ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 22 सितंबर 2025

देश -विदेश की भविष्यवाणी -पढ़ें -22 /09 /25 से 07 /10 /25 तक -ज्योतिषी झा मेरठ




 ॐ श्रीसंवत -2082 --शाके -1947 आश्विन शुक्लपक्ष -तदनुसार दिनांक -22 /09 /2025 से 07 /10 / 2025 तक देश -विदेश भविष्यवाणी की बात करें --नवरात्र की शुरुआत सोमवार से उत्तम है | माता  हाथी पर सवार होकर पधारी हैं -अतः खेती में उत्पादन उत्तम होगा | गुड़ ,शक्कर ,हरी सब्जी ,रुई ,कपास ,अरहर ,मूंग ,मसूर ,आलू ,गाजर ,टमाटर ,अनाज की खेती पर्याप्त होगी | सरकार कृषकों को म प्रमुखता देगी | ---एक प्रमाण देखें ---सोमस्य पंचवाराः स्युः यत्र मासे भवन्ति हि ,धन धान्य समृद्धिः स्यात सुखं भवति सर्वदा ---भावार्थ --देश -देशान्तरों में विकास को बल मिलेगा | उत्पादन की अच्छी उम्मीद खुशहाली का कारण बनेगी | ----तेजी मन्दी की बात करें तो --बाजार का रुख नरम रहेगा | तृतीया तिथि की वृद्धि होने से चालू भावों में गिरावट होगी | --विशेष --कहीं वर्चस्व की लड़ाई आर -पार लड़ी जायेगी | आकाश लक्षण की बात करें तो ---पक्षांतर्गत घामाछायी सी चलेगी | वायुवेग के साथ यत्र -तत्र बूंदा -बांदी हो सकती है | विजयदशमी एवं शरदपूर्णिमा में मौसम खराब हो सकता है | पक्ष में हल्की ठंढ पड़ने लगेगी | --29 में अगस्त तारा उदय होगा | ---------भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त  जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com  



मंगलवार, 16 सितंबर 2025

मेरी कुण्डली का सातवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -121 - ज्योतिषी झा मेरठ




