थान सम्बन्ध मंगल +शुक्र एक साथ हो ,तात्कालिक मित्र बनकर बैठे हों
-या कारक भाव में हों तो जीवन को संतति और सुख प्रदान करते हैं ।
नोट ----हमारे महर्षियों ने जो जन्म कुंडली का बिधान बनाये हैं
--जिनको हमलोग आजतक अमल करते आये हैं --उसकी नीव बहुत ही मजबूत है
-----कुंडली मिलान करते समय केवल गुणों को ही नहीं देखना चाहिए -बल्कि
ग्रहों की स्थिति पर विशेष विचार करना चाहिए ।
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दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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मंगलवार, 12 सितंबर 2023
"मंगल ग्रह से वैधव योग भी बन जाता है -ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
मंगल ग्रह से वैधव योग भी बन जाता है-ज्योतिष -विशेष-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ--------------------------------------------
----अग्निकारक ग्रह मंगल है -जब यह लग्न और सप्तम में बैठता है तो मानव में
क्रोध बहुत अधिक होता है 1 पति -पत्नी में इसी के कारण विशेष रूप से
लडाइयां होती हैं 1 कारण कि "मंगल" युद्ध का ग्रह है इसको लडाई रोज चाहिए 1
जिनका "मंगल" 8 या 12 भाव में होता है उसका देहबल और मनोबल ठीक नहीं रहता
है 1 रोग से पीड़ित रहते हैं ,काम करने की हिम्मत होने के बाद भी काम नहीं
कर पाते 1 यदि -शनि के साथ मंगल बैठा हुआ होगा तो जीवन में जातक धन को
स्थिर नहीं कर पाएगा 1 यह अकाट्य सिद्धांत है 1 -----1 ,4 ,7 ,8 ,12 भावों
में यदि मंगल होता है तो वह जातक मंगली कहलाते हैं 1 इसमें एक और सूक्ष्म
विवेचन है -वह लग्न से मंगली हो ,चन्द्र से मंगली हो ,शुक्र से मंगली हो तो
वह मंगली माना जाता है 1 यदि विवाह के बाद मंगल महादशाओं में आ जाता है और
जातक मंगली नहीं होता है तो वैधव योग उपस्थित हो जाता है 1
-----प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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"शुभ ग्रह "शुक्र "और "मंगल "--ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
शुभ ग्रह शुक्र और मंगल ज्योतिष विशेष-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
----"शुक्र "बहुत शुभ ग्रह है -सहत्रसार में अमृत के कुंड का संचालन यही करता है 1 जिह्वा और जनेन्द्रिय में इसका निवास होता है 1 शरीर के मुख्य संचालन का कार्य भार "शुक्र "के ही कारण है 1 भगवान शंकर के वरदान अनुसार "बृहस्पति "से तीन गुणा बल इसमें अधिक है 1 सब ग्रह आठवें ,बारहवें भाव में सारहीन हो जाते हैं ,किन्तु "शुक्र "आठवें और बारहवें भाव में हो और साथ ही इसकी महादशा चल जाये तो जातक को अरबों ,खरबों रूपये ,वाहन सुख,राज्यसुख,स्त्रीसुख अर्थात सबकुछ प्रदान कर देता है 1------साथ ही अगर मंगल के साथ शुक्र होता है तो वह काम पिपासा का धनि भी इतना बता है कि 90 वर्ष तक भी काम के क्षेत्र में हल्का नहीं होने देता है जातक को 1 अर्थात वह ब्रह्मचारी रहने ही नहीं देता और बिना ब्रह्मचारी रहे ईस्वर की उपासना हो ही नहीं सकती है 1
बाबा तुलसीदास ज की ये उक्ति ----"जहां राम तहां काम नहि ,जहां काम कहां काम 1-- तुलसी कबहुंक रहि सकहि ,रवि ,रजनी एक ठाम 11
अस्तु ---श्री हनुमानजी को छोड़कर कामदेव से सब पराजित हुए हैं ,शुक्र लाभदायी ग्रह है 1
"शुक्र "का बीज मन्त्र सरल भाषा में -ॐ द्राम द्रीम द्रोम सः शुक्राय नमः !
