" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -64-ज्योतिषी झा मेरठ
जीवन क्या है निर्झर है मस्ती ही इसका पानी है --श्री निरालाजी की यह उक्ति कभी पढ़ी थी पर जीवन जीना इतना सहज भी नहीं होता है | मैं अपने जीवन में कर्मक्षेत्र और पिता से सम्बन्ध के बारे में इतना कह सकता हूँ -सौ प्रतिशत निभाने का प्रयास किया है | क्योंकि मेरी कुण्डली में उच्च का चन्द्रमा कर्मक्षेत्र में है एवं सूर्यदेव स्वराशि के लग्न में हैं| एक शास्त्री होने के नाते धर्म सम्मत जो कार्य मुझे करने चाहिए वही किया है --इस कारण से बड़े -बड़े यजमानों को खो दिए हैं --क्योंकि यजमान बनाते तो मन्दिर हैं ,कराते तो पूजा पाठ ही हैं ,मानते तो ज्योतिष को ही हैं पर आचरण ,व्यवहार में बहुत अन्तर होता है | आज के समय कोई भी व्यक्ति अपने स्वार्थ सिद्ध हेतु चाहे भूदेव हों ,भगवान हों कोई यह कह दे ये चढाने से या ये खिलाने से ये लाभ होंगें --तो बिना देर किये ,बिना बुद्धि का उपयोग किये झट कर देगा --इससे किसी की हानि हो कोई मतलब नहीं --ऐसी स्थिति में भी धर्म को निभाने की भरसक कोशिश की है --इसका परिणाम यह हुआ धन की दुनिया में जहाँ हमें होना चाहिए --हम वहां नहीं पहुंच पाए --मुझे तो इस बात का गर्व है --पर हम अकेले नहीं हैं ,हमारे भी परिजन हैं --इसकी वजह से उन्हें दुःख सहने पड़ें --चाहे पुत्री हो या पतनी | --वैसे सम्बन्ध की बात करें तो सभी हैं ,ससुराल पक्ष में भले ही ससुर -साले शीघ्र चल बसे --पर अकेली सास ने समस्त जिम्मेदारी को निभाती रही हैं --कभी भी मुझे वीरान ससुराल महसूस नहीं हुआ | मेरा एक अनुज जब हम 18 वर्ष के थे तो चल बसा --यह नाता ऐसा रहा --ज्योतिष की खोज इस कारण से की ,आज जहाँ हूँ मेरी ज्योतिष प्रेरणा के श्रोत यह अनुज ही रहा -अतः मेरे ह्रदय पटल पर निरन्तर रहता है| हमने कभी भी अपनी कुण्डली पर उतना मंथन नहीं किया जितना अनुज की कुण्डली के लिए किया | दूसरा जो सर्वोतर सम्बन्ध ह्रदय पटल पर रहा वो पिता रहे --यह सम्बन्ध ऐसा था दिखने में कहीं पर या कहीं से महसूस नहीं किया जा सकता था --पर पिता मेरे लिए सबकुछ थे ,मेरे पिता को तनिक भी तकलीफ न हो ,मेरे पिता की शान कैसे बढ़े ,उनकी उन्नति कैसे हो यह प्रयास जीवन भर रहा --इसका एक उदहारण देना चाहता हूँ --जब पिता दिवंगत हुए तो मातृभूमि पर अनुज था ,उसके परिजन मेरठ में थे ,हम भी मेरठ में थे --दाह संस्कार की बात आयी तो मेरे बिना संभव नहीं था --पर हमने वही धर्म निभाया --जिससे पिता की आत्मा को शान्ति मिलती | सभी परिजन बोले तुम्हारे बिना दाहसंस्कार संभव नहीं है ----हमने कहा एक भाई दाहसंस्कार करें --दूसरा भाई जो मैं बहुत दूर था -अनुज के परिजनों को एवं अपने परिवार को लेकर घर देर से पहंचा ,जबकि हम दोनों भाई की शत्रुता सदियों से थी ,आजतक मुझे अपने अनुज का घर का पता नहीं है ,अनुज का नंबर मेरे पास नहीं है --फिर भी मैं वही धर्म निभाया जो शास्त्र सम्मत थे | आज मैं अगर शिक्षाविद हूँ तो पिता की देने है ,वो मेरे पिता ही थे अपने हृदय पर पथ्थर रखकर आश्रम में इसलिए दे आये --किसी तरह से मैं शिक्षाविद बनू ,मेरे पिता गरीब थे चाहते तो मजदूरी कराते पर बोले धन नहीं मेरा पुत्र विद्वान हो ,मेरठ लाने वाले व्यक्ति भी मेरे पिता के अनुयायी थे ---इतना पिता का मुझपर स्नेह था --पर मेरी कुण्डली में शुक्र कर्मेश है जो धन के क्षेत्र में नीच का है ,पिता की कुण्डली में शनि की दृष्ट्रि धन के क्षेत्र में थी -और भी बहुत से कारण थे --यद्पि सफलता मुझे पिता के सहयोग से नहीं मिली ,यद्पि इन तमाम बातों को ज्योतिष के माध्यम से जब समझ में आयी तबतक पिता भी चल बसे थे | हम पिता पुत्र जब एकत्र होते थे तो बहुत युद्ध होता था --पर मेरे बिना पिता अधूरे थे पिता के बिना मैं अधूरा था | पिताने मेरे जीवन को नरक भी बना दिया --क्योंकि वो मुझे अपने में समाना चाहते थे --मैं उन्हें अपने जैसा बनाना चाहता था -मेरे अपने बच्चे थे जिनको देखकर मुझे चलना था ,पिता के अपने परिजन थे जो मुझे लूटते थे | इन तमाम बातों के बावयुद भी पिता को मैं खोना नहीं चाहता था --उनका जाने का गम आज भी है और आजीवन रहेगा | मेरे जीवन में ये पिता रूपी पाश सदा रहती है---चाहकर भी हटती नहीं है | --अब आगे 2019 की चर्चा अगले भाग में करूँगा | आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-
जीवन क्या है निर्झर है मस्ती ही इसका पानी है --श्री निरालाजी की यह उक्ति कभी पढ़ी थी पर जीवन जीना इतना सहज भी नहीं होता है | मैं अपने जीवन में कर्मक्षेत्र और पिता से सम्बन्ध के बारे में इतना कह सकता हूँ -सौ प्रतिशत निभाने का प्रयास किया है | क्योंकि मेरी कुण्डली में उच्च का चन्द्रमा कर्मक्षेत्र में है एवं सूर्यदेव स्वराशि के लग्न में हैं| एक शास्त्री होने के नाते धर्म सम्मत जो कार्य मुझे करने चाहिए वही किया है --इस कारण से बड़े -बड़े यजमानों को खो दिए हैं --क्योंकि यजमान बनाते तो मन्दिर हैं ,कराते तो पूजा पाठ ही हैं ,मानते तो ज्योतिष को ही हैं पर आचरण ,व्यवहार में बहुत अन्तर होता है | आज के समय कोई भी व्यक्ति अपने स्वार्थ सिद्ध हेतु चाहे भूदेव हों ,भगवान हों कोई यह कह दे ये चढाने से या ये खिलाने से ये लाभ होंगें --तो बिना देर किये ,बिना बुद्धि का उपयोग किये झट कर देगा --इससे किसी की हानि हो कोई मतलब नहीं --ऐसी स्थिति में भी धर्म को निभाने की भरसक कोशिश की है --इसका परिणाम यह हुआ धन की दुनिया में जहाँ हमें होना चाहिए --हम वहां नहीं पहुंच पाए --मुझे तो इस बात का गर्व है --पर हम अकेले नहीं हैं ,हमारे भी परिजन हैं --इसकी वजह से उन्हें दुःख सहने पड़ें --चाहे पुत्री हो या पतनी | --वैसे सम्बन्ध की बात करें तो सभी हैं ,ससुराल पक्ष में भले ही ससुर -साले शीघ्र चल बसे --पर अकेली सास ने समस्त