ॐ --आत्मकथा के पाठकगण --प्रत्येक व्यक्ति का यह सातवां घर बहुत ही मार्मिक एवं गुप्त होता है | मेरी कुण्डली की नींव लग्न प्रथम घर बहुत ही सशक्त है --तो उसकी छत भी ईस्वर ने बहुत ही बजबूत बनायीं है | मेरे जीवन में मैं जितना सशक्त ,मजबूत एक धर्म पथ पर आरूढ़ रहा तो उसमें सप्तम घर सुख की लालसा है बहुत ही योगदान रहा है | वैसे -मैं मंगली हूँ -इसका अर्थ है --या तो कई विवाह के योग हैं या खण्डित कई विवाह के योग बनेंगें | यह बात सौप्रतिशत सत्य हमने आभास किया है | यधपि बहुत सी बातों को कहने का साहस हर व्यक्ति नहीं कर सकता है --पर मुझे कहने में तनिक भी संकोच नहीं हो रहा है --क्योंकि जब दूसरे की बुराई मैंने की है --तो हम अपने चरित्र को दिखाना भी आत्मकथा का धर्म है | ---अस्तु ---मेरी कुण्डली में मंगली दोष तो है ही साथ ही सप्तम भाव का स्वामी शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में विराजमान है | लग्नेश -सूर्य एवं मंगल एवं केतु की सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि पड़ रही है | गुरु की भी पूर्ण दृष्टि पड़ रही है | खुद शनि की दृष्टि नहीं पड़ रही है | साधारणतया --इस कुण्डली को देखने पर दाम्पत्य जीवन उत्तम नहीं रहेगा --ऐसा सभी को प्रतीत होगा --बहुत दिनों तक मुझे भी ऐसा ही लगा | --अब --जब ज्योतिष का बहुत ही अनुभव देखने का हो चूका है --साथ ही अपने जीवन के उस पड़ाव पर हैं --जहाँ सीमित सुख की लालसा है --तो हमने पाया कर्मपथ उत्तम हो तो बहुत सी अनहोनी से ईस्वर रक्षा अवश्य करते हैं | उदाहरण से समझें --जब हम -14 वर्ष के हुए -तो अनायास प्रेम हुआ -जो अधूरा रहा -बदले में ऐसी चोट लगी जो अब तक गयी नहीं --उसके बाद प्रेम शब्द समाप्त हो गया --कालेज से निष्कासित हुए ,समाज  से तिरस्कृत हुए --प्रेमिका को ठीक से देखा नहीं --यह था मंगली दोष का प्रभाव और बाल्यकाल | उसके बाद --किसी भी हालत में शीघ्र विवाह करना ही लक्ष था -उसके बाद पढ़ने की तमन्ना थी --जब -19 वर्ष के हुए -अनायास तीन दिन में प्रेम विवाह किया -सबके आशीर्वाद लेकर | उसके बाद पढ़ने चला गया --मुम्बई | राहु की दशा पूर्ण यौवन में थी -जब हम -29 वर्ष के हुए --तब तक राहु की दशा रही -इसी बीच-दो कन्या ईस्वर ने दी ,शिक्षा पूर्ण नहीं हुई ,दर -दर की ठोकरे खाते रहे --पर दाम्पत्य जीवन बरकरार रहा | आगे -जब हम -30 वर्ष के हुए तबसे आजतक  -कई योग प्रेम के  बनते रहे पर -जब पतनी मजबूत हो -व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी धर्म सम्मत निभाने का प्रयास करे तो उसकी सदा ईस्वर भी सहायता करते हैं | वैसे मेरी पतनी की कुण्डली उपलब्ध नहीं है | नानी ने यह धर्मपत्नी अपने आशीर्वाद में दिया --वो परमधार्मिक थी ,माता पिता के आशीर्वाद से विवाह किया था --हमारे माता पिता भी धार्मिक थे --अतः यह धर्म भी हमें सहायता प्रदान किया | मेरी पतनी भी परमधार्मिक है --अतः एक मैं ही तो अधर्मी था --सबके धर्म के आगे मेरा अधर्म समाप्त  होता गया --और मेरा दाम्पत्य जीवन उत्तम रहा | अब अपनी कुण्डली से समझाते हैं --ऐसा कौन सा योग था --जिस पर सबकी नजर नहीं गयी ---धार्मिक विशेष ग्रहों के प्रभाव के कारण मेरा दाम्पत्य जीवन अटूट रहा --सुनें --लग्नेश सूर्य के अनुसार मंगल और केतु को चलना पड़ा --जो सप्तम दृष्टि से सुखी बनाये | शनि भले ही नीच का है --पर त्रिकोण में है --भाग्य को बढ़ाना --शनि का धर्म है --अतः दाम्पत्य जीवन ठीक रहा | गुरु भी त्रिकोण का स्वामी है --पराक्रम क्षेत्र में तो हानि हुई पर --दाम्पत्य क्षेत्र को पूर्ण सुखी बनाया | चन्द्रमा मेरा कर्मक्षेत्र में उच्च का है --अतः -धर्म सम्मत ही मन रहेगा | सबसे बड़ी बात --पतनी के भाग्य से ही भाग्यवान बने | संसार के तमाम सुख पतनी की वजह से ही प्राप्त हुए --अन्यथा मेरा जीवन नीरस होता | -चाहे ,शिक्षा हो ,संतान हों ,संपत्ति हो ,वाहन ,भवन हों ,मान -प्रतिष्ठा ,इज्जत सबकुछ अपने कर्मों से नहीं पतनी के भाग्य और कर्मों से प्राप्त हुए | ईस्वर ने हम पर बहुत कृपा करि है ---बहुत कुछ खोने के बाद भी मजबूत हैं | यह मेरी कुण्डली के सप्तम भाव का प्रभाव रहा | --अगले भाग में --आठवां घर की चर्चा करेंगें | ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त  जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com  


रविवार, 14 सितंबर 2025

मेरी कुण्डली का छठा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -120 - ज्योतिषी झा मेरठ