अर्थात -कुंडली मिलान के समय "शुक्र +मंगल का भी विशेष विचार अवश्य ही करना चाहिए !----प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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"गुरु एवं मंगल" मंगली दोष समाप्त कर राज योग देते है--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
गुरु एवं मंगल मंगली दोष समाप्त कर राज योग देते है-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ ------------------------------------------------------------
--गुरु + मंगल एक साथ हों जन्म कुंडली में तो राजयोग बनता है अधिकांश विद्वान इस बात को मानते हैं । और साथ ही "भौम दोषों न विद्यते "अर्थात मंगली दोष समाप्त हो जाता है ।
---अस्तु ----यह बात हमारी समझ में नहीं आती है --क्योंकि फलिताचार्य भली भांति इस बात बात को जानते हैं ,कि द्वितीय भाव {कुंडली का दूसरा घर }के कारक "गुरु "की क्रूर या पापग्रह से युति से दाम्पत्य जीवन अर्थात सुखोपभोग के लिए हितकर नहीं होती है ।
फलदीपकार लिखते हैं=पुर्यध्यक्षः सजीवे {भोमे }भवति नरपतिः प्राप्तवित्तो द्विजो वा "----अर्थात चन्द्र + मंगल की युति स्थाई संपदा प्रदान करने वाली तो होती है ,किन्तु मंगली दोष को समाप्त करती हो ऐसा आभास नहीं होता है । "शशि -मंगल संयोगे यस्य जन्मनि विद्यते । विमुञ्चन्ति न तं लक्ष्मिः लज्जां कुल वधूरिव । । भाव -इस योग में जन्म लेने वाली लज्जायुक्त कुलवधू का लक्ष्मी कभी साथ नहीं छोडती है ।-- अतः कुंडली में मंगली दोष का परिक्षण ठीक से होना चाहिए साथ ही निदान भी अन्यथा सुख दुःख में बदल जाता है ।---ॐ--खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ (झा मेरठ झंझारपुरऔर मुम्बई)----- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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"कुण्डली में "मंगलीयोग"कैसे बनता है--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
कुण्डली में मंगलीयोग"कैसे बनता है-ज्योतिष -विशेष -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
--"लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजः ,कन्या भर्तु विनाशाय भर्तु कन्या विनाशकः ||
भाव -यदि जन्मकुण्डली के -1,4 ,7 ,8 ,12 इन स्थानों में से किसी एक स्थान में मंगल हो तो मंगली योग माना जाता है | यदि लड़की की कुंडली में मंगली योग हो तो उसके पति के लिए तथा लड़के की कुंडली में मंगली दोष हो तो पत्नी के लिए कष्टकारी होता है |
अस्तु --जन्मकुण्डली का सातवाँ भाव अर्थात जामित्र स्थान दाम्पत्य जीवन में मिलने वाले दुःख -सुख से सम्बन्ध रखता है |दाम्पत्य जीवन कैसा रहेगा यह निर्णय सप्तम भाव से करते हैं साथ ही उक्त भाव स्थित ग्रहों से तथा ग्रहों की दृष्टि से अनुभव किया जाता है | मंगल ग्रह अग्नितत्व कारक स्वभाव से उग्र होता है | अगर कुण्डली के 1 ,4 ,12 वें भावों में बैठा हो तो तब सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है सातवें +आठवें भाव में होने उन्हें विशेष पीड़ित करता है |--- मंगल का तीक्ष्ण प्रभाव ही दुःख का कारण बनता है | फलित के प्रणेता कार आठवें भाव को भी दाम्पत्य जीवन से सम्बन्धित मानते हैं -----
जैसे----"यत्कुजस्य फलं प्रोक्तं लग्ने तुर्येव्ययेअष्टमे,सप्तमे सैंहिके यार्क सौरिणाम च तथा स्मृतं ||
भाव -1 ,4 ,7 ,8 ,12 वें भावों में मंगल के अतिरिक्त और भी पापक्रूर ग्रह बैठे हों तो भी मंगली दोष के समान हानि देते हैं जैसे -सूर्य ,शनि ,राहु ,केतु इत्यादि 1
