"नाड़ी दोष अर्थात वियोग और संताप--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
---वैवाहिक जीवन -लोभ ,अर्थ ,काम के
बाद मोक्ष प्राप्ति से ही सही माना जाता है ।और इसके लिए पत्ति -पतनी का
सहयोग अतिम घडी तक बना रहना चाहिए । ये संभव नाड़ी का मिलान सही होने से ही
होता है ।
---------कुंडली मिलान का आठवाँ विचार नाड़ी विचार को जानते हैं ।
{1}-आदि नाडी -अश्विनी ,आर्द्रा ,पुनर्वसु ,उत्तर फाल्गुनी ,हस्त
,ज्येष्ठा ,मूल ,शतभिषा और पूर्व भाद्रपद -ये 9-नक्षत्र को आदि नाडी कहते
हैं ।--- {2}-भरणी ,मृगशिरा ,पुष्य ,पूर्व
फाल्गुनी ,चित्रा ,अनुराधा ,पूर्वा षाधा ,धनिष्ठा और उत्तर भाद्रपद को मध्य
नाडी कहते हैं ।
{3}-कृतिका ,रोहिणी ,शलेषा ,मघा ,स्वाति ,विशाखा ,उत्तर षाढा श्रवण और रेवती को अन्त्य नाड़ी कहते हैं ।प्रभाव
------किसी भी एक नाड़ी में वर -कन्या दोनों के नक्षत्र होने पर दाम्पत्य
सुख अत्यंत भयावह हो जाता है ।दोनों में से किसी एक को शारीरिक अत्यंत पीड़ा
होती है और वियोग हो जाता है ।
"निधनं मध्यम नाड्याम दाम्पत्योर्नैव पार्श्व योनाड्योह "
-----अर्थात
-ज्योतिष प्रकाश -में इस वाक्य में मध्य नाडी होने पर दोनों दोनों {पति
-पतनी }को बहुत कष्ट झेलने पड़ते हैं ।-तीनों नाड़ियों में दोष होने पर
दाम्पत्य जीवन अडिग नहीं रहता है ।----- "नाडी दोशोस्ति विप्राणां वर्ण
दोषोस्ती भूभुजाम । वैश्यानां गण दोषः स्यात शुद्राणाम योनिदूश्नाम ।।
भाव
-कुछ आचार्यों ने कहा -नाडी दोष केवल ब्राह्मणों को लगता है ।और वर्ण दोष
क्षत्रियों को ही लगता है ।एवं गण दोष वैश्यों को ही लगता है तथा -योनी दोष
दासों को ही लगता है ।
नोट -जब जीवन की घडी लम्बी न हो
,सुखद न हो ,मोक्ष प्राप्ति तक न पंहुंचे -अर्थात पति -पतनी साथ -साथ
अंतिम पड़ाव तक न पँहुचे तो वैवाहिक सुख अधूरा रहता है इसलिए कुंडली मिलान
नितांत आवश्यक है ।जिस प्रकार नरकों के वर्णन सुनकर नरकों में नहीं जाना
चाहते हैं इसी प्रकार वैवाहिक जीवन सर्वगुण संपन्न हो कुंडली मिलान
अनिवार्य समझें ।---

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