ॐ --मेरी कुण्डली का छठा घर -जो रोग और शत्रुओं का है --मेरे जीवन में जन्म से लेकर आज तक कभी ऐसा नहीं रहा जब हम रोग और शत्रुओं से घिरे न रहे हों | चूंकि --इस घर का स्वामी नीच का है --इसका अर्थ है सदा रोगी रहेंगें एवं शत्रुओं से घिरे रहेंगें --किन्तु ईस्वर की विडम्बना देंखें --बचाने का मार्ग भी बड़े ही सरल बनाया है --इस छठे घर का स्वामी शनि है -जो नीच राशि भाग्य क्षेत्र और त्रिकोण में विराजमान है --किसी की भी कुण्डली हो त्रिकोण का लाभ सबको मिलता है --अतः भाग्य मेरा बहुत सबल रहा | आज जब मैं -55 वर्ष का हो चूका हूँ --तब अपनी कुण्डली का विश्लेषण कर रहा हूँ --पहले कभी अपनी कुण्डली ठीक से देखि नहीं --क्योंकि --गुरुदेव का आदेश था | अब जीवन के अन्तिम पड़ाव पर हूं --तो कोई दोष नहीं लगेगा | अस्तु ===जब बालक था तबसे सदा बीमार रहा ,तबसे ही सबके शत्रु रहा -यह कथा जीवनी में लिख चूका हूँ | कभी माँ ने बचाया तो कभी  पिता ने बचाया ,कभी दीदी ने बचाया तो कभी मामा ने बचाया --इसके बाद गुरुकुल में गुरुदेव ने बचाया --चलते -चलते कईबार घिरे -तो कोई अनायास बचाया --उसने बचाया -जिसको हम जानते तक नहीं थे | इसके बाद पतनी ने बचाया -जिस -जिस ने पीड़ित किया उससे बचने का मार्ग ईस्वर ने स्वयं बनाया --जो मैं खुद नहीं जनता था | ऐसे ही रोगों की दस्ता रही है --कोई दिन ऐसा नहीं होगा --जब हम किसी न किसी कारण से बीमार नहीं रहे होंगें ==पर तमाम रोगों पर सदा भाग्य ने विजय दिलाया | अपने जीवन में रोगों पर मेरा -50 प्रतिशत खर्च रहा है --देखने में मैं कभी किसी को बीमार नहीं दीखता पर --अंदर ही अन्दर बीमार रहा | --आज मुझे अपनी कुण्डली से यह अनुभव हो रहा है -कोई सगे -सम्बन्धी हों या रोजगार से जुड़े लोग या फिर पतनी या बच्चे हों सबसे मेरा सदा युद्ध होता रहता है -कईबार मरने का सोचा पर मरे नहीं --चलते रहे ,स्थान बदलते रहे ,मित्रों से बचते रहे ,अपनापन से दूर रहे --कईबार ऐसा लगा --अब कैसे बचेंगें --अब कैसे आगे बढ़ेंगें --पर अपने आप को फिर ईस्वर को सौंप दिए --तो वही --सभी शत्रुओं से बचाया भी आगे बढ़ाया भी --कभी रोग हो या फिर शत्रु --झुके नहीं ,थके नहीं -अपनी मस्ती में चलते रहे --यह था वास्तव में भाग्य का प्रभाव --जिसे कभी अहसास नहीं कर पाए | एक भाग्य की कथा जो कहना छठा हूँ --सुनें --मेरी चाची ने -24 मुकदमें किये मेरे पिता पर -उसमें सबको जेल जाना पड़ा -पर मुझे चाची ने कुछ नहीं कहा -यह अब समझ में आ रहा है --इतना ही नहीं -उस मुकदमें से मेरी पतनी ने सबको -माता पिता एवं अनुज के परिवार को निकाला --इसे ही भाग्य कहते हैं | -----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त  जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com  


शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

मेरी कुण्डली का पांचवा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -119 - ज्योतिषी झा मेरठ