ध्यान दें --सप्तम भाव का कारक शुक्र है और मन का कारक चंद्रमा है | अतः शुक्र +चंद्रमा से भी योग कारक ग्रहयोगों का विचार अवश्य करना चाहिए 1
निवेदक -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत }--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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विषकन्या योग होता है- तो विषवर योग क्यों नहीं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
विषकन्या योग होता है- तो विषवर योग क्यों नहीं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
---ज्योतिष और ज्योतिषियों के लिए - चाहे पुरुष हो या महिला सब एक सामान होने चाहिए किन्तु लोग विषकन्या योग की चर्चा तो करते हैं किन्तु विषवर की चर्चा नहीं करते हैं क्यों ----
भद्रा सर्पानल वरुणभे भानु मन्दारवारे । यस्या जन्म प्रभवति तदा सा विशाख्या कुमारी । । {भावकुतूहल }
भौजंगे कृतिकायाम शत भिषजितथा सूर्य मंदवारे । भद्रा संज्ञे तिथौ या किल जनन मियात्सा कुमारी विशाख्या । । {जातकालंकार}---------अर्थात ----2 /7 /12 ,कृतिका , आश्लेषा , विशाखा ,शतभिषा नक्षत्र और रवि ,मंगल तथा शनिवार का समागम होने से तो विषाख्य योग बनता है । ग्रन्थ -भावकुतूहल -में लिखित पद्य में केवल भद्रा शब्द का ही उल्लेख हुआ है न कि तिथि का ---इससे यह समझना चाहिए कि भद्रा {विष्टि }निहितकाल में -कृतिका , आश्लेषा ,विशाखा ,शतभिषा नक्षत और रवि ,मंगलवार या शनिवार आ पड़े तब किसी जातिका का जन्म हो तो उसे विषकन्या कहा जाता है । ----तो इस कुयोग में यदि किसी लड़के का जन्म हो तो उसे भी विष वर कहा जाना चाहिए ।-- भाव ---ज्योतिष की रचना स्त्री -पुरुष ही नहीं समस्त के लिए सामान रूपेण है ---अतः इस विषय में हमलोगों को पक्ष पात रहित विचार अवश्य ही करना चाहिए । लग्न एवं चंद्रमा से सातवें घर में शुभ ग्रह बैठें हों या लग्नेश सातवें घर में हो तो वैधव्य योग समाप्त होकर कन्या सुभगा अर्थात भाग्यवान होती है ।---ॐ--खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ (झा मेरठ झंझारपुरऔर मुम्बई)----- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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सोमवार, 11 सितंबर 2023
आपके नक्षत्र पौधों से भी प्रसन्न होते हैं -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
आपके नक्षत्र पौधों से भी प्रसन्न होते हैं -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
हमारे ऋषि -मुनियों ने प्रत्येक ग्रह एवं नक्षत्र से सम्बंधित पौधों के बारे में जानकारी की थी ,तथा नवग्रह एवं नक्षत्र वाटिकाएं की जानकारी कुछ ग्रंथों के द्वरा उपलभध भी करायी थी--{१}-नारद पुराण{पौराणिक ग्रन्थ }{२}-नारद संहिता {ज्योतिष ग्रन्थ }{३}-राज निघंटु व्रेहतधुश्रुत{आयुर्वेदिक ग्रन्थ }{४}-शारदादितिलक {तांत्रिक ग्रन्थ -मन्त्र महार्णव ,श्रीविद्यार्नव,तंत्र आदि {६}अन्य ग्रन्थ-आन्दास्रम,प्रकाशन ,वनस्पति ,अध्यात्म नक्षत्र -वृक्ष इत्यादि || इन तमाम ग्रंथों के मध्यम से जाना जा सकता है -नक्षत्र वाटिकाओं से कितना लाभ हो सकता है | सदैव से यह भी मान्यता रही है -कि ग्रह नक्षत्रों के कुप्रभावों से वृक्ष एवं वनस्पतियाँ समाप्त या कम जरुर कर सकती हैं | भारतीय मान्यता में -सूर्य मंडल के समस्त सदस्यों व उपसद्स्यों {जिसमें सूर्य एवं चंद्रमा भी शामिल हैं }को