ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 22 जुलाई 2024

शिव की उपासना अनेक विधयों से करें -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "भगवान शिव अजातशत्रु हैं । शिव की उपासना कोई भी अपनी -अपनी सामर्थ के अनुसार कर सकता है । जल है तो जल से ही खुश करें ,धन है तो धन से ही प्रसन्न करें ,अन्न है तो अन्न से ही खुश करें ,मन है तो मन से ही भोले खुश हो सकते हैं ,तन है तो तन से भी खुश होते हैं । अगर कुपात्र हैं तो भी मोह सकते हैं ----शिवम भूत्वा शिवम जपेत् --केवल आपको एक क्षण के लिए शिव के लिए होना होगा फिर कृपा अवश्य होगी भोले की । --------कलौ चण्डी महेस्वरः ---कलियुग में या तो माँ भवानी की शरण से कल्याण होगा या भवानी पत्ती शिव की शरण से -----शिव या माँ भवानी की पूजन के लिए कुछ विशेष पर्व हैं -जिस पर्व पर हम क्षणिक त्याग या क्षणिक समर्पण से समस्त कामनाओं को प् सकते हैं । सबसे बड़ी बात इनके दरबार में पात्र या कुपात्र कोई भी आ सकता है और यदि दरबार में न आ पाये तो केवल दर्शन से भी विशेष फल प्राप्त कर सकता है । जितनी भी पूजाएं हैं वो समस्त पूजा नियम एवं पात्रता के आधार पर है किन्तु शिवरात्रि इन नियमों से पड़े है -तभी तो लाखों भक्त शिवरात्रि पर या नवरात्रि पर उमर पड़ते हैं । -----------गेहूं से बने पकवान से शिव की पूजा करने से वंश की उन्नति {वृद्धि }होती है । -----मूंग से पूजा करने पर सुख की प्राप्ति होती है । कंगनी {धान }-से शिव पूजन करने से -धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है । -- सबसे उत्तम पूजन जलधारा होती है और इससे शांति मिलती है । --अगर मन न लगता हो किसी काम में ,दुःख की विशेषता हो घर में ,क्लेश विशेष हो घर में ,तो दूध से अभिषेक शिव का करने से शांति मिलती है । --सहस्रनाम,के पाठ शिव समक्ष घृत {घी }से करने से संतान सुख मिलता है । -----सुगन्धित तेल से अभिषेक शिव करने से भोग सुख मिलता है । ---शहद {मधु } से अभिषेक शिव का करने पर टीवी -राजयक्ष्मा रोग से मुक्ति मिलती है । ----गन्ने का रास से अभिषेक शिव का करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । -----गंगाजल से शिव का अभिषेक करने से भोग +मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है । महामृत्युंजय के जाप शिव समक्ष करने पर आयु -आरोग्य की प्राप्ति होती है । आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -

khagolshastri.blogspot.com

रविवार, 14 जुलाई 2024

मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -99 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