ॐ --हमारे पाठकगण --मेरी कुण्डली सिंह लग्न की है | पांचवा घर गुरु का है एवं गुरु- शुक्र राशि तृतीय घर -पराक्रम क्षेत्र में विराजमान हैं | इस पंचम घर पर गुरु की त्रिपाद दृस्टि पड़ रही है | पूर्ण दृस्टि किसी भी ग्रहों की नहीं पड़ रही है --इस पंचम घर पर | इसका अर्थ है --शिक्षा एवं बुद्धि का विशेष कोई लाभ नहीं मिलेगा | यह बात सौ प्रतिशत सही है | न तो मैं मान्यता प्राप्त ज्योतिषी ,वैदिक या फिर गायक कुछ भी नहीं हूँ --जबकि इन तीनों क्षेत्रों में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया | जब ज्योतिष की डिग्री ले रहा था --तो अनुज सर्पदंश से दिवंगत हो गया --फिर भी सभी ज्योतिष के ग्रन्थ जिह्वा पर थे | वैदिक -केवल 11 वर्ष के हुए तो रुद्राष्टाध्यायी जिह्वा पर थी -किन्तु दरिद्र योग चल रहा था -न तो किसी ने मदद की न ही मार्ग मिला ,यहाँ भी -संहिता के 20 अध्याय जिह्वा पर हुए --पर यह विद्या अधूरी रही | संगीत के दसों ठाठ केवल 13 वर्ष के थे तो जिह्वा पर थे पर गुरु का विद्यालय से निष्कसन हुआ तो यह विद्या अधूरी रही --जब हम --30 वर्ष के हुए -तो पहली कमाई से हारमोनियम खरीदा और 10 वर्ष संगीत का अध्ययन किया --एक दिन पतनी ने अपमान किया --उसके बाद यह विद्या का परित्याग कर दिया | अब देखें --गुरु की त्रिपाद दृष्टि से --तीन विद्या सफलता पूर्वक  प्राप्त हुई | फिर भी अधूरे रहे | मुझे तीन संतान प्राप्त हुई -बड़ी ही ईस्वर की कृपा से पुत्र प्राप्त हुआ | दरिद्र योग में होने के बाद भी -बिहार ,उत्तर प्रदेश एवं मुम्बई में उत्तम शिक्षा मिली फिर भी अधूरे रहे | सदा धर्म पथ पर रहे ,सबकी उन्नति सदा चाही ,एक सुन्दर समाज की सोच सदा रही ,शिक्षा का महत्व सर्व प्रथम दिया ,जहाँ भी रहा उसे सदा अपना समझा फिर भी किसी का नहीं हो सका | ---अब आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा --ऐसा क्यों --तो सुनें ---भले ही ज्ञान से परिपूर्ण था ---मेरा पराक्रम क्षेत्र एवं सगे -सम्बन्धियों से कदापि लाभ नहीं मिलना था --पर मेरे कोई मार्गदर्शक नहीं थे --अगर होते तो हमें क्या करना चाहिए यह बताते --ऐसा नहीं होने पर --चूँकि मैं सिंह लग्न का हूँ एवं मंगल से युक्त सूर्य देव लग्न में हैं --अर्थात नहीं कैसे होगा कोई काम --यह जो हौसला था मेरा-- बहुत ही मजबूत था | ऐसी स्थिति में व्यक्ति की एक अलग धुन होती है -वो केवल पागल की तरह चलता रहता है कर्मपथ पर --ऐसी स्थिति में उसका विस्वास ही प्रेरणादायक बन जाता है --फिर स्वयं ऐसे अभागे को भी परमात्मा अपने दोनों हाथों से उठाते हैं | अगर मुझे ज्योतिष का ज्ञान तब होता  --तो कदापि आगे नहीं बढ़ता --क्योंकि जीवन में भाग्य कर्म से ही बनता है --अतः मैं कर्म पथ पर आरूढ़ रहा --भाग्य की परवाह नहीं की -जबकि भाग्य मेरा अच्छा है --उसकी चर्चा आगे करूँगा | आप सभी से एक ही बात कहना चाहते हैं --भले ही भाग्य साथ न दे पर कर्मक्षेत्र पर हर व्यक्ति को आरूढ़ रहना चाहिए --आज मैं जहाँ हूँ -भले ही मान्यता प्राप्त एक शिक्षक नहीं हूँ किन्तु मेरी सोच सही है तो मुझे ईस्वर की कृपा प्राप्त है --हर पल वो मुझे मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते रहते हैं | --आज के समय जबकत बालक कामयाव नहीं होता है तब तक विवाह नहीं होता है --किन्तु मेरा विवाह भी हो चूका था एक बच्ची भी थी -तब दरिद्र होकर भी मुम्बई पढ़ने गया और पढ़कर ही आया | -------भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त  जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com  



गुरुवार, 11 सितंबर 2025

आत्मकथा का उत्तर भाग -2 -सुनें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


मेरी कुण्डली का चौथा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -118 - ज्योतिषी झा मेरठ


