ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 30 नवंबर 2024

ग्रहों का पद और फल जानें -पढ़ें -भाग -61 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


भचक्र में स्थित ग्रहों को नामों के साथ -साथ पदों से भी विभूषित किया गया है और प्रत्येक ग्रह को उसके पद के आधार पर जाना जाता है और फल निकालते समय उस पद पर भी विचार किया जाता है | 

----ग्रहों के पद निम्न हैं -----

---1 ----सूर्य और चंद्र को राजा | 

----2 --बुध को युवराज  | 

---3 ---मंगल  को सेनापति   | 

---4 --शुक्र और बुध को मंत्री   | 

--शनि को सेवक  | 

---नोट ---जिस व्यक्ति पर जिस ग्रह का जितना अधिक प्रभाव होता है ,उसे वो अपने ही समान बनाने का प्रयास करता है | -----अगले भाग में ग्रहों के बल पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगें --- --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com    


गुरुवार, 28 नवंबर 2024

बलाबल ग्रहों का --जानें -पढ़ें -भाग -60 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


बलाबल ग्रहों के -में आपने बुध ग्रह तक की जानकारी कर ली -पूर्व भाग में --आगे --

--गुरु --यह धनु एवं मीन राशि का स्वामी है ,अतः यदि गुरु धनु अथवा मीन राशि में स्थित हो ,तो उसे स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्री कहा जायेगा | किन्तु धनु राशि के 1 से 13 अंश तक गुरु का मूल त्रिकोण होता है और उसके बाद 14 से 30 अंश तक स्वक्षेत्र है | कर्क राशि के 5 अंश तक गुरु उच्च का तथा मकर राशि के 5 अंश तक नीच का होता है | 

---शुक्र --यह वृष तथा तुला राशि का स्वामी है ,अतः यदि शुक्र वृष अथवा तुला राशि में स्थित हो ,तो उसे स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्री कहा जायेगा ,किन्तु तुला राशि के 1 से 10 अंश तक  उसका स्वक्षेत्र है | मीन राशि के 27 अंश तक गुरु उच्च का तथा कन्या राशि के 27 अंश तक नीच का होता है | 

--शनि ---यह मकर तथा कुम्भ राशि का स्वामी है ,अतः यदि शनि मकर अथवा कुम्भ राशि  में स्थित हो ,तो उसे स्वग्रही या स्वक्षेत्री कहा जायेगा |  किन्तु कुम्भ राशि के 1 से 20 अंश तक शनि का मूल त्रिकोण होता है और उसके बाद 21 से 30 अंश तक स्वक्षेत्र है | तुला राशि के 20 अंश तक शनि उच्च का होता है | 

--राहु ---राहु को कन्या राशि का स्वामी माना गया है ,अतः यदि राहु कन्या राशि में स्थित हो तो उसे स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्री कहा जाता है | कुछ ज्योतिषशास्त्री मिथुन राशि के 00 अंश तक राहु उच्च का तथा धनु राशि के 00 अंश तक नीच का मानते हैं | इसके विपरीत कुछ अन्य विद्वानों के मत से वृष राशि में राहु उच्च तथा वृश्चिक राशि में नीच का होता है | कर्क राशि को राहु का मूल त्रिकोण माना जाता है | 

---केतु --यह मिथुन राशि का स्वामी माना जाता है ,अतः यदि केतु मिथुन राशि में स्थित हो ,तो उसे स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्री कहा जाता है | धनु राशि के 15 अंश तक नीच का होता है | इसके विपरीत कुछ् विद्वान वृश्चिक राशि में केतु उच्च तथा वृष राशि में नीच का मानते हैं | सिंह राशि को केतु का मूल त्रिकोण माना  जाता है | 

---अगले भाग में ग्रहों का पद और फल का जिक्र करेंगें ---     --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com                                    


रविवार, 24 नवंबर 2024

बलाबल ग्रहों का --जानें -पढ़ें -भाग -59 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


प्रत्येक ग्रह उच्च का होने पर अधिक बलवान होता है | तत्पश्चात यदि वो मूल त्रिकोण में हो ,तो अपनी राशि में रहने की अपेक्षा अधिक बली होता है | उसके बाद स्वक्षेत्री ग्रह बलवान होता है | 