ग्रह कहा गया है |ये{ग्रह } धरती के करीब होने से इनकी स्थिति नित्य बदलती रहती है | नक्षत्र -धरती से अत्यधिक दूर होने के कारण परिवर्तन का अनुभव नहीं हो पाता है , अतः नक्षत्र को स्थिर कहे गए हैं | ज्योतिष विद ने -चंद्रमा के रास्ते को २७ भागों में बाटें हैं| प्रत्येक -२७ वें भाग में पड़ने वाले तारामंडल के बीच कुछ विशेष तारों को पहचान कर उन्हें एक नया नाम दिया -जिन्हें हमलोग नक्षत्रों के नाम से जानते हैं |-इस प्रकार से -नवग्रहों एवं २७ नक्षत्रों की ज्योतिष में पहचान की गयी है ||-- अस्तु -जिस प्रकार से शारीरिक कष्ट को दूर करने कुछ विशेष प्राप्ति के लिए हमलोग जिस प्रकार से रत्न धारण करते हैं |उसी प्रकार से -ग्रहों एवं नक्षत्रों से सम्बंधित पौधों को उगाने से भी लोगों को मनोवांछित फल मिल सकता है | -महर्षि चरक के अनुसार धर्म ,अर्थ ,कम ,मोक्ष को प्राप्त करने हेतु -आरोग्य रहना आवश्यक है |स्वस्थ शरीर एवं दीर्घ जीवन प्राप्त करने के लिए भोजन ,शुद्ध ,वायु ,जल ,तथा प्रदूषण रहित पर्यावरण आवश्यक है | बाबा तुलसी दास जी के अनुसार - "गगन समीर अनल जल धरनी | इनकी नाथ सहज जड़ करनी || हमारे जीवन की भव्यता में -वनस्पतियों की अहम् भूमिका सदैव रही है |लगभग सभी कालों में -वन वाग ,उपवन ,वाटिका ,सर कूप ,वासी सोहई की प्रथा रही है |आज भी हरियाली तथा शुद्ध पर्यावरण के प्रति हम जागरूक हैं || {१}-सूर्य की प्रसन्नता के लिए -मदार का वृक्ष लगायें |{२}-सोम {चंद्रमा }के लिए पलाश का वृषा लगायें {३}मंगल -के लिए खैर का वृक्ष {४}बुध के लिए -अपामार्ग {लटजीरा }का वृक्ष लगायें {५}गुरु के लिए -पीपल का वरिश लगायें {६} शुक्र के लिए गूलर का वृक्ष {७}शनि के लिए -शमी का वृक्ष {८}राहू के लिए-दूब लगायें {९}केतु के लिए -कुशा लगायें ||-कम हम २७ नक्षत्रों से सम्बंधित पौधों से लाभ का जिक्र करेंगें ||----प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ-- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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अपने -अपने नक्षत्रों के अनुसार पेड़ लगायें-पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ
हमारे "नक्षत्र" और हमारे "पेड़ "?
--ग्रहों
की शांति
हेतु पूजा -पाठ ,यग्य हवं में विशेष प्रजाति के पल्लव {टहनी } पुष्प ,फूल
,फल ,काष्ट{समिधा }की आवश्यकता पड़ती है ,जो कि नवग्रह एवं नक्षत्रों से
सम्बंधित पौधे ही दे सकते हैं ।पुराणों के अनुसार जिस नक्षत्र में गृह
विद्यमान हो उस समय उस नक्षत्र सम्बन्धी पौधे का यत्नपूर्वक संरक्षण तथा
पूजन से ग्रह की शांति होती है तथा जातक को मनोवांछित फल मिलता है
।।.क्यों न हमलोग --अपनी सुख समृधि के लिए - अपने -अपने नक्षत्रों के
अनुसार पेड़ ,बगीचा ,बाटिका लगायें?
नक्षत्र ---------------------पेड़ {१५}-स्वाती ------अर्जुन.
{१}-अश्विनी ------कुचिला {१६}-विशाखा ---कटाई.
{2}-भरणी---------आंवला {१७}-अनुराधा ---मौलश्री.
{३}-कृतिका ----गूलर {१८}-ज्येष्ठा-----चीड़.
{४}-रोहिणी ---जामुन [१९}-मूल ----साल.
{५}-मृगशिरा ---खैर {२०}-पूर्वाषाढा---जलवेतस. [६}-आर्द्रा--------शीशम {२१}-उत्तराषाढा ----कटहल.
{७}-पुनर्वसु ------बांस {२२}-अभिजित{ xxx}.
{८}-पुष्य --------पीपल {23}-श्रवण ---मदार.
{९}-आश्लेषा ---नागकेसर {२४}-शतभिषा ---कदम्ब.
{१०}-मघा-----बरगद {२५}-पूर्वा भाद्रपद ----आम.
{११}-पुर्वा फाल्गुनी-----ढ़ाक {२६}-उत्तरा भाद्रपद ----नीम.