ॐ -प्रिय पाठकगण --ज्योतिष वास्तव में एक दर्पण है | जैसे ऑंखें भी होतीं हैं ,नजदीक वस्तु भी होती है --पर कभी -कभी दिखती आँखों को वस्तु नहीं है | --इसका अर्थ जल्दबाजी होती है --थोड़ी सी शान्ति व्यक्ति रखे तो वह वस्तु जो दिखती नहीं थी --थी सामने -शान्ति हुए तो मिल जाती है --वैसे ही जीवन में गुरु का मार्गदर्शन होता है | -मेरी कुण्डली की नीव बहुत ही मजबूत है --तो धन एवं कुटुंब अच्छे रहे भले ही हमने महत्व नहीं दिया | जब धन और कुटुंब का महत्व नहीं दिया --तो फिर प्रभाव कमजोर होना लाजमी था --क्योंकि जो व्यक्ति धन और परिजनों का आदर नहीं करेगा तो -उसे ये दोनों परित्याग कर देते हैं --इसका परिणाम यह होता है -व्यक्ति के पास अपने संसाधन तो होते हैं -पर वह अकेला होता है --यह स्थिति मेरे साथ रही | ---अस्तु ---अब चौथे घर की बात करें तो -यह घर  सुख पूर्ण रूपेण मिले --क्यों --क्योंकि चौथे घर और भाग्य का स्वामी सूर्य के साथ बहुत ही मजबूत है | सम्पूर्ण जीवन हमने इस घर पर बहुत ही अन्वेषण किया --हमने देखा ज्यादातर बड़े लोगों की कुण्डली में ऐसा योग था | जब हम -11 वर्ष के थे तब से इस स्थिति को बहुत ही ढूंढा --जहाँ भी गया उन ज्योतिषी गुरु ने कहा एक दिन तुम राजा बनोगे | जब हम -10 वर्ष के हुए --तो राहु की दशा प्रारम्भ हुई --यह दशा -28 वर्ष के जब हुए तब तक रही --संयोग से -शिक्षा ,दीक्षा ,विवाह ,संतान ,पालयन इसी दशा में हुए | मेरी कुण्डली में राजयोग था फिर भी हम महादरिद्र थे | जब हम -28 वर्ष के हुए और गुरु की दशा प्रारम्भ हुई --अनायास राजयोग शुरू हुआ --फिर वाहन ,भवन ,दाम्पत्य सुख ,शिक्षा ,संतान सभी राजयोग में बदल गए | तब मैं अधूरा पंडित था --सभी ग्रन्थ तो जिह्वा पर थे पर मार्गदर्शन नहीं था | एकदिन अनायास शिव की शरण में रोने लगे -कैसे चलूँ ,क्या करू --मानों अनायास राजयोग का दौर शुरू होने वाला था तो ईस्वर प्रेरणा भी अनायास ही दी | मानों स्वयं भोलेनाथ -मंदिर से मेरे ह्रदय में समा गए --और प्रेरणा के श्रोत बन गए | 10 वर्ष से लेकर जब हम -28 वर्ष के हुए -अपने हों या पराये सभी ठोकर मारते गए | सारे परिजन होते हुए भी अकेले चल रहे थे ,हमारे धन पर सभी राज कर रहे थे फिर भी हम उनके लिए ही जी रहे थे | किसी तरह से पनाह मिले यही सोच थी --सबसे पहले माँ ने त्याग दिया ,फिर पिता ने त्याग दिया ,फिर भाई ,बहिन ,मामा सबने त्याग दिया | मेरी पतनी और बच्ची को जो तकलीफ हुई -उसकी क्या गाथा लिखू  | जब राजयोग शुरू हुआ तो अकेले चलने लगा --क्योंकि ठोकर से अकल आ चुकी थी | --ऐसा इसलिए हुआ --मेरी कुण्डली में सूर्य लग्न का राजा है --जो मुझे जन्मजात  वसूलों का पक्का बनाता है ,थोड़े में खुश रहने का सिद्धांत देता है --मंगल होने से कर्मठ और जुझारू बनाता है --किन्तु यहाँ केतु है --इसका अर्थ है --जो मेरी मातृ सुख है -जो दिखता है --वो सच नहीं है --माँ ऊपर से तो प्रेम करेगी --किन्तु ह्रदय में छल है साथ ही भाग्य के क्षेत्र का स्वामी भी केतु के साथ लग्न में है --इसका अर्थ है --सबकुछ होने के बाद भी भाग्य का सुख एक छलावा रहेगा | जबतक -परिजन हों ,शिष्य हों ,मित्र हों ,पड़ोसी हों --खिलाते रहेंगें --ये अपने रहेंगें --अन्यथा ये सभी शतु की तरह व्यवहार करेंगें | --यह अनुभव जब हम -55 वर्ष के हुए तब हुआ | अगर मुझे एक सही मार्गदर्शन दाता मेरे पास होते तो हम सुखी होते --जब मुझे आज ईस्वर की प्रेरणा से अब अनुभव हुआ --तो वास्तव में मैं अब सुखी हुआ | अतः सभी पाठक जीवन में किसी न किसी का मार्गदर्शन अवश्य लें सुखी होना है तो ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त  जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com  


