पति -
पत्नी में परस्पर स्नेह कैसे हो -ज्योतिष विशेष -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
-----"स्वगणे चोत्त्मा प्रीतिः स्यान्नर देवयोहः । असुरा मर्योर्वैरम मृतुर्मानुष राक्षसोह । ।
----दाम्पत्य जीवन परस्पर प्रेम और सरस युक्त होने पर ही उत्तम होता है --अन्यथा जीवन जीना दुर्लभ हो जाता है । ज्योतिष और ज्योतिषी निरंतर जनहित में सलाह देते रहते हैं --शायद इसलिए आज सभी ज्योतिष के प्रति अटूट विस्वास करते हैं । अगर आप दाम्पत्य जीवन में बंधने वाले हैं तो कुंडली का निरिक्षण अवश्य करें ।
अस्तु ----वर -कन्या की परस्पर राशियाँ मेल खाती हों अर्थात -गुण ,धर्म और स्वभाव में समानता हो ,कुंडली मिलान में गुण -18 से अधिक मिलते हों साथ ही दोनों के जन्म नक्षत्र एक ही गण समूह के हों ---जैसे -देवगण का वर एवं देवगण की कन्या हो तो पति -पत्नी में विशेष स्नेह होता है ।
---दोनों मनुष्य गण के हों या दोनों राक्षस गण के हों तो भी दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है ।मनुष्य +देवगण वालों के सम्बन्ध को बहुत अच्छा माना जाता है । राक्षस +राक्षस गण वाले दोनों परस्पर लड़ते -झगड़ते तो हैं ,किन्तु परस्पर आपस में समझौता से जीवन जीते रहते हैं ।
-------उक्त श्लोक का भाव यह है ---वर +कन्या का सही कुंडलियाँ उपलब्ध हों तो लग्नेश +दोनों के सप्तमेश +दोनों की राशियों के स्वामी तथा नवमांश पतियों की स्थिति को जानकर ही विवाह करना चाहिए । जिनकी कुंडली उपलब्ध न हो तो नाम राशि उचित रखकर कन्यादान का संकल्प से भी सुखी रह सकते हैं ।
नोट ---कुंडली का केवल आकलन न करें कर्मकांड का पालन से ही सुखी हो सकते हैं ।
प्रेषकः ---प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

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