जिम्मेदारी को निभाती रही हैं --कभी भी मुझे वीरान ससुराल महसूस नहीं हुआ | मेरा एक अनुज जब हम 18 वर्ष के थे तो चल बसा --यह नाता ऐसा रहा --ज्योतिष की खोज इस कारण से की ,आज जहाँ हूँ मेरी ज्योतिष प्रेरणा के श्रोत यह अनुज ही रहा -अतः मेरे ह्रदय पटल पर निरन्तर रहता है| हमने कभी भी अपनी कुण्डली पर उतना मंथन नहीं किया जितना अनुज की कुण्डली के लिए किया | दूसरा जो सर्वोतर सम्बन्ध ह्रदय पटल पर रहा वो पिता रहे --यह सम्बन्ध ऐसा था दिखने में कहीं पर या कहीं से महसूस नहीं किया जा सकता था --पर पिता मेरे लिए सबकुछ थे ,मेरे पिता को तनिक भी तकलीफ न हो ,मेरे पिता की शान कैसे बढ़े ,उनकी उन्नति कैसे हो यह प्रयास जीवन भर रहा --इसका एक उदहारण देना चाहता हूँ --जब पिता दिवंगत हुए तो मातृभूमि पर अनुज था ,उसके परिजन मेरठ में थे ,हम भी मेरठ में थे --दाह संस्कार की बात आयी तो मेरे बिना संभव नहीं था --पर हमने वही धर्म निभाया --जिससे पिता की आत्मा को शान्ति मिलती | सभी परिजन बोले तुम्हारे बिना दाहसंस्कार संभव नहीं है ----हमने कहा एक भाई दाहसंस्कार करें --दूसरा भाई जो मैं बहुत दूर था -अनुज के परिजनों को एवं अपने परिवार को लेकर घर देर से पहंचा ,जबकि हम दोनों भाई की शत्रुता सदियों से थी ,आजतक मुझे अपने अनुज का घर का पता नहीं है ,अनुज का नंबर मेरे पास नहीं है --फिर भी मैं वही धर्म निभाया जो शास्त्र सम्मत थे | आज मैं अगर शिक्षाविद हूँ तो पिता की देने है ,वो मेरे पिता ही थे अपने हृदय पर पथ्थर रखकर आश्रम में इसलिए दे आये --किसी तरह से मैं शिक्षाविद बनू ,मेरे पिता गरीब थे चाहते तो मजदूरी कराते पर बोले धन नहीं मेरा पुत्र विद्वान हो ,मेरठ लाने वाले व्यक्ति भी मेरे पिता के अनुयायी थे ---इतना पिता का मुझपर स्नेह था --पर मेरी कुण्डली में शुक्र कर्मेश है जो धन के क्षेत्र में नीच का है ,पिता की कुण्डली में शनि की दृष्ट्रि धन के क्षेत्र में थी -और भी बहुत से कारण थे --यद्पि सफलता मुझे पिता के सहयोग से नहीं मिली ,यद्पि इन तमाम बातों को ज्योतिष के माध्यम से जब समझ में आयी तबतक पिता भी चल बसे थे | हम पिता पुत्र जब एकत्र होते थे तो बहुत युद्ध होता था --पर मेरे बिना पिता अधूरे थे पिता के बिना मैं अधूरा था | पिताने मेरे जीवन को नरक भी बना दिया --क्योंकि वो मुझे अपने में समाना चाहते थे --मैं उन्हें अपने जैसा बनाना चाहता था -मेरे अपने बच्चे थे जिनको देखकर मुझे चलना था ,पिता के अपने परिजन थे जो मुझे लूटते थे | इन तमाम बातों के बावयुद भी पिता को मैं खोना नहीं चाहता था --उनका जाने का गम आज भी है और आजीवन रहेगा | मेरे जीवन में ये पिता रूपी पाश सदा रहती है---चाहकर भी हटती नहीं है | --अब आगे 2019 की चर्चा अगले भाग में करूँगा | आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

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