हर व्यक्ति का जीवन कैसा रहेगा यह पृथ्वी पर आगमन से लेकर 18 वर्ष उम्र तक निर्धारित हो जाता है | यह बात जन्मपत्रिका में निर्धारित रहती है | भले ही किसी कारण बस सही मार्गदर्शन समयानुसार न हो किन्तु ज्यों -ज्यों उम्र बढ़ती जाती है -उसी प्रारूप में व्यक्ति ढलता जाता है --इसे वह ईस्वर की कृपा मानता है या प्रारब्ध की घटना | ---अस्तु --मुझे अपने जीवन की सही यादें -10 वर्ष के बाद की हैं --जिन्हें सच  मानता हूँ | मेरे पिता अनपढ़ थे -किन्तु हिम्मत के बहुत ही बलवान थे | तार्कित बुद्धि से सबको पराजित कर देते थे | उत्तम दर्जे का रहन -सहन था जबकि जेब में कुछ नहीं होता था | मेरा राजयोग दस वर्ष तक था तभी तक जो मिला सो मिला | मेरा दारिद्र योग शुरू हुआ तो लबे समय समय तक पतन का योग चलता रहा | किसी तरह गुजर -बसर करते रहे | घर में भले ही दरिद्र योग चल रहा था --मेरा घर से गमन दस वर्ष में ही हो गया | शिक्षा -के  साथ धन का उपार्जन बाल्यकाल 10 वर्ष से ही मेरा शुरू हो गया | मेरी शिक्षा दीक्षा में पिताजी का कोई योगदान नहीं रहा --फिर भी मेरा सदा समर्पण भाव घर के प्रति रहा | अपने घर में केवल मैं ही सशक्त था -चाहे शिक्षा हो या सोच --पर हमारी कभी चलती नहीं थी | अपने सामने पिता को कई ऐसे फैसले लेते देखा जिसका परिणाम पतन की और ले गया | दीदी की शादी की जीजा को पढ़ाने का बोझ उठा लिया --जबकि हमारे घर में दरिद्र योग चल रहा था --हमने युद्ध किया तब जीजा अपने घर से पढ़ने लगे पर फ्री की खाने की सदा आदत पड़ गयी --जो आजतक नहीं बदली | हमारा एक बगीचा था -जिसे एक ताऊ को दिया बदले में घर के बगल की जमीन ली --किन्तु एकदिन ऐसा आया -वह जमीन भी लेली और बगीचा युद्ध का अखाडा बन गया | पिता के साथ सदा युद्ध होता रहा --और मैं देखता रहा  | मेरे पिता चाहते तो शारीरिक श्रम से धन का उपार्जन करते किन्तु --जीवन भर युद्ध करने का निर्णय लेते रहे ---एक दिन ऐसा आया  हम एक शास्त्री थे , मुझे शास्त्र की जगह --शस्त्र उठाने पड़े |  मुझे क्रम से सभी परिजनों का शत्रु बनना पड़ा | हमने माता पिता के होते हुए --मामा से शत्रुता करनी पड़ी --क्योंकि सक्षम और शिक्षित होते हुए मेरे घर को सही दिशा नहीं दी | मुझे दीदी +जीजा से शत्रुता करनी पड़ी --ये भी  सक्षम और शिक्षित थे  पर मेरे घर को सही दिशा नहीं दी | अंत में जिस अनुज को पुत्र की तरह मानते थे --माता पिता ने --उसे ही  मेरा शत्रु बना दिया --पर यह अशिक्षित था  और मैं शिक्षित --हम दोनों के बीच धन का ऐसा युद्ध शुरू हो गया  --जिसका समाधान मेरे पास नहीं था --और हमने पलायन करना बेहतर समझा  |  एक शास्त्री होने के नाते  माता पिता से अनन्त प्रकार के यज्ञ कराये --जिसका परिणाम बहुत जल्दी मिला --माता पिता धनाढ्य हुए  | फूस का घर महल में बदल गया | ब्याज का कारोबार लाखों में चलने लगा | मकान से किराये आने लगे  | सभी शत्रु परिजन माता पिता के सान्निध्य में रहने लगे | एक तरफ मैं था --दूसरी तरफ -दीदी -जीजा ,माता पिता ,अनुज ,मां -मामी --इनके साथ -साथ सभी परिजन  | फिर क्या था --जन्मदाता  होने के बाद भी ऐसा लगता था --मानों माँ की कोख से मैं पैदा ही नहीं हुआ | मेरे सामने एक जहर खाने का रास्ता था ---इससे मेरे बच्चे अनाथ हो जाते | दूसरा पलायन का -- सबकुछ छोड़कर किसी शहर  में रहने लगते | यह सभी चाहते भी थे  |  पर यहाँ एक समस्या थी --पतनी के गहने बेचकर पिता का कर्ज चुकाया था | सारी कमाई पिता को दे चूका था , भवन निर्माण में मेरे भी पैसे लगे थे  | पलायन मेरी पतनी को मंजूर नहीं था | इसका परिणाम यह हुआ --माता पिता और अनुज के मुँह से अपशब्द तो बहुत छोटी बात थी ---पतनी और बच्चों को बहुत ही प्रताड़ित  करते थे  | हमने शत्रु संहार के लिए बहुत यज्ञ यजमानों के लिए कराये जीवन में --किन्तु अपने परिजन के लिए ऐसा  सोच भी नहीं सकता था  |  क्योंकि भले ही परिजन मुझे अपमानित कर रहे थे किन्तु विवेक मेरा सदा जागृत रहा  | ऐसी स्थिति में -मुझे कईबार बहुत ही भयानक दृश्य देखने को मिलता था | -पिता और पतनी का युद्ध ,माँ और पतनी का युद्ध ,अनुज और पतनी का युद्ध ,मामा और पतनी का युद्ध ,दीदी और पतनी का युद्ध  ---यह दृश्य  मुझे बारबार कायरता को दर्शाता था | कईबार मैं जीते जी मरा ----पर पाषाण की तरह जीता रहा | मुझे नहीं चाहिए ऐसा युद्ध जो अपनों से करना पड़े ---पर होनी बलवान होती है |  आज मैं जहाँ खड़ा हूँ --वो भिक्षा में मिला हुआ जीवन है | आज मेरे पास धन भी है ,भवन भी है ,मान है सम्मान है --पर यह उपकार भार्या का है | भले ही मैं कहूं ये है वो है --पर मेरी आत्मा सदा धिक्कारती रहती है |  आगे की चर्चा अगले भाग में करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