गुरुवार, 4 सितंबर 2025

मेरी कुण्डली का तीसरा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -117 - ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष के मेरे प्रिय पाठकगण --मेरी कुण्डली वैसे बहुत ही सशक्त ,मजबूत है --किन्तु यह तीसरा घर -जिससे  व्यक्ति का पराक्रम का अनुमान लगाया जाता है एवं -भाई -बहिन के साथ कितनी मजबूती रहेगी -इसका विचार किया जाता है | -ईस्वर ने हमें जोर का झटका दिया --क्यों ? --क्योंकि यहाँ गुरु -बृहस्पति शुक्र राशि में उपस्थित हैं --एक तो यह घर गुरु का अपना नहीं है -शत्रु क्षेत्र में गुरुदेव हैं साथ ही इस तीसरे घर पर शनिदेव जो भाग्य में विराजमान हैं --इस घर को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं --इसका अभिप्राय है -मैं भले ही कितना ही ज्ञानी हूँ या धर्मानुरागी या फिर अनंत गुणों से युक्त हूँ --जीवन भर यहाँ मेरी नहीं चली | हमने कभी किसी को धोखा नहीं दिया ,हमने कभी किसी का कुछ नहीं लिया ,हम अपने धन में ही खुश सदा रहे हैं ,सबको शिक्षाविद एवं सुसभ्य बनाने का सदा प्रयास किये | कोई भी शिष्य हो या अपने सबको धर्म युक्त मार्ग ही बताया है --केवल एक अवगुण मेरे में था --गलती मत करो ,याचना मत करो ,परिश्रम से धन कमाओ ,स्वाभिमान से जिओ ,जितना है प्रसन्न रहो --अधिक पाने के लिए सार्थक प्रयास करो या फिर ईस्वर अधीन हो जाओं --इन अवगुणों के कारण कभी भी मैं जीत नहीं सका --पराक्रम को या प्रजाओं को --क्यों ? --क्योंकि -मेरे भाग्य के क्षेत्र में नीच का शनि है --अतः मेरे जितने भी सगे -सम्बन्धी रहे या शिष्य या यजमान वो -धनाढ्य तो थे किन्तु अल्पज्ञानी थे ---अतः जिस प्रकार चोर के सामने व्यक्ति लाचार होकर अपने को तो समर्पित कर देता है --किन्तु मन यह रहता है -अगर कोई मेरी सहायता करे तो इस चोर को बता दूंगा मैं भी कोई चीज हूँ | ऐसा ही मेरे साथ सदा रहा --सबसे पहले माता पिता को सशक्त बनाना चाहा --वो बनें भी किन्तु अनुज का साथ मिलने पर हमें सबसे पहले नकार दिए | अपने अनुज को शिक्षित करना चाहा ,आज भी उसके पास उतनी सरस्वती हैं -पर धन आने पर -वो सबसे पहले मुझे ही तिरस्कृत किया | -जब हम 29 वर्ष के हुए --सभी परिजन होते हुए भी मैं अकेला था -तो एक यजमान को ही सगा समझने लगा --पर अंत में बाल -बाल धन से बचा अन्यथा -कुछ नहीं बचता | एक और दौर आया --20 17 में एक और यजमान से दोस्ती हो गयी --हुआ यह उसकी एक पूजा की जिसके प्रभाव से उसके घर की एक विषम कथा उजागर हो गयी जिसे न तो हम