---1 ---उच्च होने पर ,सर्वोच्चबली | 

--2 ---मूल त्रिकोण में रहने पर -उच्चबली  | 

---3 ---अपने घर  {नक्षत्र }  में रहने पर बली  | 

--4 ---नीच का होने पर निर्बल  | 

--नौ ग्रहों {नवग्रहों } के उच्च क्षेत्रीय ,मूल त्रिकोणस्थ तथा स्वग्रही होने के सम्बन्ध में इस प्रकार से विचार करना चाहिए --

--------सूर्य ----यह सिंह राशि का स्वामी है ,अतः यदि वो सिंह राशि स्थित हो ,तो उसे स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्रीय कहा जाता जायेगा | किन्तु यदि सिंह सूर्य राशि में स्थित हो ,तो सिंह राशि के 1 से 20 अंश तक उसका मूल त्रिकोण माना जाता है तथा -21  से 30 अंश तक स्वक्षेत्र कहा जाता है | मेष के --10 अंश तक सूर्य उच्च का तथा तुला के -10 अंश तक नीच का होता है | 

----चंद्र ---यह कर्क राशि का स्वामी है ,अतः यदि वो कर्क राशि में स्थित हो ,तो उसे स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्री कहा जायेगा | किन्तु यदि चन्द्रमा वृष राशि में स्थित हो ,तो वो वृष राशि के -3 अंश तक उच्च का तथा वृष राशि के -4 अंश से -30 अंश तक मूल त्रिकोण स्थित माना जाता है | वृश्चिक राशि के -3 अंश तक चंद्र नीच का होता है | 

---मंगल --यह मेष तथा वृश्चिक राशि का स्वामी है ,अतः यदि वो मेष अथवा वृश्चिक राशि में स्थित हो ,तो उसे स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्री कहा जायेगा | किन्तु मेष राशि के -1 से 18 अंश तक स्वक्षेत्र कहा जाता है | मकर के -28 अंश तक मंगल उच्च का तथा कर्क के -28 अंश तक नीच का होता है | 

---बुध ---यह कन्या तथा मिथुन राशि का स्वामी है ,अतः यदि बुध कन्या अथवा मिथुन राशि राशि में स्थित हो ,तो स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्री कहा जायेगा | किन्तु कन्या राशि - के -1 से 18 अंश तक बुध का मूल त्रिकोण तथा उससे आगे  19  से 30 अंश  तक स्वक्षेत्र माना जाता है | कन्या राशि के 15 अंश तक बुध उच्च का तथा मीन राशि के 15 अंश तक नीच का होता है | 

---इस प्रकार यदि बुध कन्या राशि में स्थित हो ,तो वो कन्या राशि के 1 से 15 अंश तक उच्च का और इसके साथ ही -1 से 19  अंश तक मूल त्रिकोण स्थित तथा 19 से 30 तक स्वक्षेत्री होता है | 

 ----ध्यान दें --अगले ग्रहों के बारे अगले भाग में लिखेंगें ---      --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


                                                    

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

ग्रहों की उच्च तथा नीच स्थिति -जानें -पढ़ें -भाग -58 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


जन्म -कुण्डली में जिस राशि के जितने अंश गत हो चुके हों ,उसके अनुसार विभिन्न ग्रह उच्च तथा नीच स्थिति को प्राप्त करते हैं | निम्न तालिका के द्वारा ग्रहों की स्थिति को ज्ञात किया जा सकता है | 

-------ग्रह ------------------ राशि ----------------------- अंश 

------सूर्य --------------------मेष -------------------------- 10 

------ चंद्र -------------------- वृष ------------------------- 3 

-------मंगल ------------------मकर -----------------------28 

-------बुध --------------------कन्या ----------------------15 

-------गुरु -------------------कर्क ----------------------5 

-------शुक्र ------------------मीन ------------------------ 27 

------ शनि ------------------तुला -------------------------20 

राहु तथा केतु छाया ग्रह हैं ,अतः ज्योतिष शास्त्री के अनेक ग्रंथों में इनकी उच्च तथा नीच स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है ,किन्तु कुछ विद्वानों के मत से मिथुन राशि  के 15 अंश पर राहु उच्च का माना जाता है | कुछ विद्वान वृष राशि में राहु को उच्च का मानते हैं इसी प्रकार अनेक ज्योतिष धनु राशि के 15 अंश पर केतु को उच्च का मानते हैं | 

