ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 30 दिसंबर 2024

देश -विदेश की भविष्यवाणी पढ़ें -31 /12/24 से 13 /01 /25 तक -ज्योतिषी झा मेरठ


ॐ श्रीसंवत -२०८१ --शाके -१९४६ पौष शुक्लपक्ष तदनुसार दिनांक -31 /12  /2024 से 13 /01 /2025 तक की भविष्यवाणी की बात करें --एक प्रमाण देखें --शनि शुक्र एक राशि में ,भौम दृष्टि भरपूर ,हो हल्ला हो जगत में ,लडिहहि आपस में सूर "---अर्थात -नूतन सन -2025 के जनवरी माह में ग्रहचाल उपद्रवकारी हैं | विश्व में तनाव बढ़ेगा |  कोई देश अपने हथियार बेचने के लिए बाजार तैयार करेगा --मारक अस्त्र -शस्त्रों की बिक्री तो बढ़ेगी ही गोला बारूद का उत्पादन ,--करोना जैसी विषैली गैसों का भंडार संसार में जानलेवा सिद्धि होगा | ---एक और प्रमाण देखें --रोग बढे संसार में ,कुदरत के उत्पात ,भूमि कम्प बादल फटे ,ज्वालामुखी विसात "---इस उक्ति का भाव है --इस वर्ष -2025 में विश्व का नक्शा बदलेगा | अजीबो गरीब उत्पात होंगें | सीमा पर आतंकी नित्योत्पात करने ,भय विषाद फैलाने में अपनी महारथ समझेंगें | विषबेल का फैलाव जारी रहेगा | ---ध्यान दें -सन -2025 में रूद्र बीसी का साल है | --तेजी मन्दी की बात करें तो लाल रंग की सभी वस्तुओं में लाभ का योग रहेगा | सस्ते में खरीदे गये गेंहूं ,जौं ,चना ,ज्वार ,बाजरा ,मटर ,छोले ,चावल। साबूदाना ,तिल ,मेवा ,आदि में अच्छा खासा लाभ मिलेगा | ऊनी कम्बल ,गर्म कपड़े ,गजक ,रेवड़ी ,गाजर का हलुआ ,चाट ,मुरब्बा ,अचार ,खेल -खिलौना ,तेज होंगें | उतार -चढ़ाव के बाद स्थिरता बनेगी | ---आकाश लक्षण की बात  करें तो --जहाँ -तहाँ बादलचाल ,वायुवेग ,मेघ गर्जन ,कहीं हिमपात ,उपलवृष्टि ,,शीतलहर प्रभावित करेगी | भूकंप ,भूस्खलन ,यान -खान कुघटनाचक्र ,यातायात में बाधा होगी |  --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com    



गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -105 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 सनातन संस्कृति में जो शास्त्र -पुराण हैं उन्हें पढ़ना और उनके पथ पर चलना ये बहुत बड़ी बात है | हमने अपने जीवन में यह अनुभव किया है | शिक्षा की प्रणाली बहुत बदल गयी है --इसकी वजह से भक्ति के आगे श्रद्धा न के बराबर हो रही है | ज्ञान की अपेक्षा विवेक न के बराबर है | आज सनातन संस्कृति का मार्ग प्रगति पथ पर है किन्तु प्राचीनता नहीं आधुनिकता विशेष है | धन ने धर्म पर अपना विशेष अधिकार जमा लिया है --इसका परिणाम यह हो रहा है -हर व्यक्ति असंतुष्ट रहता है --इससे मैं भी नहीं बच सका | हमने अनुभव किया है -पति गुजर जाये --तो प्राचीन पतनी -उस पति के लिए धर्म निभाने का भरसक प्रयत्नशील रहती है | अगर पतनी गुजर जाये तो  पति  धर्म के विपरीत चलता है -उसका कुछ अस्तित्व नहीं रहता है | भगवान की सात्विक कठोर साधना आज के समय में कम हो रही है | सनातन के -व्रत ,जप ,तप ,नियम ,हवन ,स्वाध्याय --इन नियमों का पालन न के बराबर हो रहे हैं | सनातन संस्कृति में प्रमुख योगदान मध्यमवर्ग के लोगों का विशेष है | विशेष शिक्षा प्राप्त व्यक्ति -खोट विशेष निकालते -रहते हैं --जबकि धर्म का पालन बुद्धि से कदापि संभव नहीं है -सिर्फ विवेक से भी संभव नहीं है --इसके लिए -बुद्धि +विवेक दोनों चाहिए | आज के समय में धर्म का पालन या तो दिखावा में होता है या मज़बूरी में | भारत भूमि पर ऋषि -महर्षियों एवं राजाओं तथा गुरुजनों की विशेष देन --किन्तु आज के समय कोई ऋषि या महर्षि राजा या गुरुजन उन नियमों का पालन करने हेतु अपना -अपना पूर्ण योगदान नहीं दे रहे हैं --इसका परिणाम यह हो रहा है --एक शास्त्री का पुत्र दक्ष शास्त्री ज्ञान में नहीं धन से बनना चाहता है | यह बदलाव सभी क्षेत्रों में प्रायः देखने को मिला है | मेरा जन्म निम्न परिवार में हुआ ,एक शास्त्री बना ,मेरे गुरुदेव परम कर्मनिष्ठ थे -शायद मेरे लिए भगवान थे | सबकुछ होते हुए वैरागी  स्वरूप में सदा अपने गुरुदेव को देखा -व्रत ,जप ,नियम ,तप स्वाध्याय ,हवन उसी रूप में करते देखा जो शास्त्र कहते हैं | एक शास्त्री होकर आज मैं वही धर्म का पालन करने का प्रयास करता -रहता हूँ --जो शास्त्र कहते हैं --स्वर्ण दान करना चाहिए --तो देने का हर संभव प्रयास करेंगें --तनिक भी अपनी मति का प्रयोग नहीं करेंगें --ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए दक्षिणा समयानुसार के हिसाब से देनी चाहिए --तो देंगें | यज्ञ कराने चाहिए ऐसे जिनसे अपना भी कल्याण हो एवं समस्त समाज का कल्याण हो --पर हमने पाया --विवाह संस्कार हो -दक्षिणा के लिए युद्ध होता है ,हवन हो ,यज्ञ हो ,पूजा हो पाठ हों --सबमें तोल -मोल होता है --परिणाम --उचित और अनुचित का व्यक्ति को बोध ही नहीं रहता है | हमने जीवन में अनुभव किया है -कुपात्र व्यक्ति मेरा सम्मान बहुत किया है ,दान बहुत दिया है --परन्तु हमारा मन सदा खिन्न रहा है --सुपात्र की तलाश में | हम अपने पाठक से एक ही निवेदन करना चाहते हैं --धर्म को आत्मसात करें बुद्धि +विवेक से तो सबको लाभ मिलेगा ,सनान भी वही अनुशरण करेगी | --आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


बुधवार, 18 दिसंबर 2024

ग्रहों के बल जानें -पढ़ें -भाग -62 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


ग्रहों के क्रमशः 6 बल माने गए हैं --1 स्थान बल ,--2 --कालबल ,---3 --दिग्बल ,---4 --नैसर्गिक बल ,---5 --चेष्टाबल ,--6 --दृग्बल | 

--1 --स्थान बल --जो ग्रह उच्च ,स्वग्रही ,मित्रग्रही अथवा मूल त्रिकोण  में स्थित होता है --उसे स्थान बली कहा जाता है | चंद्र और शुक्र सम राशि --वृष ,कर्क ,कन्या ,वृश्चिक ,मकर तथा मीन में तथा अन्य ग्रह सूर्य ,मंगल ,बुध ,गुरु ,शनि ,राहु एवं केतु  विषम राशि --मेष ,मिथुन ,सिंह ,तुला ,धनु तथा कुम्भ में स्थित होने पर स्थान बली होते हैं | 

----2 --कालबल ---जातक का जन्म रात्रि में हुआ हो ,तो चंद्र ,शनि और मंगल --ये तीनों ग्रह काल बली होते हैं और यदि जन्म दिन में हुआ हो ,तो सूर्य ,बुध एवं शुक्र कालबली होते हैं | गुरु सर्वकाल में बली होता है | वस्तुतः --बुध  को दिन और रात्रि दोनों में कालबली माना जाता है | 