जानते थे न वो | इस बात से वो मित्र विक्षिप्त रहने लगा -उसकी आयु के लिए फिर जाप किये -वो मृत्यु से बच गया ,उसके बाद एक और पूजा हुई -उसके बाद --उसकी दुकान माँ के  नाम थी -जो हमने प्रयास किया उसके नाम हो जाय हो गयी | उसके बाद मकान उसकी पतनी के नाम करबाने का प्रयास किया वो भी हो गया ,उसके बाद --उसका कारोबार समाप्त हो गया -हमारा उठना -बैठना एक साथ था -हमने कईबार कहा अगर तुम सही राह नहीं चलोगे तो बदनामी हमारी होगी --बहुत दिनों के बाद पत्ता चला -इसके पास धन बहुत है पर कर्जदारों को देना नहीं चाह रहा है --ऐसी स्थिति में --हमने कहा दुकान सबसे - कहो बेच दी और बैंक का कर्ज चुकाया --यह दुकान पंडितजी को दे दी जबकि सच यह था -दुकान उसकी ही थी ,जीएसटी उसके नाम ,पूंजीं उसकी थी, कमाई में आधा -आधा के दोनों हक़दार थे | उसकी पतनी को भी इस सच्चाई से दूर रखा ,--इसका परिणाम यह हुआ वो सबके कर्जदार होने के बाद भी मेरी वजह से बिना धन दिए  मुक्त हो गया | अब कारोबार भी ठीक हो गया ,बाल बच्चे भी सही हो गए | जब वो चारो तरफ से सुरक्षित हो गया तो हम चाहने लगे उसकी पतनी को सभी बातों से अवगत करा दूँ --एवं हम अलग हो जाय क्योंकि मेरा मकसद उसे सही करने का था --एक दिन उसने मेरा इतना अपमान किया कि हम अपना -50 हजार छोड़कर एवं माह का हिस्सा छोड़कर चल दिए-- पर --कभी उस व्यक्ति ने न हो हिसाब दिया न ही गलती की क्षमा मांगी | --अब आपलोगों के मन में एक प्रश्न उठा होगा --ऐसे-- कैसे अपमान कर दिया --तो सुनें --जब हम साथ -साथ थे और बाहर से मुझे गरीब दिखा --तो हमने अपने घर का कूलर और अपने बालक की साइकिल दी --एकदिन बोला -मेरी घरवाली बोली शनिदान दिया है अतः बेचकर पैसे खा गया , हमने पूछा --जो धन खाया उसमें शनि नहीं था --और सुनों वो साइकिल मेरे बालक की थी --तुमने बेचकर अच्छा नहीं किया --मैं तुमसे बहुत नाराज हूँ --इसके बाद हमने कहा मैं तुम्हारा गुरु नहीं हूँ --पैर मत छूआ करो --उसके मन कई शंका उठने लगी --फिर क्या था -उसके सब काम बन चुके थे --जब दुनिया का धन खा गया तो मेरा धन खा जाये --इसमें कौन सी बड़ी बात है | ---अस्तु --कहने का अभिप्राय है --कुण्डली का यह ज्ञान मुझे था --पर मेरे कोई मार्गदर्शक नहीं थे --जिनसे कोई सलाह लेता --अतः कईबार मैं भावनाओं में बहक जाता हूँ --इससे चाहे अपने हों या पराये मुझे चोट बहुत ही पहुंची है | --मेरी कुण्डली --यह तीसरा घर सबसे हानि दी है --जिसका अनुभव अब हो रहा है ----अगले भाग में कुण्डली  के चौथे 