---प्रत्येक ग्रह को जिस राशि के जितने अंशों पर उच्च का बताया गया है ,उससे सातवीं राशि के उतने अंशों पर वो नीच का होता है | ---इसे नीचे दी गई तालिका के द्वारा अच्छी तरह से समझा जा सकता है | 

-----ग्रह --------------------राशि --------------------अंश 

---सूर्य -----------------------तुला ---------------------10 

----चंद्र ------------------------वृश्चिक -----------------3 

---मंगल --------------------- कर्क ------------------28 

----बुध -----------------------मीन -------------------15 

-----गुरु ----------------------मकर -----------------5 

----शुक्र -----------------------कन्या ----------------27 

----शनि -----------------------मेष -----------------20 

---राहु -केतु  के बारे में  विद्वानों का मत यह है कि धनु के 15 अंश पर राहु नीच का होता है और कुछ ज्योतिषी के मतानुसार वृश्चिक राशि में राहु नीच का होता है | कुछ मिथुन राशि के 15 अंश पर केतु को नीच का और कुछ वृष राशि में केतु को नीच का मानते हैं | ग्रहों की उच्च तथा नीच स्थिति को अपने समझ लिया -अगले भाग में बलाबल ग्रहों का पर विचार रखेंगें --  --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


बुधवार, 20 नवंबर 2024

त्रिकोण ,केंद्र ,पणकर ,अपोकिलिम तथा मारक किन -किन भावों को कहा जाता है -पढ़ें -भाग -57


--1 ---त्रिकोण --पंचम तथा नवम भावों को त्रिकोण कहते हैं | 

--2 --केन्द्र --प्रथम ,चतुर्थ ,सप्तम ,दशम --इन भावों को केन्द्र कहते हैं | 

---3 --पणकर ----द्वितीय ,पंचम ,अष्टम ,तथा एकादश --इन चारों भावों को पणकर कहते हैं | 

--4 --आपोक्लिम --तृतीय ,षष्ठ ,नवम तथा द्वादश --इन भावों को अपोक्लिम कहते हैं | 

---5 --मारक --द्वितीय तथा सप्तम भाव को मारक कहा जाता है | 

नोट --कुछ विद्वानों के मतानुसार द्वितीय तथा दशम भाव को पणकर एवं तृतीय तथा एकादश भाव को अपोक्लिम माना जाता है | 

---6 ---मूल त्रिकोण --जन्म -कुण्डली के द्वादश भावों में विभिन्न राशियां अलग -अलग भावों में रहती हैं | निम्न रूप से जिस राशि के जितने अंश पर जो ग्रह हो उसे "मूल त्रिकोण " में स्थित समझना चाहिए | 

---सूर्य ---सिंह राशि में --1 से 20 अंश तक | 

--चन्द्र --वृष राशि में --4 से 30 अंश तक | 

--मंगल --मेष राशि में -1 से 18 अंश तक | 

--बुध ---कन्या राशि में --1 से 15 अंश तक | 

--गुरु --धनु राशि में --1 से 13 अंश तक 

| --शुक्र -तुला राशि में --1 से 20 अंश तक | 

--शनि --तुला राशि में --1 से 10 अंश तक | -----मूल त्रिकोण के ग्रहों की स्थिति को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुण्डली का सहारा लेना होगा साथ ही गुरु का सान्निध्य भी चाहिए | 

नोट ---राहु को कर्क राशि में मूल त्रिकोणगत माना जाता है | इसी के आधार पर ज्योतिष के विद्वान केतु को मकर राशि में मूल त्रिकोणगत मानते हैं | --अगले भाग में ग्रहों की उच्च तथा नीच स्थिति की जानकारी देंगें |  --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


जन्म-कुण्डली के द्वादश भावों की जानकारी पढ़ें --ज्योतिष कक्षा पाठ -56- पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