---3 ---दिग्बल --जन्म कुण्डली में प्रथम भाव को पूर्व दिशा ,चतुर्थ भाव को उत्तर दिशा ,सप्तम भाव को पश्चिम दिशा  तथा दशम भाव को दक्षिण दिशा माना जाता है | -----बुध और गुरु प्रथम भाव -लग्न -में रहने पर ,चंद्र और शुक्र चतुर्थ भाव में रहने पर तथा सूर्य और मंगल दशम भाव  स्थित रहने पर दिग्बली होते हैं | 

---4 --नैसर्गिक बली --शनि ,मंगल ,बुध ,गुरु ,शुक्र ,चंद्र तथा सूर्य ये --उत्तरोत्तर एक दूसरे से अधिक बली होते हैं ,---अर्थात --शनि से मंगल अधिक बलवान है | मंगल से बुध अधिक बलवान है | बुध से गुरु अधिक बलवान है | गुरु से शुक्र अधिक बलवान है | शुक्र से चंद्र अधिक बलवान है तथा सूर्य से चंद्र अधिक बलवान है | ---इसी क्रम के अनुसार सूर्य से चंद्र कम बली होता है और चंद्र से शुक्र कम बली होता है -----आगे इसी प्रकार शनि तक समझ लेना चाहिए | 

---5 --चेष्टाबली --मकर राशि से मिथुन राशि तक किसी भी राशि में रहने से सूर्य तथा चंद्र चेष्टाबली होते हैं | तथा मंगल ,बुध ,गुरु ,शुक्र तथा शनि --ये चंद्र के साथ रहने से चेष्टाबली होते हैं | 

----6 --दृग्बल-----जिन दुष्ट ग्रहों के ऊपर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो ,वो उनकी शुभ दृष्टि के बल को पाकर दृग्बली हो जाते हैं | -----उदहारण के लिए --किसी कुण्डली में शनि सप्तमभाव में बैठा है और गुरु एकादश भाव में बैठा है --तो गुरु की शनि के ऊपर पूर्ण दृष्टि पड़ेगी --क्योंकि गुरु जिस भाव में बैठा होता है ,उस भाव से पाँचवे ,सातवें तथा नवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है | ऐसी स्थिति में दुष्ट ग्रह शनि को शुभ ग्रह शनि का दृग्बल प्राप्त होगा | -------नोट --ध्यान दें ---उपर्युक्त छहो  बलों में किसी भी प्रकार के बल को प्राप्त बलवान ग्रह अपने स्वभाव के अनुसार जिस भाव में बैठा होता है ,उस भाव का फल जातक को देता है | -----अगले भाग में ग्रहों की दृष्टि पर विवेचन करेंगें --- --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com    


