तुला राशि --यह पुरुष जाति ,चर संज्ञक ,वायु तत्व ,पश्चिम दिशा की स्वामिनी ,अल्प संतान वाली ,श्याम वर्ण ,शॉर्योदयी ,शूद्र -संज्ञक ,दिनबली ,क्रूर स्वभाव और पादजल राशि है | इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील ,ज्ञानप्रिय ,कार्यसम्पादक और राजनीतिज्ञ है | इससे नाभि के नीचे का विचार किया जाता है |
---चित्रा के दो चरण ,स्वाति और विशाखा के तीन चरण इसमें निहित हैं | स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न जातक अत्यन्त चतुर ,धर्मात्मा ,कृपण -कंजूस -स्त्रियों का प्रेमी ,सुशील और देवताओं का भक्त होता है |
--तुला राशि में विशाखा नक्षत्र ऐसी ही प्रक्रिया करता है | वो जातक को लोभी ,मानी ,कठोर ,कलहप्रिय और वेश्या गामी बनाए बिना नहीं रहता | इसकी युवा अवस्था है | यह समानता ,अनुरूपता एवं न्याय की प्रतीक राशि मानी गयी है | इस राशि को नीतिशास्त्र ,धर्मशास्त्र ,न्याय एवं स्मृति का अधिष्ठता तत्व मानते हैं | इसको हाट एवं व्यवसाय प्रिय है | इसकी जाति वैश्य है | दुर्बलता और घबराहट हर समय इसके पास रहती है | इस राशि वाला व्यक्ति प्रपंच भरी निति से कार्य करता है और धर्मात्मा होते हुए भी क्रूर बन जाता है | --अगले भाग में वृश्चिक राशि पर व्याख्या करेंगें -----भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com

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