{१२}-उत्तरी फाल्गुनी ----पाकड़ {२७}--रेवती -----महुआ. {१३}-हस्त ----रीठा
{14}-चित्रा------वेळ
---नोट
--उक्त नक्षत्रों के पौधे हैं जो आप --ग्रह जनित दोषों के निवारणार्थ
सरलता से पौधे {रोप }लगा सकते हैं । ग्रह ,नक्षत्रों के पौधों का उल्लेख
,पौराणिक ज्योतिष ,आयुर्वेदिक ,तांत्रिक व् एनी ग्रंथों में मिलता है
--इनमें से प्रमुख ग्रन्थ हैं --{१}-नारद पुराण{२}-ज्योतिष ग्रन्थ हैं
--नारद संहिता {३}-आयुवेदिक ग्रन्थ --राज निघंट वृहत धू श्रुत नारायणी
संहिता {४}-तांत्रिक ग्रन्थ -शारदा तिलक ,मन्त्रमहार्णव ,श्री विद्यार्नव
तंत्र आदि {५} अन्य ग्रंथ---आनादाश्रम प्रकाशन ,वनस्पति ---अध्यात्म
,नक्षत्र वृक्ष आदि ।।-----प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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रविवार, 10 सितंबर 2023
कुण्डली मिलान में आयु का निर्णय अवश्य करें ---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
कुण्डली मिलान में आयु का निर्णय अवश्य करें --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
-----वर -कन्या के कुण्डली मिलान में आयु का विचार भी बहुत ही जरुरी होता है ,क्योंकि इसके बिना संसार में सब कुछ निरर्थक है । महर्षि जैमिनी के मत के अनुसार आयुर्दाय त्रिय सूत्र लगभग सही से ही बैठते हैं । जैसे -दीर्घायु ,मध्यायु ,अल्पायु जानने के लिए ज्योतिष के कई ग्रंथों में कई बिधियाँ लिखी हैं साथ ही आयु सारणियाँ भी छपी हैं ।
अस्तु जन्मकुण्डली में छटे ,आठवें और बारहवें भाव का नामकरण ज्योतिषाचार्यों ने त्रिकसंज्ञक माना है---जिसका अर्थ होता है तिर्यकगति अर्थात पतन से लिया जाता है । संसार में तीन तरह के संताप होते हैं --------"दैहिक दैविक भौतिक तापा ,राम राज मह काहु न व्यापा "------भाव ---दैहिक परेशानी {शारीरिक कष्ट }कुंडली के छटे भाव से देखे जाते हैं । जिन लोगों का लग्नेश -छटे -आठवें -बारहवें भाव में पाप ग्रहों के साथ बैठा हो --उन्हें शारीरिक कष्ट अवश्य हते हैं । अगर छ्टे -आठवें -बारहवें भाव का स्वामी लग्न में हो साथ ही पाप ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तब तो अत्यधिक कष्टों से सामना जातक को करना पड़ता हैं ।-- -------रिपु मृत्यु द्वादस गेह मह ,पापयुक्त लग्नेस । जन्म समय जाने परै ,ताको अंग कलेस । ।
अर्थात ---अनुभव से देखा गया है कि लग्नेश अष्टम में हो और अष्टमेश लग्न में बैठ जाय तब उम्र के साथ -साथ अपार दुःख का कारण भी बनता है ।
-----पाप युक्त तनु भवन मंह ,रिपु मृत्युप के ईस । जथा जोग जेक परै ,तन दुःख बिस्वा बीस । ।
भाव ---पाप ग्रह के साथ अर्थात -शनि ,राहु ,केतु ,मंगल या सूर्य के साथ लग्नेश लग्न में बैठा हो तो वह अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में परेशानियाँ पैदा करता है ।
अभिप्राय ---कुंडली मिलान में आयु का निर्णय अर्थात दाम्पत्य जीवन सुखी रहेगा या नहीं इस पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए ।---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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"नाड़ी दोष अर्थात वियोग और संताप -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
"नाड़ी दोष अर्थात वियोग और संताप--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
---वैवाहिक जीवन -लोभ ,अर्थ ,काम के
बाद मोक्ष प्राप्ति से ही सही माना जाता है ।और इसके लिए पत्ति -पतनी का
सहयोग अतिम घडी तक बना रहना चाहिए । ये संभव नाड़ी का मिलान सही होने से ही
होता है ।
---------कुंडली मिलान का आठवाँ विचार नाड़ी विचार को जानते हैं ।