रविवार, 15 दिसंबर 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -104 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 आज मैं अपनी आत्मकथा में शनि की महादशा का प्रभाव पर कुछ कहना चाहता हूँ | --अस्तु -हर व्यक्ति की कुण्डली समस्त बातों को दर्शाती है --मेरी कुण्डली भी जीवन +मृत्यु को दर्शाती है | मेरी जन्मकुण्डली के अनुसार 2014 से शनि की दशा प्रारम्भ हुई जो 2033 तक चलेगी | शनि मेरी कुण्डली में भाग्य के क्षेत्र में नीच  है अतः नीचता से मेरा भाग्योदय होगा --यह बात सौ प्रतिशत सही है | मुझे जीवन में बहुत कुछ मिला पर जिस योग्य था या हूँ उस अनुपात में नहीं मिला | पिता की जगह गैर व्यक्ति पिता की तरह स्नेह तो दिया ही पुत्र की तरह उठाया और बढ़ाया  भी | मुझे सहोदर मामा ने कुछ नहीं दिया --गैर व्यक्ति मामा बनकर आगे बढ़ाया | अपने जीजा ने कुछ नहीं दिया --गैर जीजा ने आगे बढ़ाया | अपनी माँ की  वात्सलयता या छाया नहीं मिली --सास से दोनों चीजें मिली | अपने सहोदर दीदी हो या अनुज इन दोनों ने मान नहीं बढ़ाया बल्कि गैर व्यक्ति कोई भाई का धर्म निभाया तो कोई दीदी का धर्म निभाया | --मेरा व्यक्तिगत स्वभाव रहा अगर किसी को प्रेम नहीं दिया तो दुःख देने का भी प्रयास नहीं किया | हमने सभी सगे -सम्बन्धियों से भले ही रिश्ते नाते नहीं रखे हों पर कुछ न कुछ दिया और दूर होकर जीने का प्रयास किया | मेरे पिता की कुण्डली में भी नीच का शनि संतान क्षेत्र में था --मेरा भाग्य और  पिता से  सम्बन्ध  बहुत ही गड़बड़ रहा | जबकि पिता और मेरा - दोनों  के स्वभाव चाहे समाज हो या व्यक्तिगत जीवन उत्तम और संतोषजनक रहा , पिता परोपकारी थे ,बलशाली थे ,कर्मठ थे ,धार्मिक थे ,सदा मस्त रहते थे -जो था बहुत था यही सोच थी --अपने कार्य में  लगे रहते थे |  ये तमाम गुण मुझमें भी थे पर --पिता अनपढ़ थे तो मैं विद्वान था ,पिता बहुत ही बलवान थे मैं अति निर्बल था | पिता सदा बल से मुझे जीतने का प्रयास करते थे और मैं सदा बुद्धि से समझाने का प्रयास करता था --पर न मैं पिता को समझा पाया न ही पिता मुझे जीत पाये --परिणाम यह हुआ दोनों के रास्ते अलग -अलग गए | पर न तो पिता मेरे बिना जी पाए और न ही पिता के बिना मैं जी पाया | पिता के पास सबकुछ था --केवल मैं नहीं था --और वो ईश्वर के समीप रहने लगे -जब भी मेरी याद आती थी तो मूर्छित हो  जाते थे --यह वेदना ऐसी थी -सांसे तो थी चैन नहीं था | ऐसी स्थिति में केवल मुझे अपने समीप चाहते थे --जो संभव नहीं था | मेरे साथ भी ऐसा ही था --सबकुछ था पर पिता नहीं थे तो अपने आप को अधूरा समझता था | ऐसा लगता था मेरी शान ,मेरी पहचान तो पिता से है --जब पिता नहीं तो संसार के तमाम वैभव किस काम के | मेरे पिता चल बसे -2018 में | पिता के जाने के बाद मैं भी मूर्छित हो गया | ऐसा लगा मेरी वजह से पिता चल बसे --धिक्कार है मुझे अब जीवन जीने और विलाप करने का मेरा कोई अधिकार नहीं है | यह बात न तो पतनी से कह सकता था न ही परजनों को -अंत में मैं भी प्रभु की शरण में रहने लगा | जीने की लालसा खत्म हो गयी -फिर न मेरे पास साज रहे न आवाज , कलम में लिखने की ताकत नहीं रही ,पिता के साथ मानों मेरा तेज समाप्त हो गया | जब मेरे साथ ऐसा होने लगा तो मुझे आभास हुआ मेरे पिता के साथ भी ऐसा ही होने लगा होगा --वो भी माँ से या  परिजनों से यह बात नहीं कह पाये होंगें | मेरे पिता सबके साथ होते हुए भी अकेलापन महसूस करते थे इसलिए सदा एकान्त में रहते थे | मैं भी सबके साथ रहता हुआ भी सदा अकेला अपने को पाया है | --मुझे कईबार अहसास हुआ मेरे जीवन का अनमोल रतन मेरे पिता थे  -जिनके बिना मैं शून्य हूँ - तो मेरे पिता को भी यही अहसास हुआ होगा | --वैसे मैं ज्योतिषी इसलिए बना था -क्योंकि मेरा अनुज सर्प दंश से मरा था --यह बात मुझे इतनी लगी कि अनन्त ग्रन्थों में यही मृत्यु योग को ढूंढने में जीवन निकल गया --जब होश आया तब पता चला कुण्डली में तो बहुत सी बातें होती हैं जिनपर हमारी नजर नहीं पड़ी | अब एक सक्षम ज्योतिषी होने पर मेरा ध्येय यह है --कोई भी व्यक्ति अपनी कुण्डली का सही आकलन करें और उस पथ पर चले --जिससे उसको सही दिशा मिले ,सही प्रकाश मिले --वो भटके नहीं वो अनन्त बाधाओं का सामना -यत्न और प्रयत्न से करें | -आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



