i---यदि किसी ग्रह का कोई ग्रह नैसर्गिक तथा तात्कालिक दोनों प्रकार से मित्र हुआ तो वो अधिमित्र माना जाता है |
-2 -यदि किसी ग्रह का कोई ग्रह नैसर्गिक तथा तात्कालिक दोनों प्रकार से शत्रु हुआ तो वो अधिशत्रु होता है |
-3 -यदि किसी ग्रह का कोई ग्रह नैसर्गिक तथा तात्कालिक ,इन दोनों प्रकार में से एक में मित्र व् एक में शत्रु हुआ ,तो वो "सम "माना जाता है |
--4 --यदि किसी ग्रह का कोई ग्रह नैसर्गिक मैत्री -चक्र में सम है और तात्कालिक चक्र में मित्र है ,तो वो परिणामतः मित्र हुआ |
---5 --यदि किसी ग्रह का कोई ग्रह नैसर्गिक मित्र चक्र में सम है और तात्कालिक चक्र में शत्रु हुआ ,तो परिणामतः वो शत्रु हुआ | नैसर्गिक मित्रामित्रता -"मित्रता अमित्रता " तथा तात्कालिक मित्रामित्रता -मित्रता अमित्रता -वश उपर्युक्त पांच प्रकार के सम्बन्ध स्थापित हो सकते हैं | इस कारण दोनों प्रकार के मैत्री -चक्र का समन्वय करने से जो सम्बन्ध -चक्र बनता है --उसे पंचधा -पांच प्रकार का मैत्री सम्बन्ध कहते हैं | -----भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com

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