घर की चर्चा करेंगें ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त  जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

मेरी कुण्डली का दूसरा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -116 - ज्योतिषी झा मेरठ


दोस्तों -किसी भी जन्मकुण्डली के दूसरे घर से --व्यक्ति का धन और कुटुम्ब सुख देखा जाता है | --अस्तु -मेरे पास धन स्थिर रहेगा या चलायमान एवं कुंटुंब के सुख कैसे रहेंगें --इस पर जब मेरी नजर गयी --तब तक मैं 55 वर्ष का हो चूका था --इसका अर्थ है -हम एक ज्योतिषी होकर भी अपने जीवन में इन दोनों चीजों का समुचित लाभ नहीं ले सके | ज्यादातर व्यक्ति की चाहत धन प्राप्ति की तो होती है पर उसका लाभ कैसे मिलें या उसकी हानि से कैसे बचें --इस मामले में सही मार्गदर्शन लोगों को नहीं मिलता है --परिणाम आय से ज्यादा खर्च होता है या वो सिद्धान्तों की वजह से धन के मामले में अधूरा रह जाता है --अगर भूल से धन मिल भी जाय तो किसी न किसी कारण से धन खो देता है | --मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ -मेरा चन्द्रमा उच्च का है -जो मेरा मनोभाव को दर्शाता है --थोड़ा सा स्नेह मिले या तारीफ मेरी कोई कर दें --मेरे लिए धन मायने नहीं रखता है | इस बात का लाभ सबसे पहले माँ ने उठाया ,फिर पिता ने ,फिर परिजनों  ने ,फिर पतनी ने --जब -जब पतनी की नजर से बचे तो शिष्यों ने खूब धन लाभ उठाया | यह जानते हुए कि यह व्यक्ति मेरा धन लेना चाहता है --फिर भी भावुकता में आकर हमने अपना धन तो खोया ही --मान -सम्मान भी खो दिया | --दूसरे घर का स्वामी मेरा बुध है जो उच्च का है -इसके साथ कर्मेश और पराक्रम क्षेत्र का शुक्र है जो नीच का है --इसका अर्थ है -धन देने के बाद भी हम किसी का नहीं हो सके न ही कोई सहायक रहे --वो तबतक रहे जबतक उनका काम बनता रहा --चाहे शिक्षा लेनी हो ,ज्योतिष की जिज्ञासा हो या फिर अपना काम आसान बनाना हो --ये लाभ आजीवन मुझसे लोग लेते रहे |  इतना होने के बाद भी मुझे धन कमाने का तो लगाव रहा पर समेटने या अपने ऊपर खर्च करने का कोई शौक नहीं रहा | हम अपने जीवन अगर कोई चीज खोने में माहिर रहे तो वो या तो धन था या कुटुंब | इन दोनों को त्याग करने में तनिक भी कष्ट नहीं हुआ | इसका परिणाम यह हुआ -- जिसके हाथ हम आये तब तक उसके रहे जबतक उसके हाथ रहे -उसके बाद उस व्यक्ति ने चाहे अपने हों या परायें --इतनी जोर से पटका --कि हम उससे बहुत दूर होते चले गए | हमने किसी यजमान को यह कहा यह काम इतने में होगा --अगर उसने तनिक भी धन कम किया तो हम उसके चक्कर में सारा धन छोड़ दिए -साथ ही उस व्यक्ति को भी छोड़ दिए --इस बात का मुझे कभी भी मलाल नहीं रहा | अगर किसी मित्र से या अपनों से मेरी बातें नहीं मिलती हैं --तो हम उससे सदा दूर हो जाते हैं --चाहे वो पतनी या बच्चे ही क्यों न हों --इस बात का मुझे कभी मलाल नहीं होता है | --जीवन में हमने सदा एक प्रयास किया है --किसी को धोखा नहीं दो,किसी की आशा मत तोड़ों --अगर उसने ये काम किया तो हम सदा -सदा के लिए चल देते हैं --इस बात का मुझे कभी मलाल नहीं रहता है | --जीवन में कईबार किसी के साथ चलना चाहा --पर उस -उस ने अपने काम बनते ही मुझे शून्य बना दिया | लोग किसी को कर्ज देते हैं तो ब्याज लेते हैं --किन्तु हमने जितने को धन दिया व्याज तो दूर मूल धन ही नहीं दिया --साथ ही कभी न तो माँगा न ही उसके सामने गया --इसका लाभ बहुत लोगों ने उठाया | --अब आप पाठकों के मन में एक प्रश्न उठ सकता है --अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में ऐसा योग हो तो कैसे बचे --इसका जवाब है --होनी को कोई टाल नहीं सकता है --अगर किसी जातक को सही सत्संग या मार्गदर्शन मिले तो बच सकता है ---यह मार्गदर्शन मुझे नहीं मिला -जब हम केवल 11 वर्ष के हुए तभी मेरा पलायन मातृभूमि से हुआ --यह पलायन जब हम -30 वर्ष के हुए तब तक चलता रहा | इसके बाद -पतनी का आंचल ने संभाला -किन्तु भारत भूमि पर  पतनी की लोग कितनी सुनते हैं --अतः ये दोनों हानि -धन एवं कुटुंब की थोड़ बहुत आज भी होती है | --अगले भाग में कुण्डली  के तीसरे घर की चर्चा करेंगें ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त  जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogs


खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...