पाठकगण --किसी भी जन्म -कुण्डली के द्वादश भावों  के फलादेश करने हेतु - इन तमाम बातों को ठीक से समझें | 

--1 --प्रथम भाव -सूर्य ,शरीर ,जाति ,विवेक ,शील ,आकृति ,मस्तिष्क ,सुख -दुःख ,आयु | 

--2 --द्वितीय भाव --धन ,कुटुंब ,रत्न ,बंधन | 

--3 --तृतीय भाव --पराक्रम ,सहोदर ,धैर्य  | 

--4 --चतुर्थ भाव --चन्द्र ,बुध ,माता ,सुख ,भूमि ,गृह ,सम्पत्ति ,छल ,उदारता ,दया ,चतुष्पद | 

--5 --पंचम भाव --गुरु ,विद्या ,बुद्धि ,संतान ,मामा | 

--6 --षष्टम भाव --शनि ,मंगल ,शत्रु ,रोग ,चिंता ,संदेह ,पीड़ा | 

-7 --सप्तम भाव --शत्रुता ,रोग ,नाना का सुख ,आत्मबल ,मनोवृत्ति | 

--8 --अष्टम भाव --शनि ,मृत्यु ,आयु ,व्याधि ,संकट ,ऋण ,चिंता ,पुरातत्व | 

--9 --नवम भाव --सूर्य ,गुरु ,भाग्य ,धर्म ,विद्या ,प्रबास ,तीर्थ- यात्रा ,दान | 

--10 --दशम भाव --सूर्य ,बुध ,गुरु ,शनि ,राज्य ,पिता ,नौकरी ,व्यवसाय ,मान -प्रतिष्ठा | 

--11 --एकादश भाव --गुरु ,लाभ ,आय ,संपत्ति ,ऐस्वर्य ,वाहन | 

--12 ---द्वादश भाव --शनि ,व्यय ,हानि ,दंड ,रोग ,व्यसन | 

ये सब कुण्डली के भावों में स्थित समझें ------अगले भाग में त्रिकोण ,केंद्र ,पणकर ,अपोकिलिम तथा मारक किन -किन भावों को कहा जाता है --इसे बताने का प्रयास करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


मंगलवार, 19 नवंबर 2024

जन्म- कुण्डली के द्वादश भाव -ज्योतिष कक्षा पाठ -57- पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


 आपने कन्या राशि तक  जानकारी  कर ली ---आगे 

--7 -स्त्री --"जाया "--इसे केन्द्र तथा सप्तम भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा स्त्री ,मृत्यु ,कामेच्छा ,कामचिंता ,सहवास ,विवाह ,स्वास्थ जननेन्द्रिय ,अंग-विभाग ,व्यवसाय ,झगड़ा -झंझट तथा बवासीर आदि रोग के संबंध में  विचार  किया जाता है | 

--8 -आयु -इसे पणकर तथा अष्टम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक शनि है | इसके द्वारा आयु ,जीवन ,मृत्यु के कारण ,व्याधि ,मानसिक चिंताएं ,झूठ ,पुरात्तव ,समुद्र -यात्रा ,संकट ,लिंग ,योनि तथा अंडकोष के रोग आदि का विचार किया जाता है | 

--9 -धर्म ---इसे त्रिकोण तथा नवम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा तप ,शील ,धर्म ,विद्या ,प्रवास ,तीर्थ यात्रा ,दान ,मानसिक वृत्ति ,भग्योदय तथा पिता का सुख आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

--10 --कर्म --इसे केन्द्र तथा दशम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक बुध है | इसके द्वारा अधिकार ,ऐश्वर्य -भोग ,यश -प्राप्ति ,नेतृत्व ,प्रभुता ,मान -प्रतिष्ठा ,राज्य ,नौकरी ,व्यवसाय तथा पिता के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

----11 ---लाभ --इसे उपचय ,पणकर तथा एकादश भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा संपत्ति ,ऐस्वर्य ,मांगलिक कार्य , वाहन ,रत्न आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

--12 --व्यय --इसे द्वादश भाव कहा जाता है | इस भाव का कारक शनि है | इसके द्वारा दंड ,व्यय ,हानि ,व्यसन ,रोग ,दान तथा बाहरी सम्बन्ध आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