सोमवार, 9 दिसंबर 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -103 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 दोस्तों -आत्मकथा में आज मैं उन बातों पर प्रकाश डालना चाहता हूँ --जो हमने अनुभव किये हैं | मेरी सही शिक्षा गुरुकुल में हुई थी जो अधूरी रह गयी थी गरीबी के कारण या ग्रहों के प्रभाव के कारण -यह समय था -1983 से 1988 तक | गुरुकुल में मेरे आराध्य सरकार कहाँ से आये वो कौन थे यह कथा अज्ञात थी | मेरे सरकार परम कर्मनिष्ठ थे ,हमने जो ग्रन्थ पढ़ें हैं या उनके सत्संग से जो हमने अनुभव किये हैं उनके अनुसार मेरे लिए ईस्वर सदृश्य थे | आज जब मैं 54 वर्ष का हो चूका हूँ तो मुझे जो अनुभव जीविनि लिखते समय हो रहा है --वो व्यक्त करना चाहता हूँ | --अस्तु --गुरुकुल में वो बालक पढ़ें जिनके माता पिता नहीं थे या जिनके अंग कुछ नहीं थे या वो अष्टावक्र थे या वो चोर थे या वो संस्कार हीन थे या फिर जिनके माता पिता पालने में असमर्थ थे ---ऐसी स्थिति में मैं  -दारिद्र तो था ही मूर्ख परिवार से था | हमने किसी ऐसे परिवार के बच्चों को आते नहीं देखा जो उत्तम हों --पर आश्रम में जो संरक्षक  थे  वो भी ऐसे ही थे | जिनके द्वारा आश्रम की व्यवस्था चलती थी --वो भी वज्र मूर्ख थे --पर सरकार के प्रभाव से वो संस्कारी थे किन्तु उनकी जीवनी उत्तम नहीं थी -पतनी + बेटियों को छोड़कर सरकार के पास रहते थे निःस्वार्थ --उनका नाम कला था --वास्तव में तत्काल के सभी मूर्ख छात्रों को नया जीवन देने में शाम ,दाम ,भेद की ऐसी कला थी कालानन्द जी में जिनकी  बदौलत कई छात्र उच्च पद पर आसीन हुए तो कई छात्र भागवतकार हुए | मेरे हिसाब से सभी उदण्ड छात्रों के द्वारा कई छात्र महान हुए | उस आश्रम में ऐसा लग रहा था मानों चारों ओर धर्मध्वज फहरा रहा था | आश्रम के चारों ओर सरकार की कीर्ति व्याप्त थी --बहुत दूर देश से लोग  अपने -अपने असहाय स्थिति के कारण या बच्चों से दुःखी होने के कारण अभिभावक सरकार के पास बच्चों को लेकर आते थे बदले में एक निपुण व्यक्ति बनकर वही छात्र सरकार का धर्मध्वज देश -विदेशों में फहराते थे | आदर्श भारतीय संस्कृति और संस्कारों को बढ़ाते थे | उसमें एक मैं भी ऐसा ही छात्र था -पर आज जहाँ भी हूँ वो केवल उस आश्रम की देन  है ,आज जो मुझमें कुछ खूबियां हैं वो सरकार की ही वास्तव में देन हैं | हमारे सरकार उस आश्रम में निर्भय और निर्विकार होकर तप में लगे रहते थे | भारतीय जो सनातन संस्कृति है --उसकी व्यापकता समझना बड़ा ही कठिन है | भारतीय सनातन संस्कृति में --भले ही वो चोर रहा हो ,उदण्ड रहा हो ,संस्कार हीन रहा हो किन्तु --धर्मध्वज पताका का मान बढ़ाने में बहुत बड़ा ह्रदय से योगदान दिया है | मुझे लगता है --विश्व का कोई भी कोना हो --सनातन संस्कृति ह्रदय से सभी को अपना मानती है और  बढ़ाती  हैं | सनातन संस्कृति पर आंख बंद करके भी भरोसा किया जा सकता है | अतः अपने ज्योतिष और कर्मकाण्ड के पाठक गणों ने निवेदन करता हूँ --किसी सनातनी व्यक्ति से भले ही भूल हो जाय -पर एक न एक दिन अपने आपको वो अवश्य सुधारता है | -आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...