{1}-आदि नाडी -अश्विनी ,आर्द्रा ,पुनर्वसु ,उत्तर फाल्गुनी ,हस्त
,ज्येष्ठा ,मूल ,शतभिषा और पूर्व भाद्रपद -ये 9-नक्षत्र को आदि नाडी कहते
हैं ।--- {2}-भरणी ,मृगशिरा ,पुष्य ,पूर्व
फाल्गुनी ,चित्रा ,अनुराधा ,पूर्वा षाधा ,धनिष्ठा और उत्तर भाद्रपद को मध्य
नाडी कहते हैं ।
{3}-कृतिका ,रोहिणी ,शलेषा ,मघा ,स्वाति ,विशाखा ,उत्तर षाढा श्रवण और रेवती को अन्त्य नाड़ी कहते हैं ।प्रभाव
------किसी भी एक नाड़ी में वर -कन्या दोनों के नक्षत्र होने पर दाम्पत्य
सुख अत्यंत भयावह हो जाता है ।दोनों में से किसी एक को शारीरिक अत्यंत पीड़ा
होती है और वियोग हो जाता है ।
"निधनं मध्यम नाड्याम दाम्पत्योर्नैव पार्श्व योनाड्योह "
-----अर्थात
-ज्योतिष प्रकाश -में इस वाक्य में मध्य नाडी होने पर दोनों दोनों {पति
-पतनी }को बहुत कष्ट झेलने पड़ते हैं ।-तीनों नाड़ियों में दोष होने पर
दाम्पत्य जीवन अडिग नहीं रहता है ।----- "नाडी दोशोस्ति विप्राणां वर्ण
दोषोस्ती भूभुजाम । वैश्यानां गण दोषः स्यात शुद्राणाम योनिदूश्नाम ।।
भाव
-कुछ आचार्यों ने कहा -नाडी दोष केवल ब्राह्मणों को लगता है ।और वर्ण दोष
क्षत्रियों को ही लगता है ।एवं गण दोष वैश्यों को ही लगता है तथा -योनी दोष
दासों को ही लगता है ।
नोट -जब जीवन की घडी लम्बी न हो
,सुखद न हो ,मोक्ष प्राप्ति तक न पंहुंचे -अर्थात पति -पतनी साथ -साथ
अंतिम पड़ाव तक न पँहुचे तो वैवाहिक सुख अधूरा रहता है इसलिए कुंडली मिलान
नितांत आवश्यक है ।जिस प्रकार नरकों के वर्णन सुनकर नरकों में नहीं जाना
चाहते हैं इसी प्रकार वैवाहिक जीवन सर्वगुण संपन्न हो कुंडली मिलान
अनिवार्य समझें ।---
----प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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वैवाहिक जीवन की आयु अर्थात "भकूटदोष-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
वैवाहिक जीवन की आयु अर्थात "भकूटदोष"-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
-------दाम्पत्य जीवन सरस हो ,प्रेम की अविरल धारा वहती हो अर्थात सभी सुख हो किन्तु अवधि {आयु }लम्बी न हो तो फिर पुत्र ,पौत्र के बिना वैवाहिक जीवन अधूरा रहता है । ये वैवाहिक जीवन दीर्घायु हो इसलिए "भकूट दोष अर्थात राशि मिलान करते हैं ।
"मृत्युह षडाष्ट के ज्ञेयो पत्य्हा निर्नवात्माजे ।
द्विर्द्वादशो दरिद्रत्व्म द्वयोर्न्यत्र सौख्यक्रित ।।
-----अर्थात -वर -कन्या की राशियों का स्वामी ग्रह एक ही हो ,अथवा दोनों राशियों में मैत्री हो तथा नाड़ी नक्षत्र शुद्ध रहे तो दुष्ट "भकूट दोष "में भी विवाह शुभ होता है ।
--------किन्तु उक्त शलोक में --{1}-वर की राशि से कन्या की राशि तक और कन्या की राशि से वर की राशि तक गिनने पर -6/8-संख्या हो तो दोनों {पति -पतनी }को चोट पहुँचती है ।
{2}-अगर ये संख्या -9/5-हो तो संतानों को माता -पिता से या संतान से माता -पिता को हानी सहनी पड़ती है ।-----{3}-यदि गिनती से शेष संख्या -2/12-हो तो वैवाहिक जीवन में गरीबी अर्थात धन की दुखद स्थिति रहती है ।
{4}-अशुभ केंद्र योग -4/10-को माना गया है । ये चार प्रकार के सम्बन्ध --षडाष्टक {6/8}-नव -पंचम -{9/5}-द्वि द्वादश -{2/12}--और केंद्र योग ये ज्योतिष के कई ग्रंथों में अशुभ माने गये है ।
नोट ---ज्योतिष का भाव डराने का नहीं अपितु आपका वैवाहिक जीवन सुखद हो इसलिए ज्योतिष की सलाह अवश्य लेनी चाहिये ।अगर प्रेम या पसंद हो तो विवाह के समय उन नामों से न करें जो दोष कारक हों ?---
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ
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