--प्रिय पाठकगण --किसी भी जन्म -कुण्डली  के भावों को  इन बातों के द्वारा समस्त व्यक्ति की जानकारी करी जा सकती है  | इन तमाम बातों को ठीक से समझने का प्रयास करेंगें --तो फलादेश करने में विशेष सहायता मिलेगी | 

--अगले भाग में किस भाव से क्या -क्या फलादेश करना चाहिए इस पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगें | ---भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 18 नवंबर 2024

जन्म- कुण्डली के द्वादश भाव -ज्योतिष कक्षा पाठ -56- पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


जन्म -कुण्डली  में  12 भावों के नाम इस प्रकार हैं -1 -तनु ,-2 -धन ,--3 -सहज ,--4 -सुहृद ,--5 -पुत्र ,--6 -रिपु ,--7 -स्त्री ,--8 --आयु ,--9 --धर्म ,--10 -कर्म ,--11 -लाभ ,--12 -व्यय | इन भावों के द्वारा किन -किन बातों का विचार किया जाता है --इसे इस प्रकार से समझना चाहिए --

---1 --तनु ---इसे प्रथम भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा स्वरूप ,जाति ,आयु ,विवेक ,शील ,मस्तिष्क ,चिन्ह ,दुःख -सुख तथा आकृति आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | इस भाव कारक सूर्य है | इसमें मिथुन ,कन्या ,तुला तथा कुम्भ आदि कोई राशि हो ,तो उसे बलवान माना जाता है | लग्नेश की स्थिति और बलाबल के अनुसार इस भाव से उन्नति -अवनति तथा कार्य -कुशलता का ज्ञान प्राप्त किया जाता है | 

--2 -धन ----इसे पणकर तथा द्वितीय भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा स्वर ,सौन्दर्य ,आंख ,नाक ,कान ,गायन ,प्रेम ,कुल ,मित्र ,सत्यवादिता ,सुखोपभोग ,बंधन ,क्रय -विक्रय ,स्वर्ण ,चांदी ,मणि ,रत्न आदि संचित पूंजी के संबंध में विचार किया जाता है | 

---3 --सहज --इसे आपोक्लिम तथा तृतीय भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक मंगल है | इसके द्वारा पराक्रम ,कर्म ,साहस ,धैर्य ,शौर्य ,आयुष्य ,सहोदर ,नौकर -चाकर , गायन ,क्षय ,श्वास ,कास ,दमा तथा योगाभ्यास  आदि का विचार किया जाता है | 

---4 --सुहृद -इसे केन्द्र तथा चतुर्थ भाव भी कहा जाता है | इसके द्वारा सुख ,गृह ,ग्राम ,मकान ,सम्पत्ति ,बाग -बगीचा ,चतुष्पद ,माता -पिता का सुख अन्तः करण की स्थिति ,दया ,उदारता ,छल ,कपट ,निधि ,यकृत तथा पेटादि रोगों के संबन्ध में विचार किया जाता है | इस भाव का कारक चंद्र है | इस स्थान को विशेषकर माता का स्थान माना जाता है | ---5 --पुत्र --इसे पणकर ,त्रिकोण तथा पंचम भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक गुरु है | इसके द्वारा बुद्धि ,विद्या ,विनय ,नीति ,देवभक्ति ,संतान ,प्रबंध -व्यवस्था ,मामा का सुख ,धन मिलने के उपाय ,अनायास बहुत से धन  प्राप्ति ,नौकरी से विच्छेदन ,हाथ का यश ,मूत्र -पिंड ,वस्ति एवं गर्भाशय आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | 

---6 --रिपु ---इसे आपोक्लिम तथा षष्ठ भाव भी कहा जाता है | इस भाव का कारक मंगल है | इस  भाव के  द्वारा शत्रु ,चिंता ,संदेह ,जागीर ,मामा की स्थिति ,यश ,गुदा -स्थान ,पीड़ा ,रोग  तथा व्रणादि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | ------आगे की जानकरी 62 वे भाग में पढ़ें ----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com


खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...