गुरुवार, 11 जुलाई 2024

कुण्डली के विशेष भावों को -जानें -ज्योतिष कक्षा -पाठ 55 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


 जन्मकुण्डली के द्वादश भावों को जाना ---अब त्रिकोण ,केन्द्र ,पणकर,आपोक्लिम तथा मारक किन -किन भावों को कहा जाता है ? इसे नीचे लिखें अनुसार समझें ---

---1 ---त्रिकोण ---पंचम तथा नवम भावों को त्रिकोण कहते हैं | 

--2 ---केन्द्र -प्रथम ,चतुर्थ ,सप्तम तथा दशम --इन भावों को केन्द्र कहते हैं | 

--3 ---पणकर ---द्वितीय ,पंचम ,अष्टम तथा एकादश -इन चारों भावों को पणकर कहते हैं | 

--4 --आपोक्लिम ---तृतीय ,षष्ठ ,नवम तथा द्वादश --इन भावों को आपकलिम कहते हैं | 

---5 ---मारक ---द्वितीय तथा सप्तम भाव को "मारक " कहा जाता है | 

--ध्यान दें ---कुछ विद्वानों के मतानुसार द्वितीय तथा दशम भाव को पणकर एवं तृतीय तथा एकादश भाव को अपोक्लिम माना जाता है | कुछ अन्य विद्वान षष्ठ तथा अष्टम भाव को पणकर तथा द्वितीय एवं द्वादश भाव को अपोक्लिम मानते हैं | 

----अगले भाग में मूल त्रिकोण पर परिचर्चा करेंगें ------- ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 1 जुलाई 2024

कुण्डली के भावों को जानें -ज्योतिष कक्षा -पाठ 54 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


पाठकगण --वैसे ज्योतिष का फलादेश विशाल सागर की भांति है फिर भी कुछ उदहारण देना चाहता हूँ किस भाव से क्या -क्या जानकारी करनी चाहिए ----

----प्रथमभाव --सूर्य ,शरीर ,जाति ,विवेक ,शील ,आकृति ,मस्तिष्क ,सुख -दुःख ,आयु  | 

---द्वितीयभाव ----धन ,कुटुंब ,रत्न ,बंधन   | 

--तृतीय भाव ----पराक्रम ,सहोदर ,धैर्य   | 

---चतुर्थ भाव ---चन्द्र ,बुध ,माता ,सुख ,भूमि ,गृह ,सम्पत्ति ,छल ,उदारता ,दया ,चतुष्पद   | 

--पंचम भाव --गुरु ,विद्या ,बुद्धि ,संतान ,मामा   | 

--षष्ठ भाव ---शनि ,मंगल ,शत्रु ,रोग ,चिंता ,संदेह ,पीड़ा  | 

--सप्तम भाव -- भार्या ,प्रेम ,वैवाहिक जीवन  | 

--अष्टम भाव ---शनि ,मृत्यु ,आयु ,व्याधि ,संकट ,ऋण ,चिंता  ,पुरातत्व  | 

--नवमभाव ---सूर्य ,गुरु ,भाग्य ,धर्म ,विद्या ,प्रवास ,तीर्थ -यात्रा ,दान  | 

---दशम भाव --- सूर्य ,बुध ,गुरु ,शनि ,राज्य ,पिता ,नौकरी ,व्यवसाय ,मान -प्रतिष्ठा | 

---एकादश भाव --गुरु ,लाभ ,आय ,संपत्ति ,ऐश्वर्य , वाहन  | 

--द्वादश भाव --शनि ,व्यय ,हानि ,दंड ,रोग ,व्यसन  | ---ये सब कुण्डली  के भावों में स्थित समझें  | 

---ध्यान दें --अगले भाग में  त्रिकोण ,केन्द्र ,पणकर,आपोक्लिम  तथा मारक किन -किन  भावों को कहा जाता है  ? इसे लिखकर समझाने का प्रयास करेंगें  |  ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com



खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...