ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

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ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुधवार, 14 अगस्त 2024

रक्षाबंधन का इतिहास एवं महत्व -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अभिमान को इसी दिन चकानाचूर किया था। इसलिए यह त्योहार 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्योहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं।रक्षाबंधन के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। तभी से राखी बाँधने की प्रथा शुरू हुई। हिंदू पुराण कथाओं के अनुसार, महाभारत में, पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।एक अन्य उदहारण के अनुसार चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और वह भी संकट के समय बहन कर्मवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ आ पहुँचा था। दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बाँधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधते हैं।रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई को प्यार से राखी बाँधती है और उसके लिए अनेक शुभकामनाएँ करती है। भाई अपनी बहन को यथाशक्ति उपहार देता है। बीते हुए बचपन की झूमती हुई याद भाई-बहन की आँखों के सामने नाचने लगती है। सचमुच, रक्षाबंधन का त्योहार हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलाता है।आजकल तो बहन भाई को राखी बाँध देती है और भाई बहन को कुछ उपहार देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। लोग इस बात को भूल गए हैं कि राखी के धागों का संबंध मन की पवित्र भावनाओं से हैं।यह जीवन की प्रगति और मैत्री की ओर ले जाने वाला एकता का एक बड़ा पवित्र पर्व है। आप सभी को मेरी ओर से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ..... - -दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut--- आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

मंगलवार, 13 अगस्त 2024

"रक्षा बंधन" विशेष -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 "रक्षा और भावना का नेह-" पगा सूत्र "

राखी संस्कृत शब्द *रक्ष* से बना है जिसका तात्पर्य रक्षा करना है। श्रावण की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले पर्व रक्षाबन्धन का उद्देश्य भी रक्षा से सम्बंधित है। इसमें स्त्रियां चांदी जैसे चमकीले और सोने जैसे सुनहरे धागों से ओतप्रोत रंग-बिरंगे फूलों से सजी राखियां अपने भाइयों की कलाई पर बांधकर उनकी सुख-समृद्धि और मंगल की कामना करती हैं।
दूसरी ओर उनसे अपने लिए हर प्रकार के सहयोग और पूर्ण सुरक्षा की कामना करती हैं। बहनों द्वारा इस दिन भाई की दोनों भौंहों के मध्य तिलक करने का तात्पर्य उसके आन्तरिक प्रकाश को जागृत कर उसे जीवन के कल्याणकारी लक्ष्य की ओर अग्रसर करना है। माथे पर तिलक के साथ भाइयों को विविध प्रकार के सुस्वादु मिष्टान्न भी बड़े चाव, श्रद्धा और प्रेम से खिलाये जाते है जिससे उनका व्यवहार न केवल बहनों के लिए अपितु समस्त नारी जाति के लिए मृदुल और विनम्र बना रहे।
भारतीय संस्कृति में श्रावण मास का विशेष महत्व है। हमारे शास्त्रों में श्रावण मास की पूर्णिमा विविध रूपों में मान्य है। राखी के धागे मात्र सूत्र के होने पर भी जीवन को पावन और नैतिकतापूर्ण बनाते हैं साथ ही हमारे समस्त जीवन में सूत्र रूप में नैतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना में सहयोगी बनते हैं। ये कच्चे धागे स्वयं में मजबूत न होते हुए भी जिसकी कलाई पर बांधे जाते हैं उससे न केवल अटूट संबंध बनाते हैं वरन् नि:स्वार्थ प्रेम, शुचिता और आध्यात्मिक बन्धन में बांधकर सदैव-सदैव के लिए *वसुधैव कुटम्बम्* के बन्धन में बांध देते हैं जहां वर्गभेद, जातिभेद और विभिन्न विचारों का कोई महत्व नहीं रहता।
असुर पुलोमा की पुत्री थीं. उन्हें पौलौमी भी कहते हैं. इंद्र ने इस अक्लमंद और सुंदर कन्या के बारे में सुन रखा था. इसलिए पुलोमा को युद्ध में हराने के बाद उन्होंने दंडस्वरूप पुलोमा से उसकी बेटी शची मांग ली. पुलोमा को लगा कि उसकी बिटिया इसी बहाने देव-स्थान में पहुंच गई तो देवताओं से बार-बार की लड़ाई से भी मुक्ति मिल जाएगी. वैसे भी वह लड़ाई में हारा हुआ था. उसने इंद्र की बात मानते हुए शची इंद्र को सौंप दी.
--जब इंद्राणी ने बांधी अपने पति को राखी--
भविष्य पुराण के मुताबिक, एक बार देवता और दानवों में 12 साल तक युद्ध हुआ लेकिन देवता विजयी नहीं हुए. हार के डर से घबराए इंद्र पहुंचे देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेने. तब बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधिविधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए. स्वास्तिवाचन के साथ उन्होंने ब्राह्मण की मौजूदगी में वह सूत्र इंद्र की दाईं कलाई पर बांधा. जिसके बाद इंद्र की देव-सेना ने दानवों को युद्ध में पटक दिया.
काबिल-ए-जिक्र यह भी है कि इंद्राणी ने इंद्र को रक्षा सूत्र बांधते हुए जो मंत्र पढ़ा था, उसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है. यह मंत्र था- ‘
*येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल । !------ ॐ|--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -----https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut ----उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...