सूर्य का आना -जाना "अयन " कहलाता है | हिन्दू -धर्म की मान्यतानुसार अयन दो होते हैं ,जिनकी कालावधि "कालविधि " उत्तरायण -13 या 14 जनवरी से आरम्भ होकर ,जो संक्रमण 15 जुलाई को समाप्त होता है ,--उसे उत्तरायण कहते हैं | --इसी प्रकार 16 जुलाई से 12 जनवरी तक की कालावधि दक्षिणायन समझी जाती है |
---उत्तरायण में शुभकार्य किये जाते हैं और दक्षिणायन में कोई भी शुभकार्य नहीं किया जाता है | उत्तरायण सूर्य में जन्म लेने वाला व्यक्ति सदैव प्रसन्नचित ,स्त्री और पुत्रादि से संतोष एवं सुख पाने वाला ,दीर्घायु ,श्रेष्ठ ,अचार -विचार वाला ,उदार व धैर्यशील होता है | ----जबकि दक्षिणायन सूर्य में जन्म लेने वाला व्यक्ति कृपण ,पंडित ,लोक प्रसिद्ध ,पशुपालक ,निष्ठुर ,दुराग्रही और उच्छृंखल होता है |
----कुछ ज्योतिष -संहिता के ग्रंथों में उत्तरायण को देवता का दिन कहा है ,जबकि सूर्य विषुव वृत्त से उत्तर में रहता है | मेरु पर रहने वाले देवताओं को वो छह मास तक सतत दिखाई देता है ,--अतः इस कथन से भी सूर्य की युगल गतियों का होना सिद्ध होता है | --'अयन "-शब्द का प्रयोग किस काल के लिए किया गया है --इसका उल्लेख वेदों में अन्यत्र नहीं मिलता है |
-----सूर्य का आकाशीय नक्षत्रों और ग्रहों पर अमिट प्रभाव पड़ता है | एक प्रकार से सृष्टि का सञ्चालन ही सूर्य से होता है | ---ध्यान दें --कुण्डली निर्माण करते समय पत्रिका में उल्लेख करना होता है -बालक उत्तरायण में जन्म लिया या दक्षिणायन में ----आगे के आलेख में मौसम पर विचार रखेंगें --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -
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